शंकर स्वयं या शंकर सुवन Shankar Suwan or Shankar Swyam इनमें से क्या सही है? शास्त्रीय प्रमाण सहित जानिए
पुराणों में और इतिहास में श्री
हनुमान चरित्र का अनेक रूपों में वर्णन मिलता है। श्री हनुमान जी कहीं पर शंकर
सुवन है, कहीं पवन तनय हैं, कहीं केसरी नंदन है, कहीं आञ्जनेय हैं और कहीं साक्षात शंकर के रूप में वर्णित है।
हम विभिन्न प्रमाणों के आधार पर
जानेंगे कि हनुमान जी स्वयं ही शंकर हैं या शंकर सुवन यानि शंकर के पुत्र हैं।
सबसे पहले हम जानेंगे कि भगवान
शंकर स्वयं ही हनुमान जी हैं यानि हनुमान जी शंकर के ही अवतार हैं -
प्रसंगवश एक बार भगवान शंकर ने
भगवती सती से कहा कि रावण ने मेरी भक्ति तो की है, परंतु उसने मेरे एक अंश की अवहेलना
भी की है। तुम जानती ही हो कि मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूँ। जब उसने अपने 10
सिर अर्पित कर मेरी पूजा की थी, तब उसने मेरे एक अंश को बिना पूजा किए ही छोड़ दिया था। अब मैं उसी ग्यारहवें
अंश से उसके विरुद्ध युद्ध करके अपने प्रभु श्री राम की सेवा कर सकता हूँ। मैंने
वायु देवता के द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है। यह सुनकर
भगवती सती प्रसन्न हो गई।
इस प्रकार भगवान शंकर ही हनुमान जी
के रूप में अवतरित हुए थे।
इस तथ्य की पुष्टि गोस्वामी
तुलसीदास द्वारा लिखित दोहावली के दोहा संख्या 142 से भी होती है। यह दोहा इस प्रकार है -
जेहि सरीर रति राम सों, सोई आदरहिं सुजान।
रुद्रदेह तजि नेह बस वानर भे
हनुमान।
अर्थात सज्जन उसी शरीर का आदर करते
हैं जिसको श्री राम से प्रेम हो। इसी स्नेह वश रुद्र देह त्याग कर शंकर जी ने
हनुमान जी के रूप में वानर शरीर धारण किया है अर्थात भगवान शंकर ही हनुमान जी के
रूप में अवतरित हुए हैं।
गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित विनय
पत्रिका के परिशिष्ट में एक कथा इस प्रकार मिलती है -
एक बार शिवजी ने श्री रामचंद्र जी
की स्तुति की और यह वर मांगा कि हे प्रभु, मैं दास भाव से आपकी सेवा करना
चाहता हूँ, इसलिए कृपा करके मेरा मनोरथ पूर्ण कीजिए। श्री रामचंद्र जी ने “तथास्तु” कहा। वही शिवजी हनुमान जी के रूप
में अवतीर्ण होकर श्री राम के प्रमुख सेवक बने।
इससे भी यह सिद्ध होता है कि शंकर
स्वयं ही हनुमान जी हैं।
अब हम जानेंगे कि हनुमान जी को
शंकर सुवन यानि शंकर का पुत्र क्यों कहा जाता है?
गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान
अंक के पृष्ठ संख्या 123 के अनुसार हनुमान जी के जन्म का संक्षिप्त वृतांत इस
प्रकार है -
एक समय भगवान शम्भु को भगवान
विष्णु के मोहिनी रूप का दर्शन प्राप्त हुआ। उस समय ईश्वर की इच्छा से राम कार्य
की सिद्धि हेतु उनका वीर्य स्खलित हो गया। उसी
वीर्य को सप्तऋषियों ने पत्र - पुटक में सुरक्षित करके रख दिया। तत्पश्चात
उन्होंने ही शम्भु की प्रेरणा से उस वीर्य को गौतम कन्या अंजना में कान के रास्ते से स्थापित कर दिया। समय आने पर उस
गर्भ से वानर शरीरधारी महा पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ, जो शंकर सुवन श्री हनुमान के नाम
से विश्व में विख्यात हुए।
आनन्द रामायण के अनुसार एक अन्य
कथा, जो यह बताती है कि हनुमान जी शंकर के पुत्र हैं, इस प्रकार है -
सती साध्वी अंजना ने पुत्र
प्राप्ति की कामना से भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिये कठिन तपस्या की।
दीर्घकाल बीतने पर भगवान शंकर उसके तप से प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा उसे वरदान
मांगने के लिए कहा। तब अंजना ने शंकर के समान भोले भक्त, किंतु पवन के समान पराक्रमी पुत्र
देने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने कहा कि रूद्रगणों में से ग्यारहवें महारूद्र
तुम्हारे पुत्र होंगे। तुम हाथ फैला कर एवं आंखें बंद करके मेरे ध्यान में थोड़ी
देर खड़ी रहो। थोड़ी देर में पवन देव तुम्हारे हाथों में प्रसाद रखेंगे। उस प्रसाद
के खाने से निश्चय ही रुद्रावतार, परम तेजस्वी, वज्रांग शरीर, पुत्र रत्न तुम्हें प्राप्त होगा। ऐसा कहकर शिवजी अंतर्ध्यान हो गए।
इसी बीच राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ में अग्नि द्वारा दी गई
यज्ञ खीर के कुछ अंश को कैकयी के हाथ से एक चील लेकर आकाश में उड़ गई। उसी समय
भगवान की कृपा से भयंकर आंधी उठी। वह खीर चील के मुख से छूटकर वायु द्वारा अंजना
की अंजलि में गिर गई। उसी क्षण अंजना ने उसे खा लिया। उस खीर के खाने से वह
गर्भवती हुई और नौ मास बीतने पर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंगलवार के दिन मंगल वेला
में श्री हनुमान जी का जन्म हुआ।
इन सभी पौराणिक कथाओं से सिद्ध होता है कि भगवान शंकर स्वयं ही हनुमान जी भी हैं यानि हनुमान जी शंकर के ही अवतार भी हैं और शंकर सुवन यानि शंकर के पुत्र भी हैं।