Monday, 23 June 2025

(6.4.28) लंकिनी कौन थी? लंकिनी और हनुमान जी की कथा Who was Lankini ? Lankini and Hanuman Ji

लंकिनी कौन थी? लंकिनी और हनुमान जी की कथा Who was Lankini ? Lankini  and Hanuman Ji 

लंकिनी कौन थी? लंकिनी और हनुमान जी

इस संदर्भ में गीतप्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक मे एक कथा इस प्रकार है –

आकाश में विचरण करते हुए हनुमान जी तीव्र गति से लंका के समुद्र तट पर पहुंच गए। वहाँ से उछलकर एक पर्वत पर चढ़ गए और वहीं से लंका पुरी को देखने लगे। लंका में सर्वत्र सहस्त्र विकराल सैनिकों की  कठोर  सुरक्षा व्यवस्था थी। ऐसी व्यवस्था देखकर, उन्होंने रात्रि में ही लंका में प्रवेश करने का निश्चय किया। धीरे-धीरे सूर्यास्त होता जा रहा था। पवन कुमार ने अत्यंत लघु रूप धारण कर लिया और इस छोटे रूप के साथ लंका में प्रवेश करने लगे। हनुमान जी के अत्यंत लघु रूप धारण करने पर भी लंका की रक्षा करने वाली देवी लंकिनी ने उन्हें देख लिया।  उसने उन्हें डाँटते  हुए कहा - अरे तुम कौन हो जो चोर की तरह इस नगरी में प्रवेश कर रहे होअपनी मृत्यु के पूर्व तुम अपना रहस्य और प्रयोजन प्रकट करो। 

हनुमान जी ने सोचा कि इससे विवाद करना उचित नहीं है। यदि और राक्षस आ गये, तो यहीं  युद्ध छिड़ जाएगा और माता सीता का पता लगाने के कार्य में विघ्न पड़ेगा। बसउन्होंने उसे स्त्री समझ कर उस पर बाएं हाथ की मुष्टि से धीरे से प्रहार किया। परंतु हनुमान जी के हल्के मुष्टि प्रहार से ही लंकिनी के नेत्रों के सम्मुख अंधेरा छा गया। वह खून की उल्टी करने लगी और पृथ्वी पर गिरकर मूर्छित हो गई। किंतु कुछ ही देर बाद वह फिर से संभली और उठकर बैठ गई। 

अब लंकिनी ने वानर शिरोमणि से कहा कि हे रामदूत हनुमानमैनें तुम्हें पहचान लिया है। तुमने लंकापुरी पर विजय प्राप्त कर ली। जाओ, तुम्हारा कल्याण हो। अब सीता के कारण दुरात्मा रावण के विनाश का समय अत्यंत निकट आ गया है। इस संदर्भ में बहुत पहले भगवान ब्रह्मा जी ने मुझसे कहा था कि त्रेता युग में साक्षात नारायण दशरथ कुमार श्री राम के रूप में अवतीर्ण  होंगे। उनकी पत्नी सीता देवी का रावण हरण करेगा। उन्हें ढूंढते हुए जब रात्रि में एक वानर लंका में प्रवेश करेगा और उसके मुष्टि  प्रहार से तुम व्याकुल हो जाओगीतब समझना कि अब असुर वंश का विनाश होने में विलंब नहीं है। पर मेरा परम सौभाग्य है कि दीर्घकाल के बाद आज मुझे उन श्री राम के प्रिय भक्त की अति दुर्लभ संगति प्राप्त हुई है। आज मैं धन्य हूँ। मेरे हृदय में विराजमान दशरथ नंदन श्री राम मुझ पर सदा प्रसन्न रहें। 

इसके बाद परम बुद्धिमान वायु नंदन ने अत्यंत छोटा रूप धारण कर लिया और फिर वे करुणा मय प्रभु राम का मन ही मन स्मरण करके बहुत ही सुरक्षित लंका में प्रविष्ट हो गये। 

श्री केसरी किशोर के लंका में प्रवेश करने के साथ ही जग जननी जानकी एवं लंकापति रावण की बायीं भुजा और बायें नेत्र तथा दशरथ कुमार श्री राम के दाएं अंग फड़क उठे। 

(6.4.27) सुरसा कौन थी ? हनुमान जी और सुरसा Who was Sursa ? Hanuman Ji and Surasa

सुरसा कौन थी ? हनुमान जी और सुरसा Who was Sursa ? Hanuman Ji  and Surasa

सुरसा कौन थी ? हनुमान जी और सुरसा 

इस संदर्भ में हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 275 पर एक कथा इस प्रकार है -

पवन पुत्र हनुमान जी भगवान राम के कार्य से वेग पूर्वक लंका की ओर उड़ कर जाते देख कर देवताओं ने उनके बल और बुद्धि का पता लगाने के लिए नागमाता सुरसा को भेजा। देवताओं के आदेश के अनुसार सुरसा ने अत्यंत विकट, बेडौल और भयानक रूप धारण कर लिया। उसके नेत्र पीले और दाढ़ें विकराल थी। वह आकाश को स्पर्श करने वाले विकटम मुंह बनाकर  हनुमान जी के मार्ग में खड़ी हो गई।

हनुमान जी को अपनी ओर आते देख कर नाग माता ने कहा - महामतेमैं भूख से व्याकुल हूँ ।  देवताओं ने तुम्हें मेरे आहार के रूप में भेजा है।  तुम मेरे मुख में आ जाओ । मैं अपनी भूख शांत कर लूं। 

अंजनानंदन  ने उत्तर दिया -  माता मेरा प्रणाम स्वीकार करो। मैं भगवान राम के कार्य से लंका जा रहा हूँ । इस समय माता सीता का पता लगाने के लिए मुझे जाने दो। वहाँ से शीघ्र ही  लौटकर तथा रघुनाथ जी को माता सीता का कुशल समाचार सुना कर, मैं तुम्हारे मुख में प्रविष्ट हो जाऊंगा। 

किंतु रामदूतके बल बुद्धि की परीक्षा के लिए आई सुरसा उन्हें किसी भी प्रकार से आगे नहीं जाने दे रही थी। तब हनुमान जी ने उससे कहा - अच्छा तुम मेरा भक्षण कर लो।    

सुरसा ने अपना मुंह एक योजन विस्तृत फैलाया ही था कि हनुमान जी ने तुरंत ही अपना शरीर आठ योजन बना लिया।  उसने अपना मुँह 16 योजन विस्तृत कर लिया  तब पवन कुमार  तुरंत 32 योजन के हो गए। सुरसा जितना ही अपना विकराल मुँह फैलाती  हनुमान जी उसके दुगने आकार के विशाल हो जाते थे। जब उसने अपना मुंह एक सौ योजन फैला लिया तब वायु पुत्र ने अंगूठे के समान अत्यंत छोटा रूप धारण करके उसके मुख में प्रविष्ट हो गए।  सुरसा अपना मुंह बंद करने ही वाली थी कि महामति हनुमान जी उसके मुख से बाहर निकल आए और  विनय पूर्वक  कहने लगे - माता मैं तुम्हारे मुंह से बाहर निकल आया हूं। तुम्हारी  बात पूरी हो गई है अब मुझे अपने प्रभु के आवश्यक कार्य के लिए जाने दो। 

सुरसा  तो रामदूत की केवल परीक्षा  करना चाहती थी। उसने कहा - वायु नंदननिश्चित ही तुम ज्ञान निधि हो। देवताओं ने तुम्हारी  परीक्षा के लिए मुझे भेजा था।  मैं तुम्हारे बल और बुद्धि का रहस्य समझ गई। अब तुम जाकर श्री राम के कार्य को करो। सफलता तुम्हें निश्चित रूप से वरण  करेगी। मैं तुम्हें हृदय से आशीष देती हूँ। 

(6.4.26) हनुमान जी के बारह नाम, उनके लाभ और जप की विधि Hanuman ji ke Barah Naamo Ke Laabh

हनुमान जी के बारह नाम, उनके लाभ और जप की विधि  Hanuman ji ke Barah Naamo Ke Laabh

हनुमान जी के बारह नाम, उनके लाभ और जप की विधि

हनुमान जी की कृपा तथा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई मंत्र और श्लोक हैं। आनंद रामायण में बताई गई हनुमान जी के 12 नामों की स्तुति भी उनमें से एक है। यह बहुत ही अद्भुत और चमत्कारी स्तुति है।

जो व्यक्ति इन 12 नामों का रात्रि में सोने के पहले  या प्रातः काल उठने पर अथवा यात्रा प्रारंभ करते समय पाठ करता है, उस व्यक्ति के समस्त भय दूर हो जाते हैं। वह व्यक्ति राज दरबार में या भीषण संकट में या जहां कहीं भी हो उसे कोई भी भय नहीं होता है।

इन बारह नामों का नित्य पाठ करने से प्रसन्नता, संपन्नता, बुद्धि और शारीरिक व मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थितियों से बाहर जाता है,  आवश्यकता केवल हनुमान जी और उनके नामों में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखने की है।

हनुमान जी के 12 नाम इस प्रकार है - 

ॐ हनुमते नमः

ॐ अंजनी सुताय नमः

ॐ वायु पुत्राय नमः

ॐ महा बलाय नमः

ॐ रामेष्टाय नमः

ॐ फाल्गुन सखाय नमः

ॐ पिंगाक्षाय नमः

ॐ अमित विक्रमाय नमः

ॐ उदधि क्रमणाय नमः

ॐ सीता शोक विनाशनाय नमः

ॐ लक्ष्मण प्राणदाताय नमः

ॐ दशग्रीव दर्पहाय नमः

इन 12 नामों  की जप प्रक्रिया इस प्रकार है -

दैनिक कार्य से निवृत्त होकर उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके ऊन के आसन पर किसी कमरे में या शांत स्थान पर बैठ जाए। हनुमान जी का चित्र अपने सामने रखें। अपनी आंखें बंद करके हनुमान जी का ध्यान करें व मन में भावना करें कि राम भक्त हनुमान जी शांत भाव से बैठे हुए हैं तथा उनके भक्तों को प्रसन्नता और संपन्नता का आशीर्वाद दे रहे हैं। उन्होंने जनेऊ पहन रखी है और उनका शरीर सूर्य की तरह चमक रहा है।  वे शरणागत की अवश्य सहायता करते हैं। मैं ऐसे राम भक्त हनुमान जी से प्रार्थना करता हूं कि वे मुझे प्रसन्नता, संपन्नता, बुद्धि और शक्ति प्रदान करें।

ऐसी भावना और प्रार्थना के बाद इन 12 नामों का कम से कम 11 माला का या 21 माला का जप करें। यह प्रक्रिया कम से कम तीन माह तक चले। ज्यादा अच्छे परिणाम पाने के लिए इन 12 नामों का जितना अधिक जप किया जाये, उतना ही श्रेष्ठ रहेगा।

इन 12 नाम का जप करने के अन्य लाभ इस प्रकार हैं - 

जप करने वाले व्यक्ति की दरिद्रता और दुखों का दहन होता है।

समस्त विघ्नों का निवारण होता है और अमंगलों का नाश होता है।

परिवार में दीर्घकाल तक सुख - शांति बनी रहती है।

मनुष्य के सभी मनोरथों की पूर्ति होती है।

नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।

मानसिक दुर्बलता दूर होती है।

बुद्धि, बल, कीर्ति, निर्भीकता आरोग्य और वाक्पटुता जैसे सकारात्मकता गुणों की वृद्धि होती है।

Thursday, 5 June 2025

(6.4.25) सूर्यदेव ने गुरु दक्षिणा में हनुमान जी से क्या मांगा? Suryadev Ne Guru Dakshina Me Hanuman Ji Se Kya Manga

सूर्यदेव ने गुरु दक्षिणा में हनुमान जी से  क्या मांगा? Suryadev  Ne  Guru Dakshina  Me Hanuman Ji Se Kya Manga

इस संदर्भ में हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 254 पर एक कथा इस प्रकार है -

हनुमान जी के शिक्षा प्राप्ति के लिये निश्चित उम्र प्राप्त करने पर माता अंजना और पिता केसरी ने उनको शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरु गृह भेजने का निश्चय किया। इसलिए उन्होंने अत्यंत उल्लास पूर्वक हनुमान जी का उपनयन संस्कार कराया और फिर उन्हें विद्या प्राप्ति के लिए गुरु के चरणों में जाने की आज्ञा दी। किंतु वे किस सर्वगुण संपन्न और आदर्श गुरु के समीप जाए? इस पर माता अंजना ने स्नेहपूर्वक कहा कि बेटा सर्वशास्त्र मर्मज्ञ, समस्त लोकों के साक्षी भगवान सूर्य देव हैं। इसलिए तुम उन्हीं के समीप जाकर श्रद्धापूर्वक शिक्षा ग्रहण करो।

फिर क्या था हनुमान जी ने माता-पिता के चरणों में प्रणाम किया, उनका आशीर्वाद प्राप्त किया और दूसरे ही क्षण वे आकाश में उछले और सूर्यदेव के पास पहुँच गए। उनके चरणों में सादर प्रणाम किया। तब सूर्य देव ने पूछा कि बेटा यहाँ कैसे आये हो?

हनुमान जी ने अत्यंत विनम्र वाणी में उत्तर दिया कि प्रभो, मेरा यज्ञोपवीत संस्कार हो जाने पर मेरी माता ने मुझे आपके चरणों में विद्याध्ययन करने के लिए भेजा है। आप कृपा पूर्वक मुझे ज्ञान प्रदान करें।

आदित्य बोले कि बेटा देख लो मेरी बड़ी विचित्र स्थिति है। मेरा रथ  निरंतर चलता रहता है। रथ से उतरना भी मेरे लिए संभव नहीं है। ऐसी दशा में मैं तुम्हें शास्त्र का अध्ययन कैसे करा पाऊँगा ? तुम ही सोच कर कहो कि क्या किया जाए?

भगवान दिवाकर ने ऐसा कहकर टालने का प्रयास किया। किंतु पवन पुत्र ने विनम्रता से कहा, प्रभो, रथ के वेगपूर्वक चलने से मेरे अध्ययन में क्या बाधा पड़ेगी? मैं आपके सम्मुख बैठ जाऊंगा और रथ के वेग के साथ ही आगे बढ़ता रहूंगा।

इस पर सूर्य देव ने हनुमान जी को शिक्षा प्रदान करने का निश्चय कर लिया। वे वेद आदि शास्त्रों एवं समस्त विधाओं के रहस्य को जितनी शीघ्रता से बोल सकते थे, बोलते जाते थे। हनुमान जी शांत भाव से उन्हें सुनते जाते थे। आदित्य नारायण ने हनुमान जी को  कुछ ही दिनों में समस्त वेद आदि शास्त्र, उपशास्त्र एवं विद्याएं सुना दी। सविधि  विद्या अध्ययन हो गया और वे पूर्ण रूप से पारंगत हो गए। 

शिक्षा की समाप्ति के पश्चात अत्यंत भक्ति पूर्वक अपने गुरु सूर्यदेव के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम कर अंजनानंदन ने हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना की कि प्रभो, गुरु दक्षिणा के रूप में आप अपना अभीष्ट व्यक्त करें।

सर्वथा निष्काम सूर्यदेव ने उत्तर दिया कि मुझे तो कुछ नहीं चाहिए, किन्तु यदि तुम मेरे अंश से उत्पन्न कपिराज बाली के छोटे भाई सुग्रीव की रक्षा का वचन दे सकोतो मुझे प्रसन्नता होगी। 

आपकी आज्ञा सिरोधार्य है, गुरुदेव। फिर हनुमान जी ने गुरु के सम्मुख प्रतिज्ञा की कि मेरे रहते सुग्रीव का बाल भी बांका नहीं हो सकेगा; मैं प्रतिज्ञा करता हूं। 

भगवान सूर्य देव ने कहा तुम्हारा सर्वविध मंगल हो और ऐसा कहकर उन्होंने आशीर्वाद दिया।  केसरी नंदन गुरुदेव के चरणों में पुनः साष्टांग लेट गए।

शिक्षा ग्रहण करके परम विद्वान पवन कुमार ने गंधमादन पर्वत पर लौटकर अपने माता-पिता के चरणों पर मस्तक रखा।  माता-पिता के हर्ष की सीमा नहीं थी।  उस दिन उनके यहां ऐसा अद्भुत उत्सव मनाया गया कि गंधमादन पर्वत पर हर्ष और उल्लास  के समारोह का इतना सुंदर और विशद  आयोजन इसके पूर्व कभी किसी ने नहीं देखा था। संपूर्ण कपि समुदाय आनंद विभोर हो गया।  सबने प्राण प्रिय अंजना नंदन को आशीर्वाद प्रदान किया। 

(6.4.24) हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा ? Hanuman Ji Ne Arjun Ka Ghamand Kaise Toda

हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा ? Hanuman Ji  Ne Arjun Ka  Ghamand  Kaise Toda

इस संदर्भ में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के पृष्ठ 363 पर एक कथा इस प्रकार मिलती है - 

यह बात है द्वापर के अंत की। एक दिन अर्जुन अकेले ही सारथी के स्थान पर बैठकर अपना रथ हांक कर अरण्य में घूमते हुए दक्षिण दिशा में चले गए। मध्याह्न काल हो जाने पर उन्होंने रामेश्वर के धनुष कोटि तीर्थ में स्नान किया और फिर गर्व पूर्वक इधर-उधर घूमने लगे। उसी समय उन्होंने एक पर्वत के ऊपर बैठे हुए सामान्य वानर के रूप में महावीर हनुमान जी को देखा। उनका शरीर सुंदर पीले रंग के रोएं से सुशोभित था और वे राम नाम का जप कर रहे थे।

उन्हें देखकर अर्जुन ने पूछा, “अरे वानर तुम कौन हो और तुम्हारा नाम क्या है?”

हँसते हुए हनुमान जी ने उत्तर दिया कि मैं समुद्र पर शिलाओं का सौ योजन विस्तृत सेतु निर्माण कराने वाले प्रभु श्री राम का सेवक हनुमान हूँ।

अर्जुन ने गर्व में भरकर कहा कि समुद्र पर सेतु तो कोई भी महा धनुर्धारी अपने वाणों से बना लेता। श्री राम ने शिलाओं का सेतु बनाकर व्यर्थ ही प्रयास किया। हनुमान जी ने तुरंत उत्तर दिया कि वाणों का सेतु हमारे जैसे वानरों का भार नहीं सह सकता था, इसी कारण प्रभु ने शरसेतु यानि वाणों के सेतु का निर्माण करने पर विचार ही नहीं किया।

इस पर अर्जुन बोले कि यदि वानर और भालुओं के आवागमन से ही सेतु टूट जाए, तो वह धनुर्विद्या ही कैसी?  तुम अभी मेरी धनुर्विद्या का चमत्कार देखो। मैं अपने वाणों से समुद्र पर सौ योजन लंबा सेतु निर्माण कर देता हूँ। तुम उस पर आनंदपूर्वक उछल - कूद करना।

हनुमान जी हँस पड़े और बोले, ठीक है, आप अपना पराक्रम दिखाओ।

अच्छी बात है, कहते हुए अर्जुन ने अपना विशाल गाण्डीव धनुष हाथ में लिया और कुछ ही क्षण में समुद्र पर अपने वाणों से सौ योजन लम्बा और मजबूत सेतु तैयार कर दिया। तब उन्होंने महावीर हनुमान जी से कहा कि वानरराज, अब तुम अपनी इच्छा अनुसार इस पर उछल कूद करके देख लो।

हनुमान जी ने हँसते हुए उस सेतु पर अपना अंगूठा रखा ही था कि वह शर सेतु सरसरा कर  टूट गया और समुद्र में डूब गया।

यह देखकर अर्जुन का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी होने का घमंड चूर चूर हो गया और उनके मुँह पर लज्जा का भाव स्पष्ट दिखने लगा। और उधर हनुमान जी पर गंधर्वों और देवताओं का समुदाय स्वर्गीय सुमनों की वृष्टि करने लगा।