हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा ? Hanuman Ji Ne Arjun Ka Ghamand Kaise Toda
इस संदर्भ में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के पृष्ठ 363 पर एक कथा
इस प्रकार मिलती है -
यह बात है द्वापर के अंत की। एक
दिन अर्जुन अकेले ही सारथी के स्थान पर बैठकर अपना रथ हांक कर अरण्य में घूमते हुए
दक्षिण दिशा में चले गए। मध्याह्न काल हो जाने पर उन्होंने रामेश्वर के धनुष कोटि
तीर्थ में स्नान किया और फिर गर्व पूर्वक इधर-उधर घूमने लगे। उसी समय उन्होंने एक
पर्वत के ऊपर बैठे हुए सामान्य वानर के रूप में महावीर हनुमान जी को देखा। उनका
शरीर सुंदर पीले रंग के रोएं से सुशोभित था और वे राम नाम का जप कर रहे थे।
उन्हें देखकर अर्जुन ने पूछा, “अरे वानर तुम कौन हो और तुम्हारा
नाम क्या है?”
हँसते हुए हनुमान जी ने उत्तर दिया कि मैं समुद्र पर शिलाओं का सौ योजन
विस्तृत सेतु निर्माण कराने वाले प्रभु श्री राम का सेवक हनुमान हूँ।
अर्जुन ने गर्व में भरकर कहा कि
समुद्र पर सेतु तो कोई भी महा धनुर्धारी अपने वाणों से बना लेता। श्री राम ने
शिलाओं का सेतु बनाकर व्यर्थ ही प्रयास किया। हनुमान जी ने तुरंत उत्तर दिया कि वाणों का सेतु हमारे जैसे वानरों का भार
नहीं सह सकता था, इसी कारण प्रभु ने शरसेतु यानि वाणों के सेतु का निर्माण करने पर विचार ही नहीं किया।
इस पर अर्जुन बोले कि यदि वानर और भालुओं के आवागमन से ही सेतु टूट
जाए, तो वह धनुर्विद्या ही कैसी? तुम अभी मेरी धनुर्विद्या का चमत्कार देखो। मैं अपने वाणों से समुद्र पर सौ योजन
लंबा सेतु निर्माण कर देता हूँ। तुम उस पर आनंदपूर्वक उछल - कूद करना।
हनुमान जी हँस पड़े और बोले, ठीक
है, आप अपना पराक्रम दिखाओ।
अच्छी बात है, कहते हुए अर्जुन ने अपना विशाल
गाण्डीव धनुष हाथ में लिया और कुछ ही क्षण में समुद्र पर अपने वाणों से सौ योजन
लम्बा और मजबूत सेतु तैयार कर दिया। तब उन्होंने महावीर हनुमान जी से कहा कि वानरराज, अब तुम अपनी इच्छा अनुसार इस पर
उछल कूद करके देख लो।
हनुमान जी ने हँसते हुए उस सेतु पर
अपना अंगूठा रखा ही था कि वह शर सेतु सरसरा कर
टूट गया और समुद्र में डूब गया।
यह देखकर अर्जुन का सर्वश्रेष्ठ
धनुर्धारी होने का घमंड चूर चूर हो गया और उनके मुँह पर लज्जा का भाव स्पष्ट दिखने लगा। और उधर हनुमान जी पर गंधर्वों और देवताओं का समुदाय स्वर्गीय सुमनों की वृष्टि
करने लगा।