अधिक मास व्रत / अधिक मास व्रत का महत्व - Adhik Maas Vrat And Its Importance
जिस वर्ष में अधिक मास होता है उस वर्ष में 12 माह के स्थान पर 13 माह हो जाते हैं ।
चैत्र आदि जो भी अधिक मास होता है उस वर्ष में दोनों महीनों को एक ही नाम से
पुकारा जाता है। उन्हें प्रथम मास और द्वितीय मास कहा जाता है। जैसे किसी वर्ष में
श्रावण अधिक मास है तो पहले मास का नाम प्रथम श्रवण और दूसरे मास को द्वितीय श्रवण
के नाम से पुकारा जाता है। जिस प्रकार प्रत्येक मास में 2 पक्ष होते हैं
अर्थात कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । इसी प्रकार अधिक मास में 4 पक्ष अर्थात कृष्ण
पक्ष, शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होते हैं। इनमें से दूसरे पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष व
तीसरे पक्ष यानि कृष्ण पक्ष अधिक मास कहलाता है। इन दोनों पक्षों के कुल 30 दिनों में अधिक
मास के निमित्त व्रत करना चाहिए और यथासामर्थ्य दान पुण्य आदि करना चाहिए । यदि
पूरे मास व्रत करना संभव नहीं हो तो जितने दिन भी व्रत कर सके उतने दिन ही व्रत
करना चाहिए और यथाशक्ति दान देना चाहिए।
अधिक मास व्रत का महत्व -
अधिक मास व्रत मनुष्य के समस्त पापों को हर
लेने वाला व्रत है । इस व्रत के विषय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि इसका फल
दाता, भोक्ता और अधिष्ठाता सब कुछ मैं ही हूँ इसी
कारण से इस अधिक मास का नाम पुरुषोत्तम मास भी है।
इस महीने में केवल ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य से जो व्रत, उपवास, दान, स्नान या पूजन आदि
किया जाता है, उनका अक्षय फल मिलता है और व्रत करने वाले के संपूर्ण कष्ट दूर हो जाते हैं।
इस महीने में दान पुण्य या अन्य निष्काम भाव से किए गए कार्य का अक्षय फल
प्राप्त होता है । यदि दान आदि का सामर्थ्य ना हो तो ब्राह्मण और साधुओं की सेवा, असहाय लोगों की
सहायता भी सर्वोत्तम है । इससे तीर्थ स्नान आदि के समान फल होता है।