देवी लक्ष्मी का महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र आर्थिक सम्पन्नता हेतु Mahalakshmi ashtakam stotra for prosperity
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र
आर्थिक सम्पन्नता हेतु
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र,
धन, सम्पदा और सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी की इन्द्र द्वारा की गयी स्तुति है. कहा
जाता है कि दुर्वासा ऋषि के शाप से इन्द्र श्रीहीन हो गये. तब इन्द्र ने एक
स्तोत्र की रचना की और देवि लक्ष्मीकी स्तुति की. यह स्तोत्र ही महालक्ष्म्यष्टकम्
स्तोत्र कहलाता है.
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र
का पाठ करने के लाभ –
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र
के आठ श्लोकों में धन की देवी लक्ष्मी के स्वरुप, गुण और महाशक्तियों का उल्लेख
है. जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी
सिद्धियों और राज वैभव को प्राप्त कर सकता है. जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है,
उसके बड़े – बड़े पापों का नाश हो जाता है. जो दो समय पाठ करता है, वह धन – धान्य से
सम्पन्न होता है. जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है, उसके शत्रुओं का नाश हो जाता
है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी, वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती है.
धन तेरस से दीपावली तक जो
कोई प्रतिदिन पाँच बार या अधिक बार पाठ करता है, तो उस पर लक्ष्मी की विशेष कृपा
होती है. वह धन – धान्य से युक्त होता है.
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र
के पाठ करने की विधि –
देवी लक्ष्मी का चित्र अपने
सामने रखें. पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जाएँ. फिर देवी
लक्ष्मी का ध्यान करे.
ध्यान इस प्रकार है –
भगवती लक्ष्मी कमल के आसन
पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान जिनके सुन्दर नैत्र हैं. जिनकी विस्तृत
कमर और गहरे आवर्त वाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र
के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि जड़ित दिव्य स्वर्ण कलशों के द्वारा स्नान किये
हुए हैं, वे कमलहस्ता सदा सभी मंगलों के सहित मेरे घर में निवास करें.
ध्यान के बाद इस स्तोत्र का
श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें. पाठ करने के बाद भावना करें कि देवी लक्ष्मी
की आप पर कृपा वृष्टि हो रही है और आप भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न हो रहे
हैं.
महालक्ष्म्यष्टकम् स्तोत्र
के आठों श्लोक हिन्दी में इस प्रकार है –
श्री पीठ स्थित और देवताओं
से पूजित होने वाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है. हाथ में शंख, चक्र और गदा
धारण करने वाली हे महालक्ष्मि, तुम्हें प्रणाम है.(1)
गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को
भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मि, तुम्हें प्रणाम
है. (2)
सब कुछ जानने वाली, सबको वर
देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुखों को दूर करने वाली, हे
देवि महालक्ष्मि, तुम्हें नमस्कार है. (3)
सिद्धि,बुद्धि, भोग और
मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि, तुम्हें सदा प्रणाम है. (4)
हे देवि, हे आदि – अंत रहित
आदिशक्ते, हे महेश्वरि, हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि, तुम्हें नमस्कार
है. (5)
हे देवि, तुम स्थूल,
सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महा शक्ति हो, महोदरा हो और बड़े – बड़े पापों का
नाश करने वाली हो. हे देवि महालक्ष्मि, तुम्हें नमस्कार है.(6)
हे कमल के आसन पर विराजमान
परब्रह्मस्वरूपिणी देवि, हे परमेश्वरि, हे जगदम्बे, हे महालक्ष्मि, तुम्हें मेरा
प्रणाम है.(7)
हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र
धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो. सम्पूर्ण जगत में
व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो.
हे महालक्ष्मि, तुम्हें
मेरा प्रणाम है.(8)