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Sunday, 8 October 2023

(8.1.28) शरद पूर्णिमा व्रत कथा Sharad Poornima Vrat Katha / Sharad purnima Ki Kahani

 शरद पूर्णिमा व्रत कथा Sharad Poornima Vrat Katha / Sharad purnima Ki Kahani

शरद पूर्णिमा व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा इस प्रकार है -

किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके दो बेटियां थी जो हर महिने में आने वाली पूर्णिमा का व्रत रखा करती थी। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी तो पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि विधान के साथ करती थीलेकिन छोटी बेटी व्रत के नियमों का सही ढंग से पालन नहीं करती थी। वह व्रत के नाम पर खाना पूर्ति करती थी।

जब साहूकार की दोनों बेटियां विवाह योग्य हुई तो उसने दोनों का विवाह कर दिया। बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान ने जन्म लिया। वहीं छोटी बेटी के संतान तो होती थी लेकिन संतान के जन्म लेने के तुरंत बाद वह मर जाया करती थी। इस तरह छोटी बेटी के साथ यह लगातार दो-तीन बार हो गया।  इस पर उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी पूरी गाथा सुनाई और इस समस्या का  उपाय बताने के लिए कहा।  ब्राह्मण ने उसकी सारी बात सुनी और कुछ प्रश्न भी पूछे। फिर कहा कि तुम पूर्णिमा का व्रत तो करती हो  लेकिन हमेशा अधूरा व्रत करती हो इसलिए तुम्हें व्रत का पूरा फल नहीं मिल रहा है। वास्तव में तुम्हें अधूरे व्रत का दोष लग रहा है। ब्राह्मण की बात सुनकर लड़की थोड़ी दुखी हुई फिर उसने पूरी विधि विधान से पूर्णिमा  का व्रत करने का निर्णय किया। लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन जन्म लेने के साथ ही उसके बेटे की मृत्यु हो गई। हर बार ऐसी घटना से साहूकार की छोटी बेटी काफी दुखी हुई। उसने अपने बेटे के शव को एक पाटे पर रख दिया और  इसे एक कपड़े से इस तरह ढका कि किसी को पता ना चले। इसके बाद उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे उसी पाटे पर बैठने के लिए कहा जिस पर उसके बेटे का शव रखा था। जैसे ही बड़ी बहन उसे पाटे पर बैठी तो उसके लहंगे का हिस्सा उस मरे हुए बच्चे को स्पर्श कर गया। लहंगे के स्पर्श करते ही बच्चा जीवित होकर रोने लगा। बच्चों के रोने की आवाज सुनकर बड़ी बहन घबरा गई। फिर बड़ी बहन ने क्रोधित होकर कहा कि यह तुमने क्या किया? क्या तुम मुझ पर तुम्हारे बच्चे  की हत्या का कलंक लगाना चाहती थी ? मेरे इस बच्चे पर बैठने से अगर बच्चे की मृत्यु हो जाती तो मेरे ऊपर कलंक लगता। छोटी बहन ने उत्तर दिया कि यह बच्चा तो मरा हुआ ही थादीदी .  तुम्हारे स्पर्श से तो यह फिर से जीवित हो गया है।  हर पूर्णिमा पर जो तुम व्रत और तप किया करती हो उसके कारण तुम्हें वरदान प्राप्त है और तुम पवित्र हो गई हो। दीदी, अब मैं भी तुम्हारी तरह शरद पूर्णिमा पर विधि विधान से पूजन करूंगी। तभी से साहूकार की छोटी बेटी ने भी पूर्णिमा का व्रत नियम के अनुसार करना शुरू कर दिया और प्रसन्न रहने लगी। 

इसके बाद इस व्रत के महत्व और फल का प्रचार पूरे नगर में प्रसिद्ध हो गया। और सभी को पता चल गया कि पूर्णिमा का व्रत अधूरा नहीं करना चाहिए.

जिस प्रकार माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने साहूकार की बेटी की कामना पूरी कर सौभाग्य प्रदान किया वैसे ही हम सब पर कृपा बनी रहे।