नरकासुर
कौन था? कृष्ण तथा सत्यभामा ने नरकासुर का वध
किया Krishna
and satyabhama killed Narkasur
नरकासुर, प्राग ज्योतिषपुर का राजा था। उसका पूर्व
का नाम भाैमासुर था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके वरदान प्राप्त कर लिया
था कि उसे कोई भी देव, दानव
और मनुष्य नहीं मार सकेगा। कुछ समय तक तो नरकासुर अच्छी तरह से राज्य करता रहा, किंतु कुछ समय बाद उसके सारे आसुरी
अवगुण उभर कर बाहर आ गए। उसने इंद्रदेव को हराकर उसका राज्य ले लिया। नरकासुर के
अत्याचार से देवता गण त्रस्त हो गए। नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन
ली और त्रिलोक विजयी हो गया। उसने सहस्त्रों सुंदर कन्याओं का अपहरण कर लिया और
उनको बंदी बना लिया।
नरकासुर
के अत्याचार से त्रस्त होकर देवराज इंद्रदेव भगवान श्री कृष्ण के पास गए और
उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि हे कृष्ण, प्राग ज्योतिषपर के राजा नरकासुर के अत्याचार से देवता गण त्राहि
त्राहि कर रहे हैं। क्रूर नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन
ली और त्रिलोक विजयी हो गया है। उसने
कई सुंदर कन्याओं का अपहरण कर उन्हें बंदी गृह में डाल दिया है। प्रभु अब
आप ही हमारी रक्षा करें। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव की प्रार्थना को स्वीकार कर
लिया। वे अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर प्राग ज्योतिषपुर पहुंचे। नरकासुर को देव, दानव, मनुष्य नहीं मार सकता था। परंतु उसे
स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के
साथ मिलकर नरकासुर से घोर युद्ध करके उसका
वध किया।
उसके द्वारा अपहरण करके लाई गई 16000 कन्याओं को श्री कृष्ण ने मुक्त कर दिया। ये सभी कन्याएं दुखी और अपमानित थी। उन कन्याओं को कोई भी अपनाने के लिए तैयार नहीं था। इसलिए भगवान कृष्ण ने इन सभी कन्याओं को अपनी पत्नियों का दर्जा दिया ताकि उन्हें आश्रय और समाज में सम्मानजनक स्थान मिल सके।