Friday 10 May 2024

(7.1.25) प्रदोष काल क्या होता है? प्रदोष बेला किसे कहते हैं? प्रदोषकाल का महत्त्व Pradosh Kaal Kya Hota Hai

प्रदोष काल क्या होता है? प्रदोष बेला किसे कहते हैं? प्रदोषकाल का महत्त्व Pradosh Kaal Kya Hota Hai

प्रदोष काल क्या होता है

एक रात और एक दिन को अहोरात्र कहा जाता है। यानि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का समय अहोरात्र कहलाता है। अहोरात्र में कुल 60 घटी होती हैं। प्रत्येक दो घटी का एक मुहूर्त कहलाता है। इस प्रकार 15 मुहूर्त दिन में तथा 15 मुहूर्त रात्रि में होते हैं। यानि सूर्य के उदय होने से सूर्य के अस्त होने तक 15 मुहूर्त तथा सूर्य के अस्त होने से सूर्य के उदय होने तक 15 मुहूर्त होते हैं। 

सदैव सूर्य के अस्त होने से तीन मुहूर्त यानि 6 घटी के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। यह प्रदोषकाल लगभग 2 घंटे और 24 मिनट का होता है।

प्रदोषकाल का महत्व -

प्रदोष काल भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष फलदाई माना गया है। जो लोग प्रदोष काल में अनन्य भक्ति से भगवान शिव की वंदना- पूजा करते हैं उन्हें इस लोक में धन-धान्य, पुत्र, सौभाग्य और संपत्ति सब कुछ प्राप्त होता है।

 

 


( 7.2.25 )अस्त ग्रह क्या होता है ? ग्रह अस्त कब होता है? अस्त ग्रह का परिणाम क्या होता है?Ast Graha Kya Hote Hain

अस्त ग्रह क्या होता है ?  ग्रह अस्त कब होता है? अस्त ग्रह का परिणाम क्या होता है?Ast Graha Kya Hote Hain

अस्त ग्रह क्या होता है ?What is Ast Graha


सभी ग्रह सौरमंडल में अपने-अपने परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करते समय कोई भी ग्रह सूर्य के इतना निकट आ जाए कि वह सूर्य के तेज और उसके ओज से प्रभावहीन हो जाए तो ऐसे ग्रह को अस्त ग्रह कहा जाता है। कोई भी ग्रह सूर्य के जितना नजदीक आता है उतना ही अधिक अस्त होता है और उतना ही अधिक बलहीन और ओजहीन हो जाता है।

ग्रहों के अस्त होने से उनके नैसर्गिक कारकत्व में कमी आ जाती है और वह अपना प्रभाव दिखाने में सक्षम नहीं रहता है। वह यानि अस्त ग्रह जिस भाव का स्वामी होता है और जिस भाव में स्थित होता है उनसे संबंधित फलों में भी विलंब और कमी करता है चाहे वह ग्रह कुंडली में उच्च राशि में हो या स्वराशि में हो अथवा मूल त्रिकोण राशि में ही क्यों न हो।

ग्रह कब अस्त होते हैं ?

सूर्य कभी भी अस्त नहीं होता है। 

राहु और केतु छाया ग्रह हैं ये भी कभी अस्त नहीं होते हैं।

जब चंद्रमा परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करता हुआ सूर्य के अंशों से 12 अंश अथवा इससे भी अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

मंगल ग्रह सूर्य के अंशों से 17 अंश या इससे अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

बुध सूर्य के अंशों से 13 अंश या इससे अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

गुरु सूर्य के अंशों से 11 अंश या इससे अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

शुक्र सूर्य के अंशों  से 9 अंश  या अधिक नजदीक आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

शनि सूर्य के अंशों से 15 अंश या अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

अस्त ग्रह का संबंधित अन्य बातें -

पहला - 

कोई भी ग्रह सूर्य के अधिक निकट होने से वह ग्रह अधिक बलहीन हो जाता है और कम निकट होने से अपेक्षाकृत थोड़ा सा कम बलहीन होता है। जैसे किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र सूर्य से 9 अंश पर अस्त है और किसी अन्य व्यक्ति के कुंडली में शुक्र 2 अंश पर अस्त है तो दोनों प्रकार के अस्त शुक्र के फलों में काफी अंतर होता है।

दूसरा - 

कोई भी ग्रह अस्त अवस्था में है परंतु वह किसी शुभ भाव में स्थित है अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसके अस्त होने पर भी खराब परिणाम में कमी आ जाती है।

तीसरा - 

कोई भी अस्त ग्रह किसी पाप ग्रह से संबंध बनाए तो वह काफी खराब परिणाम दिखाता है।

 

 

 

Thursday 14 March 2024

(6.7.10) श्री यंत्र के लाभ और महत्व Shree Yantra / Importance and Benefits Of Shree Yantra

 श्री यंत्र के लाभ और महत्व Shree Yantra / Importance and Benefits Of Shree Yantra 

श्री यंत्र

जीवन में सुख समृद्धि और संपत्ति पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति कठोर परिश्रम और मेहनत करता है लेकिन फिर भीउसे कुछ कारणों से की हुई मेहनत का सही फल नहीं मिल पाता है। धर्म शास्त्रों में धन संपत्ति अर्जित करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक उपाय हैश्री यंत्र। श्री यंत्र धन की देवी माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। यह यंत्र  सबसे अधिक चमत्कारी और शीघ्र फलदायी माना जाता है । 

कलियुग में श्रीयंत्र कामधेनु के समान है। उपासना सिद्ध होने पर सभी प्रकार की श्री अर्थात चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है इसलिए इसे श्री यंत्र कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्री यंत्र में 33 कोटि देवताओं का वास माना जाता है। वास्तु दोष निवारण में भी यह यंत्र बहुत उपयोगी है। 

श्री यंत्र की उत्पत्ति 

श्री यंत्र की उत्पत्ति के संबंध में कहा गया है कि एक बार कैलाश मानसरोवर के पास आदि शंकराचार्य ने कठोर तप करके शिवजी को प्रसन्न किया। जब शिवजी ने वर मांगने को कहा तो शंकराचार्य जी ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। शिवजी ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्री यंत्र तथा श्री सूक्त का मंत्र प्रदान किया। 

श्रीयंत्र के बारे में एक पौराणिक कथा

श्रीयंत्र के प्रभाव के बारे में एक पौराणिक कथा है कि एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से अप्रसन्न होकर बैकुंठ में चली गई परिणाम स्वरुप पृथ्वी पर अनेक समस्यायें उत्पन्न हो गई.  तब महर्षि वशिष्ठ ने विष्णु की सहायता से लक्ष्मी को मनाने का प्रयास किया लेकिन वे विफल रहे। इस पर देवगुरु बृहस्पति ने लक्ष्मी को वापस लाने का एकमात्र उपाय ‘श्री यंत्र’ बताया। श्री यंत्र की आराधना - उपासना से लक्ष्मी तुरंत पृथ्वी पर लौट आई और कहा कि श्री यंत्र ही मेरा आधार है तथा इसमें मेरी आत्मा निवास करती है। इसलिए मुझे आना ही पड़ा।

 

श्री यंत्र रखने के फायदे / लाभ

विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र की पूजा, उपासना से सभी सुख एवं मोक्ष प्राप्त होते हैं। दीपावली, धनतेरस, दशहरा, अक्षय तृतीया, वर्ष प्रतिपदा आदि श्री यंत्र की स्थापना के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त होते हैं। इसकी पूजा - साधना करते समय पूर्व की तरफ मुंह रखना चाहिए और मन में पूर्ण श्रद्धा का भाव रखना चाहिए।

हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि श्री यंत्र माता लक्ष्मी का ही अंश है, इसलिए इसमें लक्ष्मी का वास होता है। ऐसा भी माना जाता है कि श्री यंत्र जिस जगह पर भी होता है वहां का वातावरण शुद्ध और पवित्र हो जाता हैऐसा होने से माता लक्ष्मी के आगमन में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नहीं होता है इसलिए घरों में श्री यंत्र की स्थापना करना लाभदायक है।

हिंदू धर्म में ऐसा कहा गया है कि जिस घर में श्री यंत्र की स्थापना होती है और उसकी नियम अनुसार पूजा की जाती है उस घर में अष्ट लक्ष्मी का वास होता है। श्री यंत्र की स्थापना से कारोबार में सफलता, समृद्धि, आर्थिक मजबूती और पारिवारिक सुख प्राप्त होते हैं।

Saturday 2 March 2024

(6.12.2)श्री बटुक भैरव के 108 नाम Batuk Bhairava ke 108 Naam/ बटुक भैरव अष्टोत्तरशत नामावली

 श्री बटुक भैरव के 108 नाम Batuk Bhairava ke 108 Naam/ बटुक भैरव अष्टोत्तरशत नामावली

श्री बटुक भैरव के 108 नाम

श्री बटुक भैरव के १०८ नामों का बहुत बड़ा महत्व है. महात्मा भैरव के ये उत्तम नाम पुण्यदायक, कल्याणकारी, आयुष्कर, पुष्टिकारक, लक्ष्मीदाता और यशस्वी बनाने वाले हैं. बटुक भैरव के इन  नामों का श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करने से सभी प्रकार की विपत्तियों से मुक्ति मिलती है, मनोकामना पूर्ण होती है, भाग्योदय होता है, नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं और दुखों से छुटकारा मिलता है. बटुक भैरव के १०८ नाम इस प्रकार हैं -

ॐ भैरवाय नमः (१) ॐ भूतनाथाय नमः (२) ॐ भूतात्मने नमः (३)

ॐ भूतभावनाय नमः (४) ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः (५) ॐ क्षेत्रपालाय नमः (६)

ॐ क्षेत्रदाय  नमः (७) ॐ क्षत्रियाय  नमः (८) ॐ विराजे नमः (९)

ॐ श्मशानवासिने नमः (१०) ॐ मांसाशिने नमः (११) ॐ खर्पराशिने नमः (१२)

ॐ स्मरान्तकाय नमः (१३) ॐ रक्तपाय नमः (१४) ॐ पानपाय नमः (१५)

ॐ सिद्धाय नमः (१६) ॐ सिद्धिदाय नमः (१७) ॐ सिद्धिसेविताय नमः (१८)

ॐ कंकालाय नमः (१९) ॐ कालशमनाय नमः (२०) ॐ कलाकाष्ठातनवे नमः(२१)

ॐ कवये नमः (२२)  ॐ त्रिनेत्राय नमः (२३) ॐ बहुनेत्राय नमः (२४)

ॐ पिंगललोचनाय नमः (२५) ॐ शूलपाणये नमः(२६) ॐ खडगपाणये नमः (२७)

ॐ कंकालिने नमः (२८) ॐ धूम्रलोचनाय नमः (२९) ॐ अभीरवे नमः (३०)

ॐ भैरवीनाथाय नमः (३१)ॐ भूतपाय नमः (३२)ॐ योगिनीपतये नमः (३३)

ॐ धनदाय नमः (३४) ॐ धनहारिणे नमः(३५) ॐ धनवते नमः (३६)

ॐ प्रतिभानवते नमः (३७)ॐ नागहाराय नमः (३८) ॐ नागकेशाय नमः(३९)

ॐ व्योमकेशाय नमः (४०) ॐ कपालभृते नमः (४१) ॐ कालाय नमः (४२)

ॐ कपालमालिने नमः (४३) ॐ कमनीयाय नमः (४४) ॐ कलानिधये नमः (४५)

ॐ त्रिलोचनाय नमः (४६) ॐ ज्वलन्नेत्राय नमः (४७) ॐ त्रिशिखिने नमः (४८)

ॐ त्रिलोकपाय नमः (४९) ॐ त्रिनेत्रतनयाय नमः (५०) ॐ डिम्भाय नमः (५१)

ॐ शान्ताय नमः (५२) ॐ शान्तजनप्रियाय नमः (५३) ॐ बटुकाय नमः (५४)

ॐ बहुवेषाय नमः (५५) ॐ खटवांगवरधारकाय नमः (५६) ॐ भूताध्यक्षाय नमः(५७)

ॐ पशुपतये नमः (५८) ॐ भिक्षुकाय नमः (५९) ॐ परिचारिकाय नमः (६०)

ॐ धूर्ताय नमः (६१) ॐ दिगम्बराय नमः (६२) ॐ शौरिणे नमः (६३)

ॐ हरिणाय नमः (६४) ॐ पान्डुलोचनाय नमः (६५) ॐ प्रशान्ताय नमः (६६)

ॐ शान्तिदाय नमः (६७) ॐ सिद्धाय नमः (६८) ॐ शंकरप्रियबान्धवाय नमः (६९)

ॐ अष्टमूर्तये नमः (७०) ॐ निधीशाय नमः (७१) ॐ ज्ञानचक्षुषे नमः (७२)

ॐ तपोमयाय नमः (७३) ॐ अष्टाधाराय नमः (७४) ॐ षडाधाराय नमः (७५)

ॐ सर्पयुक्ताय नमः (७६) ॐ शिखीसख्ये नमः (७७) ॐ भूधराय नमः (७८)

ॐ भूधराधीशाय नमः (७९) ॐ भूपतये नमः (८०) ॐ भूधरात्मजाय नमः (८१)

ॐ कंकालधारिणे नमः (८२) ॐ मुण्डिने नमः(८३)ॐ नागयज्ञोपवीतकाय नमः (८४)

ॐ जृम्भणाय नमः (८५) ॐ मोहनाय नमः (८६) ॐ स्तम्भिने नमः (८७)

ॐ मारणाय नमः (८८) ॐ क्षोभणाय नमः (८९) ॐ शुद्धाय नमः (९०)

ॐ नीलांजनप्रख्याय नमः (९१) ॐ दैत्यघ्ने नमः (९२) ॐ मुण्डभूषिताय नमः(९३)

ॐ बलिभुजे नमः (९४) ॐ बलिभुंगनाथाय नमः (९५) ॐ बालाय नमः (९६)

ॐ बालपराक्रमाय नमः (९७) ॐ सर्वापत्तारणाय नमः (९८) ॐ दुर्गाय नमः (९९)

ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नमः (१००) ॐ कामिने नमः (१०१) ॐ कलानिधये नमः (१०२)

ॐ कान्ताय नमः (१०३) ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नमः (१०४) ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः

(१०५) ॐ वैद्याय नमः (१०६) ॐ प्रभवे नमः (१०७) ॐ विष्णवे नमः (१०८)

श्री बटुक भैरव की १०८ नामावली सम्पूर्ण.