Monday, 2 June 2025

(4.6.21) हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji Ko Shankar Suwan Kyon Kaha Jata Hai

हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji  Ko Shankar Suwan  Kyon  Kaha Jata  Hai ?

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 123 के अनुसार हनुमान जी के जन्म का संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है -

एक समय भगवान शम्भु को भगवान विष्णु के मोहिनी रूप का दर्शन प्राप्त हुआ। उस समय ईश्वर की इच्छा से राम कार्य की सिद्धि हेतु उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को सप्तऋषियों ने पत्र - पुटक में सुरक्षित करके रख दिया। तत्पश्चात उन्होंने ही शम्भु की प्रेरणा से उस वीर्य को गौतम कन्या अंजना में कान  के रास्ते स्थापित कर दिया। समय आने पर उस गर्भ से वानर शरीरधारी महा पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ, जो शंकर सुवन श्री हनुमान के नाम से विश्व में विख्यात हुए।

कथा भेद से इसका वर्णन इस प्रकार भी है - मोहिनी रूप दर्शन से स्खलित हुए शम्भु वीर्य के विषय में भगवान विष्णु विचार करने लगे कि इस शम्भु सम्भूत शुक्र का क्या उपयोग किया जाए? कुछ सोच विचार कर उन दोनों यानि विष्णु और शम्भु ने मुनियों का रूप धारण किया और उस वीर्य को पत्र - द्रोण में लेकर वन ही वन आगे बढ़े। कुछ दूर जाने पर उन लोगों ने एक कन्या देखी, जो घोर तपस्या में निरत थी। वे उसके पास जाकर बोले तपस्विनी कन्या ! यह क्या कर रही हो? बिना दीक्षा लिए तुम्हारी तपस्या सफल नहीं हो सकती अतः शीघ्र किसी योग्य मुनि से दीक्षा ले लो।

तपोनिष्ठ कन्या अंजना ने उन दोनों मुनियों की बात सुनकर मन में विचार किया कि ये तो सर्व काल दृष्टा हैं। मेरे भूतकाल की बात को सत्य -  सत्य कह रहे हैं, अतः क्यों नहीं इन्हीं से मंत्र दीक्षा ले ली जाए। यह सोचकर अंजना बोली मुनिवर! आप योग्य एवं समर्थ हैं। मैं दीक्षित होने के लिए और कहां भटकूंगी; आप लोग ही मुझे मंत्र दीक्षा दे दें।

तब मुनि रूप धारी विष्णु ने अंजना को मंत्र दीक्षा दी। दीक्षा देते समय उन्होंने शम्भु वीर्य को मंत्र से अभिमंत्रित कर कान के द्वारा अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया। उस शम्भु शुक्र से उद्भूत श्री हनुमान जी अंजनी नंदन, शंकर सुवन कहलाए।