Friday 25 September 2015

(2.1.8) Good Quotes in Hindi

अच्छे विचार (हिन्दी में)


 1.पहले उन कार्यों को पहचानिये जिन्हें किया जाना जरुरी है, फिर उन्हें करने का रास्ता खोजिये।  
(अब्राहम लिंकन)  
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विफलता से शिक्षा पा लेना बहुत बड़ी सफलता है। (मैल्कम फ़ोर्ब्स)  
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3.जीवन के प्रति हमारा रुख ही हमारे प्रति जीवन का रुख तय करता है।  
(जान मिचेल)   
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4.आप आराम की जिंदगी चाहते हैं, तो कुछ परेशानी तो आपको उठानी ही होगी।    
(एबिगैल वैन ब्यूरेन)   
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5.सुअवसरों पर कदम बढ़ाना सफलता पाने का सबसे उत्तम तरीका है।  
(ऐन रैंड)   
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6.इस संसार में वही व्यक्ति अपने कार्य में सफल होते हैं जो अपनी परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं और यदि वे नहीं बना सकें, तो अपने अनुकूल परिस्थितियों को पैदा कर लेते हैं। 
(जार्ज बर्नार्ड शा)   
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7.बीता हुआ कल आज की याद है, और आने वाला कल आज का स्वप्न है। 
(खलील जिब्रान)   
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8 हम अपने आप को अपने इरादों से और दूसरों को उनके कर्मों से आँकते हैं। 
(स्टीफनआर कोवी)       
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9.कमजोर व्यक्ति अवसरों का इंतजार करते हैं; जब कि निर्भीक व्यक्ति इनका निर्माण करते हैं।    
(स्वेट मार्डेन)    
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10.जो मूर्ख ( व्यक्ति) अपनी मूर्खता से सीखता है, वह - धीरे धीरे सीख सकता है। परन्तु जो मूर्ख ( व्यक्ति ) अपने को बुद्धिमान समझता है, उसके रोग की कोई दवा नहीं है।  
(अज्ञात)    
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11.पढ़ना सब जानते हैं, पर क्या पढना चाहिए, बहुत कम लोग जानते हैं।  
(बर्नार्ड शा)  
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12.जो कुछ नहीं करता, केवल वही आलसी नहीं है, आलसी वह भी है जो अपने काम से भी अच्छा काम कर सकता है, परन्तु वह करता नहीं है।  
(सुकरात)   
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13.आत्म विश्वासी व्यक्ति समुद्र के बीचों बीच जहाज के नष्ट हो जाने पर भी तैरकर समुद्र पार कर लेता है।   (पंचतंत्र)    
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14. क्रोध में व्यक्ति का मुँह तो खुला रहता है, किन्तु आँखे बंद रहती हैं।   
(अज्ञात)   
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15.मूर्खता सब कर लेगी, लेकिन बुद्धि का आदर कभी नहीं करेगी।  
(गेटे)    
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16.अगर हम वे सारे कार्य कर दें, जिन्हें करने में हम समर्थ हैं, तो हम वास्तव में खुद को ही हैरान कर देंगे। (थॉमस ए. एडीसन)  

17.हमारे पास असफलता के चार करोड़ कारण हैं, लेकिन बहाना  एक भी नहीं है।    
(रुडयार्ड किपलिंग    
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18.कभी निराश मत होना, लेकिन अगर हो भी जाओ, तो निराशा में भी काम करते रहना। 
(एडमंड बर्क)   
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19.हर समस्या में इसके समाधान के बीज छिपे हुए होते हैं।  
(स्टेन ले अरनाल्ड)   
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20.हम हौंसला नहीं करते, इस लिए नहीं कि कुछ  करना दुष्कर है, कुछ करना दुष्कर है, क्योंकि हम हौंसला नहीं करते हैं।   
(मेनेका)   
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21.जो हाथ फूल  बाँटता है, उसमें  भी  सुगंध आ जाती है।  
(चीनी  कहावत)  
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22.ख़ुशी कोई बनी बनाई चीज नहीं है, यह आपके अपने कर्मों से ही आती है।  
(दलाई लामा)    
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23.सिर्फ खड़े होकर पानी को ताकते रहने से आप समुद्र को पार नहीं कर सकते।  
(रविन्द्र नाथ टैगोर)   
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24. लक्ष्यों के बारे में सब से महत्पूर्ण बात है, उनका होना।  
(जेफ्री एफ एबर्ट)    

25.सारे विश्व का भार आप कर नहीं है। आप सिर्फ अपने प्रभारी हैं। 
(ए. बैनेट)   
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26. हमें  जो मिलता है, उससे हमारा निर्वाह होता है, लेकिन हम जो देते हैं, उससे जीवन निर्माण होता है।   (विंस्टन चर्चिल)    
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27.हम किसी से धोखा नहीं खाते, हम ही स्वयं को धोखा देते हैं।  
(गेटे)    
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28.वह मनुष्य सुखी है जो आज को अपना कह सके, जो निश्चिन्तता के साथ कह सके,  ' ओ कल, जो तेरे वश में हो, कर ले, आज मैं  जी भर कर जी लिया।  
(ड्राइडेन)     
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29.जितनी शीघ्रता करोगे, उतना ही विलम्ब होगा।   
(चर्चिल)    
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30.पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है , फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।   
(स्वामी विवेकानंद) 
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नोट - उपर्युक्त quotations हमारे द्वारा संकलित हैं न कि मौलिक। 

(2.1.7) Quotations in Hindi

Quotations in Hindi हिन्दी में कोटेसन 

1.जो यह कल्पना करता कि वह विश्व के बिना अपना काम चला लेगा तो वह अपने आप को धोखा  देता है, किन्तु जो यह सोचता है कि विश्व का कार्य उसके बिना नहीं चल सकता है, तो वह और भी बड़े धोखे में है।
(रोशे)
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2.सम्पन्नता धन संग्रह में  नहीं, बल्कि उसके उपयोग में है।  
(नेपोलियन बोनापार्ट)  
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3.सफल व्यक्ति वह है, जो खुद पर फेंकी गई ईंटों से मजबूत नींव  बना ले।
(डेविड ब्रिंकले)
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4.सीमाएं हमारी सोच में होती हैं। अगर आप अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग करेंगे, तो सम्भवनायें असीमित होंगी।
(जेमी पाओ लिनेर)
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5.जब यह साफ हो कि लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो लक्ष्यों में फेर बदल करने के बजाय प्रयासों  में बदलाव लायें।
(कन्फ्यूशियस)  
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6.यदि आप मानसिक शांति के बदले साम्राज्य भी प्राप्त कर लें, तो भी आप पराजित ही हैं।
(प्रसिद्ध कथन)
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7.इस दुनियां में  सम्मान के साथ जीने का तरीका यह है कि आप वह बने जो आप होने दिखावा करते हैं। (सुकरात)  
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8.आसान जीवन के लिये प्रार्थना करने के बजाय एक चुनौती पूर्ण जीवन को निभा पाने के लिए शक्ति की प्रार्थना करें।  
(ब्रूस ली)  
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9.हमारे जीवन का अंत उसी समय शुरू हो जाता है, जब हम उन विषयों पर चुप्पी  साध लेते हैं, जो मायने रखते हैं।  
(मार्टिन लूथर किंग जूनियर)  
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10.हम जो खुद के लिए करते हैं, वह हमारे साथ ही खत्म हो जाता है, जो हम दूसरों के लिए करते हैं, वह अमर हो जाता है।
(अलबर्ट पाइन)  
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11.जीवन की  दीर्घता की अपेक्षा जीवन की  गुणवत्ता  ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
(महात्मा गाँधी)
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12.बुराई  की विजय के लिए सिर्फ इतना ही जरुरी है कि  अच्छे लोग कुछ न करें।
(ई. बुक)  
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13.ज्ञान के लिए किये गए निवेश से हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है।
(बेंजामिन फ्रेंक लिन)  
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14.वहाँ  न जाये जहाँ  राह ले जाये, वहाँ जाएँ जहाँ राह न हो,  और वहाँ अपनी छाप छोड़ आयें।  
(राल्फ वाल्डो इमर्सन)
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15.विश्वास वह शक्ति है, जिससे उजड़ी हुई दुनियां को फिर से रोशन किया जा सकता है।  
(हेलन केलर)  
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16.हर सफलता की बुनियाद कर्म पर ही टिकी है।   (पाब्लो पिकासो)    
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17.अपने जीवन में कुछ भी लाना हो, तो कल्पना करें कि वह आपके जीवन में आ चुका है।
(रिचर्ड बाख)
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18.अगर आप अपनी सोच को बदल लें, तो आपकी दुनियां भी बदल जाएगी।
(नार्मन विंसेट पील)  
19.जीवन की उन सीमाओं को छोड़कर कोई सीमायें नहीं हैं, जिन्हें आप तय करते हैं।  
(लेस ब्राउन)  
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20.अज्ञानी होना उतना शर्मनाक नहीं है,  जितना कुछ न सीखने की भावना रखना  है। 
(बेंजामिन फ्रेंकलिन)  
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नोट - उपर्युक्त Quotations हमारे द्वारा संकलित हैं न कि मौलिक। . 

Wednesday 23 September 2015

(1.1.6) Kabir ke Dohe / Dohe of Kabir (in Hindi) with meaning

Dohe of Kabir with Hindi meaning  कबीर के दोहे ( हिंदी अर्थ सहित )

कबीर के दोहे तथा साखियाँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से जुड़े हुये हैं। कबीर जन कवि थे। उनका प्रत्येक दोहा जीवन दर्शन से भरा हुआ है।(For English Translation CLICK HERE )
(A) सज्जन और दुर्जन की प्रकृति :-
(1 )  काजल तजै  न श्यामता , मुक्ता तजै न स्वेत। 
दुर्जन तजै न कुटिलता ,सज्जन तजै न हेत।।
अर्थ :-  अपनी प्रकृति के अनुसार काजल कभी भी अपने कालेपन को नहीं त्यागता है , और मोती अपने सफेदपन को नहीं त्यागता है।  इसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति अपनी कुटिलता या दुष्टता को नहीं त्यागता है और सज्जन  व्यक्ति अपनी सज्जनता के कारण अपने प्रेम भाव का त्याग नहीं करता है।
शिक्षा - अच्छी हो या बुरी , आदत तथा  स्वाभाव  तुरंत नहीं छूटते हैं। 
(2)  दुर्जन की करुणा बुरी , भलो सज्जन को त्रास। 
सूरज जब गरमी करै , तब बरसन की आस।।
अर्थ :- दुर्जन अथवा दुष्ट व्यक्ति की दया भी बुरी होती है ( क्योंकि वह सन्देह पूर्ण स्वार्थ से प्रेरित होती है ) जबकि सज्जन व्यक्ति का दिया हुआ दुःख और कष्ट भी भलाई करने वाला होता है ( क्योंकि उसमें निष्कपटता का भाव होता है ) जैसे - जब सूर्य की गर्मी तेज होती है तो सबको कष्ट तो होता है परन्तु ,तब उससे जल बरसने की आशा भी होती है। ( अतः दुर्जन की दया की तुलना में सज्जन का दुःख ज्यादा भलाई किये हुए होता है )
(3 ) कछु कहि नीच न छेड़िये , भलो न वाको संग। 
पत्थर डारे कीच में ,उछलि बिगाड़े अंग।। 
अर्थ :- किसी दुर्जन या दुष्ट व्यक्ति को कुछ भी कहकर कभी मत छेड़ो , उसकी संगति में भी कोई भलाई नहीं होती है।  जिस प्रकार कीचड में पत्थर डालने से पत्थर फेकने वाले का ही ( छींटे उछलने से) शरीर गन्दा होता है, उसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति से व्यवहार रखने पर व्यवहार रखने वाले का ही बुरा होता है।
(4 ) जो जाको गुन  जानता , सो ताको गुन  लेत। 
कोयल आमहि खात है , काग लिंबोरी लेत।। 
अर्थ :- जिसका जैसा स्वभाव होता है वह वैसा ही गुण ले लेता है।  जैसे - कोयल अपने मधुर स्वाभाव के कारण गुण को जानते हुए स्वादयुक्त मीठा आम खाती है , और कौआ कुटिल होने से नीम की कड़वी निम्बोली खाता है। इसी प्रकार सज्जन सदगुण रुपी मीठी बात को और दुर्जन दुर्गुण रुपी कड़वी बात को करते हैं।
(B) संतोषी सदा सुखी 
(1) आधी औ रूखी भली, सारी सोग संताप। 
जो चाहेगा चूपड़ी , बहुत करेगा पाप।। 
अर्थ :- अपनी मेहनत की कमाई से जो भी कुछ मिले , वह आधी और सूखी रोटी ही  बहुत अच्छी है। यदि तू घी चुपड़ी रोटी चाहेगा तो सम्भव है तुम्हे पाप करना पड़े।
(२) माखी गुड में गडि रही , पंख रही लपटाय।  
तारी पीटै सिर धुनें , लालच बुरी बलाय।।
अर्थ :-  अच्छा स्वाद पाकर मक्खी गुड में फँस जाती है ,उसके पंख भी गुड में चिपक जाते हैं। अब वह पछताती हुई अपने हाथ रगड़ती है और सर पीटती है , परन्तु उसमें से निकल नहीं पाती है। वास्तव में लालच बहुत बुरी बला है।
(३) रूखा सूखा खाय के , ठंडा पानी पीव। 
देखि पराई चूपड़ी , मत ललचावै जीव।। 
अर्थ :- जो कुछ भी तुम्हे तुम्हारे प्रयास और प्रारब्ध से प्राप्त हो जाये , उस रूखे - सूखे को खाकर और ठंडा पानी पीकर संतोष करो। किसी और की चुपड़ी रोटी देख कर अपने मन को मत ललचाओ।
शिक्षा - अपने पास जो भी कुछ है , उसी से संतुष्ट रहो।  संतोष ही सुख है।   
(C) तृष्णा -
(१) बहुत पसारा जनि करै , कर तोड़े  थोड़े की आस।  
बहुत पसारा जिन किया, तेई गए निरास। 
अर्थ:- इस संसार में किसी भी व्यक्ति बहुत अधिक प्राप्त करने  का  लालच  नहीं करनी चाहिए, बल्कि बहुत थोड़े की आशा करनी चाहिए।  लोगों ने भी बहुत अधिक पाने का लालच किया है , उनको निराशा ही  है।
शिक्षा :- तृष्णा दुःख और निराशा का कारण है। 
(२) आसन मारे कइ  भयो , मरी न मन की आस। 
तेली केरे  बैल ज्यौं , घर ही कोस पचास। 
अर्थ :- यदि किसी व्यक्ति के मन की तृष्णा नहीं मिटी हो तो , उसके आसन लगा कर पूजा पाठ, ध्यान आदि  करने से ,उसको  कोई लाभ नहीं मिल सकता , उसका पूजा पाठकरना  उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे तेली के बैल का घर में ही चक्कर लगा कर पचास कोस की दूरी तय कर लेना, क्योंकि वह बैल पचास कोस चल कर भी वहीं  का वहीं  रहता है।      
(D) नमन - नमन का अंतर 
नमन - नमन बहु अंतरा , नमन-नमन बहु बान।  
ये तीनों बहुत नवै , चीता चोर कमान। 
अर्थ :- नमन -नमन में बहुत अंतर होता है , जैसे निष्कपट भाव से नमन करने  और दूसरा कपट भाव से नमन करने में अंतर होता है। चीता, चोर और धनुष बहुत झुकते हैं, परन्तु उनके झुकने में कुटिलता होती है।  चीता शिकार को मारने के लिए , चोर चोरी करने के लिए और धनुष किसी का प्राण लेने के लिए झुकता है।
शिक्षा :- कपटी और सज्जन के झुकने के अंतर को समझने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा धोखा हो सकता है। 
(E) कहाँ नहीं जाना चाहिये 
कबीर तहाँ न जाइये , जहाँ कपट का हेत। 
जानो कली अनार की , तन राता मन सेत।। 
अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ प्रेम में कपट हो ( अर्थात जिस व्यक्ति के मन में कपट का भाव हो और प्रेम केवल दिखावा हो ), वहाँ मनुष्य को नहीं जाना चाहिये।  क्योंकि उस प्रकार के प्रेम का प्रदर्शन ठीक वैसा ही होता है जैसे अनार की कली , जिसका ऊपरी भाग तो लाल दिखता है लेकिन भीतर से सफ़ेद होती है।  ठीक उसी प्रकार कपटी व्यक्तियों के चेहरे पर प्रेम की लालिमा होती है परन्तु उनके मन कपट की सफेदी होती है।
शिक्षा :- दोहरे चरित्र वाले व्यक्ति से व्यवहार और सम्पर्क करने में सावधानी रखनी चहिये। 
(F)ज्ञानी - अज्ञानी की सोच का अन्तर 
देह धार का दण्ड है, सब काहू को होय। 
ज्ञानी भुगते ज्ञान करि , अज्ञानी भुगते रोय।।
अर्थ :- देह (शरीर) धारण करने के कारण (प्रारब्ध के अनुसार) दुःख या कष्ट भोगना निश्चित है, जिसे प्रत्येक प्राणी भुगतना ही होता है। उस दुःख भोग को ज्ञानी तो ज्ञान पूर्वक (संतोष और सहज भाव से) भोगता है, और अज्ञानी रोते हुए भोगता है।
शिक्षा :-  घटना अच्छी हो बुरी, उसे सहज भाव से लेना ही बुद्धिमानी है।  
(G)संपत्ति और विपत्ति 
संपति देख न हरशिये, विपति देखि मत रोय। 
संपति है तहां विपति है,करता करे सो होय।।
अर्थ:- प्राप्त हुई सम्पत्ति को देख कर बहुत अधिक हर्षित नहीं होना चाहिए , और न ही आई हुई विपत्ति को देख कर दुःखी होना चाहिए। जहाँ सम्पत्ति है वहाँ विपत्ति का होना भी स्वाभाविक है अर्थात जैसे सुख आता है वैसे ही दुःख का आना भी निश्चित है। यह सब प्रारब्ध की बात है, जैसा ईश्वर करता है, वही होता है।   
शिक्षा :- सुख -दुःख , लाभ - हानि , अच्छा -बुरा, ये सब जीवन में आते रहते हैं। इन्हें सहज और सम भाव से लेना चाहिए , यही बुद्धिमानी है।  

(4.1.6) Rashtriya Panchang / National Calendar of India

राष्ट्रीय पंचांग  (National Calendar) -

 राष्ट्रीय कैलेंडर जो शक संवत पर आधारित है जिसका पहला महिना चैत्र है और सामान्य वर्ष 365 दिन का होता है।इसका प्रथम महिना चैत्र सामान्य वर्ष में सामान्तया 22 मार्च से तथा लीप वर्ष में 21 मार्च शुरू होता है। इसे 22 मार्च 1957 को निम्नांकित  सरकारी उद्देश्यों के लिए अपनाया गया है - 
1. राजपत्र में। 
2. आकाशवाणी के प्रसारण में। 
3. सरकार  द्वारा जारी किये गए कैलेंडर में। 
4. नागरिकों को संबोधित पत्र में।

(4.1.5) Rashtriya Dhwaj / National Flag of India

  राष्ट्रीय ध्वज ( National Flag ) -

 संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज ( तिरंगा ) का प्रारूप 22 जुलाई, 1947 को  अपनाया। ध्वज में समान अनुपात वाली तीन आड़ी पट्टियां है , जो केसरिया , सफ़ेद व हरे रंग की। सबसे ऊपर केसरिया रंग ( जागृति , शौर्य तथा त्याग का प्रतीक है ) , बीच में सफ़ेद ( सत्य एवं पवित्रता का प्रतीक ) तथा सबसे नीचे हरा ( जीवन एवं समृद्धि का प्रतीक ) है। ध्वज की लम्बाई चौड़ाई का अनुपात 3: 2 है। सफ़ेद पट्टी के बीच में गहरे नीले रंग का चौबीस तीलियों वाला  चक्र है। यह चक्र धर्म तथा ईमानदारी के मार्ग पर चलकर राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रीय ध्वज का उचित प्रयोग व प्रदर्शन एक संहिता द्वारा नियमित होता है।

(4.1.4) Rashtra Geet / National song of India

 राष्ट्र गीत (National song)  - 

सुप्रसिद्ध बंगला साहित्यकार बंकिम चन्द्र चटर्जी ने सन 1882 में प्रकाशित अपने उपन्यास 'आनंद मठ' में इस गीत को लिखा था। यह गीत सन 1896 में सर्वप्रथम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया। संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को राष्ट्र गान के साथ - साथ इसे भी राष्ट्रीय गीत के रूप में अंगीकार किया। इसका अंग्रेजी अनुवाद श्री अरबिंदो ने किया है। यह राष्ट्रीय गीत स्वतंत्रता आन्दोलन में जन - जन का प्रेरणा स्रोत था। इसे 65 सैकंड में गाया जाना चाहिए।
यदुनाथ चटर्जी ने सर्वप्रथम इस गीत को धुन दी थी।
फ़िलहाल इसे पन्ना लाल घोष द्वारा बनाई गई धुन पर गाया जाता है।
वन्दे मातरम !
सुजलाम, सुफलाम, मलयज - शीतलाम,  
शस्य श्यामलाम , मातरम !
शुभ्र ज्योत्स्नाम , पुलकित यामिनीम,  
फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम,    
सुहासिनीम , सुमधुर भाषिणीम,   
सुखदाम , वरदाम , मातरम ! 

Monday 21 September 2015

(4.1.3) Rashtra Gaan / National Anthem of India

National Anthem (राष्ट्र गान)  Rashtra gaan-

रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित  राष्ट्र गान  को सर्व प्रथम 27 दिसम्बर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता(कोलकाता)  अधिवेशन में गाया  गया था।    
इस गीत का प्रकाशन सर्व प्रथम 1912 में तत्व - बोधिनी पत्रिका में भारत विधाता शीर्षक से हुआ था, जिसे सन 1919 में अंग्रेजी अनुवाद 'मोर्निंग सोँग ऑफ़ इंडिया ' नाम से प्रकाशित किया गया। पूरे गीत में पाँच पद हैं। राष्ट्र गान में प्रथम पद को ही अपनाया गया है। संविधान सभा ने इस गीत को 24 जनवरी 1950 को राष्ट्र गान के रूप में अपनाया। राष्ट्रगान गाने का समय लगभग 52 सैकंड है। कुछ अवसरों पर राष्ट्र गान को संक्षिप्त रूप में गाया जाता है, जिस में इस पद की प्रथम व अंतिम पंक्तियाँ लगभग 20 सैकंड में गायी जाती है। इसका संक्षिप्त रूप इस प्रकार है -
जन - गण - मन अधिनायक, जय हे
भारत भाग्य विधाता ,
जय हे, जय हे , जय हे , 
जय - जय - जय - जय हे। 
यदि किसी समारोह में राष्ट्र गान गाया जाये तब उपस्थित जन समुदाय से अपेक्षा है कि वे एक स्वर एवं लय में गाएं। प्रत्येक अवसर पर राष्ट्र गान आदर पूर्वक गाया जाना चाहिए तथा उपस्थित जन समुदाय को राष्ट्र गान के दौरान 'सावधान' की मुद्रा में खड़े होना चाहिए। विदेशी संभ्रांत व्यक्ति के भारत आगमन पर यदि उन्हें राष्ट्रीय सलामी दी जा रही है तो पहले उनका अर्थात उनके देश का राष्ट्र गान और बाद में भारत का राष्ट्र गान, सम्पूर्ण रूप में गाया जाता है। राष्ट्रीय सम्मान की अवमानना पर रोक अधिनियम 1971 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र गान के दौरान इरादतन किसी को भी राष्ट्र गान गाने से रोकता है , या किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न करता है अथवा इस प्रयोजनार्थ एकत्रित हुए समुदाय को किसी भी प्रकार से बाधा पहुंचाता है, तो वह तीन वर्ष तक कारावास , आर्थिक दंड अथवा दोनों का पात्र हो सकता है।

Sunday 20 September 2015

(4.1.2) Rashtriya Chinha (National Emblem of India) in Hindi

 National Emblem(राष्ट्रीय चिन्ह) -

यह सारनाथ ( वाराणसी ) स्थित अशोक के सिंह स्तम्भ के शीर्ष की अनुकृति है। सारनाथ स्थित मूल आकृति में मुँह खुले चार शेर एक दूसरे की ओर पीठ किये दृष्टि गोचर होते हैं, लेकिन राष्ट्रीय चिन्ह में तीन ही शेर दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय चिन्ह के दो  भाग हैं - शीर्ष और आधार। शीर्ष पर दिखाई देने वाले शेर साहस व शक्ति के प्रतीक हैं। आधार भाग में एक धर्म चक्र है। चक्र में एक बैल ( कठिन परिश्रम और स्पूर्ति का प्रतीक) तथा बांई  ओर एक घोडा ( ताकत व गति का प्रतीक) अंकित है। आधार के बीच में मुंडकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है। भारत सरकार  ने इस राष्ट्रीय चिन्ह को 26 जनवरी, 1950 को अपनाया। राष्ट्रीय चिन्ह का प्रयोग सरकारी पुस्तकों , कागजों ,सिक्कों ,नोटों और मोहरों पर होता है।

(4.1.1) Rashtriya Prateek / National Symbols of India (in Hindi)

National Symbols of India  भारत के राष्ट्रीय प्रतीक
1. National Emblem(राष्ट्रीय चिन्ह) -
2.National Anthem (राष्ट्र गान)  -
3. राष्ट्र गीत (National song)
4. राष्ट्रीय ध्वज ( National Flag ) -
5.राष्ट्रीय पंचांग  (National Calendar) -
6. राष्ट्रीय पुष्प ( National Flower) - कमल
7. राष्ट्रीय फल ( National Fruit ) - आम
8. राष्ट्रीय वृक्ष (National Tree ) - बरगद
9. राष्ट्रीय पशु ( National Animal ) - बाघ
10.राष्ट्रीय पक्षी ( National Bird ) - मोर
11.राष्ट्रीय नदी  (National River) - गंगा
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(20.1.6) Man Ki Ekagrata Ke Upay / Concentration of Mind (in Hindi)

Man Ki Ekagrata  मन  की एकाग्रता के उपाय 

मन  में पाँच प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं -

1. सदैव सुखी रहने की इच्छा। परन्तु पर्याप्त सुख-साधन नहीं होने से चित्त में मलीनता आ जाती है।
2. दूसरों की संपत्ति, गुण, यश व प्रगति को देखकर ईर्ष्या का भाव उत्पन्न होना।
3.  दूसरे मनुष्यों की बुराई या अपमान या उपहास करने की इच्छा या भाव का उत्पन्न होना।
4. दूसरों से द्वेष करना।
5. किसी व्यक्ति के द्वारा आपको गाली  देने पर, कठोर वचन बोलने पर या अपमान करने पर उनको सहन नहीं  करके बदला लेने की चेष्टा करना।

इन विकारों से मन  मलीन होकर विक्षिप्त  हो जाता है अतः निम्नांकित उपायों से इन विकारों की निवृत्ति करनी चाहिए:-
1. सदैव सुखी रहने की इच्छा रखो परन्तु दुःख आने पर निराशा के भाव मत लाओ बल्कि उसे ईश्वरीय इच्छा मानकर सहन व स्वीकार करना चाहिए।
2. सुखी मनुष्यों को देखकर उनके प्रति मित्रभाव रखें। दूसरों के सुख से सुखी होना ईर्ष्या को समाप्त करता है।
3. अपने ही सामान सब प्राणियों के सुख-दुःख का अनुभव करते हुए दुखी को देखकर उसके दुःख को दूर करने की चेष्टा करना। इस प्रकार घृणा नष्ट होती है।
4. जो व्यक्ति धर्म मार्ग पर लगे हो उनको देखकर हर्षित होना तथा उनकी प्रशंसा करने से निंदावृत्ति नष्ट होती है।
5. प्राणायाम के अभ्यास से भी चित्त निर्मल होता है। इससे अज्ञान का आवरण दूर होता है। प्राणायाम का अभ्यास जैसे-जैसे बढ़ता  जाता है वैसे-वैसे ही मनुष्य के अविद्या जनित क्लेश दूर होते जाते हैं। प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से मन की चंचलता नष्ट होती है और धारणा  शक्ति बढती है। .
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(2.1.5) Surya Namaskar /Sun salutation (in Hindi)

 Surya Namskar ( Sun Salutation ) सूर्य नमस्कार के मंत्र तथा विधि 

(For English translation click here)
सूर्य पूजा व सूर्य वन्दना नित्य कर्म के भाग माने जातें हैं। भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य पूजा का फल एक लाख गायों के दान के फल से भी अधिक होता है। सूर्य पूजा की तरह सूर्य के बारह नमस्कारों का भी महत्त्व है। 
सूर्य के बारह नमस्कारों की विधि  - 
सर्व प्रथम सूर्य मण्डल में सौन्दर्य राशि भगवान् नारायण का ध्यान करना चाहिये। और भावना करें कि दोनों हाथ भगवान के सुकोमल चरणों का स्पर्श कर रहे हैं और ललाट को भी उस सुख स्पर्श का अनुभव हो रहा है तथा आँखें उनके सौन्दर्य-पान में लीन हैं। 
इसके बाद भगवान् सूर्य के नीचे दिए गये एक नाम का उच्चारण कर दण्डवत करे।  फिर उठ कर दूसरा नाम बोलकर दूसरा दण्डवत करे। इस तरह बारह साष्टांग प्रणाम हो जाते हैं। दण्डवत प्रणाम करते समय शीघ्रता नहीं करें। 
भगवान् सूर्य को साष्टांग प्रणाम करने के लिए बारह नाम मंत्र निम्नांकित हैं -
(१) ॐ मित्राय नमः। 
(२) ॐ रववे नमः।
(३) ॐ सूर्याय नमः।
(४) ॐ भानवे नमः।
(५) ॐ खगाय नमः।
(६) ॐ पूष्णे नमः।
(७) ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
(८) ॐ मरीचये नमः।
(९) ॐ आदित्याय नमः।
(१०) ॐ सवित्रे नमः।
(११) ॐ अर्काय नमः।
(१२) ॐ भास्कराय नमः।