Ganesh chaturthi ko Chandra Darshan Kyon Nahin Karana Chahiye
गणेश चतुर्थी को चन्द्रमा को क्यों नहीं देखना चाहिए
गणेश
अंक के पृष्ठ 247 के अनुसार यह कथा इस प्रकार है –
एक
बार की बात है, कैलाश के शिव सदन में लोक पितामह ब्रह्मा भगवान् शिव के समीप बैठे
हुये थे. उसी समय देवर्षि नारद वहाँ आये. उनके पास एक सुन्दर और स्वादिष्ट फल था.
नारद जी ने यह फल भगवान् शिव को दे दिया,
उस
अदभुद और सुन्दर फल को अपने पिता के हाथ में देखकर गणेश जी और षडानन जी दोनों आग्रह पूर्वक उस फल को माँगने लगे. तब
भगवान् शिव ने ब्रह्मा जी से पूछा “ ब्रह्मन, नारदजी द्वारा दिया हुआ यह अपूर्व फल
एक ही है और इसे गणेश और षडानन दोनों लेना चाहते हैं; आप ही बताएं, यह फल किसे दूँ
?
ब्रह्मा
जी ने उत्तर दिया- “ प्रभो, षडानन छोटे हैं इसलिए इस फल के अधिकारी तो षडानन ही
हैं.”
भगवान्
शिव ने वह फल षडानन को दे दिया. इससे गणेश जी ब्रह्मा जी पर कुपित हो गए.
जब
ब्रह्माजी ने अपने भवन पहुँच कर सृष्टि रचना का प्रयत्न किया तो गणेश जी ने विघ्न
उत्पन्न कर दिया. वे अत्यन्त उग्र रूप में ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हुए. ब्रह्मा
जी गणेश जी के उग्र रूप को देखकर भयभीत हो गए.
गणेशजी
का उग्र रूप और ब्रह्मा जी को भयभीत देख कर चन्द्रमा अपने गणों के साथ हँसने लगा.
चन्द्रमा
को हँसते हुए देख कर गणेशजी को क्रोध आ गया. उन्होंने चन्द्रमा को शाप दे दिया –
“हे चन्द्र, तुम्हारी अशिष्टता के कारण मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि अब से तुम कुरूप और मलीन हो जाओगे. तुम किसी के लिए
भी कभी देखने योग्य नहीं रहोगे और यदि किसी ने देख भी लिया तो वह पाप का भागी
होगा.
गणेश
जी के शाप के कारण चन्द्रमा श्री हीन, कुरूप और मलीन हो गया. वह सबके लिए अदर्शनीय
हो गया अतः वह अपने आचरण पर पछताने लगा.
चन्द्रमा
के अदर्शन से देवगण भी दुखी हुए. अग्नि और इन्द्र आदि देवता गणेश जी के समीप पहुँच
कर भक्ति पूर्वक उनकी स्तुति करने लगे.
देवताओं
के स्तवन से प्रसन्न होकर गणेशजी ने कहा – “मैं तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न हूँ.
आप चाहो तो वर मांग लो.
देवताओं
ने कहा, “ प्रभो, आप चन्द्रमा पर अनुग्रह करें और उनको दिए गए शाप से मुक्ति का
उपाय बताएं.”
इस पर
गणेश जी ने कहा,” देवताओं, मैं अपना वचन मिथ्या कैसे कर दूँ? परन्तु मैंने आपको वर
माँगने के लिए कहा है,इसलिए मैं आपके आग्रह को भी टालना नहीं चाहता हूँ. इसलिए मैं
मेरे शाप को सीमित कर सकता हूँ समाप्त नहीं. सीमित शाप यह है कि कोई भी जान बूझकर
या अनजान में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रमा को देखेगा, तो वह अभिशप्त होगा.
उसे अधिक दुःख उठाना पड़ेगा.” इस प्रकार गणेश जी द्वारा चन्द्रमा के शाप को सीमित
किये जाने से देवगण प्रसन्न हुए और गणेशजी को प्रणाम किया.
फिर
वे चन्द्रमा के पास गए और उससे (चन्द्रमा से) कहा,”हे चन्द्र, गणेश जी पर हँस करके
व उपहास करके तुमने अपराध किया है. हमने बहुत प्रयत्न पूर्वक गणेशजी को प्रसन्न और
संतुष्ट किया है. इस कारण उन दयानिधि ने तुम्हें वर्ष में केवल एक दिन अदर्शनीय
रहने का वचन देकर अपना शाप अत्यन्त सीमित कर दिया है. तुम भी उन करुणामय की शरण लो
और उनकी कृपा से शुद्ध होकर यश प्राप्त करो.”
देवताओं
की सलाह पर चन्द्रमा ने बारह वर्ष तक तप किया और गणेश जी के एकाक्षरी मन्त्र का जप
किया. इससे गणेश जी प्रसन्न हुए और चन्द्रमा के सामने प्रकट हुये. चन्द्रमा ने हाथ
जोड़ कर गदगद कंठ से उनकी स्तुति की और अपने द्वारा किये गए अपराध के लिए क्षमा
मांगी. चन्द्रमा के तप और स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने चन्द्रमा से कहा कि
जैसे पहले तुम्हारा सुन्दर रूप था, वैसा ही हो जायेगा, परन्तु जो मनुष्य भाद्रपद
शुक्ल चतुर्थी को तुम्हें देख लेगा, वह निश्चय ही अभिशाप का भागी होगा. उसे पाप,
हानि, मूढ़ता और कलंक का सामना करना पड़ेगा.
इसलिए भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी यानि गणेश चतुर्थी को चन्द्रमा को नहीं देखा जाता है. भगवान् कृष्ण को भी इस दिन चन्द्रमा का दर्शन करने से झूठे कलंक का सामना करना पड़ा था.