Monday 31 July 2023

(6.2.13) गणेश वन्दना/ नमामि त्वां गणाधिप Namami Twaam Ganaadhip / Ganesh Vandana

 गणेश वन्दना/ नमामि त्वां गणाधिप Namami Twaam Ganaadhip / Ganesh Vandana

गणेश वन्दना/ नमामि त्वां गणाधिप

गणाधिप नमस्तुभ्यं सर्व विघ्न प्रशान्तिद

उमानन्द प्रद प्राज्ञ त्राहि मां भव सागरात्

हरानन्दकर ध्यानज्ञान विज्ञानद प्रभो

विघ्नराज नमस्तुभ्यं सर्वदैत्यैक सूदन

सर्वप्रीतिपद श्रीद सर्वयज्ञेक रक्षक

सर्वाभीष्टप्रद प्रीत्या नमामि त्वां गणाधिप

अर्थ – श्री गणेशजी, आपको नमस्कार है. आप सम्पूर्ण विघ्नों की शान्ति करने वाले, उमा के लिए आनन्ददायक तथा परम बुद्धिमान हैं, आप भवसागर से मेरा उद्धार कीजिये. विघ्नराज, आप भगवान् शंकर को आनन्दित करने वाले, आपका ध्यान करने वालों को ज्ञान और विज्ञान के प्रदाता तथा सम्पूर्ण दैत्यों के एक मात्र संहारक हैं, आपको नमस्कार है. गणपते, आप सबको प्रसन्नता और लक्ष्मी देने वाले सम्पूर्ण यज्ञों के एक मात्र रक्षक तथा सब प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाले हैं, मैं प्रेम पूर्वक आपको प्रणाम करता हूँ. 

 

(6.2.12) गणेशाष्टक Ganeshashtak in Hindi गणेशाष्टक – कार्य सिद्धि और समृद्धि हेतु

गणेशाष्टक Ganeshashtak in Hindi गणेशाष्टक – कार्य सिद्धि और समृद्धि हेतु

गणेशाष्टक – कार्य सिद्धि और समृद्धि हेतु

जिन अनन्त शक्ति वाले परमेश्वर से अनन्त जीव प्रकट हुए हैं, जिन निर्गुण परमात्मा से अप्रमेय (असंख्य) गुणों की उत्पत्ति हुई है, सात्विक, राजस और तामस – इन तीनों भेदों वाला यह सम्पूर्ण जगत जिससे प्रकट एवं भासित हो रहा है, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं.

जिनसे इस समस्त जगत का प्रादुर्भाव हुआ है, जिनसे कमलासन ब्रह्मा, विश्व व्यापी विश्व रक्षक विष्णु, इन्द्र आदि देव समुदाय एवं मनुष्य प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं.

जिनसे अग्नि और सूर्य का प्राकट्य हुआ है, पृथ्वी, जल, समुद्र, चन्द्रमा, आकाश और वायु का प्रादुर्भाव हुआ है तथा जिनसे स्थावर – जंगम और वृक्ष समूह उत्पन्न हुए हैं, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं.

जिनसे दानव, किन्नर और यक्ष समूह प्रकट हुए हैं, जिनसे हाथी और हिंसक जीव उत्पन्न हुए हैं तथा जिनसे पक्षियों, कीटों और लता – बेलों का प्रादुर्भाव हुआ है, उन गणेश का हम सदा ही नमन और भजन करते हैं.

जिनसे मुमुक्ष को बुद्धि प्राप्त होती है और अज्ञान का नाश होता है. जिनसे भक्तों को संतोष देने वाली सम्पदा प्राप्त होती है तथा जिनसे विघ्नों का नाश और समस्त कार्यों की सिद्धि होती है, उन गणेश का हम सदा नमन और भजन करते हैं.

जिनसे पुत्र - सम्पत्ति सुलभ होती है, जिनसे मनोवांछित अर्थ सिद्ध होता है, जिनसे अभक्तों को अनेक प्रकार के विघ्न प्राप्त होते हैं तथा जिनसे शोक, मोह और काम प्राप्त होते हैं, उन गणेश का हम सदा नमन और भजन करते हैं.

जिनसे अनन्त शक्ति सम्पन्न सुप्रसिद्ध शेषनाग प्रकट हुए, जो इस पृथ्वी को धारण करने एवं अनेक रूप ग्रहण करने में समर्थ हैं, जिनसे अनेक प्रकार के अनेक स्वर्गलोक प्रकट हुए, उन गणेश का हम सदा नमन और भजन करते हैं.

जिनके विषय में वेदवाणी कुण्ठित है, जहाँ मन की भी पहुँच नहीं है तथा श्रुति सदा सावधान रहकर “नेति – नेति” इन शब्दों द्वारा जिनका वर्णन करती है, जो सच्चिदानन्द स्वरुप परब्रह्म हैं, उन गणेश का हम सदा नमन और भजन करते हैं.

फलश्रुति –

जो मनुष्य तीन दिन तक तीनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र का पाठ करेगा, उसके सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे. जो आठ दिन तक इन आठ श्लोकों का एक एक बार पाठ करेगा और चतुर्थी तिथि को इस स्तोत्र को आठ बार पढ़ेगा, वह आठों सिद्धियों को प्राप्त कर लेगा. जो एक माह तक प्रतिदिन दस – दस बार इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह कारागार में बंधे हुए तथा राजा के द्वारा वध – दण्ड पाने वाले कैदी को भी छुड़ा लेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है. इस स्तोत्र का इक्कीस बार पाठ करने से विद्यार्थी विद्या, पुत्रार्थी पुत्र तथा कामार्थी समस्त मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है. जो मनुष्य पराभक्ति से इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह गजानन का परम भक्त हो जाता है.     

 

  

Saturday 29 July 2023

(8.5.10) अधिक मास की पद्मिनी एकादशी व्रत का महत्व और व्रत की कथा Padmini Ekadashi Vrat aur Vrat Katha

अधिक मास शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी के व्रत का महत्व और इस एकादशी व्रत की कथा Padmini Ekadashi Vrat aur Katha

अधिक मास शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी के व्रत का महत्व और इस एकादशी व्रत की कथा Padmini Ekadashi Vrat aur Katha

धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा - हे जनार्दन, अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम क्या है तथा इसके व्रत का महत्व क्या है और व्रत की विधि क्या है ? 

इस पर भगवान श्री कृष्ण बोले - हे राजन,  अधिक मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी एकादशी कहलाती है ।

भगवान ने आगे कहा , मल मास यानि अधिक मास में आने वाली यह एकादशी अनेक पुण्य प्रदान करने वाली एकादशी है ।इसका व्रत करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है । इसका व्रत करने से मनुष्य इस जन्म में कीर्ति प्राप्त करता है और अंत में वैकुंठ में जाता है।

पद्मिनी एकादशी व्रत की विधि 

एकादशी व्रत के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ कर जौ - चावल आदि का भोजन करें तथा नमक नहीं खाए. भूमि पर सोए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें. दूसरे दिन यानि एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दातुन करें. जल से 12 कुल्ला करके शुद्ध हो जाए , सूर्य उदय होने से पूर्व स्नान कर ले और सफेद वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करे और व्रत रखे।

पद्मिनी एकादशी व्रत की कथा 

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा -हे राजन , त्रेता युग में महिष्मति नामक नगरी में कृतवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उस राजा के कई परम प्रिय रानियां थी परंतु उनमें से किसी के भी पुत्र नहीं था। राजा ने देवता, पितृ तथा अनेक चिकित्सकों से पुत्र प्राप्ति के लिए कई उपाय करवाएं लेकिन सब उपाय असफल रहे । तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया । राजा के साथ उनकी परम प्रिय रानी पद्मिनी (मतान्तर से प्रमदा)  भी वन  में जाने को तैयार हो गई । दोनों अपने राज्य के मंत्री को राज्य भार सौंपकर  व राजसी वस्त्र त्याग कर गंधमादन नामक पर्वत पर तपस्या करने के लिए चले गए ।

राजा कृतवीर्य और रानी पद्मिनी कई वर्षों तक तपस्या करते रहे परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई । तब रानी पद्मिनी अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया के पास गई, दंडवत प्रणाम किया और अपना परिचय दिया । फिर उनसे पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा । तब देवी अनुसूया ने कहा कि अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी है । तुम इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारी सभी मनोकामना पूर्ण होगी तथा शीघ्र ही तुम्हारी पुत्र प्राप्ति की इच्छा भी पूरी होगी । अनुसुइया की सलाह से रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत किया। उसने एकादशी को निराहार रहकर रात्रि में जागरण किया । इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया ।

इसी व्रत के प्रभाव से उनके एक पराक्रमी बालक उत्पन्न हुआ जिसका नाम कार्तवीर्य रखा गया । कार्तवीर्य इतना बलवान था कि तीनों लोकों में भगवान के अतिरिक्त उसको जीतने का किसी में भी सामर्थ्य नहीं था।

इस कहानी की समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा - हे राजन , जो मनुष्य अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं और जो संपूर्ण कथा को पढ़ते भी हैं या सुनते भी हैं वे  भी यश के भागी होकर विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं।


(6.2.11) गणपति अथर्वशीर्ष के लाभ और पाठ करने की विधि Ganapati Atharvasheersh ke Laabh /Benefits

 गणपति अथर्वशीर्ष के लाभ और पाठ करने की विधि Ganapati Atharvasheersh ke Laabh /Benefits

गणपति अथर्वशीर्ष के लाभ और पाठ करने की विधि

गणपति अथर्वशीर्ष अथर्ववेद का भाग है. यह संस्कृत में रचित एक लघु उपनिषद् है. इसमें दस ऋचाएँ हैं. यह प्रथम पूज्य गणपति यानि गणेशजी को समर्पित एक वैदिक प्रार्थना है. इसमें भगवान् गणेश जी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों का वास मान कर उनसे समस्त दुःख और कठिनाइयों को दूर करने की प्रार्थना की गयी है.

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लाभ –

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से बाधायें, कठिनाइयाँ और समस्त संकट दूर हो जाते हैं.

शरीर में सकारात्मक और रचनात्मक शक्ति का संचार होता है तथा मानसिक शुद्धि होती है.

मानसिक स्थिरता आती है, जिससे निर्णायक क्षमता बढ़ती है.

इसका पाठ करने से सम्पन्नता व आर्थिक समृद्धि आती है. 

मनोकामना पूर्ण होती है.

जन्म कुण्डली में पाप ग्रह राहु, केतु, शनि आदि की अशुभ स्थिति का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है.

जो इस अथर्वशीर्ष का पाठ करता है, वह ब्रह्म को जानने योग्य हो जाता है. वह विघ्नों के बंधन और पाँच महापातकों से मुक्त हो जाता है.

जो इस उपनिषद् से गणपति का अभिषेक करता है, वह प्रखर वक्ता हो जाता है. जो चतुर्थी के दिन उपवास करके इस उपनिषद का पाठ करता है, उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है. उसे ब्रह्म विद्या प्राप्त होती है और वह भय मुक्त हो जाता है.

जो इस उपनिषद का पाठ करता हुआ दूर्वा यानि दूब से गणपति की पूजा करता है, वह कुबेर के समान समृद्ध हो जाता है, जो चाँवलों पूजा करता है, वह कीर्तिवान और मेधावान हो जाता है.

जो सूर्यग्रहण के समय नदी के किनारे बैठकर या गणेशजी की प्रतिमा के सामने बैठकर इस उपनिषद का पाठ करता है, उसे मन्त्र सिद्धि प्राप्त होती है, वह महा विघ्नों, महादोषों और महापापों से मुक्त हो जाता है. वह सभी विद्याओं का ज्ञाता हो जाता है.

गणपति अथर्वशीर्ष का दैनिक पाठ करने की विधि –

प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत होकर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जायें. भगवान गणेशजी  का चित्र अपने सामने रख लें. दीपक और धूप बत्ती जलायें. आखें बंद करके भगवान् गणेशजी का ध्यान करें. इसके बाद इस गणपति अथर्वशीर्ष का श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें और पाठ करने के बाद भावना करें कि आपको भगवान् गणेशजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो रहें हैं. 

 

(6.2.10) स्यमन्तक मणि और श्री कृष्ण पर लगे कलंक की कथा (Syamantak Mani Story)

 स्यमन्तक मणि और श्री कृष्ण पर लगे कलंक की कथा (Syamantak Mani Story)

स्यमन्तक मणि और श्री कृष्ण पर लगे कलंक की कथा

एक बार चन्द्रमा ने गणेश जी पर हँस कर उनका उपहास किया था इससे गणेश जी ने कुपित होकर चन्द्रमा को शाप दे दिया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी उसे यानि चन्द्रमा को देखेगा, तो उस व्यक्ति को पाप, हानि, मूढ़ता और कलंक का सामना करना पड़ेगा.

भगवान् श्री कृष्ण पर भी चोरी और हत्या का आरोप लगा था. जब उन्होंने अपने ऊपर लगे कलंक का कारण पूछा तो नारद जी ने बताया कि यह सब आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन किया था इसलिए हुआ है.

इस सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के अध्याय 56 व 57 में एक कथा इस प्रकार है –

श्री कृष्ण की द्वारकापुरी में सत्राजित नामक व्यक्ति सूर्य का भक्त था. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य ने उसे स्यमन्तक मणि दे दी. यह मणि सूर्य के समान प्रकाश वाली थी और प्रतिदिन आठ भार सोना देती थी तथा जहाँ यह पूजित होकर रहती थी, वहाँ दुर्भिक्ष, महामारी, ग्रहपीड़ा, सर्प भय आदि कुछ भी अशुभ घटना नहीं घटती थी. एक बार प्रसंगवश श्री कृष्ण ने सत्राजित से कहा कि तुम यह मणि राजा उग्रसेन को दे दो. लेकिन उसने श्री कृष्ण की सलाह को नहीं मानी.

एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन ने उस स्यमन्तक मणि को अपने गले में धारण कर ली और घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए वन में चला गया. वहाँ एक शेर ने सत्राजित को मार दिया और उस मणि को छीन लिया. उस शेर से उस मणि को जाम्बवान ने ले ली.

प्रसेन के लौट कर घर नहीं आने पर सत्राजित को संदेह हुआ और वह कहने लगा कि बहुत सम्भव है कृष्ण ने मेरे भाई प्रसेन को मार डाला और उससे स्यमन्तक मणि ले ली. जब श्री कृष्ण को अपने ऊपर लगे इस कलंक का पता चला तो वे प्रसेन की खोज में वन में गए. वहाँ वे जाम्बवान की गुफा में गए और मणि लेने का प्रयास किया तो जाम्बवान उनसे युद्ध करने लगा. श्री कृष्ण और जाम्बवान के बीच 21 दिन तक घोर युद्ध हुआ. अंत में जाम्बवान ने भगवान् कृष्ण को पहचान लिया. तब श्री कृष्ण ने जाम्बवान से कहा कि मैं तो इस मणि को लेने के लिया ही तुम्हारी गुफा में आया हूँ. मैं इस मणि को ले जाकर मेरे ऊपर लगे झूठे कलंक को मिटाना चाहता हूँ. भगवान् के ऐसा कहने पर जाम्बवान ने वह मणि श्री कृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह भी उनके साथ कर दिया.

बाद में भगवान् ने सत्राजित को महाराज उग्रसेन के पास राजसभा में बुलवाया और जिस प्रकार स्यमन्तक मणि प्राप्त हुई थी, इस कथा को सुनाकर वह मणि सत्राजित को दे दी. इस प्रकार उन्होंने अपने ऊपर लगे झूठे कलंक को मिटाया.

यदि किसी को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन हो जाये तो किसी अनहोनी या किसी कलंक से बचने के लिए उसे यह कथा पढ़नी या सुननी चाहिए.   

 

 

Friday 28 July 2023

(6.5.9) विष्णु गायत्री मन्त्र इसके लाभ और जप करने की विधि Vishnu Gayatri Mantra Ke Laabh

 विष्णु गायत्री मन्त्र इसके लाभ और जप करने की विधि Vishnu Gayatri Mantra Ke Laabh

विष्णु गायत्री मन्त्र के लाभ और जप करने की विधि

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात् शिव को त्रिदेव माना जाता है. इन त्रिदेवों में से भगवान् ब्रह्मा को सृजनकर्ता, भगवान् विष्णु को पालनकर्ता और भगवान् शिव को संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है.

भगवान् विष्णु से सम्बंधित कई मंत्र और स्तोत्र हैं. विष्णु गायत्री मंत्र भी उनमें से एक है. विष्णु गायत्री मन्त्र का जप करने के लाभ इस प्रकार हैं –

विष्णु गायत्री मन्त्र का प्रतिदिन जप करने से परिवार में शान्ति रहती है.

सभी प्रकार की सम्पन्नता आती है.

बौद्धिक स्तर बढ़ता है जिससे सोचने व समझने की क्षमता का विकास होता है.

जपकर्ता के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसको उसके प्रयासों में सफलता मिलती है. अनिश्चितता की स्थति नहीं रहती है. लक्ष्य स्पष्ट दिखने लगता है.

विद्यार्थियों की धारणा शक्ति बढ़ती है और परीक्षा में सफलता मिलती है.

विष्णु गायत्री मन्त्र का जप करने की विधि –

दैनिक कार्य से निवृत्त होकर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जाएँ. भगवान् विष्णु का चित्र अपने सामने रख लें. धूपबत्ती व दीपक जलाएं. अपनी आँखें बंद करके भगवान् विष्णु का ध्यान करें. ध्यान इस प्रकार है –

उदीयमान करोड़ों सूर्य के समान प्रभातुल्य, अपने चारों हाथों में शंख, गदा, पद्म तथा चक्र धारण किये हुये और दोनों भागों में भगवती लक्ष्मी और पृथ्वीदेवी से सुशोभित, किरीट, मुकुट, केयूर, हार और कुण्डलों से समलंकृत, कौस्तुभमणि तथा पीताम्बर से देदीप्यमान, विग्रहयुक्त एवं वक्षःस्थल पर श्रीवत्सचिह्न धारण किये हुए भगवान् विष्णु का मैं निरन्तर स्मरण – ध्यान करता हूँ.

ध्यान के बाद विष्णु गायत्री मन्त्र का पाँच, तीन या एक माला का जप करें. विष्णु गायत्री मन्त्र इस प्रकार है -       

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्

विष्णु गायत्री मन्त्र का जप करने के बाद भावना करें कि भगवान् विष्णु का आपको आशीर्वाद मिल रहा है और आप पर उनकी कृपा वृष्टि हो रही है. इसके बाद पूजा का स्थान छोड़ दें और अपनी दिन चर्या में लग जाएँ.

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Thursday 27 July 2023

(6.5.8) विष्णु सहस्त्र नाम / विष्णु सहस्त्र नाम के लाभ Benefits or Laabh of Vishnu Sahastra Naam

विष्णु सहस्त्र नाम / विष्णु सहस्त्र नाम के लाभ Benefits or Laabh of Vishnu Sahastra Naam

विष्णु सहस्त्र नाम और इसके पाठ के लाभ

विष्णु सहस्त्र नाम भगवान् विष्णु के एक हजार नामों वाला एक स्तोत्र मन्त्र है. प्रत्येक नाम भगवान् विष्णु के किसी न किसी गुण को सूचित करता है. महाभारत के अनुशासन पर्व के 149 वें अध्याय में इस स्तोत्र का उल्लेख मिलता है. इस स्तोत्र मन्त्र में तीन भाग हैं. पहले भाग में युधिष्ठिर का भीष्म पितामह के पास जाने का उल्लेख है. दूसरे भाग में भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को भगवान् विष्णु के एक हजार नामों का उपदेश देने का उल्लेख है. और तीसरे भाग में भगवान् विष्णु के सहस्त्र नामों को सुनने अथवा पाठ करने से होने वाले लाभों का विवरण है.

भगवान् विष्णु के सहस्त्र नामों की उत्पत्ति कैसे हुई ? 

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात् युधिष्ठिर मन ही मन दुखी रहने लगे और अपने आप को अकेला और अशांत अनुभव करने लगे. वे सोचने लगे कि अब मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं रह गया. ऐसी स्थिति में मैं जीकर क्या करूँगा ? तब भगवान् श्री कृष्ण ने उनकी यानि युधिष्ठिर की व्यथा को समझा और उन्हें मन और हृदय की शान्ति का उपाय जानने के लिये भीष्म पितामह के पास जाने की सलाह दी. श्री कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर वाणों की शय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह के पास गए और उनको अपने मन की व्यथा बताई और उनसे पूछा – सभी लोकों में सर्वोत्तम देवता कौन हैं ? सांसारिक जीवन का लक्ष्य क्या है ? किसकी स्तुति और अर्चना करने से मानव जीवन का कल्याण होता है ? सबसे उत्तम धर्म कौनसा है ? किसके नाम का जप करने से जीव को संसार के बंधन से मुक्ति मिलती है ?

युधिष्ठिर के इन प्रश्नों के उत्तर में भीष्म पितामह ने कहा कि जगत के प्रभु, देवों के देव, भगवान् विष्णु सभी लोकों में सर्वोत्तम देवता हैं, उनके सहस्त्र नामों का जप करने से, उनकी अचल भक्ति से, स्तुति से, आराधना से और नमन आदि से मनुष्य को संसार के बंधन से मुक्ति मिलती है. यही सर्वोत्तम धर्म है. इसके बाद भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को विष्णु के सहस्त्र नाम और उन नामों के महत्व का उपदेश दिया.

विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने के लाभ –

इस स्तोत्र का प्रतिदिन एक पाठ करने से धन और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

गर्भवती महिला इसका पाठ करती है या इन सहस्त्र नामों को सुनती है, तो उसे श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है.

धर्म की कामना करने वाला धर्म को प्राप्त करता है.

इसका पाठ करने वाले व्यक्ति का भाग्य हमेशा साथ देता है.

जपकर्ता को मानसिक शांति मिलती है, अवांछित चिंताओं और विचलित विचारों से मुक्ति मिलती है.

विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करने से सकारात्मक और रचनात्मक उर्जा का संचार होता है.

विष्णु सहस्त्र नाम के पाठ करने से जीवन में आने वाली चुनोतियों, बाधाओं और खतरों का सामना करने का साहस बना रहता है. मन में शान्ति का अनुभव होता है, सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और उत्तम सुखों की प्राप्ति होती है   

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बुरे सपने आने पर सात्विक उपाय / दुस्वप्न दोष निवारक मन्त्र व उपाय

कभी कभी हमें बुरे या डरावने स्वप्न आ जाते हैं, परिणाम स्वरूप हम उदासी और बेचैनी अनुभव करने लगते हैं. ऐसा होने पर प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुँह करके बैठ जाएँ और इस श्लोक मन्त्र का दस बार पाठ करें. यह श्लोक इस प्रकार है –

ॐ अच्युतं केशवं विष्णुं हरिं सत्यं जनार्दनम्

हंसं नारायणं चैव ह्येतन्नामाष्टकं शुभम्

यदि आप इस श्लोक को न बोल सकें तो, इसमें आये इन आठ नामों का दस बार उच्चारण करें. ये नाम इस प्रकार हैं –

अच्युत, केशव, विष्णु, हरि, सत्य, जनार्दन, हंस, नारायण.  

पाठ करने के बाद भावना करें कि इन आठ नामों के उच्चारण के प्रभाव से से देखे गए बुरे स्वप्न का कोई बुरा प्रभाव नहीं होगा.

दूसरा उपाय –

बुरा स्वप्न आने पर रात में नींद खुल जाये तो, उसी समय 108 बार ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करें और प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत होकर शिव मन्दिर में जायें तथा ‘ॐ नमः शिवाय’ बोलते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं. फिर शिवलिंग के पास आँखें बंद करके बैठ जाएँ और भगवान् शिव का ध्यान करते हुए भावना करें कि भगवान् शिव की कृपा से इस बुरे स्वप्न का कोई बुरा प्रभाव नहीं होगा.     

 

Wednesday 26 July 2023

(6.5.7) नारायण कवच के लाभ Benefits of Narayan Kavach / Shri Narayan Kavach Ke Laabh

 नारायण कवच के लाभ Benefits of Narayan Kavach / Shri Narayan Kavach Ke Laabh

नारायण कवच के लाभ

नारायण कवच का परिचय –

श्रीनारायण कवच श्रीमद्भागवत् पुराण के छठे स्कन्द के आठवें अध्याय में है. यह कवच भगवान् विष्णु को समर्पित स्तोत्र है. इस स्तोत्र में अपनी रक्षा के लिए भगवान् विष्णु से प्रार्थना की गयी है. इस सम्बन्ध में एक प्रसंग के अनुसार -

एक बार राजा परीक्षित ने श्री शुकदेवजी से पूछा – भगवन् ! देवराज इन्द्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरंगिणी सेना को खेल खेल में अनायास ही जीत कर त्रिलोकी की राजलक्ष्मी का उपभोग किया, उस नारायण कवच को मुझे सुनाइए और यह भी बताइये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की.

इस पर श्री शुकदेव जी कहा – हे परीक्षित ! जब देवताओं ने विश्वरूप को अपना पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने उन्हें नारायण कवच का उपदेश दिया और कहा कि भय का अवसर उपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की रक्षा कर लेनी चाहिए.

नारायण कवच का महत्व और प्रभाव –

नारायण कवच के महत्व और इसके प्रभाव के सन्दर्भ में शुकदेव जी ने देवराज इन्द्र को एक कथा सुनाई थी जो इस प्रकार है –

“प्राचीनकाल की बात है, एक कौशिक गौत्र के ब्राह्मण ने इस विद्या को यानि श्री नारायण कवच को धारण करके योग धारणा से अपना शरीर मरूभूमि में त्याग दिया. उस ब्राह्मण का अस्थिपंजर उस मरुभूमि पर पड़ा हुआ था. एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठ कर जा रहे थे. जैसे ही  उनका विमान उस ब्राहमण के अस्थिपन्जर के ऊपर से गुजरने लगा, तभी वे विमान सहित आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े. इस घटना से उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही. तब वालखिल्य मुनियों ने चित्ररथ को बताया कि यह नारायण कवच के धारण करने का प्रभाव है. और उन्होंने यह सलाह भी दी कि इस समस्या का समाधान पाने के लिए उन्हें उस ब्राह्मण की अस्थियों को सरस्वती नदी में प्रवाहित करनी होगी. तब गन्धर्वराज चित्ररथ ने उस ब्राह्मण की हड्डियों को ले जाकर पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर स्नान करके वे अपने लोक में चले गए.

नारायण कवच के लाभ –

इस कवच का पाठ करने से पाठकर्ता आत्मविश्वास से भर जाता है, अपने आप को सुरक्षित अनुभव करता है और भय रहित हो जाता है. नकारात्मक विचारों और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है. दृश्य और अदृश्य शत्रुओं पर विजय पा लेता है.   

इस कवच के छत्तीसवें श्लोक के अनुसार जो साधक इस नारायण कवच को धारण करता है यानि श्रृद्धा और विश्वास के साथ इसका पाठ करता है, वह साधक जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है, वह तत्काल समस्त भयों से मुक्त हो जाता है.

सेंतीसवें श्लोक के अनुसार जो व्यक्ति इसे धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी भी किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है.

इकतालीसवें श्लोक के अनुसार जो पुरुष इस नारायण कवच को सुनता है और जो आदर पूर्वक इसका पाठ करता है, उसका सभी आदर करते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है.

श्लोक 42 के अनुसार इस वैष्णवी विद्या को प्राप्त करके इसके प्रभाव से इन्द्र ने असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्य लक्ष्मी का उपभोग करने लगे. 

 

 

 

 

 

(6.5.6) गजेन्द्र मोक्ष कथा Gajendra Moksh Ki Katha / Story Of Gajendra Moksh/ Gajendra Moksh

गजेन्द्र मोक्ष कथा Gajendra Moksh Ki Katha / Story Of Gajendra Moksh/  Gajendra Moksh

गजेन्द्र मोक्ष कथा

श्री मद्भागवत पुराण के अनुसार क्षीर सागर में दस सहस्त्र योजन लम्बा – चौड़ा त्रिकूट नामक श्रेष्ठ और अत्यंत सुन्दर पर्वत था. उस पर्वत के गहन वन में हथनियों के साथ अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी गजेन्द्र यानि हाथी रहता था.

एक बार की बात है गजेन्द्र अपने साथियों के साथ वन में विचरण कर रहा था. तभी वह प्यास की तीव्रता से व्याकुल हो गया. वह कमल की गंध से सुगन्धित वायु को सूंघ कर एक सुन्दर और आकर्षक तथा विशाल सरोवर के तट पर जा पहुँचा और सरोवर में प्रवेश करके ठण्डे और मीठे जल से अपनी प्यास बुझाई. फिर जल क्रीड़ा प्रारम्भ कर दी. तभी अचानक सरोवर में रहने वाले एक ग्राह यानि मगरमच्छ ने गजेन्द्र का पैर पकड़ लिया और उसे खींचकर गहरे पानी में ले जाने लगा. गजेन्द्र ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपना पैर छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा. उसके साथियों ने भी उसे मगर से मुक्त कराने का प्रयास किया परन्तु वे भी असफल रहे. असमर्थ गजेन्द्र के प्राण संकट में पड़ गए. वह पूर्णतया निराश हो गया. लेकिन पूर्व जन्म में निरंतर की गयी ईश्वर आराधना के फलस्वरूप उसे भगवत्स्मृति हो आयी और वह मन को एकाग्र करके पूर्व जन्म में सीखे गये श्रेष्ठ स्तोत्र द्वारा प्रभु की स्तुति करने लगा. गजेन्द्र की स्तुति सुन कर भगवान् विष्णु गरुड़ पर आरूढ़ होकर उसके पास पहुँचे. उन्होंने गजेन्द्र के साथ ग्राह को भी सरोवर से बाहर खींचा और सुदर्शन चक्र से ग्राह यानि मगर मच्छ का मुँह फाड़ कर उसके चंगुल से गजेन्द्र को मुक्त करा दिया और उसके प्राणों की रक्षा की.

जब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को यह कथा सुनाई तो राजा परीक्षित ने शुकदेवजी से पूछा कि हे महाराज, वह गजेन्द्र कौन था जिसकी पुकार सुनकर भगवान् ने स्वयं आकर उसके प्राण बचाए. तब शुकदेवजी ने कहा कि पूर्व जन्म में गजेन्द्र का नाम इन्द्रद्युम्न था और वह द्रविड़ देश का राजा था. वह अपना अधिकतर समय भगवान् विष्णु की आराधना – उपासना में ही व्यतीत करता था. उसने मलय पर्वत पर अपना आश्रम बना लिया. एक समय की बात है वह प्रतिदिन की तरह ही स्नान आदि से निवृत्त होकर प्रभु की आराधना में तल्लीन था. संयोग वश उसी समय ऋषि अगस्त्य अपने शिष्यों के साथ वहां पहुँच गए. राजा का नियम था कि जबतक वह पूजा करता था, किसी से कुछ नहीं बोलता था. इसलिए उसने अगस्त्य ऋषि को प्रणाम आदि नहीं किया. इससे ऋषि कुपित हो गए और राजा इन्द्रद्युम्न को शाप दे दिया कि तू ऋषियों का अपमान करता है, तू हाथी के समान जड़ बुद्धि है अतः तुझे हाथी की योनि प्राप्त हो.

ऋषि अगस्त्य भगवद्भक्त राजा इन्द्रद्युम्न को शाप देकर चले गए. इन्द्रद्युम्न ने इस शाप को मंगलमय विधान समझा और प्रभु के चरणों में अपना सिर रख दिया. शाप के कारण दूसरे जन्म में उसे हाथी की योनि प्राप्त हुई.

और जो ग्राह था वह अपने पूर्व जन्म में हूहू नाम का एक गन्धर्व था. एक बार देवल नामक ऋषि जलाशय में स्नान कर रहे थे, तभी इस हूहू गन्धर्व ने जलाशय में जाकर देवल ऋषि के पैर को पकड़ा और जोर जोर से ‘मगर, मगर’ कहकर चिल्लाने लगा. इस तरह के अनुचित आचरण से ऋषि क्रोधित हो गए और हूहू से कहा कि तुम्हें संत महात्माओं का आदर करना चाहिए इसके विपरीत तुम उनके साथ उपहास कर रहे हो और मगर की तरह आकर मेरा पैर पकड़ रहे हो. यदि तुझे मगर बनने का इतना ही शौक है तो, तुझे अगले जन्म में मगर की योनि प्राप्त होगी. ऐसा कहकर उन्होंने हूहू को अगले जन्म में मगरमच्छ होने का शाप दे दिया. तब गन्धर्व ने ऋषि से क्षमा याचना की तो, ऋषि ने कहा कि तुझे मगर की योनि तो प्राप्त होगी परन्तु तेरा उद्धार भगवान् के हाथ से होगा.

इसी ग्राहरूपी हूहू गन्धर्व का उद्धार भगवान् के द्वारा हुआ. भगवान् विष्णु के मंगलमय हाथों के स्पर्श के कारण पाप से मुक्ति पाकर वह अपने लोक में चला गया.   

 

Tuesday 25 July 2023

(6.5.5)अच्युत, अनन्त और गोविन्द Achyut, Anant Aur Govind

 अच्युत, अनन्त और गोविन्द Achyut, Anant Aur Govind (शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए)

श्री हरि विष्णु

‘अच्युत, अनन्त और गोविन्द’ , इन तीन नामों की महिमा बताते हुए भगवान् धन्वन्तरि जी कहते हैं 

अच्युत्यानन्त गोविन्द नामोच्चारण भेषजात् .

नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् .

‘अच्युत, अनन्त और गोविन्द’ इन तीन नामों के उच्चारण रूपी औषधि से सब रोग नष्ट हो जाते हैं . मैं यह सत्य - सत्य कह रहा हूँ.

इसी सन्दर्भ में इन तीन नामों की महिमा बताते हुए भगवान् शिव देवी पार्वती से कहते हैं कि समुद्र मन्थन से कालकूट नामक महाभयंकर विष प्रकट हुआ. वे आगे कहते हैं कि मैंने एकाग्रचित्त होकर  अपने ह्रदय में सर्व - दुःखहारी भगवान् नारायण का ध्यान किया और उनके तीन नाम रूपी महामंत्र का भक्तिपूर्वक जप करते हुए उस भयंकर विष को पी लिया. उन्होंने आगे कहा – ‘अच्युत, अनन्त और गोविन्द’ – ये हरि के तीन नाम हैं. जो व्यक्ति एकाग्रचित्त से इनके शुरू में प्रणव यानि ‘ॐ ‘ और अंत में ‘नमः’ जोड़कर अर्थात् ॐ अच्युताय नमः, ॐ अनन्ताय नमः, ॐ गोविन्दाय नमः का भक्ति पूर्वक जप करता है, तो उसे विष, रोग और अग्नि से होने वाली मृत्यु का भय नहीं रहता है .

(हरि के तीन नाम अच्युत, अनन्त और गोविन्द की महिमा का वर्णन समाप्त )

 

 

(6.5.4) भगवान् विष्णु के 28 नाम (Bhagwan Vishnu Ke 28 Naam)

 भगवान् विष्णु के 28 नाम (Bhagwan Vishnu Ke 28 Naam)

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात शिव को त्रिदेव माना जाता है. इन त्रिदेवों में से भगवान् ब्रह्मा को सृष्टि का सृजनकर्ता, भगवान् विष्णु को पालनकर्ता और भगवान् शिव को संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है. भगवान् विष्णु के कई नाम हैं. सभी का अपना - अपना महत्व है. परन्तु ये 28 नाम ऐसे हैं जिनका प्रतिदिन जप करने से –

सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है. देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है जिससे सम्पन्नता व समृद्धि प्राप्त होती है. शत्रु भय से छुटकारा मिलता है. मन में नवीन उत्साह का संचार होता है. मनोकामना पूरी होती है और यश प्राप्ति होती है.

भगवान् विष्णु के 28 नाम इस प्रकार हैं –

(1) मत्स्य, (2) कूर्म (3) वराह  (4) वामन (5)  जनार्दन

(6) गोविन्द (7) पुण्डरीकाक्ष (8) माधव (9) मधुसूदन (10) पद्मनाभ  (11) सहस्त्राक्ष (12) वनमाली (13) हलायुध  (14) गोवर्धन (15) हृषिकेश (16) वैकुण्ठ (17) पुरुषोत्तम (18) विश्वरूप (19) वासुदेव (20) राम  (21) नारायण (22) हरि (23) दामोदर (24) श्रीधर (25) वेदांग (26) गरुडध्वज (27) अनन्त और (28) कृष्णगोपाल

(भगवान् विष्णु की 28 नामावली सम्पूर्ण )

Thursday 20 July 2023

(6.5.3) भगवान् विष्णु के बारह नाम Bhagwaan Vishnu Ke Baarah Naam

 

भगवान् विष्णु के बारह नाम Bhagwaan Vishnu Ke Baarah Naam  

विष्णु के बारह नाम और उनका महत्व

 धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात शिव को त्रिदेव माना जाता है. इन त्रिदेवों में से भगवान् ब्रह्मा को सृष्टि का सृजनकर्ता, भगवान् विष्णु को पालनकर्ता और भगवान् शिव को संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है. भगवान् विष्णु के कई नाम हैं. सभी का अपना - अपना महत्व है. परन्तु ये 12 नाम ऐसे हैं जिनका प्रतिदिन जप करने से –

सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है.

देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है जिससे सम्पन्नता व समृद्धि प्राप्त होती है

शत्रु भय से छुटकारा मिलता है. मन में नवीन उत्साह का संचार होता है

मनोकामना पूरी होती है और यश प्राप्ति होती है

भगवान् विष्णु के प्रमुख बारह नाम इस प्रकार हैं – 

अच्युत, अनन्त, दामोदर, केशव, नारायण, श्रीधर, गोविन्द, माधव, हृषिकेश, त्रिविक्रम, पद्मनाभ, मधुसूदन |

 

Wednesday 19 July 2023

(6.11.17) रामायण का पहला श्लोक Ramayan Ka Pahala Shlok Kaunasa Hai

रामायण का पहला श्लोक Ramayan Ka Pahala Shlok Kaunasa Hai

रामायण का पहला श्लोक

वाल्मीकिजी द्वारा रचित रामायण के बालकाण्ड के पहले सर्ग के अनुसार वाल्मीकिजी देवर्षि नारद जी पूछते हैं कि इस समय इस संसार में गुणवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढव्रत, प्राणीमात्र के हितेषी, विद्वान्, समर्थ, धैर्यवान, क्रोध को जीतने वाले, तेजस्वी, ईर्ष्याशून्य और युद्ध में क्रुद्ध होने पर देवताओं को भी भयभीत करने वाले, कौन हैं ?

यह सुनकर नारदजी कहने लगे कि हे मुनि आपने जिन गुणों का उल्लेख किया है, ऐसे गुणों से युक्त इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न श्री रामचन्द्रजी हैं.

इसके बाद उन्होंने श्रीरामचंद्रजी के गुणों का वर्णन किया और रामकथा का संक्षिप्त परिचय दिया.

(रामायण के बालकाण्ड के दूसरे सर्ग के अनुसार) रामकथा को संक्षेप में सुनाकर देवर्षि नारदजी आकाशमार्ग से देवलोक चले गए. नारदजी के जाने के बाद वाल्मीकिजी अपने शिष्य भरद्वाज को साथ लेकर स्नान करने हेतु तमसा नदी के तट पर पहुँचे. नदी के समीप ही उन्होंने मीठी बोली बोलने वाले वियोगशून्य अर्थात् असावधान एवं रतिक्रिया में लिप्त क्रौंच पक्षी यानि सारस पक्षी के एक जोड़े को देखा. तभी पक्षियों के शत्रु एक बहेलिये ने उस जोड़े में से नर क्रौंच पक्षी को मार दिया. तब मादा क्रौंच पक्षी ने अपने नर को रक्त से भरे हुए और पृथ्वी पर छटपटाते हुए देख कर करूण स्वर में विलाप करने लगी.

इस पाप पूरित हिंसा कर्म और विलाप करती हुई मादा क्रौंच पक्षी को देख कर वाल्मीकिजी के मन में करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से अनायास ही श्लोक के रूप में ये शब्द निकल पड़े –

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः

यत्क्रौंचमिथुनादेक मवधीः काममोहितम्

अर्थ – हे बहेलिये, तुमने इस कामातुर नर पक्षी को मारा है, इसलिये अनेक वर्षों तक इस वन में मत आना और तुम्हें कभी भी सुख शान्ति नहीं मिले.

वाल्मीकिजी के दुःख और क्रोध के कारण उनके मुख से अनायास ही निकला यह श्लोक संस्कृत का पहला श्लोक माना जाता है. इस श्लोक को आदि श्लोक भी कहा जाता है. इसी श्लोक के कारण आदि कवि वाल्मीकिजी को रामायण जैसे महाग्रंथ की रचना करने की प्रेरणा मिली थी.