Sunday, 6 April 2025

(9.4.11) विदुर के सुविचार /विदुर के अनमोल विचार Vidur Quotes / Vidur Ke Suvichar / Vidur Anmol Vichar

 विदुर के सुविचार /विदुर के अनमोल विचार Vidur Quotes / Vidur Ke Suvichar / Vidur Anmol Vichar

महात्मा विदुर धर्मात्मा तथा महान नीतिज्ञ थे। उनकी नीतिगत बातें मार्गदर्शन के रूप में काम करती हैं। उनके प्रमुख अनमोल विचार इस प्रकार हैं -

(पहला) जलती हुई आग से सोने की पहचान होती है, सदाचार से सत्पुरुष की, व्यवहार से साधु की, भय के उपस्थित होने से वीर या बहादुर पुरुष की, आर्थिक कठिनाई में धनवान व्यक्ति की और कठिन परिस्थिति में या विपत्ति आने पर मित्र की परीक्षा होती है।

(दूसरा) देवता जिस व्यक्ति का भला करना चाहते हैं या जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, वे चरवाहे की तरह डंडा लेकर उस व्यक्ति के पहरा नहीं देते हैं, बल्कि वे उस व्यक्ति को उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं ताकि वह उचित अनुचित का निर्णय करके स्थिति का समुचित सामना कर सके।

(तीसरा) शुभ कर्म करने से लक्ष्मी अर्थात धन की उत्पत्ति होती है,प्रगल्भाता अर्थात कुशलता व समझदारी से वह बढ़ती है, चतुराई से वह जड़  जमा लेती है और संयम से वह सुरक्षित रहती है।

(चौथा) बुद्धि, कुलीनता, दम, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, ज्यादा नहीं बोलना, यथाशक्ति दान देना और कृतज्ञ होना ये आठ गुण व्यक्ति की शोभा बढ़ाने वाले होते हैं।

(पांचवाँ) बोलने से नहीं बोलना अच्छा बताया गया है, किंतु सत्य बोलना वाणी की दूसरी विशेषता है यानि मौन की अपेक्षा दुगनी लाभप्रद है, सत्य भी यदि प्रिय बोला जाए तो यह वाणी की तीसरी विशेषता है और वह भी यदि धर्म सम्मत बोला जाए तो, यह वाणी की चौथी विशेषता है।

(छठा) दुष्ट पुरुषों का स्वभाव मेघ यानि बादल के समान चंचल होता है। वे सहसा ही क्रोध कर बैठते हैं और अकारण ही प्रसन्न हो जाते हैं।

(सातवाँ) सुख - दुख, उत्पत्ति - विनाश, लाभ- हानि और जीवन - मरण ये बारी - बारी से सबको प्राप्त होते रहते हैं। धैर्यवान पुरुष को इनके लिए न तो प्रसन्न होना चाहिए और न ही दुखी होना चाहिए।

(आठवाँ) बुढ़ापा रूप का, आशा धैर्य का, मृत्यु प्राणों का, असूया अर्थात जलन या ईर्ष्या धर्माचरण का, काम लज्जा का, नीच पुरुषों की सेवा सदाचार का, क्रोध लक्ष्मी का और अभिमान सर्वस्व का ही नाश कर देता है।

(नवाँ) जिसमें बढ़ने की शक्ति, प्रभाव, तेज, पराक्रम, उद्योग और निश्चय है, उसे अपनी जीविका के नाश का भय कैसे हो सकता है ?

(दसवाँ) जो क्रोध और हर्ष के वेग को रोक लेता है अर्थात न क्रोधित होता है न ही हर्षित होता है और आपत्ति में भी धैर्य नहीं खोता है, वही राजलक्ष्मी का अधिकारी है।

(ग्यारहवाँ) विनय भाव अपयश का नाश करता है, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदैव क्रोध का नाश करती है, सदाचार कुल को नष्ट होने से बचाता है।