ये 6 प्रकार के लोग दुखी रहते हैं Ye 6 Prakaar Ke Log Dukhi Rahte Hain (Vidur Niti ) विदुर नीति
सुख या दुख किसी
भी व्यक्ति की मानसिक स्थिति है। हम हमारे सुख और विशेष रूप से दुख के लिए
परिस्थितियों को या अन्य व्यक्तियों को जिम्मेदार मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। महात्मा विदुर के अनुसार व्यक्ति स्वयं
ही ऐसा आचरण करता है, जिसके कारण उसे दुखी होना पड़ता है। वे कहते हैं कि ये छह
प्रकार के मनुष्य दुखी रहते हैं -
इनमें से पहला है, ईर्ष्या करने वाला -
ईर्ष्या एक मानसिक
विकृति है, एक नकारात्मक भावना है। ईर्ष्या के कारण व्यक्ति दूसरों की
चीजें, धन, संपत्ति, पद व प्रतिष्ठा से जलने लगता है। जबकि उस
ईर्ष्यालु व्यक्ति के जलने से दूसरे व्यक्ति की संपत्ति या पद और प्रतिष्ठा पर कोई
फर्क नहीं पड़ता है। इसके विपरीत ईर्ष्या, ईर्ष्यालू व्यक्ति को इस सीमा तक दुखी
बना देती है कि वह अपने पास सुख का जो भी साधन है, उसका भी उपयोग नहीं कर पाता है और वह
दुखी रहता है।
दूसरा है, घृणा करने वाला -
घृणा एक दूषित
मनोवृति है, जिसके कारण व्यक्ति दूसरों से नफरत करने लगता है, वैमनस्य रखने लगता है।
दूसरों से घृणा
करने का कारण कुछ भी हो, दूसरों पर घृणा का प्रभाव पड़े या ना
पड़े परंतु घृणा करने वाला व्यक्ति हमेशा ही दुखी रहता है।
तीसरा है, असंतोषी -
असंतोषी व्यक्ति
वह होता है, जिसमें तृप्ति का भाव नहीं होता है। वह अतृप्ति की भावना से
ग्रसित रहता है। प्रकृति का विस्तार अनंत है। इसमें पाने के लिए बहुत कुछ है। और
बहुत कुछ की कोई सीमा नहीं है। संतोषी व्यक्ति जो उसे प्राप्त होता है, उसी से प्रसन्न रहता है। इसके विपरीत असंतोषी व्यक्ति
पर्याप्त में भी अपर्याप्त देखा है और परिणाम स्वरुप दुखी रहता है।
चौथा है, क्रोधी -
क्रोध एक अवगुण है, एक नकारात्मक भावना है। क्रोधी व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है और अशोभनीय बात कह देता है या
ऐसा कार्य कर देता है, जिसका उसके संबंधों पर, व्यवसाय पर, और मित्रों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
परिणाम स्वरुप वह दुखी रहता है।
पांचवा है, सदा शंकित रहने वाला -
ऐसा व्यक्ति हर
चीज, हर व्यक्ति व हर घटना को संदेह की दृष्टि से देखता है। जबकि
संसार के अधिकतर कार्य विश्वास से ही चलते हैं। शक तथा संदेह से आपसी संबंध बिगड़ जाते हैं। शंकालु स्वभाव
वाला व्यक्ति खुद टूट जाता है और दुखी होता है।
छठा है, दूसरों के भाग्य पर निर्भर रहने वाला व्यक्ति -
सफल व्यक्ति वह है, जो अपने बलबूते पर किसी कार्य को शुरू करता है और अपने
अनुकूल परिणाम प्राप्त करता है। लोग उसकी तरफ सम्मान के भाव से देखते हैं इसके
विपरीत जो व्यक्ति अपने कार्य के लिए दूसरों पर आश्रित रहता है, यहां तक कि अपने जीवन निर्वाह के लिए भी
दूसरों का सहारा लेता है, दूसरों पर निर्भर रहता है। वह अपमानित
होता है और दुखी रहता है।
महात्मा विदुर की
बात को संक्षेप में कहा जा सकता है कि ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असंतोषी , क्रोधी, सदा शंकित रहने वाला और दूसरों के भाग्य
पर जीवन निर्वाह करने वाला, ये छह प्रकार के मनुष्य सदा दुखी रहते हैं।