Sunday 18 October 2020

(9.1.4) Neend udaane wali chaar Baaten (Vidur Niti)

 Neend udaane wali chaar Baaten (Vidur Niti)

नींद उड़ाने वाली चार बातें

         महाभारत में एक प्रसंग आता है कि एक दिन महाराज धृतराष्ट्र बहुत दुखी थे। उन्होंने महामंत्री विदुर को बुलवाया। विदुर के आने पर धृतराष्ट्र ने विदुर से कहा कि आज मेरा मन बहुत व्याकुल है। मैं चिंता में जलता हुआ अभी तक जाग रहा हूं। मेरा मन पूर्ण रूप से अशांत है। मेरी सभी इंद्रियां विकल हो रही है। अतः मेरे लिए जो कल्याणकारी हो, वह कहो। इस पर महात्मा विदुर ने कहा कि, राजन ! इन चार कारणों से किसी व्यक्ति की नींद उड़ जाती है, उसे नींद नहीं आती, वह बेचैन और अशांत रहता है। वे चार कारण इस प्रकार है :-

1. जिसका बलवान व्यक्ति से विरोध हो गया हो, उस व्यक्ति को नींद नहीं आती है। कमजोर होने के कारण बलवान व्यक्ति से सीधा मुकाबला नहीं कर सकता। अतः वह इस चिंता में डूबा रहता है कि बलवान शत्रु से कैसे बचा जाए ? क्या उपाय किया जाए या किससे सहायता ली जाए ? बलवान शत्रु उसे कितना नुकसान पहुंचाएगा या उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा यह डर उसे सताता रहता है। परिणाम स्वरूप उसका मन अशांत रहता है और उसको नींद नहीं आती है।

2. दूसरा जो साधन हीन और दुर्बल हो। दुर्बल और साधन हीन व्यक्ति के साथ किसी तरह का अन्याय हो जाए तो भी वह अन्यायी व्यक्ति का सामना नहीं कर पाता है। अतः वह चिंतित रहता है। दुर्बल होने के कारण बलवान और निर्दयी व्यक्ति उसकी संपत्ति या उसके पास जो कुछ भी है उसे छीन सकता है। जिससे व्यक्ति को अपनी संपत्ति के छिन जाने से और उसे वापस प्राप्त करने के बारे में सोचकर चिंता होती है और उसे नींद नहीं आती है।

3. तीसरा जो काम व्यक्ति हो, जिस व्यक्ति के मन में काम भावना जागृत हो गई हो उसे भी रात में नींद नहीं आती है अर्थात उसे रात में जागने का रोग लग जाता है। ऐसा कामी व्यक्ति अपने काम भावना की पूर्ति के प्रयास में सो नहीं पाता है काम भावना उस व्यक्ति को व्याकुल और शांत बनाए रखती है। परिणाम स्वरूप उसकी नींद उड़ जाती है

4. चौथा जिस की आदत चोरी करने की हो जिस व्यक्ति की चोरी करने की आदत हो या जो चोरी को अपना व्यवसाय बना ले तो उसे भी रात में नींद नहीं आती है। चोर हमेशा ही दूसरों की नजर बचाकर चोरी करता है दूसरों की चीजें चुराता है जहां चोरी करना चाहता है वहां रहने वाले सभी लोगों के सो जाने की प्रतीक्षा करता है इस प्रतीक्षा में उसे नींद नहीं आती है


(9.1.3) Mahatma Vidur (Neetigya and Mahabharat ke patra)

 Mahatma Vidur (Neetigya and Mahabharat ke patra)

महात्मा विदुर नीतिज्ञ और महाभारत के पात्र

विदुर धृतराष्ट्र और पांडु के लघु भ्राता थे। दासी पुत्र होने के कारण वे राज्य के अधिकारी नहीं हुए। मांडव्य ऋषि के द्वारा श्राप के कारण धर्मराज ने ही विदुर जी के रूप में जन्म लिया था। वह परम बुद्धिमान, प्रज्ञा शक्ति से संपन्न तथा महान योग बल से प्रतिष्ठित थे। इनके प्रज्ञा वैभव एवं बुद्धि चातुर्य के विषय में वेदव्यास कहते हैं कि देव गुरु बृहस्पति और असुर गुरु शुक्राचार्य भी वैसे बुद्धिमान नहीं है जैसे पुरुष प्रवर विदुर है।

जब कभी पुत्र स्नेहवश धृतराष्ट्र पांडवों को दुख देने या उनके अहित की योजना सोचते, तब विदुर उन्हें यानी धृतराष्ट्र को समझाते थे। जब दुरात्मा दुर्योधन ने लाक्षागृह में पांडवों को जलाने का षड्यंत्र किया, तब विदुर ने उन्हें बचाने की व्यवस्था की और कूट भाषा या (यावनी भाषा ) में संदेश भेजकर युधिष्ठिर को पहले ही सावधान कर दिया, जिसके कारण पांडवों के प्राण बच गए।

जब पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास हुआ तो विदुर जी बहुत दुखी हुए। पांडवों के वनवास के समय, दुर्योधन के भड़काने से एक दिन धृतराष्ट्र ने क्रोध में आकर विदुर को कहा," तुम हमेशा पांडवों की प्रशंसा करते रहते हो, उन्हीं के पास चले जाओ। मेरे यहां मत रहो।" विदुर उसी समय पांडवों के पास जाकर जंगल में रहने लगे। उनके चले जाने के बाद धृतराष्ट्र को उनके महत्व का पता चला। वे विदुर की अनुपस्थिति में अपने आपको असहाय समझने लगे। उन्होंने दूत भेजा। अपने अपराध की क्षमा चाही और शीघ्र ही विदुर जी से हस्तिनापुर आने की प्रार्थना की। धृतराष्ट्र की प्रार्थना स्वीकार कर विदुर जी लौट आए।

महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तो विदुर जी किसी के भी पक्ष में नहीं रहे। अवधूत वेश बनाकर 12 वर्ष तक पृथ्वी पर विचरण करते रहे। जो मिल जाता, वही खा लेते। जहां रात्रि हो जाती ,वही सो जाते। फल फूल खाते हुए सभी तीर्थों में घूमते रहे। मैत्रेयजी से ज्ञानोपदेश प्राप्त करके वह हस्तिनापुर पहुंचे। पांडवों ने इनका बहुत सत्कार किया। कुछ दिन वहां रहे। अंत में, इन्होंने धृतराष्ट्र से वन में चलकर तपस्या करने के लिए कहा। इनकी बात मानकर वे गांधारी और कुंती के साथ वन में चले गए। विदुर जी भी उनके साथ थे। वन में जाकर विदुर जी ने एक पेड़ के सहारे खड़े खड़े ही योगियों की तरह अपने शरीर को त्याग दिया और अपने स्वरूप में मिल गए।

        महाभारत में वर्णन आता है कि धृतराष्ट्र मोह वश अपने पुत्र दुर्योधन का अधिक पक्ष लेते थे। इस कारण वे बहुत दुखी भी रहते थे। अधर्म नीति के परिणामों को जान कर वे अत्यंत विकल हो गए। अनिश्चय की स्थिति में पहुंच गए तो उन्होंने एक दिन अमात्य विदुर जी को बुलवाया और अपनी चिंता मिटाने का उपाय पूछा इस पर विदुर जी ने जो उपदेश धृतराष्ट्र को दिया वहीं विदुर नीति के नाम से जाने जाते हैं। विदुर जी ने बहुत सी बातें समझाई है। हालांकि यह बातें धृतराष्ट्र को संबोधित करके कही गई है परंतु यह बातें सभी के लिए कल्याणकारी व उपयोगी है।