रुद्रावतार हनुमान जी / हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार Hanuman Ji Shankar Ke Avataar The
क्या राम भक्त
हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार हैं? इस संदर्भ में गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “हनुमान अंक” के पृष्ठ संख्या 123 पर एक कथा इस प्रकार
वर्णित है -
एक बार भगवान शंकर
भगवती सती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। प्रसंगवश भगवान शंकर ने सती से कहा,” प्रिये, जिनके नामों को रट रट कर मैं गदगद होता
रहता हूँ, वे ही मेरे प्रभु अवतार धारण करके संसार
में आ रहे हैं। सभी देवता उनके साथ अवतार ग्रहण करके उनकी सेवा का सुयोग प्राप्त
करना चाहते हैं। तब मैं ही उससे क्यों वंचित रहूँ? मैं भी वही चलूँ और उनकी सेवा करके अपने
युग युग की लालसा पूर्ण करूँ।
भगवान शंकर की यह
बात सुनकर सती ने सोच कर कहा - “प्रभु भगवान का अवतार इस बार रावण को मारने के लिए हो रहा
है। रावण आपका अनन्य भक्त है। यहाँ तक कि उसने अपने सिरों को काटकर आपको समर्पित
किया है। ऐसी स्थिति में आप रावण को मारने के काम में कैसे सहयोग दे सकते हैं?”
यह सुनकर भगवान
शंकर हँसने लगे। उन्होंने कहा, देवी जैसे रावण ने मेरी भक्ति की है, वैसे ही उसने मेरे एक अंश की अवहेलना भी
तो की है। तुम जानती हो कि मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूँ। जब उसने अपने 10 सिर
अर्पित करके मेरी पूजा की थी, तब उसने मेरे एक अंश को पूजा किये बिना ही छोड़ दिया था। अब
मैं उसी ग्यारहवें अंश से उसके विरुद्ध युद्ध करके अपने प्रभु की सेवा कर सकता
हूँ। मैंने वायु देवता के द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है।
यह सुनकर भगवती सती प्रसन्न हो गयी।
इस प्रकार भगवान
शंकर ही हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए हैं।
इस तथ्य की पुष्टि
करने वाली बात गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी दोहावली में लिखा है
जेहि सरीर रति राम
सो,
सोइ आदरहिं सुजान।
रुद्रदेह तजि नेह
बस,
वानर भे हनुमान।
अर्थात् सज्जन उसी
शरीर का आदर करते हैं, जिसको श्री राम से
प्रेम हो। इसी मोह वश रुद्र देह त्याग कर शंकरजी ने हनुमान जी के रूप में वानर
शरीर धारण किया।
इस कथा तथा दोहे
के अनुसार यह स्पष्ट है कि हनुमान जी भगवान शंकर ही अंशावतार हैं।