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Thursday, 24 April 2025

(6.13.1) परशुराम जी ने क्षत्रिय जैसा आचरण क्यों किया? Parashuraam Ji Ka Acharan Kshatriyon Jaisa Tha

 ब्राह्मण होते हुए भी परशुराम जी ने क्षत्रिय जैसा आचरण क्यों किया? Parashuraam  Ji  Ka  Acharan  Kshatriyon  Jaisa  Tha

प्राचीन काल में कन्नौज में गाधि नाम के राजा राज्य करते थे। उनके एक पुत्री थी जिसका नाम सत्यवती था। एक बार भृगु ऋषि के पुत्र ऋषि ऋषिक राजा गाधि  के पास गए और कहा कि तुम तुम्हारी पुत्री सत्यवती का विवाह मुझसे कर दो। राजा गाधि  सत्यवती का विवाह ऋषि ऋचीक के साथ नहीं करना चाहते थे, परंतु ऋषि के श्राप के डर से उन्होंने सत्यवती का विवाह ऋचीक ऋषि के साथ कर दिया।

विवाह के बाद भृगु ऋषि ने ऋषि ऋचीक के आश्रम में आकर अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद दिया और उसको वर मांगने के लिए कहा। इस पर सत्यवती ने अपनी माता के एक पुत्र हो जाने का वर मांगा।

सत्यवती की प्रार्थना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र (चरु का अर्थ होता है, हविष्यान्न अर्थात यज्ञ की आहुति में पकाया हुआ अन्न और पात्र का अर्थ होता है, बर्तन) अर्थात हविष्यान्न के दो पात्र  दिए और कहा कि तुम्हारी माता पुत्र होने की कामना को लेकर पीपल के वृक्ष का आलिंगन करें और तुम पुत्र की कामना को लेकर गूलर के वृक्ष का आलिंगन करना और इसके बाद दोनों चरुपात्रों में से इस पात्र के चरू  का सेवन तुम कर लेना और इस दूसरे पात्र के चरु  का सेवन तुम्हारी माता कर लेगी।

परन्तु संयोगवश जिस चरु का सेवन सत्यवती को करना था उसका सेवन उसकी माता ने कर लिया और जिस चरु का सेवन उसकी माता को करना था उस चरु का सेवन सत्यवती ने कर लिया।

योग शक्ति के प्रभाव से चरु के बदले जाने वाली बात का ज्ञान भृगु ऋषि को हो गया, तो वे अपनी पुत्रवधू सत्यवती के पास आए और बोले कि पुत्री जिस चरु का सेवन तुम्हें करना था उस चरु का सेवन तुम्हारी माता ने कर लिया और जिस चरु का सेवन तुम्हारी माता को करना था उस चरु का सेवन तुमने कर लिया इसलिए तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगा और तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा।

इस पर सत्यवती ने प्रार्थना की कि आप मुझे आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे। भृगु ऋषि ने सत्यवती की विनती को स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम्हारा पुत्र तो ब्राह्मण जैसा ही आचरण करेगा, परंतु तुम्हारा पौत्र तो निश्चित रूप से ही क्षत्रिय जैसा आचरण करने वाला होगा।

परिणाम स्वरुप समय आने पर सत्यवती की माता के गर्भ से विश्वामित्र जी का जन्म हुआ जो बाद में महान ऋषि हुए। सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ जो महान तेजस्वी थे। समय आने पर जमदग्नि का विवाह रेणुका के साथ हुआ और रेणुका के पाँच पुत्र हुए, जिनमें परशुराम जी सबसे छोटे थे। भृगु ऋषि के कहे अनुसार परशुराम जी का स्वभाव, आचरण और व्यवहार क्षत्रियों जैसा ही हुआ।