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Friday, 2 May 2025

(6.5.10) भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे प्राप्त हुआ? Bhagwan Vishnu Ko Sudarshan Chakra Kisne Diya

भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे प्राप्त हुआBhagwan Vishnu Ko  Sudarshan Chakra Kisne Diya

भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे प्राप्त हुआ?  इस संदर्भ में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त शिव पुराण के कोटि रुद्र संहिता के अध्याय 34 में एक कथा इस प्रकार है -

एक समय की बात है, दैत्य अत्यंत प्रबल होकर लोगों को पीड़ा देने और धर्म का लोप करने लगे थे। उन महाबली और पराक्रमी दैत्यों से पीड़ित होकर देवताओं ने  देव रक्षक भगवान विष्णु से अपना सारा दुख कहा। तब श्री हरि विष्णु कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना करने लगे। वे भगवान शिव के  1000 नामों से उनकी स्तुति करते तथा प्रत्येक नाम बोल कर कमल का एक पुष्प चढ़ा देते थे। एक दिन भगवान शंकर ने भगवान विष्णु के भक्ति भाव की परीक्षा करने के लिए उनके द्वारा लाए हुए एक हजार कमल के पुष्पों में से एक पुष्प को छिपा दिया। 

शिव की माया के कारण घटित हुई इस अद्भुत घटना का भगवान विष्णु को पता नहीं लगा। उन्होंने एक फूल कम जानकर इसकी खोज आरंभ की, लेकिन वह फूल उनको कहीं भी नहीं मिला, तब भगवान विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपने कमल के समान एक नेत्र को ही निकाल कर ही भगवान शिव पर चढ़ा दिया। यह देख सबका दुख दूर करने वाले भगवान शंकर बड़े प्रसन्न हुए और वहीं उनके सामने प्रकट हो गए। प्रकट होकर वे श्री हरि से बोलेहे हरि मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम इच्छा अनुसार वर मांगो। मैं तुम्हें मनोवांछित वस्तु दूंगा। तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है। 

तब विष्णु बोले, हे नाथ आपके सामने मुझे क्या कहना है आप अंतर्यामी है अतः सब कुछ जानते हैं तथापि आपके आदेश का गौरव रखने के लिए मैं कहता हूँ। दैत्यों ने सारे जगत को पीड़ित कर रखा है। सदाशिव, सभी देवता दुखी हैं। उन्होंने आगे कहा कि  मेरा अपना अस्त्र-शस्त्र दैत्यों के वध में काम नहीं देता है। हे परमेश्वर, इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूँ।

भगवान विष्णु का यह वचन सुनकर देवाधिदेव महेश्वर ने अपना सुदर्शन चक्र उन्हें दे दिया। उसे पाकर भगवान विष्णु ने उन समस्त प्रबल दैत्यों का उस चक्र के द्वारा बिना परिश्रम के संहार कर डाला। इससे सारा जगत प्रसन्न हो गया। देवताओं को भी सुख मिला और अपने लिए उस आयुध को पाकर भगवान विष्णु भी अत्यंत प्रसन्न और परम सुखी हो गए।