मूर्ख व्यक्ति के लक्षण Moorkh Vyakti Ke Lakshan / Moorkh Kaun Hota Hai?
मूर्ख व्यक्ति कौन होता है?
महात्मा विदुर
ज्ञानी, दार्शनिक और महान नीतिज्ञ थे। उनके
द्वारा धृतराष्ट्र को कही गई बातें सभी व्यक्तियों के लिए तथा हर युग में उतनी ही
उपयोगी, प्रभावी और प्रासंगिक हैं, जितनी महाभारत काल में थी। उनके द्वारा बताए गए मूर्ख व्यक्ति के लक्षण
इस प्रकार हैं -
(पहला) अज्ञानी
होते हुए भी अपने आप को ज्ञानी मानना और घमंड करना, दरिद्र होकर भी बड़े-बड़े मंसूबे बांधना, बिना परिश्रम किये ही धन पाने की इच्छा
रखना, ये सब मूर्ख व्यक्ति के लक्षण हैं।
(दूसरा) जो अपना
कर्तव्य छोड़कर दूसरों के कर्तव्य का पालन करता है और अपने मित्रों के साथ अनुचित
आचरण करता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(तीसरा) जो न
चाहने वालों को चाहता है और चाहने वालों का त्याग कर देता है अर्थात जो उसके मित्र
नहीं हैं, उसको चाहते नहीं हैं, उससे स्नेह नहीं करते हैं, उनको तो वह गले लगाता है और जो उसको
चाहते हैं, जो उसके शुभचिंतक हैं, उनको त्याग देता है, उनकी परवाह नहीं करता है, उनसे कोई संबंध नहीं रखना चाहता है, ऐसा व्यक्ति मूर्ख के श्रेणी में आता है।
(चौथा) जो व्यक्ति
अपने से ज्यादा बलवान के साथ दुश्मनी रखता है अर्थात यह जानते हुए भी कि वह स्वयं
कमजोर है, फिर भी अपने से अधिक बलवान या शक्तिशाली
व्यक्ति से शत्रुता रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मूर्ख कहलाता है।
(पाचवाँ) जो अपने
हितेषी को त्याग कर अपने शत्रु को मित्र बनाता है और अपने मित्र से द्वेष करता है, उसे किसी न किसी प्रकार से कष्ट पहुंचता
है तथा बुरे कर्मों में लीन रहता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(छठा) जो अपने कार्य को व्यर्थ ही फैलाता है, सर्वत्र संदेह करता है तथा शीघ्र होने
वाले कार्य में भी देरी लगाता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(सातवाँ ) जो बिना
बुलाए किसी के कक्ष में प्रवेश कर लेता है, बिना पूछे बहुत बोलता है और जिन लोगों पर
विश्वास नहीं करना चाहिए उन पर विश्वास करता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(आठवाँ) जो
व्यक्ति स्वयं दोष युक्त बर्ताव करता है अर्थात गलत व्यवहार और कार्य करता है और
उस गलती के लिए दूसरों को दोषी मानता है अर्थात दूसरों पर उस गलती का आरोप लगा
देता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(नवाँ) जो व्यक्ति
किसी कार्य को करने में असमर्थ होता है और कार्य पूरा नहीं होने पर क्रोध करता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(दसवाँ) जो अपने
बल और क्षमता का अनुमान लगाए बिना ही धर्म के विपरीत जाकर न पाने योग्य वस्तुओं को पाने की इच्छा करता है, वह मूर्ख कहलाता है।
(ग्यारहवाँ) जो
अपात्र को उपदेश देता है,शून्य की उपासना करता है अर्थात जिसकी उपासना नहीं करनी
चाहिए उसकी उपासना करता है, और कृपण यानि कंजूस व्यक्ति का आश्रय लेता है अर्थात कृपण
या कंजूस व्यक्ति से कुछ पाने के लालसा करता है, वह मूर्ख कहलाता है।