Pages

Monday, 2 June 2025

(6.4.25) हनुमान जी को पवन तनय क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji Ko Pawan Tanay / Pawan Putra Kyon Kahate Hain

हनुमान जी को पवन तनय क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji Ko Pawan  Tanay / Pawan  Putra Kyon  Kahate Hain

इस संदर्भ में हनुमान अंक के पृष्ठ  संख्या 124 पर एक कथा इस प्रकार है

अप्सराओं में परम रूपवती पुंजिकस्थला नाम की एक लोक विख्यात अप्सरा थी। इसी ने ऋषि के श्राप से काम रुपिणी वानरी होकर पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। वही कपि श्रेष्ठ केसरी की भार्या होकर अंजना नाम से विख्यात हुई। पर्वत श्रेष्ठ सुमेरू पर केसरी राज्य करते थे। अंजना उनकी एक प्रियतमा पत्नी थी। वानरपति केसरी और अंजना दोनों एक दिन मनुष्य का वेष धारण करके पर्वत शिखर पर विहार कर रहे थे। अंजना का मनोहर रूप देखकर पवन देव मोहित हो गए और उन्होंने उसका आलिंगन किया। साधु चरित्रा अंजना ने आश्चर्यचकित होकर कहा कौन दुरात्मा मेरा पातिव्रत्य धर्म नष्ट करने को तैयार हुआ है? मैं अभी श्राप देकर उसे भस्म कर दूंगी।सती साध्वी अंजना की यह बात सुनकर पवन देव ने कहा सुश्रोणि मैंने तुम्हारा पातिव्रत्य नष्ट नहीं किया है। यदि तुम्हें कुछ भी संदेह हो तो इसे दूर कर दो। मैंने मानसिक संस्पर्श किया है। उससे तुम्हारे एक पुत्र होगा, जो शक्ति एवं पराक्रम में मेरे समान ही होगा, भगवान का सेवक होगा और बल बुद्धि में अनुपमेय होगा। मैं उसकी रक्षा करूंगा।

इस प्रकार भगवान शंकर ने अंश रूप में वायु का माध्यम लेकर अंजना के गर्भ से पुत्र उत्पन्न किया, जो भविष्य में शंकर सुवनपवन पुत्र, केसरी नंदन, आञ्जनेय आदि कहलाया। वे ही हनुमान जी अपनी अद्वितीय सेवाचर्या से भगवान श्री राम के अभिन्न अंग बन गए।