गणपति अथर्वशीर्ष के लाभ और पाठ करने की विधि Ganapati Atharvasheersh ke Laabh /Benefits
गणपति अथर्वशीर्ष के लाभ और पाठ करने की विधि
गणपति
अथर्वशीर्ष अथर्ववेद का भाग है. यह संस्कृत में रचित एक लघु उपनिषद् है. इसमें दस
ऋचाएँ हैं. यह प्रथम पूज्य गणपति यानि गणेशजी को समर्पित एक वैदिक प्रार्थना है.
इसमें भगवान् गणेश जी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों का वास मान कर उनसे
समस्त दुःख और कठिनाइयों को दूर करने की प्रार्थना की गयी है.
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लाभ –
गणपति
अथर्वशीर्ष का पाठ करने से बाधायें, कठिनाइयाँ और समस्त संकट दूर हो जाते हैं.
शरीर में
सकारात्मक और रचनात्मक शक्ति का संचार होता है तथा मानसिक शुद्धि होती है.
मानसिक
स्थिरता आती है, जिससे निर्णायक क्षमता बढ़ती है.
इसका पाठ
करने से सम्पन्नता व आर्थिक समृद्धि आती है.
मनोकामना
पूर्ण होती है.
जन्म
कुण्डली में पाप ग्रह राहु, केतु, शनि आदि की अशुभ स्थिति का कोई दुष्प्रभाव नहीं
पड़ता है.
जो इस
अथर्वशीर्ष का पाठ करता है, वह ब्रह्म को जानने योग्य हो जाता है. वह विघ्नों के
बंधन और पाँच महापातकों से मुक्त हो जाता है.
जो इस
उपनिषद् से गणपति का अभिषेक करता है, वह प्रखर वक्ता हो जाता है. जो चतुर्थी के
दिन उपवास करके इस उपनिषद का पाठ करता है, उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है. उसे
ब्रह्म विद्या प्राप्त होती है और वह भय मुक्त हो जाता है.
जो इस
उपनिषद का पाठ करता हुआ दूर्वा यानि दूब से गणपति की पूजा करता है, वह कुबेर के
समान समृद्ध हो जाता है, जो चाँवलों पूजा करता है, वह कीर्तिवान और मेधावान हो
जाता है.
जो
सूर्यग्रहण के समय नदी के किनारे बैठकर या गणेशजी की प्रतिमा के सामने बैठकर इस
उपनिषद का पाठ करता है, उसे मन्त्र सिद्धि प्राप्त होती है, वह महा विघ्नों,
महादोषों और महापापों से मुक्त हो जाता है. वह सभी विद्याओं का ज्ञाता हो जाता है.
गणपति अथर्वशीर्ष का दैनिक पाठ करने की विधि –
प्रातःकाल
स्नान आदि से निवृत होकर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जायें.
भगवान गणेशजी का चित्र अपने सामने रख लें.
दीपक और धूप बत्ती जलायें. आखें बंद करके भगवान् गणेशजी का ध्यान करें. इसके बाद
इस गणपति अथर्वशीर्ष का श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें और पाठ करने के बाद
भावना करें कि आपको भगवान् गणेशजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो रहें हैं.