हनुमान जी को शाप किसने दिया और क्यों दिया Hanumanji ko Shaap kyon Diya
हनुमान जी को शाप किसने दिया
हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 252 के अनुसार
बालक हनुमान बड़े ही चंचल और नटखट थे. एक तो वे भगवान्
शंकर के अंशावतार, दूसरे कपि शावक और इसके अतिरिक्त देवताओं द्वारा हनुमानजी को
दिए गये अमोघ वरदान. मृगराज की पूँछ पकड़कर उसे चारों तरफ घुमाना. हाथी को पकड़कर
उसकी शक्ति का अनुमान लगाना और विशाल वृक्ष को जड़ सहित हिला देना; प्रायः उनकी
नित्य की क्रीड़ा व खेलकूद के अन्तर्गत आता था.
वरदान जनित शक्ति से सम्पन्न बालक हनुमान तपश्वी
ऋषियों के आश्रमों में चले जाते थे और वहाँ कुछ न कुछ ऐसी चपलता कर देते थे, जिससे
ऋषियों को क्लेश पहुँचता था. एक ऋषि का आसन दूसरे ऋषि के समीप रख देते, किसी का
मृगचर्म ओढ़ कर पेड़ों पर कूदते या उसे किसी वृक्ष पर लटका देते. किसी के कमण्डल का
जल उलट देते तो किसी का कमण्डल फोड़ देते या उसे जल में बहा देते. अहिंसा परायण
मुनि ध्यान लगा कर जप करते रहते, किंतु हनुमानजी मुनि की दाढ़ी नोच कर भाग जाते.
किसी की कौपीन तो किसी की पोथी अपने दाँतों और हाथों से फाड़ कर फेंक देते थे.
ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा दिए गये वरदानों से अवगत
होने के कारण ऋषिगण विवस थे. वे चुप रह जाते थे, परन्तु उन्हें क्लेश पहुँचता था.
धीरे धीरे हनुमानजी की आयु विद्या अध्ययन के योग्य हो
गयी, पर उनकी चपलता बनी रही. हनुमान जी की माता अंजना और पिता वानर राज केसरी भी
इस स्थिति से बड़े चिंतित थे. अतः वे ऋषियों के पास गये और बालक हनुमान की चपलता और
चंचलता के बारे में उनको बताया तथा उनसे विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि आप कृपा
करके ऐसा उपाय करें कि यह बालक अपनी चपलता छोड़कर विद्या अध्ययन करना प्रारम्भ कर
दे.
कुछ वयोवृद्ध समर्थ ऋषि यह भी जानते थे कि यह बालक
देवताओं का हित साधन करने वाला है. या भगवान् श्री राम का अनन्य भक्त होगा और
अनुगत भक्त के लिए बल का अहंकार उचित नहीं है. अहंकार रहित भाव से ही प्रभु कृपा
का अधिकारी बना जा सकता है.
इस कारण भृगु और अंगीरा के वंश में उत्पन्न ऋषियों ने हनुमान जी को शाप दे दिया कि हे वानर वीर, तुम जिस बल का आश्रय लेकर उदंडता करते हो और हमें सताते हो, उस बल को हमारे शाप से मोहित होकर भूल जाओगे अर्थात तुम्हें अपने बल का पता ही नहीं चलेगा. लेकिन जब कोई तुम्हें तुम्हारी कीर्ति और बल का स्मरण करायेगा तभी तुम्हें तुम्हारे शक्तिशाली और बलवान होने आभास होगा और अपने बल का प्रयोग कर सकोगे.
तपस्वी मुनियों के इस प्रकार शाप देने से पवनकुमार का तेज और ओज कम हो गया और वे अत्यंत सौम्य स्वभाव के हो गये. अब वे अन्य कपि किशोरों की तरह आश्रमों में शांत भाव से विचरण करते. उनके मृदुल व्यवहार से ऋषि मुनि भी प्रसन्न रहने लगे.