Wednesday 30 March 2016

(1.1.15) Yaksh Ke Prashna aur Yudhishtir ke Uttar (in Hindi )

Yaksh Prashna यक्ष के प्रश्न और युधिष्ठिर के उत्तर 

पांडवों के वनवास की अवधि पूरी होने वाली थी।  एक दिन पांचों भाई ( युधिष्ठिर , अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव ) एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे।  उन्हें प्यास लगी। युधिष्ठिर ने  एक-एक करके सभी भाइयों को पास के जलाशय से पीने का पानी लाने हेतु भेजा।  लेकिन उनमें से कोई भी लौट कर नहीं आया।  युधिष्ठिर स्वयं सरोवर तक गये. उन्होंने वहां अपने भाइयों को मरे हुए देखा। तीव्र प्यास के कारण वे पानी पीने के लिए तालाब में उतरे. तभी उन्हें किसी की चेतावनी से भरी हुई वाणी  सुनाई दी - " यह सरोवर मेरा है।  मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए बिना पानी मत पीओ।" युधिष्ठिर ने स्थिति को समझ लिया और प्रश्नों के उत्तर देने के लिए सहमत हो गए। तब यक्ष ने निम्नांकित  प्रश्न पूछे - 


1.  "मनुष्य को खतरे से कौन बचाता  है?' 
" साहस मनुष्य को खतरे से बचाता है।"
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2. "किस विज्ञानं के अध्ययन से व्यक्ति बुद्धिमान बनता है ?" 
"किसी विज्ञान या शास्त्र के अध्ययन से व्यक्ति बुद्धिमान  नहीं बनता है। व्यक्ति, बुद्धिमान व्यक्तियों के संसर्ग में रहकर बुद्धि प्राप्त करता हैऔर बुद्धिमान बनता है।"
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3. "भूमि से अधिक भार को सहन करने वाला कौन है ?"

"संतान को कोख में धरने वाली माता पृथ्वी से भी अधिक भार वहन  करती है।"
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4.  "आकाश से ऊँचा क्या है ?
  
"पिता।"  
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5.  "हवा से भी तीव्र चलने वाला कौन है ?"
"मन।"
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 6.  "यात्री का साथी कौन होता है ?"   
 "ज्ञान।"
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7. "घर में रहने पर मनुष्य का साथी कौन होता है ?"  

"उसकी पत्नी।"  
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8. "मृत्यु के बाद व्यक्ति के साथ कौन जाता है ?" 
"केवल धर्म  ही मृत्यु के बाद मनुष्य के साथ जाता है।"
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9. "प्रसन्नता क्या है ?" 

"प्रसन्नता सुआचरण का प्रतिफल है।"
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10. "किस के छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?"  

"अहं भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने से मनुष्य सर्वप्रिय बनता है।"
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11. "किस वस्तु  के खो देने से व्यक्ति प्रसन्न होता है, न कि दुखी ?"  
  
"क्रोध के खो जाने से मनुष्य प्रसन्न व सुखी होता है।"
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12. " किस वस्तु के त्यागने से व्यक्ति धनवान बनता है ?"   

"लालच या लालसा के त्यागने से व्यक्ति धनवान बनता है।" 

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13. "किसी का ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर करता है ? उसके जन्म पर , उसके सद आचरण पर या विद्या पर ?"  

"जन्म या विद्या के कारण ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं होता है। ब्राह्मणत्व तो सदआचरण ( शील स्वभाव) पर ही निर्भर करता है।"   

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14. "इस संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है ?" 

"प्रति दिन आँखों के सामने कितने ही प्राणियों को मृत्यु के मुँह में जाते देख कर भी बचे हुए प्राणी चाहते हैं कि वे अमर रहें ,यही महान आश्चर्य की बात है।"  
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युधिष्ठिर के द्वारा दिए गए प्रश्नों से यक्ष प्रसन्न हुआ और उसने सभी भाइयों को पुनर्जीवित कर दिया।  

Saturday 26 March 2016

(2.1.11) Chankya ka Safalta Mantra

 Safalata ka chankya sootra सफलता के लिए चाणक्य सूत्र :-


सिंहादेकं बकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात। 
वायसात्पंच शिक्षेच्च षट शुनस्त्रीणि गर्दभात। ( चाणक्य नीति 6/14)

सिंह (शेर) और बगुले से एक - एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पाँच गुण और कुत्ते से छ: गुण सीखे जा सकते हैं। 
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1. कार्य छोटा हो या बड़ा, उसे एक बार हाथ में लेने के बाद पूरी शक्ति लगाकर करना चाहिए। यह  बात शेर से सीखी जा सकती है।  
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2. बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश  में करके देश, काल और अपने सामर्थ्य को अच्छी प्रकार समझ कर  एकाग्रता के साथ अपना कार्य करे, तो सफलता अवश्य प्राप्त होती है अर्थात  कार्य की सफलता के लिए कार्य को करते समय अपना सारा ध्यान उसी  ओर लगाना चाहिए। यह बात बगुले से सीखी जा सकती है।
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3. ब्रह्म मुहूर्त में जागना, रण में पीछे नहीं  हटना, बंधुओं में किसी वस्तु का बराबर वितरण करना और चढाई करके किसी से अपना भक्ष्य छीन लेना, ये चार बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए। 
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4. एकांत में प्रणय करना, निर्भीकता, उपयोगी वस्तुओं का संग्रह करना, निरंतर सावधान रहना और दूसरों पर आसानी से विश्वास नहीं करना, ये पांच बातें कौए से सीखनी  चाहिए। 
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5. जब कुते को खाने को मिलता है, तो वह अधिक खा लेता है और उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं मिले, तो भी वह संतोष कर लेता है। वह अच्छी और गहरी नींद सोता है परन्तु थोड़ी सी आहट  होने पर  भी वह एक दम जाग जाता है। स्वामी के प्रति वफादार रहता है और लड़ने में जरा भी नहीं घबराता है। ये छ गुण कुत्ते से सीखे जा सकते हैं। 
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6.अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना, ठण्डे - गर्म मौसम की अनदेखी  करना, सदा संतोष पूर्वक अपने कार्य को  करना, ये तीन बातें गधे सीखी जा सकती है। 
जो व्यक्ति इन बीस गुणों को सीख लेता है, इन्हें अपने आचरण में ले आता है और उसी के अनुसार कार्य करता है वह सभी कार्यों और अवस्थाओं में विजयी होता है।

(1.1.14) Giridhar ki Kundaliyan (with Hindi translation)

Giridhar ki Kudaliyan in Hindi with meaning गिरिधर की कुण्डलियाँ हिंदी अर्थ सहित 

गिरिधर  की कुण्डलियाँ  और अन्योक्तियॉ लोक की कण्ठहार है।   इनमें सम्यक् जीवन - यापनके गुर , कंटकाकीर्ण जीवन - यात्राको सफल बनानेके विधि - निषेध सटीक दृष्टांतों सहित लक्षित होते हैँ । इनकी लोकनीतिपरक ये कुण्डलियाँ व्यक्तिको प्रमाद स्खलन और जगत - व्यवहार के कुचालों  के विरुद्ध सावधान करती हैं  और उसे सत्पथका निर्देश भी करती हैं।  जीवन में क्या काम्य - अकाम्य , वांछनीय - अवांछनीय , श्रेयस्कर एव त्याज्य है; गिरिधर की कुंड़लियाँ इनकी निर्दशिका है।  उदाहरणार्थ कुछ कुण्डलिया प्रस्तुत हैँ  -
साईं बैर न कीजिये , गुरू पंडित कवि यार।
बेटा बनिता पवरिया , यज्ञ करावनहार।
यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई ।
विप्र , परोसी , वैद्य  आपको तपै  रसोई।
कह गिरिधर कविराय , युगनते यह चलि आई।
इन तेरह सों  तरह दिये बनि आवै साईं।
अर्थ - कवि गिरिधर के अनुसार  इन तेरह लोगोंसे कभी वैर नही बाँधना चाहिये - गुरु , विद्वान् , कवि , संगी - साथी , पुत्र , पत्नी , द्वारपाल , यज्ञ करानेवाला पुरोहित , राजमंत्री , ब्राह्मण , पडोसी , वैद्य और रसोई बनाने वाला।
साईं सब संसार में मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार।
तब लग ताको यार संगही संग में डोलें।
पैसा रहा न पास , यार मुख से नहिं बोलें।
कह गिरिधर कवि राय जगत यहि लेखा भाई।
बिनु बेगरजी प्रीति यार विरला कोई साईं।
अर्थ - कवि गिरिधर कहते हैं - दुनियाँ का सारा व्यवहार मतलब का है।  मित्र तभी तक साथ देता है और पीछे -पीछे घूमता है, जब तक उसका मतलब सधता है।  पैसा पास नहीं रहने पर वह मुँह से भी नहीं बोलता है।  दुनियाँ का यही नियम है।  निस्वार्थ प्रीति करने वाला तो कोई विरला ही देखा गया है।