Wednesday 29 January 2020

(6.11.1) Ram Ramaay Namah

 रां  रामाय नमः Raam Raamaay Namah राम मंत्र - प्रसन्नता व सफलता के लिए

भगवान् राम भगवान् विष्णु के अवतार हैं।  वे नैतिकता, श्रेष्ठ गुण तथा आदर्श के प्रतीक हैं। भगवान् राम को पुरुषोत्तम कहा जाता है। वे दया के सागर हैं।  उनसे सम्बन्धित यह मंत्र अर्थात  "रां रामाय नमः " प्रसन्नता का स्रोत है तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर कर जपकर्ता को उद्देश्य प्राप्ति में सफलता दिलाता है।  इस मंत्र की जप प्रक्रिया इस प्रकार है -
प्रातःकाल दैनिक कार्य से निवृत्त होकर उत्तर या पूर्व की तरफ मुख करके ऊनी आसन परबैठ जाएँ।  भगवान् राम का चित्र अपने सामने रखें।  अपनी आँखें बंद करके भगवान् राम का इस प्रकार ध्यान करें -
भगवान् राम जिन्होनें धनुष - बाण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन से विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदल से स्पर्धा करते वाम भाग में विराजमान श्री सीता जी के मुख कमल से मिले हुए हैं, उन आजानुबाहु , मेघश्याम,नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीरामचन्द्र जी का ध्यान करे। 
इसके बाद इस मंत्र का ग्यारह माला का जप करें।  मंत्र इस प्रकार है -
रां रामाय नमः। 
मंत्र जप के बाद आँखें बन्द  करके भावना करे. कि भगवान् राम आपको प्रसन्नता और सफलता का आशीर्वाद  दे रहे हैं। 

Monday 20 January 2020

(6.8.4) Shiva Manas Pooja

Shiva Manas Pooja  शिव मानस पूजा विधि 

वस्तुतः भगवान् को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है, वे तो भक्त की भावना को देखते हैं।  संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे पमेश्वर की पूजा की जा सके।  इसलिये पुराणों में मानस पूजा का विशेष महत्व माना गया है। भगवान्  शिव की मानसपूजा विधि इस प्रकार है -
हे दयानिधे ! हे पशुपते! हे देव ! यह रत्न निर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्नावलिविभूषित  दिव्य वस्त्र, कस्तूरिकागन्ध समन्वित चन्दन, जूही, चम्पा  और बिल्वपत्र से रचित पुष्पांजलि तथा धूप और दीप यह सब मानसिक (पूजोपहार ) ग्रहण कीजिये।  मैनें नवीन रत्न खण्डों से रचित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधि सहित पाँच प्रकार का व्यंजन, कदलीफल, शर्बत, अनेकों शाक, कपूर से सुवासित  और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल और ताम्बूल - ये सब मन के द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं; प्रभो ! कृपया इन्हें स्वीकार करें।
छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण, वीणा, भेरी, मृदंग,दुन्दुभी के वाद्य, गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम, नाना विधि स्तुति - ये सब मैं संकल्प से ही आपको समपर्ण करता हूँ; प्रभो ! मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये।  हे शम्भो ! मेरी आत्मा तुम हो, बुद्धि पार्वती जी हैं, प्राण आपके गण  हैं , शरीर आपका मन्दिर  है, सम्पूर्ण विषय -  भोग की रचना आपकी पूजा है, निंद्रा समाधि है, मेरा चलना - फिरना आपकी परिक्रमा है और सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं; इस प्रकार मैं जो - जो कर्म करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है। प्रभो ! मैनें हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण , नैत्र अथवा मन से जो भी अपराध किये हों; वे विहित हों  अथवा अविहित, उन सबको आप क्षमा कीजिये। हे करुणासागर श्री महादेव शंकर ! आपकी जय हो।