Man Ki Ekagrata मन की एकाग्रता के उपाय
मन में पाँच प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं -
1. सदैव सुखी रहने की इच्छा। परन्तु पर्याप्त सुख-साधन नहीं होने से चित्त में मलीनता आ जाती है।
2. दूसरों की संपत्ति, गुण, यश व प्रगति को देखकर ईर्ष्या का भाव उत्पन्न होना।
3. दूसरे मनुष्यों की बुराई या अपमान या उपहास करने की इच्छा या भाव का उत्पन्न होना।
4. दूसरों से द्वेष करना।
5. किसी व्यक्ति के द्वारा आपको गाली देने पर, कठोर वचन बोलने पर या अपमान करने पर उनको सहन नहीं करके बदला लेने की चेष्टा करना।
इन विकारों से मन मलीन होकर विक्षिप्त हो जाता है अतः निम्नांकित उपायों से इन विकारों की निवृत्ति करनी चाहिए:-
1. सदैव सुखी रहने की इच्छा रखो परन्तु दुःख आने पर निराशा के भाव मत लाओ बल्कि उसे ईश्वरीय इच्छा मानकर सहन व स्वीकार करना चाहिए।
2. सुखी मनुष्यों को देखकर उनके प्रति मित्रभाव रखें। दूसरों के सुख से सुखी होना ईर्ष्या को समाप्त करता है।
3. अपने ही सामान सब प्राणियों के सुख-दुःख का अनुभव करते हुए दुखी को देखकर उसके दुःख को दूर करने की चेष्टा करना। इस प्रकार घृणा नष्ट होती है।
4. जो व्यक्ति धर्म मार्ग पर लगे हो उनको देखकर हर्षित होना तथा उनकी प्रशंसा करने से निंदावृत्ति नष्ट होती है।
5. प्राणायाम के अभ्यास से भी चित्त निर्मल होता है। इससे अज्ञान का आवरण दूर होता है। प्राणायाम का अभ्यास जैसे-जैसे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे ही मनुष्य के अविद्या जनित क्लेश दूर होते जाते हैं। प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से मन की चंचलता नष्ट होती है और धारणा शक्ति बढती है। .
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