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Saturday, 5 November 2016

(8.8.3) Mangala Gauri vrat मंगला गौरी व्रतविधि तथा मंगला गौरी व्रत के लाभ

मंगला गौरी व्रत विधि तथा मंगला गौरी व्रत के लाभ Mangala Gauri Vrat Vidhi and benefits /मंगला गौरी व्रत कथा /मंगल गौरी व्रत उद्यापन 

When is Mangala Gauri Vrat observed /मंगला गौरी व्रत कब किया जाता है 
मंगला गौरी  व्रत विवाह के बाद स्त्री को पाँच वर्षों तक प्रतिवर्ष श्रावण के महीने में प्रत्येक मंगलवार को करना चाहिए। विवाह के बाद पहले श्रावण माह में पीहर में तथा अन्य चार वर्षों पतिगृह में ही यह व्रत करना चाहिये।
Mangala Gauri Vrat process मंगला गौरी व्रत विधि -
मंगलवार के दिन स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर पाटे पर लाल तथा सफ़ेद वस्त्र बिछायें। सफ़ेद वस्त्र पर नौ ढेरी चांवल और लाल वस्त्र पर सोलह ढेरी गेंहू की बना कर थोड़े से चांवल और रख कर उस पर गणेश जी को विराजित करें। पाटे के एक तरह गेंहू की छोटी ढेरी पर जल से भरा कलश रखें। फिर आटे का सोलह  मुँख वाला दीपक और सोलह बत्तियों से युक्त घी का दीपक  जलाये तथा पूजा करने का संकल्प लें। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें तथा आरती करें। फिर कलश की पूजा करें। फिर मंगला गौरी का  पूजन करें। इस पूजन के लिए एक थाली में चकला रखें, आटे की एक लोई बनाये और मिट्टी से गौरी की मूर्ति बनायें। पहले मंगला गौरी की मूर्ति को  पंचामृत से स्नान कराएँ फिर जल से स्नान करा कर वस्त्र और आभूषण धारण कराएँ। फिर रोली , चांवल , चन्दन, सिंदूर, हल्दी, मेहंदी, काजल लगा कर सोलह प्रकार के पुष्प चढ़ाएं।  माला, आटे के लड्डू , फल , पञ्च मेवा, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं। एक सुहाग की डिब्बी , तेल ,रोली , काजल आदि भी चढ़ाएं। फिर सोलह  बत्ती वाले  दीपक और कपूर को जला  कर आरती करें। व्रत के दूसरे दिन प्रात: काल नदी या तालाब में  गौरी की प्रतिमा का विसर्जन कर दें।
मंगला गौरी व्रत का फल :-
जो महिला यह व्रत करती उसका पति स्वस्थ रहता है व दीर्घायु होता है। वह सफल और प्रसन्न विवाहित जीवन जीती है। परिवार में शांति व सम्पन्नता रहती है।
 मंगला गौरी व्रत का उद्यापन -
पाँच साल में मंगला  गौरी के सोलह या बीस व्रत  पूर्ण हो जाने पर उद्यापन करने हेतु इस दिन उपवास रखें। सदा की भांति मंगला गौरी का पूजन किसी पंडित से करवाकर उन्हें वस्त्र , माला , लोटा आदि दक्षिणा  में दें। सोलह लड्डुओं पर ब्लाउज पीस और रुपये रख कर अपनी सासू माँ के पैर छू कर उन्हें दें। दूसरे दिन भी सभी देवी देवताओं और मंगला गौरी का पूजन  करें। फिर एक  थाली  में सुहाग की सभी  सामग्री और रुपये रख कर संकल्प करके सासू माँ के पैर छू कर उन्हें देने चाहिए। फिर सोलह जोड़ों को भोजन करा कर श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दें और प्रसाद वितरित करें।
 मंगला गौरी व्रत से जुडी कथा इस  प्रकार है - 
कुण्डिन नगर में धर्म पाल नाम का एक सेठ रहता था। उसके कोई पुत्र नहीं था इस लिए दंपति बड़े व्याकुल रहते थे। उनके यहाँ प्रति दिन एक जटा - रुद्राक्ष माला धारी भिक्षुक आया करता था। पति की सलाह से एक दिन सेठानी ने भिक्षुक की झोली में छिपा कर सोना डाल दिया। इस पर भिक्षुक ने उसे संतान  हीनता का  शाप दे दिया। फिर बहुत अनुनय करने पर गौरी की कृपा से उसे एक अल्प आयु पुत्र प्राप्त हुआ, जिसे गणपति ने सोलवें वर्ष सर्प दंशन का शाप दे दिया था परन्तु  उस बालक का विवाह एक ऐसी कन्या के साथ हुआ जिसकी माता ने मंगला गौरी व्रत किया  था, इस लिए वह शतायु हो गया और मंगला गौरी की कृपा से न तो उसे सांप काट  सका और न ही यमदूत ही सोलवें वर्ष में उसके प्राण ले जा सके।