Wednesday, 3 September 2025

(6.6.9) वह विजय पाने का हकदार होता है Vijay Kaun Pataa Hai ? Krishna Ki Shiksha

 वह विजय पाने का हकदार होता है Vijay Kaun Pataa Hai ? Krishna Ki Shiksha

भगवान श्री कृष्णा अर्जुन से कहते हैं, हे पार्थ मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपना पतन न होने दे। और स्वयं ही अपना उद्धार करे। मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र भी है और स्वयं ही अपना शत्रु भी। जिसने अपने अहम, अपने मन और अपनी इंद्रियों को अपने वश में कर लिया हो, वह स्वयं ही अपना मित्र है और जो इनके बस में हो गया, पार्थ, वह स्वयं ही अपना शत्रु है।

जो शीतकाल और ग्रीष्मकाल, सुख और दुख, मान और अपमान में शांत रहे और संतुलन बनाए रखें, वह जितेंद्रिय पुरुष स्वतः ही विजय पाने का हकदार हो जाता है।

Tuesday, 2 September 2025

(6.4.29) आर्थिक सम्पन्नता हेतु हनुमान चालीसा की चौपाई Hanuman Chalisa Chaupai for Prosperity /Ashta Siddhi Nau Nidhi Ke Data

आर्थिक सम्पन्नता हेतु हनुमान चालीसा की चौपाई Hanuman Chalisa Chaupai for Prosperity

ब्रह्मा आदि अनेक देवताओं का आशीर्वाद और वरदान पाने के कारण हनुमान जी  अत्यन्त शक्ति सम्पन्न हैं. यदि कोई व्यक्ति हनुमान जी के किसी भी मंत्र का पूर्ण निष्ठा और विश्वास के साथ जप करे, तो उस व्यक्ति को हनुमान जी की कृपा व आशीर्वाद से भौतिक और अध्यात्मिक लाभ मिलते हैं.

हनुमान जी के पास आठ सिद्धियाँ और नौ निधियाँ हैं. इन सिद्धियों और निधियों को दूसरे व्यक्ति को प्रदान करने की शक्ति माता जानकी के आशीर्वाद से हनुमान जी को प्राप्त हुई हैं. अतः जो व्यक्ति हनुमान चालीसा की इस चौपाई का निष्ठा और विश्वास के साथ पाठ करे तो उसे हनुमान जी की कृपा से आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त होती है.

इस चौपाई का पाठ करने की विधि इस प्रकार है –

दैनिक कार्य से निवृत्त होकर प्रातःकाल उत्तर या पूर्व में मुहँ करके किसी शांत स्थान पर ऊन के आसन पर बैठ जाएँ. अपने सामने हनुमान जी का चित्र रख लें. अपनी आँखें बन्द करके हनुमान जी का ध्यान करें.

ध्यान इस प्रकार है –

अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरु के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन के के लिए अग्निरूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त, पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ.

इसके बाद निम्नांकित चौपाई का प्रतिदिन पाँच, सात या ग्यारह माला का निष्ठा व विश्वास के साथ तीन महीनें तक जप करें. जप जितना ज्यादा होगा, प्रतिफल उतना ही ज्यादा प्राप्त होगा. चौपाई इस प्रकार है –

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता.

दैनिक जप समाप्त हो जाने पर पूजा के स्थान को तुरंत नहीं छोड़े. मन्त्र जप के बाद शान्ति पूर्वक बैठ जाएँ, अपनी आँखें बंद करें व हनुमान जी के असीम स्नेह, शक्ति व आशीर्वाद का चिंतन करें और पूर्ण विश्वास के साथ भावना करें कि हनुमान जी की कृपा से आपको आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त हो रही है, आपके व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है और आपकी मनो कामना पूर्ण हो रही है.

इसके बाद आप हाथ जोड़ कर हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करें व उनके प्रति विश्वास की भावना के साथ जप के स्थान को छोड़ कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ.     

Saturday, 30 August 2025

(2.2.9) सुकरात के सुविचार Socrates Quotes in Hindi सुकरात के अनमोल विचार Sukrat Ke Suvicha

सुकरात के सुविचार Socrates Quotes in Hindi सुकरात के अनमोल विचार Sukrat Ke Suvichar

सुकरात के सुविचार Socrates Quotes in Hindi सुकरात के अनमोल विचार Sukrat Ke Suvichar

सुकरात यूनान के महान दार्शनिक और विचारकों में से एक थे. उन्होंने यूनान के नवयुवकों को स्वतन्त्र भाव से जीने का सन्देश दिया था. उनके विचार इतने प्रभावशाली थे कि जो व्यक्ति एक बार सुन लेता था तो वह उनका अनुयायी बन जाता था. तो, आइये ऐसे महान दार्शनिक के सुविचारों को सुनें –

जो व्यक्ति कम से कम में संतुष्ट है, वही व्यक्ति सबसे अधिक धनवान है, क्योंकि संतुष्टि ही प्रकृति की सबसे बड़ी दौलत है.

दुनिया में सम्मान से जीने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम वैसे बन जायें जैसा हम होने का दिखावा करते हैं.

मित्रता भले ही सोच समझ कर और समय लगा कर करो, लेकिन जब एक बार मित्रता हो जाये तो उसे बहुत ही विश्वास और मजबूती के साथ निभाओ.

आत्मा अमर है, लेकिन जो व्यक्ति नेकी के मार्ग पर चलते हैं उनकी आत्मा अमर और दिव्य भी होती है.

हमारी प्रार्थना बस सामान्य रूप से आशीर्वाद पाने के लिए ही होनी चाहिए न कि कोई वस्तु, क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है.

यदि सभी के दुर्भाग्य अलग अलग ढेर में रखे गए हो और जहाँ से सभी को बराबर हिस्सा लेना हो, तो अधिकांश लोग स्वयं के ढेर को ही लेना चाहेंगे. 

चाहे जो हो जाये, शादी अवश्य कीजिये. यदि अच्छी पत्नी मिली तो, आपकी जिन्दगी खुशहाल रहेगी; और यदि बुरी पत्नी मिली तो, आप दार्शनिक बन जायेंगे.

जो व्यक्ति अपने अवगुण और दूसरों के गुण देखता है, वही व्यक्ति महान बन सकता है.

झूठे शब्द सिर्फ खुद में ही बुरे नहीं होते, बल्कि वे आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं.

ऐसा व्यवहार दूसरों के साथ कभी नहीं करें जैसा व्यवहार कोई दूसरा आपके साथ करे तो, आपको बुरा लगे.

इस दुनियाँ में केवल एक ही चीज अच्छी है, वह है ‘ज्ञान’ और केवल एक ही चीज बुरी है, वह है ‘अज्ञान’.

व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत है उसके विचार, आप जो सोचते हैं और जैसा सोचते हैं, आप वैसे ही बन जाते हैं.

महान व्यक्ति विचारों और जीवन मूल्यों पर चर्चा करते हैं, साधारण व्यक्ति घटनाओं पर चर्चा करते हैं, जबकि निम्न श्रेणी के व्यक्ति खाने – पीने की चीजों  और एक दूसरे की चुगली पर चर्चा करते हैं.

एक गलत विचार का समर्थन जारी रखने से अच्छा है, आप अपनी राय बदल लें.

ख़ुशी का रहस्य ज्यादा पाने में नहीं है, बल्कि थोड़े का आनंद लेने की क्षमता विकसित करने में है.

हम उस बच्चे को आसानी से क्षमा कर सकते हैं जो अँधेरे से डरता हो, लेकिन जीवन की वास्तविक त्रासदी तब है, जब आदमी प्रकाश से डरने लग जाये.

साहसी व्यक्ति वह है जो परिस्थितियों से डर कर भागता नहीं है, वह अपनी जगह दृढ रहता है और हर परिस्थिति का सामना करता है.

सबसे आसान और विनम्र  तरीका यह है कि आप दूसरों को कुचलें नहीं बल्कि खुद में सुधार करें.

व्यक्ति पैसे से अच्छे गुण नहीं खरीद सकता, परन्तु अच्छे गुणों की वजह से वह धनवान अवश्य बन सकता है.

किसी भी समस्या को ठीक से समझ लेने से, उसके समाधान तक पहुँचने का आधा रास्ता पूरा हो जाता है.

जो व्यक्ति अपने अज्ञान के बारे में जानता है, वह सबसे ज्यादा बुद्धिमान है.

बहस समाप्त होने के बाद, निंदा हारे हुए व्यक्ति का हथियार बन जाती है.

 

(2.3.8) ऊँची सोच Unchi Soch प्रेरणादायक कहानी An inspirational story

ऊँची सोच Unchi Soch प्रेरणादायक कहानी An inspirational story

ऊँची सोच Unchi Soch प्रेरणादायक कहानी An inspirational story 

एक बार एक धनवान व्यक्ति किसी पर्यटन स्थल पर अपनी मंहगी कार के पास खड़ा होकर प्राकृतिक दृश्यों को निहार रहा था. तभी उसका ध्यान एक फटे पुराने वस्त्र पहने हुए गरीब लड़के की तरफ गया जो उसकी (धनवान व्यक्ति) कार को ध्यान पूर्वक देख रहा था. उस लड़के के चहरे पर विशेष प्रकार के भाव आ रहे थे. धनवान व्यक्ति को ऐसा लगा कदाचित वह लड़का उसकी कार में बैठना चाहता है.

गरीब लड़के पर तरस खाकर धनवान व्यक्ति ने कहा, “क्या तुम इस कार में बैठना चाहते हो?“ लड़के के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने कार का दरवाजा खोल दिया और लड़के को कार में बैठने का इशारा किया. लड़का भी कार में बैठने के लोभ का संवरण नहीं कर सका और वह कार में बैठ गया. थोड़ी देर तक कार में घुमाने के बाद उसने लड़के को खाने के लिए भी कुछ दिया.

कार से उतरते समय लड़के ने कहा, “ साहब, आपकी कार तो बहुत अच्छी है, यह तो बहुत ही मँहगी होगी.”

धनवान आदमी ने कहा, “हाँ बेटा, यह लाखों रुपये की है.”

लड़के ने जिज्ञासा वश पूछा, “ तब तो इसे खरीदने के लिए आपने बहुत मेहनत की होगी.”

धनवान व्यक्ति ने हँसते हुए कहा,” बच्चे, हर चीज मेहनत से नहीं मिलती. यह कार मेरे भाई ने मुझे उपहार में दी है.”

गरीब लड़के ने कुछ सोचते हुए कहा, “वाह ! आपके भाई कितने अच्छे हैं.”

धनवान आदमी ने कहा कि मुझे मालूम है कि तुम क्या सोच रहे हो ? तुम सोच रहे हो कि कितना अच्छा होता कि तुम्हारे भी कोई ऐसा भाई होता जो इतनी मंहगी कार तुम्हें उपहार के रूप में दे देता.

गरीब लड़के की आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक थी. उसने कहा, “नहीं साहब, मैं कार उपहार में लेने की बात नहीं सोच रहा हूँ. मैं तो आपके भाई की तरह बनने की बात सोच रहा हूँ.”  

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपनी सोच ऊँची रखनी चाहिए, दूसरों की अपेक्षा से कहीं अधिक ऊँची.


Wednesday, 27 August 2025

(6.6.8) नरकासुर कौन था? कृष्ण तथा सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया Krishna and satyabhama killed Narkasur

नरकासुर कौन था? कृष्ण तथा सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया Krishna and satyabhama killed Narkasur 

नरकासुर, प्राग ज्योतिषपुर का राजा था। उसका पूर्व का नाम भाैमासुर था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देव, दानव और मनुष्य नहीं मार सकेगा। कुछ समय तक तो नरकासुर अच्छी तरह से राज्य करता रहा, किंतु कुछ समय बाद उसके सारे आसुरी अवगुण उभर कर बाहर आ गए। उसने इंद्रदेव को हराकर उसका राज्य ले लिया। नरकासुर के अत्याचार से देवता गण त्रस्त हो गए। नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली और त्रिलोक विजयी हो गया। उसने सहस्त्रों सुंदर कन्याओं का अपहरण कर लिया और उनको बंदी बना लिया।

नरकासुर के अत्याचार से त्रस्त होकर देवराज इंद्रदेव भगवान श्री कृष्ण के पास गए और उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि हे कृष्ण, प्राग ज्योतिषपर के राजा नरकासुर के अत्याचार से देवता गण त्राहि त्राहि कर रहे हैं। क्रूर नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली और त्रिलोक विजयी हो गया है। उसने  कई सुंदर कन्याओं का अपहरण कर उन्हें बंदी गृह में डाल दिया है। प्रभु अब आप ही हमारी रक्षा करें। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। वे अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर प्राग ज्योतिषपुर पहुंचे।  नरकासुर को देव, दानव, मनुष्य नहीं मार सकता था। परंतु उसे स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर से घोर युद्ध करके  उसका वध किया।

उसके द्वारा अपहरण करके लाई गई 16000 कन्याओं को श्री कृष्ण ने मुक्त कर दिया। ये सभी कन्याएं दुखी और अपमानित थी। उन कन्याओं को कोई भी अपनाने के लिए तैयार नहीं था। इसलिए भगवान कृष्ण ने इन सभी कन्याओं को अपनी पत्नियों का दर्जा दिया ताकि उन्हें आश्रय और समाज में सम्मानजनक स्थान मिल सके। 

(6.6.7) अष्ट भार्या कौन थी? कृष्ण की आठ पत्नियाँ कौन थी? Eight wives of Lord Krishna /Who were थे wives of Krishna?

अष्ट भार्या कौन थी? कृष्ण की आठ पत्नियाँ कौन थी? Eight wives of Lord Krishna /Who were थे wives of Krishna?

भगवान् कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं उन्होंने प्रजा को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। वे सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। उन्होंने प्रेम,धर्म, सुरक्षा और दैवीय उद्देश्यों जैसे विभिन्न कारणों से कई विवाह किए थे। उनकी आठ प्रमुख पत्नियां थी, जिन्हें अष्ट भार्या कहा जाता है। उनके नाम इस प्रकार हैं -रुक्मणि, जांबवती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रवृंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा।

इन आठ प्रमुख रानियों (पत्नियों) के अतिरिक्त उनके अन्य  पत्नियाँ भी थी। ये वो कन्याएं थी जिनको उन्होंने नरकासुर से बचाया था। भागवत पुराण और महाभारत में कहा गया है कि ये 16000 कन्याएं थी जबकि हरिवंश पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार ये 16100 कन्याएं थी।

नरकासुर ने इन्हें बंदी बनाकर रखा हुआ था। नरकासुर का वध करके इन युवतियों को आजाद करा दिया। लेकिन इन सभी के सामने यह समस्या थी कि उनको कौन अपनाएगा और स्वीकार करेगा? इसलिए भगवान कृष्ण ने सभी को अपनी पत्नियों का दर्जा दिया ताकि उन्हें आश्रय और समाज में सम्मानजनक स्थान मिल सके। 

Friday, 22 August 2025

(7.1.34)देव गण वाले लोग कैसे होते हैं Dev Gan Vale Logo Ke Lakshan Aur Swabhav

देव गण वाले लोग कैसे होते हैं Dev Gan Vale Logo Ke Lakshan Aur Swabhav 

देव गण वाले लोग कैसे होते हैं

ज्योतिषीय सिद्धांतों के अनुसार हर व्यक्ति तीन मुख्य स्वभाव यानि देव, मनुष्य और राक्षस में से किसी एक का स्वभाव लेकर जन्म लेता है।

देवगण वाले व्यक्तियों का स्वभाव और सामान्य लक्षण इस प्रकार होते हैं -

देवगण वाले व्यक्तियों में दया, करुणा और आत्म नियंत्रण का गुण होता है। ऐसे व्यक्ति जल्दी क्रोधित नहीं होते हैं। वे दूसरों के प्रति संवेदनशील होते हैं। वे मीठा बोलने वाले और दूसरे व्यक्तियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने वाले होते हैं। उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृति होती है। वे किसी भी बात का विश्लेषण करते हैं और फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। वे संघर्षों से बचते हैं और शांति और सामंजस्य चाहते हैं। उनमें ईमानदारी का गुण होता है। वे समाज के हित की बात सोचते हैं और सहयोग की भावना रखते हैं।

देवगण वाले व्यक्तियों के विशेष गुण - 

इन नौ नक्षत्रों अर्थात अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण और रेवती में जन्म लेने वाले व्यक्ति देवगण की श्रेणी में आते हैं।

जन्म नक्षत्र के आधार पर देव गण वाले व्यक्तियों का स्वभाव और लक्षण इस प्रकार होते हैं -

अश्विनी नक्षत्र -

अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति घोड़े जैसी ऊर्जा और गति वाले होते हैं। ये किसी भी काम को अच्छी तरह सोच कर शुरू करते हैं। और इनमें दूसरों के दुख को दूर करने की  अद्भुत क्षमता होती है। इनका भाग्योदय 20 वर्ष की उम्र के बाद होता है।

मृगशिरा नक्षत्र

मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सुंदर और खोजी आंखों वाले होते हैं। ये व्यक्ति हमेशा कुछ नया खोजते रहते हैं। ये स्वभाव से कोमल और चंचल होते हैं, लेकिन जब कोई इन्हें चुनौती देता है, तो उसका सामना करने से नहीं डरते हैं। इनको कभी-कभी किसी बात पर अभिमान हो जाता है और प्रिय जनों से भी दूरी बना लेते हैं। इनका भाग्योदय 28 वर्ष की उम्र के पश्चात होता है।

पुनर्वसु नक्षत्र -

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति आशावादी होते हैं और जीवन में कितनी भी मुश्किलें आ जाएं, ये उनका सामना करते हैं। ये थोड़े में ही प्रसन्न रहने वाले और दान कार्य में रुचि रखने वाले होते हैं। इनका भाग्योदय 24 वर्ष के पश्चात होता है।

पुष्य नक्षत्र -

पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने नजदीक के व्यक्तियों का ख्याल रखते हैं। ये ज्ञानी, धार्मिक और सब की मदद करने वाले होते हैं। ये धर्म में आस्था रखते हैं। दूसरों की बात को शीघ्र समझ जाते हैं। अपने कार्य में दक्ष होते हैं। ये प्रशासनिक कार्य में कुशल होते हैं। इनका भाग्योदय 35 वर्ष के पश्चात होता है।

हस्त नक्षत्र -

हस्त नक्षत्र वाले लोग परिश्रमी होते हैं। ये जो भी काम हाथ में लेते हैं, उसे पूरी कुशलता से पूरा करते हैं। ये बुद्धिमान और मजाकिया स्वभाव के होते हैं। ये लोग परिश्रमी उत्साही और प्रतिभावान होते हैं। अपनी नीतियों को कुशलता पूर्वक लागू करते हैं। इन लोगों का भाग्योदय 30 या 32 वर्ष की उम्र के पश्चात होता है।

स्वाति नक्षत्र -

स्वाति नक्षत्र के व्यक्तियों को स्वतंत्रता पसंद हैवे बंधन को पसंद नहीं करते हैं। ऐसे व्यक्ति व्यापार और रिश्तो में सरलता पूर्वक संतुलन बना लेते हैं। ये सामान्यतया अकेले रहना पसंद करते हैं, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सामाजिक भी हो जाते हैं। इनका भाग्योदय 36 वर्ष की उम्र के आसपास होता है।

अनुराधा नक्षत्र -

अनुराधा नक्षत्र के व्यक्ति दोस्ती और भक्ति को मानने वाले होते हैं। ये जिससे भी जुड़ते हैं, पूरे दिल से जुड़ते हैं। ये जीवन में सद्भाव और संतुलन को महत्व देते हैं। इनका कार्य क्षेत्र अपने जन्म स्थान से किसी अलग स्थान पर होता है। ये भ्रमणकारी प्रवृत्ति के होते हैं। इनका भाग्योदय 35 वर्ष की उम्र के आसपास होता है।

श्रवण नक्षत्र -

श्रवण नक्षत्र के व्यक्ति अच्छे श्रोता होते हैं। ये दूसरों की बात को ध्यानपूर्वक सुनते हैं और सीखने की बात को सीखते हैं। ये परंपरावादी और बुद्धिमान होते हैं। ये अच्छे वक्ता भी होते हैं। ये असंकुचित विचारों के होते हैं। 19 से 24 वर्ष की उम्र में इनका भाग्योदय होता है।

रेवती नक्षत्र -

रेवती नक्षत्र के व्यक्तियों में तुलनात्मक रूप से जल्दी परिपक्वता आती है। ये जानवरों से भी प्रेम करते हैं। ये सामान्यतया धनवान और समृद्ध होते हैं। ये चतुर और सलाहकार होते हैं। इनका स्वभाव सौम्य और निश्चय दृढ़ होता है। ये अन्याय के विरुद्ध आवाज भी उठा लेते हैं। इनका भाग्योदय 25 से 27 वर्ष की उम्र में होता है। 

(7.1.33) गण दोष क्या होता है और इसका परिहार क्या है? Gan Dosh Kya Hota Hai? Gan Dosh Ka Parihar Kya Hai?

गण दोष क्या होता है और इसका परिहार क्या है? Gan Dosh Kya Hota Hai? Gan Dosh Ka  Parihar Kya Hai? 

गण दोष क्या होता है?

जन्म नक्षत्र के आधार पर जातकों को देवगण,मनुष्य गण तथा राक्षस गण, इन तीन प्रकार के गणों में  विभाजित किया जाता है।

यदि वर तथा वधु, दोनों का एक ही गण हो, जैसे वर का भी देवगण और वधु का भी देवगण हो, या वर का भी मनुष्य गण और वधु का भी मनुष्य गण हो या वर का भी राक्षस गण और वधु का भी राक्षस गण हो, तो विवाह करना उत्तम बताया गया है।

यदि किसी वर या वधू का देव गण हो और उसके साथी का मनुष्य गण हो, तो यह स्थिति भी शुभ है। इस स्थिति में भी विवाह करने में समस्याएं नहीं आती हैं।

यदि किसी वर या वधू का देवगण  हो या मनुष्य गण हो और उसके साथी का राक्षस गण हो, तो यह स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। इसी स्थिति को ही गण दोष कहा जाता है। यह वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं है।

गण दोष का प्रभाव तथा परिणाम -

गण दोष विवाह की अनुकूलता को प्रभावित करता है। गण दोष वाले जोड़ों में प्रायः भावनात्मक जुड़ाव की कमी होती है। वैवाहिक जीवन में कटुता आती है, आपसी तालमेल का अभाव रहता है, झगड़ा या क्लेश की स्थिति बनी रहती है। इसके अतिरिक्त इसके कारण अस्थिरता, असंतोष और मानसिक तनाव भी पैदा हो सकता है।

गण दोष का परिहार या समाधान  -

गण दोष के परिहार का तात्पर्य है, गण दोष का निष्प्रभावी होना। गण दोष का परिहार इस प्रकार है -

पहला - वर तथा वधू के राशि स्वामी एक हो अथवा उनमें आपस में मित्रता हो। या उनके नवांश पति एक हो अथवा उनमें मित्रता हो।

दूसरा - शुभ भकूट हो यानि शुभ नवपंचक, प्रीति षडाष्टक और शुभ द्विद्वादश हो।(शुभ भकूट संबंधी जानकारी भकूट दोष वाले वीडियो में दी गई है)।

तीसरा - नाड़ी दोष नहीं हो, यानि वर और वधु दोनों की नाड़ी भिन्न हो।(नाड़ी दोष की जानकारी, नाड़ी दोष वाले वीडियो में दी गई है।) 

Monday, 18 August 2025

(6..6.6) वह भला सुखी कैसे हो सकता है? Aisa Vyakti Kaise Sukhi Kaise Ho sakta Hai

वह भला सुखी कैसे हो सकता है? 

कृष्ण की शिक्षा 

कृष्ण कहते हैं, हे पार्थ जब काम की पूर्ति नहीं होती है, तो क्रोध उत्पन्न होता है। जब क्रोध उत्पन्न होता है, तो विषय के प्रति मोह और बढ़ जाता है। और जब मोह और बढ़ जाता है पार्थ, तो सोचने की शक्ति भटक जाती है। जब सोचने की शक्ति भटक जाती है, तो बुद्धि का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि का नाश होता है, तो मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है। और हे कुंती पुत्र, तुम्हारा यह मोह तुम्हें बुद्धि के विनाश की ओर ले जा रहा है। तनिक सोचो पार्थ कि जिसके पास बुद्धि ही नहीं होगी, उसे शांति कैसे मिल सकती है? वह तो शांति और अशांति में अंतर ही नहीं कर सकता। और जो शांति को अशांति से अलग तक नहीं कर सकता, वह भला कैसे सुखी हो सकता है।


Wednesday, 23 July 2025

(7.1.32) कुंडली मिलान में गण का महत्व और प्रभाव Kundali Milaan Me Gan Ka Mahatva Tatha Prabhav

कुंडली मिलान में गण का महत्व और प्रभाव Kundali Milaan Me Gan Ka Mahatva Tatha Prabhav

कुंडली मिलान में गण का महत्व -

विवाह के पूर्व वर तथा वधु के गुणों का मिलान 8 क्षेत्रों में किया जाता है। इन क्षेत्रों को ज्योतिष में कूट कहा जाता है। इन आठ कूटों में गण का बहुत अधिक महत्व है। प्रकृति, स्वभाव तथा गुणों के आधार पर जातकों को तीन प्रकार के गण वर्गों में विभाजित किया गया है। ये वर्ग हैं, देवगण, मनुष्य गण तथा राक्षस गण।

देवगण सतोगुण का, मनुष्य गण रजोगुण का तथा  राक्षस  गण तमोगुण का प्रतिनिधित्व करता है। नाम के अनुरूप ही जातकों में गुण व अवगुण होते हैं। देवगण वाले जातक में देवतुल्य गुणों की अधिकता होते है। राक्षस गण वाले जातकों में आसुरी स्वभाव वाले गुण अधिक होते हैं। मनुष्य गण वाले जातक मिश्रित गुणों वाले होते हैं। जिनमें गुण तथा अवगुण दोनों होते हैं।

गण का वैवाहिक जीवन पर प्रभाव -

पहला - वर तथा वधू दोनों का समान गण हो, तो दोनों में आपस में प्रेम बना रहता है। दोनों की प्रकृति, स्वभाव एवं विचारों में समानता रहती है। जैसे दोनों के देव गण या दोनों के मनुष्य गण या दोनों के राक्षस गण। ऐसा होने पर अष्ट कूट के अनुसार छः गुण मिलते हैं।और विवाह के लिए इस स्थिति को अच्छा माना जाता है।

दूसरा - देवगण तथा मनुष्य गण में मध्यम प्रीति रहती है।

वर का देवगण तथा वधू का मनुष्य गण हो तो छः गुण मिलते हैं और वर का मनुष्य गण तथा वधू का देवगण हो तो पांच गुण मिलते हैं। विवाह के लिए यह स्थिति भी अच्छी मानी जाती है।

तीसरा -  देवगण तथा राक्षस गण में शत्रुता होती है। वर का राक्षस गण तथा वधू का देवगण हो तो एक गुण मिलता है। विवाह के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है।

चौथा - मनुष्य गण तथा राक्षस गण में शत्रुता होती है, अतः शून्य गुण मिलता है। विवाह के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। 

Tuesday, 22 July 2025

(7.1.31) ज्योतिष में गण क्या होते हैं? गण कितने होते हैं? Gan Kise Kahte hain/ Gan Kitne Hote Hain/ Dev Gan, Manushya Gan, Rakshas Gan

ज्योतिष में गण क्या होते हैं? गण कितने होते हैं? Gan Kise Kahte hain/ Gan Kitne Hote Hain/ Dev Gan, Manushya Gan, Rakshas Gan 

ज्योतिष में गण क्या होते हैं?

गणसंस्कृत से लिया गया शब्द है,जिसका अर्थ होता है+ समूह”, “श्रेणीया झुंड। ज्योतिष में इसका प्रयोग किसी भी व्यक्ति के स्वभाव, मनोदशा और दूसरों के साथ उसकी अनुकूलता को समझने के लिए किया जाता है। यह जन्म के समय व्यक्ति के नक्षत्र यानि जन्म नक्षत्र द्वारा निर्धारित होता है। इसका प्रयोग विवाह के पूर्व जन्म कुंडली मिलान के लिए किया जाता है। गण एक दूसरे व्यक्ति की अभिरुचि को दिखाता है। गण के द्वारा यह भी ज्ञात होता है कि दो व्यक्तियों के बीच एक दूसरे के साथ संबंध तथा भावनात्मक लगाव कैसा रहेगा?

ज्योतिष में गणों के प्रकार

गण व्यक्तियों को उनके जन्म नक्षत्र के आधार पर वर्गीकृत करता है और उन्हें तीन श्रेणियों  में विभाजित करता है - देवगण,मनुष्य गण और राक्षस गण।

देवगण - जिस व्यक्ति का जन्म अनुराधा, पुनर्वसु, मृगशिरा,श्रवण, रेवती, स्वाति, अश्विनी, हस्त और पुष्य नक्षत्र में हुआ हो, तो ऐसे व्यक्ति को देवगण की श्रेणी में रखा जाता है।

मनुष्य गण - जिस व्यक्ति का जन्म तीनोंं पूर्वा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, भरणी और आर्द्रा नक्षत्र में हुआ हो, तो ऐसे व्यक्ति को मनुष्यगण की श्रेणी में रखा जाता है।

राक्षस गण - जिस व्यक्ति का जन्म मघा, अश्लेषा, धनिष्ठा, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, कृतिका, चित्रा और विशाखा नक्षत्र में हुआ हो, तो ऐसा व्यक्ति राक्षस गण की श्रेणी में रखा जाता है।