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मास क्या है? कब आता है? क्यों आता है? Adhik Maas Kya Hai, Kab
Aata Hai
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मास क्या है? कब आता है? क्यों आता है?
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मास क्या है
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मास से तात्पर्य है एक अतिरिक्त माह या महिना. जब किसी वर्ष में अधिक मास होता है
तो उस वर्ष में बारह महीनों के स्थान पर तेरह महिनें होते हैं. यह तेरहवाँ मास ही
अधिक मास कहा जाता है. अधिक मास को अधिमास, मल मास, मलिम्लुछ मास या पुरुषोत्तम
मास भी कहा जाता है.
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मास क्यों और कब आता है
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मास की अवधारण को समझने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि सनातन पंचांग की काल
गणना के अनुसार माह दो प्रकार के होते हैं. जिनके नाम हैं चन्द्र मास और सौर मास.
चन्द्र मास चन्द्रमा की गति पर आधारित है और सौर मास सूर्य की गति पर आधारित होता
है. प्रत्येक चन्द्र माह में दो पक्ष होते हैं – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष. चन्द्र
मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को समाप्त होता है. जबकि सौर मास उस अवधि को
दिखाता है जो सूर्य द्वारा एक राशि को पार करने से बनती है अर्थात सूर्य की एक
संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक का समय सौर मास कहलाता है. सूर्य का एक राशि से
दूसरी राशि में जाना अर्थात राशि परिवर्तन करना संक्रांति कहलाता है.
जिस
प्रकार महीने दो प्रकार के अर्थात चन्द्र मास और सौर मास होते हैं वैसे ही वर्ष भी
दो प्रकार के होते हैं जिनको चन्द्र वर्ष और सौर वर्ष कहा जाता है. बारह चन्द्र
मासों का एक चन्द्र वर्ष होता है और बारह सौर मासों का एक सौर वर्ष होता है. एक चन्द्र वर्ष में लगभग 354 दिन होते
हैं और एक सौर वर्ष में लगभग 365 दिन होते हैं. इस प्रकार चन्द्र वर्ष और सौर वर्ष
में लगभग 11 दिन का अंतर आ जाता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 30 दिन के बराबर हो
जाता है. चन्द्र वर्ष और सौर वर्ष के बीच आये इस अंतर में समानता लाने के लिए ही
प्रति तीसरे वर्ष चन्द्र मास में एक अतिरिक्त मास जोड़ दिया जाता है यानि चन्द्र
वर्ष 12 मासों के बजाय 13 मास का हो जाता है. इस अतिरिक्त मास को ही अधिक मास कहा
जाता है. वास्तव में यह स्थिति स्वयं ही उत्पन हो जाती है, जिस चन्द्र मास में
सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ती, उसी मास को अधिक मास की संज्ञा दे दी जाती है.
इस
प्रकार दो चन्द्र मासों को एक ही नाम से पुकारा जाता है और उन्हें प्रथम मास और
द्वितीय मास कहा जाता है. जैसे किसी वर्ष में आश्विन मास अधिक मास है तो पहले मास
को प्रथम आश्विन और दूसरे मास को द्वितीय आश्विन के नाम से पुकारा जाता है. जिस
प्रकार प्रत्येक चन्द्र मास में दो पक्ष होते अर्थात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष
होते हैं, इसी प्रकार अधिक मास में चार पक्ष अर्थात क्रमशः कृष्ण पक्ष – शुक्ल
पक्ष – कृष्ण पक्ष –शुक्ल पक्ष होते हैं. इनमें से पहला पक्ष कृष्ण पक्ष और चौथा
पक्ष शुक्ल पक्ष शुद्ध मास कहलाता हैं. सभी पर्व – त्यौहार आदि इस शुद्ध मास में
ही आयोजित किये जाते हैं. तथा द्वितीय पक्ष और तृतीय पक्ष अशुद्ध मास कहलाता है.
इस अशुद्ध मास में कोई शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं.