राम हनुमान युद्ध Ram Hanuman Yuddha राम बड़े या राम का नाम Ram Bade Ya Ram Ka Naam
एक बार सुमेरु पर्वत पर सभी संतो की सभा का
आयोजन हुआ। कैवर्त देश के राजा सुकन्त भी उस सभा में संतों का आशीर्वाद लेने जा
रहे थे। रास्ते में उन्हें नारद जी मिले। राजा सुकंत ने उन्हें प्रणाम किया। इस पर
नारद जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर यात्रा का कारण पूछा तो राजा सुकंत ने उन्हें संत
सभा के आयोजन की बात बताई। नारद मुनि ने कहा, अच्छा है संतों की सभा में जरूर जाना चाहिए
परंतु जिस सभा में तुम जा रहे हो उसमें सभी को प्रणाम करना लेकिन ऋषि विश्वामित्र
का अभिवादन बिल्कुल मत करना। इस पर सुकन्त ने कहा कि यह तो उचित नहीं है। वे तो
पूजनीय हैं। उन्हें प्रणाम
क्यों नहीं करना चाहिए? इस पर नारद जी ने कहा कि तुम भी राजा हो और वे
भी पहले राजा ही थे। वे तो बाद में संत बने हैं इसलिए तुम उनको प्रणाम मत करना।
राजा सुकन्त ने ठीक वैसा ही किया जैसा नारद जी ने कहा था। विश्वामित्र जी को यह
अच्छा नहीं लगा।
सभा के समाप्त होते ही विश्वामित्र जी श्री राम
से मिलने पहुंचे। वहाँ पहुंचकर उन्होंने बताया कि उनका अपमान हुआ है। वैसे तो वे
इसे भूल भी जाते लेकिन यह तो संत परंपरा का अपमान है। राम जी ने पूछा आपका अपमान
किसने किया है? तब विश्वामित्र जी ने कहा कि राजा सुकन्त ने मुझे अभिवादन नहीं करके मेरा
अपमान किया है। इस पर राम जी ने कहा कि गुरु जी आपके चरणों की सौगंध लेकर
प्रतिज्ञा करता हूं कि जो सिर आपके चरणों में नहीं झुका उसे काट दिया जाएगा। कल
सुबह मैं उसका वध करूंगा।
श्री राम की इस सौगंध का जैसे ही राजा सुकन्त
को पता चला तो वे नारद जी के पास पहुंचे और
हाथ जोड़कर नारद जी को सारी बात बताई। साथ ही
प्राण दान की भी विनती
की। तब नारद जी ने उन्हें माता अंजनी की शरण
में जाने की सलाह दी और यह भी कहा कि अगर उन्होंने तुम्हें बचाने का वचन दे दिया
तो तुम अवश्य बच जाओगे।
राजा सुकंत माता अंजनी के पास पहुंचे और
उन्होंने माता अंजनी से कहा कि माता मुझे बचा लो अन्यथा विश्वामित्र जी मुझे मार
डालेंगे। इस पर अंजनी ने सुकन्त को उनके प्राण बचाने का वचन दिया। उन्होंने कहा कि
तुम हमारी शरण में हो तुम्हें कोई नहीं मार सकता। इसके बाद राजा सुकन्त को विश्राम
करने के लिए कहा।
शाम को जब हनुमान जी माता अंजना के पास पहुंचे
तो उनको सारी बात बताई। लेकिन राजा सुकन्त
को बुलाने के पहले हनुमान जी से सौगंध लेने को
कहा। तब हनुमान जी ने कहा कि मैं श्री राम के चरणों की
सौगंध लेता हूँ कि मैं सुकन्त के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा। तब माता अंजनी ने
राजा सुकन्त को बुलाया। हनुमान जी ने पूछा कि तुम्हें कौन मारना चाहता है। तब
सुकन्त ने बताया कि श्री राम उन्हें मारना मार डालेंगे। इतना सुनते ही माता अंजनी
हैरान रह गई। उन्होंने कहा कि तुमने तो विश्वामित्र जी का नाम लिया था। तब राजा ने
कहा कि नहीं वे तो मरवा डालना चाहते हैं लेकिन मुझे मारेंगे तो राम ही और उनके
कहने पर मारेंगे।
हनुमान जी ने राजा सुकन्त को उनकी राजधानी में
छोड़ा और वे श्री राम के दरबार में पहुंचे। वहाँ पहुंचकर उन्होंने राम जी से पूछा
कि वे कहाँ जा रहे हैं। तब श्री राम ने बताया कि वे राजा सुकन्त का वध करने जा रहे
हैं। इस पर हनुमान जी ने कहा कि प्रभु उसे मत मारिये। राम
जी ने कहा कि मैं तो अपने गुरु की सौगंध ले चुका हूँ, अब मैं पीछे नहीं
हट सकता। हनुमान जी ने कहा प्रभु मैं उसके प्राण की रक्षा करने के लिए अपने इष्ट
देव यानि कि आपकी सौगंध ली है। तब राम जी ने कहा कि ठीक है तुम अपना वचन निभाओ और
मैं मेरा वचन निभाऊंगा। मैं तो उसे मारूंगा।
हनुमान जी राजा सुकन्त को लेकर पर्वत पर पहुंच
गए और राम नाम का कीर्तन करने लगे। उधर राम जी राजा सुकन्त को मारने के लिए उनकी
राजधानी पहुंचे। लेकिन वे वहाँ नहीं मिले तो वे उन्हें ढूंढते हुए पर्वत पर पहुंच
गए जहां हनुमान और सुकन्त बैठे हुए थे।
वहाँ हनुमान जी राम मंत्र का जप कर रहे थे। राम
जी को देखते ही सुकन्त डर गए। उन्होंने कहा कि अब तो राम जी मुझे मार ही डालेंगे।
वे बार-बार हनुमान जी से पूछते कि क्या मैं बच
पाऊंगा? तब उन्होंने कहा कि राम मंत्र का जप करते रहो और निश्चिंत रहो। भगवान नाम पर
पूरा भरोसा रखो। लेकिन वे काफी डरे हुए थे तो हनुमान जी ने सुकन्त को राम नाम
मंत्र के घेरे में बिठा लिया और इसके बाद राम नाम जपने लगे। राम जी ने राजा सुकन्त
को देखकर बाण चलाना शुरु किया लेकिन राम नाम के मंत्र के सामने उनके बाण असफल हो
गए। यह देख कर राम जी हताश हो गए कि अब क्या करें?
यह दृश्य देखकर लक्ष्मण जी को लगा कि हनुमान जी
भगवान राम को परेशान कर रहे हैं तो उन्होंने स्वयं ही हनुमान जी पर बाण चला दिया.
लेकिन यह क्या हुआ? उस बाण से हनुमान जी के बजाय राम जी मूर्छित हो
गए। यह देखते ही लक्ष्मण जी दौड़ पड़े और वे यह देखकर चकित रह गए कि बाण तो हनुमान
जी पर चलाया था लेकिन मूर्छित राम जी कैसे हो गए? तब उन्होंने देखा
कि पवनसुत के हृदय में यानि हनुमान जी हृदय में तो श्री राम बसते हैं। इसलिए
हनुमान जी के हृदय में लगे बाण का प्रभाव भगवान राम पर पड़ गया है।
राम जी जैसे ही होश में आए वे हनुमान जी की ओर
दौड़े। उन्होंने देखा कि उनकी छाती से रक्त बह रहा है। वे हनुमान जी का दर्द देख
नहीं पा रहे थे। वे बार-बार उनकी छाती पर हाथ रखते और आंखें बंद कर लेते। पवनसुत
को जब होश आया तो उन्होंने देखा कि राम जी आंखें बंद करके उनकी (हनुमान जी) की
छाती पर बार-बार हाथ रखते हैं, फिर उनके सिर पर हाथ फेरते हैं। तब हनुमान जी
ने सुकन्त को पीछे से निकाला और उसे अपनी गोद में बिठा लिया। तभी राम ने फिर से
हनुमान जी के माथे पर हाथ फेरा लेकिन इस बार वहाँ हनुमान जी की जगह राजा सुकन्त
थे। राम जी मुस्कुराए और हनुमान जी बोले कि उठे कि नाथ अब तो आपने इनके सिर पर हाथ
रख दिया है। अब तो सब कुछ आपके हाथ में है। इनकी मृत्यु भी और इनका जीवन भी। आप ही
सुकन्त के जीवन की रक्षा करें।
राम जी ने हनुमान जी से कहा कि जिसे तुम अपनी
गोद में बिठा लो तो उसके सिर पर तो मुझे हाथ रखना ही पड़ेगा। लेकिन गुरु जी को
क्या जवाब देंगे? तभी हनुमान जी को विश्वामित्र जी सामने से आते हुए दिखाई पड़े। उन्होंने
(हनुमानजी ने) राजा सुकन्त से कहा कि जाओ तब प्रणाम नहीं किया तो क्या हुआ अब
प्रणाम कर लो। राजा ने दौड़कर विश्वामित्र जी का आदर पूर्वक अभिवादन किया। वे (विश्वामित्र जी)
भी प्रसन्न हो गए और बोले राम इसे क्षमा कर दो।
मैंने इसे क्षमा कर दिया है क्योंकि संत का काम मिटाना नहीं बल्कि सुधारना होता है।
यह भी सुधर गया है.
उन्होंने सुकंत से पूछा कि संत का सम्मान न
करने की सलाह तुम्हें किसने दी थी? राजा सुकंत विश्वामित्र से कुछ कहते इससे पहले
ही नारद मुनि प्रकट हो गए. उन्होंने सारी घटना सुना दी. तब विश्वामित्र जी ने पूछा
कि नारद जी आपने ऐसी सलाह क्यों दी? तब नारद जी ने कहा
कि लोग प्रायः मुझे
पूछते थे कि राम बड़े हैं या राम का नाम बड़ा
है? तो मैंने सोचा कि क्यों न कोई लीला हो जाए जिससे लोग अपने आप ही समझ लें कि
भगवान से अधिक भगवान के नाम की महिमा है.
जय श्री राम