Monday, 23 June 2025

(6.4.27) सुरसा कौन थी ? हनुमान जी और सुरसा Who was Sursa ? Hanuman Ji and Surasa

सुरसा कौन थी ? हनुमान जी और सुरसा Who was Sursa ? Hanuman Ji  and Surasa

सुरसा कौन थी ? हनुमान जी और सुरसा 

इस संदर्भ में हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 275 पर एक कथा इस प्रकार है -

पवन पुत्र हनुमान जी भगवान राम के कार्य से वेग पूर्वक लंका की ओर उड़ कर जाते देख कर देवताओं ने उनके बल और बुद्धि का पता लगाने के लिए नागमाता सुरसा को भेजा। देवताओं के आदेश के अनुसार सुरसा ने अत्यंत विकट, बेडौल और भयानक रूप धारण कर लिया। उसके नेत्र पीले और दाढ़ें विकराल थी। वह आकाश को स्पर्श करने वाले विकटम मुंह बनाकर  हनुमान जी के मार्ग में खड़ी हो गई।

हनुमान जी को अपनी ओर आते देख कर नाग माता ने कहा - महामतेमैं भूख से व्याकुल हूँ ।  देवताओं ने तुम्हें मेरे आहार के रूप में भेजा है।  तुम मेरे मुख में आ जाओ । मैं अपनी भूख शांत कर लूं। 

अंजनानंदन  ने उत्तर दिया -  माता मेरा प्रणाम स्वीकार करो। मैं भगवान राम के कार्य से लंका जा रहा हूँ । इस समय माता सीता का पता लगाने के लिए मुझे जाने दो। वहाँ से शीघ्र ही  लौटकर तथा रघुनाथ जी को माता सीता का कुशल समाचार सुना कर, मैं तुम्हारे मुख में प्रविष्ट हो जाऊंगा। 

किंतु रामदूतके बल बुद्धि की परीक्षा के लिए आई सुरसा उन्हें किसी भी प्रकार से आगे नहीं जाने दे रही थी। तब हनुमान जी ने उससे कहा - अच्छा तुम मेरा भक्षण कर लो।    

सुरसा ने अपना मुंह एक योजन विस्तृत फैलाया ही था कि हनुमान जी ने तुरंत ही अपना शरीर आठ योजन बना लिया।  उसने अपना मुँह 16 योजन विस्तृत कर लिया  तब पवन कुमार  तुरंत 32 योजन के हो गए। सुरसा जितना ही अपना विकराल मुँह फैलाती  हनुमान जी उसके दुगने आकार के विशाल हो जाते थे। जब उसने अपना मुंह एक सौ योजन फैला लिया तब वायु पुत्र ने अंगूठे के समान अत्यंत छोटा रूप धारण करके उसके मुख में प्रविष्ट हो गए।  सुरसा अपना मुंह बंद करने ही वाली थी कि महामति हनुमान जी उसके मुख से बाहर निकल आए और  विनय पूर्वक  कहने लगे - माता मैं तुम्हारे मुंह से बाहर निकल आया हूं। तुम्हारी  बात पूरी हो गई है अब मुझे अपने प्रभु के आवश्यक कार्य के लिए जाने दो। 

सुरसा  तो रामदूत की केवल परीक्षा  करना चाहती थी। उसने कहा - वायु नंदननिश्चित ही तुम ज्ञान निधि हो। देवताओं ने तुम्हारी  परीक्षा के लिए मुझे भेजा था।  मैं तुम्हारे बल और बुद्धि का रहस्य समझ गई। अब तुम जाकर श्री राम के कार्य को करो। सफलता तुम्हें निश्चित रूप से वरण  करेगी। मैं तुम्हें हृदय से आशीष देती हूँ।