Thursday 30 May 2024

(7.1.27) जन्म राशि और नाम राशि Janma Rashi aur Naam Rashi me Antar

 जन्म राशि और नाम राशि Janma Rashi aur Naam Rashi me Antar कब जन्म राशि का प्रयोग करें और कब नाम राशि का

जन्म राशि और नाम राशि में अंतर व प्रधानता 

कई लोगों के दो नाम होते हैं एक होता है प्रचलित नाम जिसे हम बोलता नाम भी कहते हैं और दूसरा होता है जन्म नाम। इस प्रकार जब किसी व्यक्ति को दोनों नाम ज्ञात होते हो तो उसे यह भ्रम हो जाता है कि किस नाम को ज्यादा प्राथमिकता दें?

जन्म नाम और प्रचलित नाम में अंतर 

जातक के जन्म के समय जिस नक्षत्र के जिस चरण में जन्म होता है उसी चरण के अनुसार ही नाम रखा जाता है और इस चरण के अनुसार रखा जाने वाला नाम ही जन्म नाम कहलाता है।

जातक के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि पर स्थित होता है वही राशि उसकी जन्म राशि होती है। 

जबकि जातक के जन्म के समय के नक्षत्र चरण व चंद्रमा की राशि का बिना ध्यान रखें जो नाम रखा जाता है वह प्रचलित नाम या बोलता नाम कहलाता है। और इस प्रचलित नाम के पहले अक्षर के अनुसार जो राशि बनती है वही प्रचलित नाम राशि कहलाती है।

जन्म राशि व प्रचलित नाम राशि की प्रधानता (यानि कहाँ या कब जन्म राशि का प्रयोग करना चाहिए और कहां प्रचलित नाम राशि का प्रयोग करना चाहिए)

जन्म राशि तथा नाम राशि के प्रतिफल में अंतर आता है। सभी विषयों में जन्म राशि की प्रधानता नहीं रहती है और न ही सब जगह नाम राशि की प्रधानता रहती है।

कब और कहां जन्म राशि का और कब और कहां नाम राशि का प्रयोग किया जाए

इसके लिए शास्त्रीय वचन इस प्रकार है विवाह कार्य, सभी मांगलिक कार्य, विशेष यात्रा का मुहूर्त, दिनमान, ग्रह गोचर, दिन दिशा हेतु जन्म राशि से ही विचार करना चाहिए।

जबकि प्रचलित नाम राशि के लिए शास्त्रीय वचन यह है कि देशग्रामवासगृह प्रवेश, नगर वास, युद्ध, सेवा, न्यायालय, रजिस्ट्रीकरण, मित्रता, व्यापार आदि में प्रचलित नाम राशि से ही विचार करना चाहिए। इन कार्यों में जन्म राशि का विचार करना योग्य नहीं है यानि इन कार्यों या विषयों में  जन्म राशि ज्ञात हो तो भी नाम राशि का ही विचार करना चाहिए।

लेकिन किसी व्यक्ति का जन्म नाम व प्रचलित नाम एक ही हो तो उसी नाम और उसी राशि से संपूर्ण कार्यों का विचार किया जाता है।

लेकिन यदि किसी व्यक्ति को उसका जन्म नाम ज्ञात नहीं हो तो उसके सभी कार्यों में प्रचलित नाम व प्रचलित नाम राशि से ही विचार किया जाता है।

Tuesday 28 May 2024

(7.1.26) रोहिणी तपन काल / रोहिणी का गलन क्या होता है / नौतपा क्या होता है Nautapa / Rohini Tapan Kaal Kya Hota Hai

 रोहिणी तपन काल / रोहिणी का गलन क्या होता है / नौतपा क्या होता है Nautapa / Rohini Tapan Kaal Kya Hota Hai

रोहिणी तपन काल

रोहिणी तपन काल / रोहिणी का गलन क्या होता है / नौतपा क्या होता है Nautapa / Rohini Tapan Kaal Kya Hota Hai

 सूर्य बारह राशियों में भ्रमण करता है और प्रत्येक राशि में लगभग एक महीने तक रहता है और एक महिने के बाद दूसरी राशि में गमन करता है. उसी प्रकार सूर्य एक नक्षत्र में लगभग तेरह दिन तक रहता है और फिर दूसरे नक्षत्र में चला जाता है.

जब सूर्य कृतिका नक्षत्र को छोड़ कर रोहिणी नक्षत्र में चला जाता है उस समय से ही रोहिणी तपन काल प्रारम्भ हो जाता है. यह रोहिणी तपनकाल सूर्य के रोहिणी नक्षत्र को छोड़ कर मृगशिरा नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ ही समाप्त हो जाता है. इस प्रकार रोहिणी नक्षत्र में सूर्य के रहने की लगभग तेरह दिन की अवधि रोहिणी तपन काल कहलाती है.

इस तेरह दिन की अवधि में से शुरू के नौ दिन तक सूर्य की गर्मी बहुत तेज पड़ती है क्योंकि इस इस दौरान सूर्या की किरणें सीधी धरती पर पड़ती हैं जिससे प्रचंड गर्मी का अनुभव होता है. इसलिए इन नौ दिनों को नौतपा कहा जाता है. 

यदि नौतपा के सभी नौ दिन पूरे तपें यानि इस अवधि में पूरी गर्मी पड़े तो यह अच्छी वर्षा का संकेत होता है. इस अवधि में वर्षा हो जाये तो इसे रोहिणी का गलना कहा जाता है. रोहिणी के गलन को कम वर्षा का संकेत माना जाता है.     

Tuesday 21 May 2024

(5.4.1) मनुष्य का सच्चा मित्र कौन होता है ? Manushya Sachcha Mitra Kaun Hota Hai – Chankya Niti Ch. 5 Shlok 15

मनुष्य का सच्चा मित्र कौन होता है ? Manushya Sachcha Mitra Kaun Hota Hai – Chankya Niti Ch. 5 Shlok 15
मनुष्य का सच्चा मित्र

विदेश में विद्या ही मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैघर में अच्छे स्वभाव और गुणवान पत्नी मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती है। रोगी व्यक्ति की मित्र औषधि होती है और मृत्यु आने पर व्यक्ति का मित्र उसका धर्म और उसके सत्कर्म होते हैं।

इसे और अधिक स्पष्ट करने के लिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्वान व्यक्ति  जहाँ भी जाता है वह अपनी विद्या के बल पर  लोगों को प्रभावित कर लेता है और लोग उसका सम्मान करते हैं। संकट आने पर भी वह अपनी विद्या का उपयोग करके उस  संकट से मुक्त होने का कोई न कोई उपाय निकाल ही लेता है। इसलिए कहा गया है कि विदेश में विद्या ही मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र होती है।

अच्छे स्वभाव वाली पत्नी एक सच्चे मित्र की भाँति पति के सुख - दुख को बॉटकर उसके जीवन को आनंददायक बना देती है। इसलिए घर में मनुष्य की पत्नी ही उसका सच्चा मित्र होती है।

रोगी व्यक्ति  औषधि लेकर ही स्वस्थ होता है अतः औषधि ही रोगी की सच्ची मित्र होती है।

मनुष्य की मृत्यु आने पर सभी लोग उसका साथ छोड़ देते हैं केवल  उसके द्वारा किए गए सद्कर्म और उसका धर्म ही उसके साथ जाते हैं। इसलिए मृत्यु आने पर मनुष्य के द्वारा किये गए सद्कर्म और धर्म ही उसके सच्चे मित्र होते हैं।


Friday 10 May 2024

(7.1.25) प्रदोष काल क्या होता है? प्रदोष बेला किसे कहते हैं? प्रदोषकाल का महत्त्व Pradosh Kaal Kya Hota Hai

प्रदोष काल क्या होता है? प्रदोष बेला किसे कहते हैं? प्रदोषकाल का महत्त्व Pradosh Kaal Kya Hota Hai

प्रदोष काल क्या होता है

एक रात और एक दिन को अहोरात्र कहा जाता है। यानि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का समय अहोरात्र कहलाता है। अहोरात्र में कुल 60 घटी होती हैं। प्रत्येक दो घटी का एक मुहूर्त कहलाता है। इस प्रकार 15 मुहूर्त दिन में तथा 15 मुहूर्त रात्रि में होते हैं। यानि सूर्य के उदय होने से सूर्य के अस्त होने तक 15 मुहूर्त तथा सूर्य के अस्त होने से सूर्य के उदय होने तक 15 मुहूर्त होते हैं। 

सदैव सूर्य के अस्त होने से तीन मुहूर्त यानि 6 घटी के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। यह प्रदोषकाल लगभग 2 घंटे और 24 मिनट का होता है।

प्रदोषकाल का महत्व -

प्रदोष काल भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष फलदाई माना गया है। जो लोग प्रदोष काल में अनन्य भक्ति से भगवान शिव की वंदना- पूजा करते हैं उन्हें इस लोक में धन-धान्य, पुत्र, सौभाग्य और संपत्ति सब कुछ प्राप्त होता है।

 

 


( 7.1.24 )अस्त ग्रह क्या होता है ? ग्रह अस्त कब होता है? अस्त ग्रह का परिणाम क्या होता है?Ast Graha Kya Hote Hain

अस्त ग्रह क्या होता है ?  ग्रह अस्त कब होता है? अस्त ग्रह का परिणाम क्या होता है?Ast Graha Kya Hote Hain

अस्त ग्रह क्या होता है ?What is Ast Graha


सभी ग्रह सौरमंडल में अपने-अपने परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करते समय कोई भी ग्रह सूर्य के इतना निकट आ जाए कि वह सूर्य के तेज और उसके ओज से प्रभावहीन हो जाए तो ऐसे ग्रह को अस्त ग्रह कहा जाता है। कोई भी ग्रह सूर्य के जितना नजदीक आता है उतना ही अधिक अस्त होता है और उतना ही अधिक बलहीन और ओजहीन हो जाता है।

ग्रहों के अस्त होने से उनके नैसर्गिक कारकत्व में कमी आ जाती है और वह अपना प्रभाव दिखाने में सक्षम नहीं रहता है। वह यानि अस्त ग्रह जिस भाव का स्वामी होता है और जिस भाव में स्थित होता है उनसे संबंधित फलों में भी विलंब और कमी करता है चाहे वह ग्रह कुंडली में उच्च राशि में हो या स्वराशि में हो अथवा मूल त्रिकोण राशि में ही क्यों न हो।

ग्रह कब अस्त होते हैं ?

सूर्य कभी भी अस्त नहीं होता है। 

राहु और केतु छाया ग्रह हैं ये भी कभी अस्त नहीं होते हैं।

जब चंद्रमा परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करता हुआ सूर्य के अंशों से 12 अंश अथवा इससे भी अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

मंगल ग्रह सूर्य के अंशों से 17 अंश या इससे अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

बुध सूर्य के अंशों से 13 अंश या इससे अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

गुरु सूर्य के अंशों से 11 अंश या इससे अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

शुक्र सूर्य के अंशों  से 9 अंश  या अधिक नजदीक आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

शनि सूर्य के अंशों से 15 अंश या अधिक निकट आ जाता है तो वह अस्त हो जाता है।

अस्त ग्रह का संबंधित अन्य बातें -

पहला - 

कोई भी ग्रह सूर्य के अधिक निकट होने से वह ग्रह अधिक बलहीन हो जाता है और कम निकट होने से अपेक्षाकृत थोड़ा सा कम बलहीन होता है। जैसे किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र सूर्य से 9 अंश पर अस्त है और किसी अन्य व्यक्ति के कुंडली में शुक्र 2 अंश पर अस्त है तो दोनों प्रकार के अस्त शुक्र के फलों में काफी अंतर होता है।

दूसरा - 

कोई भी ग्रह अस्त अवस्था में है परंतु वह किसी शुभ भाव में स्थित है अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसके अस्त होने पर भी खराब परिणाम में कमी आ जाती है।

तीसरा - 

कोई भी अस्त ग्रह किसी पाप ग्रह से संबंध बनाए तो वह काफी खराब परिणाम दिखाता है।