प्रदोष काल और प्रदोष तिथि में क्या अंतर है? Difference between Pradosh Kaal and Pradosh Tithi
प्रदोष काल तथा प्रदोष तिथि के
अंतर को जानने से पहले हम यह जानेंगे कि प्रदोष काल किसे कहते हैं और प्रदोष तिथि
किसे कहते हैं?
सबसे पहले जानेंगे प्रदोष काल किसे
कहते हैं?
एक रात और एक दिन को अहोरात्र कहा
जाता है यानि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का समय अहोरात्र कहलाता है।
अहोरात्र में कुल 60 घटी होती है। यानि 30 घटी का दिन और 30 घटी की रात्रि होती
है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रत्येक दो घटी का एक मुहूर्त होता है। इस
प्रकार एक मुहूर्त में 48 मिनट होते हैं। इस तरह 15 मुहूर्त दिन में तथा 15
मुहूर्त रात्रि में होते हैं यानि सूर्य के उदय होने से सूर्य के अस्त होने तक 15
मुहूर्त तथा सूर्य के अस्त होने से सूर्य के उदय होने तक 15 मुहूर्त होते हैं। तथा
एक दिन और एक रात में तीस मुहूर्त होते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार ,”त्रिमुहूर्तः प्रदोषः रवा वस्तं
सति” अर्थात सदैव सूर्य के अस्त होने से
तीन मुहूर्त यानि 6 घटी के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस प्रकार यह प्रदोष
काल लगभग 2 घंटे और 24 मिनट का होता है। उदाहरण के लिये मान लो किसी दिन सूर्य शाम
को 6 बजे अस्त हो, तो सूर्यास्त से 2 घण्टे और 24 मिनट तक यानि रात्रि 8 बजकर 24 मिनट तक का समय
प्रदोषकाल कहलाएगा। प्रदोषकाल के बारे में अन्य मत भी हैं परंतु ज्यादातर यही मत
मान्य है।
एक अन्य मत के अनुसार सूर्यास्त से
2 घटी पूर्व तथा सूर्यास्त के बाद दो घटी का समय प्रदोष काल कहलाता है। यानि चार
घटी के समय को प्रदोषकाल कहा जाता है।
अर्थात सूर्यास्त से 48 मिनट पहले और सूर्यास्त से 48 मिनट बाद का समय यानि कुल 96
मिनट का समय प्रदोष काल कहलाता है।
प्रदोष काल को भगवान शिव की पूजा
के लिए विशेष फलदाई माना गया है। जो लोग प्रदोष काल में अनन्य भक्ति से भगवान शिव
की वंदना - पूजा करते हैं, उन्हें इस लोक में धन-धान्य, पुत्र, सौभाग्य और संपत्ति प्राप्त होते हैं।
अब हम जानेंगे प्रदोष तिथि कौनसी
तिथि कहलाती है?
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक
माह में दो पक्ष होते हैं, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया,तृतीया आदि कुल 15 तिथियां होती
हैं। इन 15 तिथियों में से पूर्णिमा और अमावस्या को छोड़कर प्रत्येक तिथि एक माह
में दो बार आती है।
प्रत्येक पक्ष में आने वाली त्रयोदशी तिथि को प्रदोष तिथि माना जाता है। परंतु यह त्रयोदशी तिथि प्रदोष
काल में व्याप्त होनी चाहिए यानि जो त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल में रहती है वही
त्रयोदशी तिथि प्रदोष तिथि कहलाती है। इसे
और अधिक स्पष्ट करने के लिए बता दें कि यदि त्रयोदशी तिथि सूर्योदय के समय हो
लेकिन प्रदोष काल में उपलब्ध नहीं हो, तो इसे प्रदोष तिथि नहीं माना जाएगा।
यदि सूर्योदय के समय द्वादशी तिथि
हो और बाद में प्रदोष काल के पहले किसी भी
समय यह समाप्त हो जाए, तो उसके पश्चात त्रयोदशी तिथि शुरू
हो जाती है। जो प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है इसलिए यह त्रयोदशी, प्रदोष तिथि कहलाएगी।
उदाहरण के रूप में दिनांक 14 फरवरी
2026 शनिवार को सूर्योदय के समय फाल्गुन कृष्ण द्वादशी तिथि है परंतु यह द्वादशी
तिथि दिन में 4:01 पर समाप्त हो जाएगी और इसके बाद त्रयोदशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी
जो अगले दिन यानि 15 फरवरी 2026 को शाम को 5:04 पर समाप्त होगी यानि सूर्यास्त से
पूर्व अर्थात प्रदोष काल के शुरू होने से पहले ही समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार
त्रयोदशी 2 दिन है यानि 14 और 15 फरवरी को है, परंतु 14 फरवरी 2026 को त्रयोदशी
तिथि प्रदोष काल में व्याप्त है और 15 फरवरी को प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो
जाएगी इसलिए प्रदोष तिथि 14 फरवरी को ही है और प्रदोष व्रत भी 14 फरवरी 2026 को ही किया जाएगा।
प्रदोष काल और प्रदोष तिथि में
अंतर
प्रदोष काल और प्रदोष तिथि दोनों
अलग-अलग हैं। प्रदोष काल प्रतिदिन आता है, जो सूर्यास्त से लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक रहता है। यह मान स्थूल मान है जो स्थान और दिन और रात्रि
के मान के अनुसार थोड़ा कम या ज्यादा हो सकता है।
जबकि प्रदोष तिथि एक माह में दो
बार आती है। इस तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव को बहुत प्रिय है। प्रदोष व्रत रखने
वाला व्यक्ति शिवजी की कृपा से अनेक दोषों से मुक्त हो जाता है। उस पर भगवान शिव
की कृपा बनी रहती है।