Monday 23 October 2023

(6.8.22) लिंग, शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में क्या अंतर है Ling, Shivaling and Jyotirling me Antar

 लिंग, शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में क्या अंतर है Ling, Shivaling and Jyotirling me Antar

लिंग, शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग

लिंग’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – चिन्ह या प्रतीक. अर्थात् लिंग पहचान कराने वाला चिन्ह है. उदाहरण के लिए, जैसे ‘मूँछ’ पुरुष का लिंग है यानि ‘मूँछ’ पुरुष की पहचान कराने वाला प्रतीक है, जो यह प्रकट करता है कि मूछ वाला पुरुष होता है, नारी नहीं. इसी प्रकार भगवान् शिव का परिचायक चिन्ह है- ‘लिंग’.

शिवलिंग –

शिवलिंग भगवान् शिव का प्रतिमाविहीन परिचायक चिन्ह है. यह सामान्यतया पत्थर, धातु या मिट्टी से बना होता है. यह स्तम्भाकार या अण्डाकार या बेलनाकार होता है. यह भगवान् शिव की निराकार सर्वव्यापी वास्तविकता को दर्शाता है. शिवलिंग स्वयंभू या मानव द्वारा निर्मित व स्थापित होता है.

ज्योतिर्लिंग –

ज्योतिर्लिंग दो शब्दों से मिलकर बना है - ‘ज्योति’ और ‘लिंग’. ‘ज्योति’ का अर्थ होता है ‘प्रकाश’ और ‘लिंग’ भगवान् शिव के स्वरुप को प्रकट करता है. इस प्रकार भगवान् शिव का प्रकाशवान दिव्य स्वरुप ही ज्योतिर्लिंग है. यह स्वयम्भू होता है यानि मानव निर्मित नहीं होता है.

 

 

(6.8.21) दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र Daridrya Dahan Shiva Stotra/Daridrya Dahan Stotra

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र Daridrya Dahan Shiva Stotra/Daridrya Dahan Stotra 

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र 

दारिद्र्य दहन स्तोत्र महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित भगवान् शिव का स्तुति मन्त्र है जिसमें भगवान् शिव से गरीबी दूर करने की प्रार्थना की गयी है. जो व्यक्ति इस स्तोत्र का श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करता है उसे उसके कार्यों और प्रयासों में सफलता मिलती है, उसका व्यवसाय उत्तरोत्तर बढ़ता रहता है जिससे उसकी गरीबी दूर हो जाती है और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाती है. क्रोध, लोभ, डर और अहंकार से मुक्ति मिलती है और मन शान्त रहता है.

(6.8.20) कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं Karpoor Gauram Karunavataram Sansar saaram शिव स्तुति

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं Karpoor Gauram Karunavataram Sansar saaram शिव स्तुति

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं (शिव स्तुति)

कर्पूर- गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारम्

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि

भगवान् शिव का यह स्तुति मन्त्र दिव्य और पवित्र है. ऐसा माना जाता है कि इस स्तुति को भगवान विष्णु ने गाया था. इस अलौकिक मन्त्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिव की स्तुति की गयी है. पूजा या आरती या धार्मिक अनुष्ठान की बाद कुछ मन्त्र बोले जाते है. कर्पूरगौरं मन्त्र भी उनमें से एक प्रमुख मन्त्र है. इस स्तुति मन्त्र में आये हुए शब्दों का अर्थ इस प्रकार है –

कर्पूरगौरं – अर्थात कपूर के समान गौर वर्ण वाले.

करुणावतारं – अर्थात साक्षात करुणा के अवतार

संसारसारं – अर्थात समस्त सृष्टि के सार

भुजगेन्द्रहारम् – अर्थात नागराज की माला धारण किये हुए हैं.

सदा वसन्तं – अर्थात जो सदा निवास करते हैं.

हृदयारविन्दे – अर्थात (भक्तों के) कमल रुपी हृदय में

भवं – अर्थात भगवान् शिव

भवानी – सहितं – अर्थात पार्वती सहित

नमामि – अर्थात नमन

इस स्तुति मन्त्र का पूरा अर्थ इस प्रकार है –

कपूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार, समस्त संसार के सारभूत, नागराज की माला धारण किये हुए, भक्तों के हृदय में निरंतर निवास करने वाले, ऐसे पार्वती सहित भगवान् शिव को मैं नमस्कार करता हूँ.

 

  

(8.1.32) कार्तिक स्नान की कहानी Kartik Snan Ki Kahani

कार्तिक स्नान की कहानी Kartik Snan Ki Kahani

एक बुढ़िया माई थी जो चातुर्मास में पुष्कर स्नान किया करती थी। उसके एक बेटा और बहू थे। उसने उसके बेटे को कहा कि वह उसे पुष्कर छोड़ कर आ जावे। सास ने बहु को फलाहार यानि उपवास में खाने के योग्य वस्तु बनाने के लिए कहा तो बहु ने जमीन से मिट्टी के पापड़े उखाड़ कर बांध दिए।

बेटा अपनी मां को लेकर पुष्कर चला गया। रास्ते में बेटे ने माँ से बोला कि माँ फलाहार कर लो। जहां पानी मिला वहीं फलाहार करने बैठ गई तो भगवान की कृपा से मिट्टी के पापड़े स्वादिष्ट फलाहार बन गए। मां ने फलाहार कर लिया।

पुष्कर पहुँच कर बेटे ने माँ के रहने के लिए एक झोपड़ी बनाई  और वापस घर आ गया। रात्रि में श्रावण मास आया और बोला बुढ़िया माई दरवाजा खोलो तब बुढ़िया माई ने पूछा कि आप कौन हैं? उत्तर मिला कि मैं श्रावण मास हूँ। बुढ़िया ने तुरंत दरवाजा खोल दिया। बुढ़िया माई ने  शिव पार्वती की पूजा अर्चना की और बेलपत्र से अभिषेक किया। जाते समय श्रावण मास ने बुढ़िया माई को आशीर्वाद दिया और झोपड़ी की एक दीवार सोने की बन गई। फिर भाद्रपद मास आया। उसने भी दरवाजा खोलने को कहा। बुढ़िया ने दरवाजा खोल दिया।सत्तू बनाकर कजरी तीज मनाई। भाद्रपद मास ने बुढ़िया माई को आशीर्वाद दिया और झोपड़ी की दूसरी दीवार भी सोने की हो गई। फिर आश्विन मास आया और उसने भी दरवाजा खोलने को कहा। बुढ़िया माई ने दरवाजा खोल कर पितरों का तर्पण कर ब्राह्मण भोज करा कर श्राद्ध किया . नवरात्रि में मां दुर्गा को अखंड ज्योति जलाकर प्रसन्न किया और सत्य की विजय दिवस के रूप में बुराई का अंत की खुशी में दशहरा मनाया। आश्विन मास ने जाते समय प्रसन्न होकर तीसरी दीवार भी बहुमूल्य रत्नों से जड़ित कर दी और बुढ़िया माई को सदैव प्रसन्न रहने का आशीर्वाद दिया। इन सब के बाद कार्तिक मास आया उसने भी दरवाजा खोलने को कहा। बुढ़िया माई ने दरवाजा खोल कर अति प्रसन्न मन से कार्तिक स्नान किया, दीपदान कर दिवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, गोपाष्टमी और आंवला नवमी मनाई और कार्तिक मास ने जाते समय आशीर्वाद दिया और झोपड़ी के स्थान पर महल बन गया। बुढ़िया माई गरीबों की सेवा करने और भजन कीर्तन में अपना समय बिताने लगी।

चार महीने बाद बेटा अपनी मां को लेने के लिए पुष्कर गया तो माँ और झोपड़ी को पहचान नहीं सका। तो उसने पड़ोसियों से पूछा। उन्होंने उसे उसकी माँ के बारे में बताया तो बेटा अपनी माँ को इस रूप में देखकर प्रसन्न हुआ और माँ के चरणों में गिरकर बोला कि माँ अब  घर चलो। सारे सामान के साथ घर ले आया। 

सासू माँ के ठाठ देखकर बहू के मन में लालच आ गया और उसने अपनी माँ को भी पुष्कर छोड़कर आने को कहा तो उसका पति अपनी सास को भी पुष्कर छोड़ आया। परंतु बहु की मां की धर्म कर्म में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। वह दिन में चार बार भोजन करती थी और दिन भर सोती रहती थी। चारों मास यानि श्रावण,भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक आए और चले गए। लेकिन बहु की माँ ने उनके स्वागत के लिए कुछ भी नहीं किया । चातुर्मास ने जाते जाते झौपड़ी के लात मारी और झोपड़ी गिर गई और बहू की माँ  गधी की योनि में चली गई यानि मनुष्य से गधी बन गयी. 

चार मास बाद बहू ने अपने पति से कहा कि अब मेरी माँ को ले आओ। जब जमाई अपनी सास को लेने गया तो वह कहीं नहीं मिली। लोगों से पूछने पर उन्होंने बताया कि तेरी सास धर्म-कर्म कुछ नहीं करती थी। केवल खाती थी और सोती थी जिससे वह गधी की योनि में चली गई। सास ने जब जमाई को देखा तो वह भौखती हुई उसके सामने आई। तब जमाई ने गधी बनी हुई अपनी  सास को अपनी गाड़ी के पीछे बांधकर घर ले आया। उसकी पत्नी ने पूछा मेरी माँ कहाँ है ? तब पति ने कहा कि उसके कर्मों की वजह से वह (तेरी मां) गधी की योनि में चली गई है। जैसी करनी वैसी भरनी।

बहु के बड़े-बड़े विद्वानों से पूछने पर उन्होंने उपाय बताया कि तेरी सास के स्नान किए पानी से तेरी माँ को स्नान करा दो। उस पानी से स्नान करने पर उसकी गधी की योनि छूट जायेगी और फिर से उसे मनुष्य की योनि मिल जायेगी । तब बहू ने ऐसा ही किया और उसकी मां फिर से मनुष्य योनि में आ गई है। 

हे राधा दामोदर भगवान, जैसा आपने बुढ़िया माई को दिया वैसा ही सबको देना। 

Saturday 21 October 2023

(6.11.18) राम हनुमान युद्ध Ram Hanuman Yuddha राम बड़े या राम का नाम

राम हनुमान युद्ध Ram Hanuman Yuddha राम बड़े या राम का नाम Ram Bade Ya Ram Ka Naam

एक बार सुमेरु पर्वत पर सभी संतो की सभा का आयोजन हुआ। कैवर्त देश के राजा सुकन्त भी उस सभा में संतों का आशीर्वाद लेने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें नारद जी मिले। राजा सुकंत ने उन्हें प्रणाम किया। इस पर नारद जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर यात्रा का कारण पूछा तो राजा सुकंत ने उन्हें संत सभा के आयोजन की बात बताई। नारद मुनि ने कहा, अच्छा है संतों की सभा में जरूर जाना चाहिए परंतु जिस सभा में तुम जा रहे हो उसमें सभी को प्रणाम करना लेकिन ऋषि विश्वामित्र का अभिवादन बिल्कुल मत करना। इस पर सुकन्त ने कहा कि यह तो उचित नहीं है। वे तो पूजनीय हैं। उन्हें प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए? इस पर नारद जी ने कहा कि तुम भी राजा हो और वे भी पहले राजा ही थे। वे तो बाद में संत बने हैं इसलिए तुम उनको प्रणाम मत करना। राजा सुकन्त ने ठीक वैसा ही किया जैसा नारद जी ने कहा था। विश्वामित्र जी को यह अच्छा नहीं लगा।

सभा के समाप्त होते ही विश्वामित्र जी श्री राम से मिलने पहुंचे। वहाँ पहुंचकर उन्होंने बताया कि उनका अपमान हुआ है। वैसे तो वे इसे भूल भी जाते लेकिन यह तो संत परंपरा का अपमान है। राम जी ने पूछा आपका अपमान किसने किया है? तब विश्वामित्र जी ने कहा कि राजा सुकन्त ने मुझे अभिवादन नहीं करके मेरा अपमान किया है। इस पर राम जी ने कहा कि गुरु जी आपके चरणों की सौगंध लेकर प्रतिज्ञा करता हूं कि जो सिर आपके चरणों में नहीं झुका उसे काट दिया जाएगा। कल सुबह मैं उसका वध करूंगा। 

श्री राम की इस सौगंध का जैसे ही राजा सुकन्त को पता चला तो वे नारद जी के पास पहुंचे और  हाथ जोड़कर नारद जी को सारी बात बताई। साथ ही प्राण दान की भी विनती  की। तब नारद जी ने उन्हें माता अंजनी की शरण में जाने की सलाह दी और यह भी कहा कि अगर उन्होंने तुम्हें बचाने का वचन दे दिया तो तुम अवश्य बच जाओगे। 

राजा सुकंत माता अंजनी के पास पहुंचे और उन्होंने माता अंजनी से कहा कि माता मुझे बचा लो अन्यथा विश्वामित्र जी मुझे मार डालेंगे। इस पर अंजनी ने सुकन्त को उनके प्राण बचाने का वचन दिया। उन्होंने कहा कि तुम हमारी शरण में हो तुम्हें कोई नहीं मार सकता। इसके बाद राजा सुकन्त को विश्राम करने के लिए कहा। 

शाम को जब हनुमान जी माता अंजना के पास पहुंचे तो उनको सारी बात बताई। लेकिन राजा सुकन्त  को बुलाने के पहले हनुमान जी से सौगंध लेने को कहा। तब  हनुमान जी ने कहा कि मैं श्री राम के चरणों की सौगंध लेता हूँ कि मैं सुकन्त के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा। तब माता अंजनी ने राजा सुकन्त को बुलाया। हनुमान जी ने पूछा कि तुम्हें कौन मारना चाहता है। तब सुकन्त ने बताया कि श्री राम उन्हें मारना मार डालेंगे। इतना सुनते ही माता अंजनी हैरान रह गई। उन्होंने कहा कि तुमने तो विश्वामित्र जी का नाम लिया था। तब राजा ने कहा कि नहीं वे तो मरवा डालना चाहते हैं लेकिन मुझे मारेंगे तो राम ही और उनके कहने पर मारेंगे। 

हनुमान जी ने राजा सुकन्त को  उनकी राजधानी में छोड़ा और वे श्री राम के दरबार में पहुंचे। वहाँ पहुंचकर उन्होंने राम जी से पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं। तब श्री राम ने बताया कि वे राजा सुकन्त का वध करने जा रहे हैं। इस पर  हनुमान जी ने कहा कि प्रभु उसे मत मारिये। राम जी ने कहा कि मैं तो अपने गुरु की सौगंध ले चुका हूँ, अब मैं पीछे नहीं हट सकता। हनुमान जी ने कहा प्रभु मैं उसके प्राण की रक्षा करने के लिए अपने इष्ट देव यानि कि आपकी सौगंध ली है। तब राम जी ने कहा कि ठीक है तुम अपना वचन निभाओ और मैं मेरा वचन निभाऊंगा। मैं तो उसे मारूंगा।

हनुमान जी राजा सुकन्त को लेकर पर्वत पर पहुंच गए और राम नाम का कीर्तन करने लगे। उधर राम जी राजा सुकन्त को मारने के लिए उनकी राजधानी पहुंचे। लेकिन वे वहाँ नहीं मिले तो वे उन्हें ढूंढते हुए पर्वत पर पहुंच गए जहां हनुमान और सुकन्त बैठे हुए थे। 

वहाँ हनुमान जी राम मंत्र का जप कर रहे थे। राम जी को देखते ही सुकन्त डर गए। उन्होंने कहा कि अब तो राम जी मुझे मार ही डालेंगे। वे  बार-बार हनुमान जी से पूछते कि क्या मैं बच पाऊंगा? तब उन्होंने कहा कि राम मंत्र का जप करते रहो और निश्चिंत रहो। भगवान नाम पर पूरा भरोसा रखो। लेकिन वे काफी डरे हुए थे तो हनुमान जी ने सुकन्त को राम नाम मंत्र के घेरे में बिठा लिया और इसके बाद राम नाम जपने लगे। राम जी ने राजा सुकन्त को देखकर बाण चलाना शुरु किया लेकिन राम नाम के मंत्र के सामने उनके बाण असफल हो गए। यह देख कर राम जी हताश हो गए कि अब क्या करें

यह दृश्य देखकर लक्ष्मण जी को लगा कि हनुमान जी भगवान राम को परेशान कर रहे हैं तो उन्होंने स्वयं ही हनुमान जी पर बाण चला दिया. लेकिन यह क्या हुआ? उस बाण से हनुमान जी के बजाय राम जी मूर्छित हो गए। यह देखते ही लक्ष्मण जी दौड़ पड़े और वे यह देखकर चकित रह गए कि बाण तो हनुमान जी पर चलाया था लेकिन मूर्छित राम जी कैसे हो गएतब उन्होंने देखा कि पवनसुत के हृदय में यानि हनुमान जी हृदय में तो श्री राम बसते हैं। इसलिए हनुमान जी के हृदय में लगे बाण का प्रभाव भगवान राम पर पड़ गया है। 

राम जी जैसे ही होश में आए वे हनुमान जी की ओर दौड़े। उन्होंने देखा कि उनकी छाती से रक्त बह रहा है। वे हनुमान जी का दर्द देख नहीं पा रहे थे। वे बार-बार उनकी छाती पर हाथ रखते और आंखें बंद कर लेते। पवनसुत को जब होश आया तो उन्होंने देखा कि राम जी आंखें बंद करके उनकी (हनुमान जी) की छाती पर बार-बार हाथ रखते हैं, फिर उनके सिर पर हाथ फेरते हैं। तब हनुमान जी ने सुकन्त को पीछे से निकाला और उसे अपनी गोद में बिठा लिया। तभी राम ने फिर से हनुमान जी के माथे पर हाथ फेरा लेकिन इस बार वहाँ हनुमान जी की जगह राजा सुकन्त थे। राम जी मुस्कुराए और हनुमान जी बोले कि उठे कि नाथ अब तो आपने इनके सिर पर हाथ रख दिया है। अब तो सब कुछ आपके हाथ में है। इनकी मृत्यु भी और इनका जीवन भी। आप ही सुकन्त के जीवन की रक्षा करें।

राम जी ने हनुमान जी से कहा कि जिसे तुम अपनी गोद में बिठा लो तो उसके सिर पर तो मुझे हाथ रखना ही पड़ेगा। लेकिन गुरु जी को क्या जवाब देंगे? तभी हनुमान जी को विश्वामित्र जी सामने से आते हुए दिखाई पड़े। उन्होंने (हनुमानजी ने) राजा सुकन्त से कहा कि जाओ तब प्रणाम नहीं किया तो क्या हुआ अब प्रणाम कर लो। राजा ने दौड़कर विश्वामित्र जी का आदर पूर्वक अभिवादन किया। वे  (विश्वामित्र जी)  भी प्रसन्न हो गए और बोले राम इसे क्षमा कर दो। मैंने इसे क्षमा कर दिया है क्योंकि संत का काम मिटाना नहीं बल्कि सुधारना होता है। यह भी सुधर गया है. 

उन्होंने सुकंत से पूछा कि संत का सम्मान न करने की सलाह तुम्हें किसने दी थी? राजा सुकंत विश्वामित्र से कुछ कहते इससे पहले ही नारद मुनि प्रकट हो गए. उन्होंने सारी घटना सुना दी. तब विश्वामित्र जी ने पूछा कि नारद जी आपने  ऐसी सलाह क्यों दी? तब नारद जी ने कहा कि लोग प्रायः मुझे  पूछते थे कि राम बड़े हैं या राम का नाम बड़ा है? तो मैंने सोचा कि क्यों न कोई लीला हो जाए जिससे लोग अपने आप ही समझ लें कि भगवान से अधिक भगवान के नाम की महिमा है.  

जय श्री राम

Tuesday 17 October 2023

(6.8.19) भगवान् शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र चढाने का मन्त्र Shivaji Ko Belpatra Chadhane Ka Mantra

भगवान् शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र चढाने का मन्त्र Shivaji Ko Belpatra Chadhane Ka Mantra

भगवान् शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र चढाने का मन्त्र

भगवान् शिव को बिल्वपत्र अत्यंत प्रिय है. शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढाने से भगवान् शिव बहुत प्रसन्न होते हैं, बिल्वपत्र अर्पित करने वाले व्यक्ति के पाप का नाश होता है और उसे मानसिक शान्ति मिलती है, भौतिक सफलता प्राप्त होती है तथा उसके घर में धन धान्य का अभाव नहीं रहता है. 

भगवान् शिव को बिल्वपत्र चढाने का मन्त्र इस प्रकार है –

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्

त्रिजन्म पाप संहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्

अर्थ – हे शम्भु ! मैं तीन दल वाला, सत्त्व, रज एवं तम स्वरुप, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि रूप त्रिनेत्र स्वरुप, तीन जन्मों के पाप को नष्ट करने वाला एक बिल्वपत्र आपको समर्पित करता हूँ.

 

(6.8.18) महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि में अंतर Difference between Mahashivaratri and Masik Shivaratri

 महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि में अंतर Difference between Mahashivaratri and Masik Shivaratri

महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि में अंतर

महाशिवरात्रि

शिवरात्रि का अर्थ है – वह रात्रि जिसका शिवतत्व से घनिष्ठ सम्बन्ध है. भगवान् शिव की प्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है. ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को निशीथ अर्थात अर्द्धरात्रि में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था यानि भगवान् शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. मान्यता है कि इस दिन भगवान् विष्णु और ब्रह्मा जी द्वारा शिवलिंग की पूजा की गयी थी. इसलिए इस तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. इस प्रकार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाने वाली शिव रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है.

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है. इस पर्व को पूरे देश में श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. इस दिन भगवान् शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शिवभक्त उनका अभिषेक करते हैं और उनके प्रिय पुष्प - पत्र आदि उन्हें अर्पित करते हैं, व्रत रखते हैं और रात्रि में चार प्रहर की पूजा भी करते है. 

मासिक शिवरात्रि

प्रतिपदा आदि सभी तिथियों का कोई न कोई देवता स्वामी होता है. चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान् शिव हैं. जिस प्रकार प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है उसी प्रकार प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. इस तरह प्रतिमाह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाने वाली शिवरात्रि को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है. 

इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं और भगवान् शिव की पूजा अर्चना और अभिषेक करते हैं. मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान् शिव की परिवार सहित पूजा करने से अतिशुभ फल प्राप्त होते हैं. मासिक शिवरात्रि का व्रत रखने से भगवान् शिव की कृपा प्राप्त होती है और काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से मुक्ति मिलती है. 

 

Friday 13 October 2023

(8.1.31) कार्तिक स्नान, कार्तिक मास में स्नान का महत्व Kartik Maas Me Snaan Ka Mahatva aur uska phal

 कार्तिक स्नान, कार्तिक मास में स्नान का महत्व Kartik Maas Me Snaan Ka Mahatva aur uska phal

धर्म कर्म आदि की साधना के लिए स्नान करने की सदैव आवश्यकता रहती है। इसके सिवा आरोग्य की अभिवृद्धि और उसकी रक्षा के लिए भी नित्य स्नान से कल्याण होता है। विशेषरूप से माघ, बैशाख और कार्तिक मास में नित्य स्नान बहुत अधिक महत्व रखता है। मदन पारिजात में लिखा है कि कार्तिक मास में जितेन्द्रिय रहकर नित्य स्नान करें और हविष्य अर्थात जौ, गेहूं तथा दूध, दही और घी आदि का दिन में एक बार भोजन करें तो उसे व्यक्ति के सब पाप दूर हो जाते हैं। कार्तिक मास को पुण्य मास  कहा गया है। इस माह में जितने भी पुण्य कार्य किए जाते हैं उनका विशेष महत्व बताया गया है। इस माह में प्रातः तारों की छांव में स्नान का बहुत अधिक महत्व है पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक स्नान करने से अत्यधिक फल प्राप्त होता है सामान्य दिनों में 1000 बार तथा प्रयाग में कुंभ के दौरान गंगा स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है।

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक माह के स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है। इस मास भगवान विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं इसलिए इस महीने में किसी भी नदी एवं तालाब में स्नान करने से भगवान विष्णु की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य लाभ प्राप्त होता है। यदि नदी या तालाब में स्नान नहीं किया जा सके तो घर पर शुद्ध पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर उस पानी से स्नान करना चाहिये।

 

 

 

 

Thursday 12 October 2023

(8.1.30) कार्तिक मास का धार्मिक महत्व Kartik Maas Ka Dharmik Mahatva

कार्तिक मास का धार्मिक महत्व Kartik Maas Ka Dharmik Mahatva

कार्तिक मास बहुत पवित्र माह या महिना माना जाता है। भारत के सभी तीर्थों  के समान पुण्य फलों की प्राप्ति इस एक माह में ही मिल जाती है। इस माह में की गई पूजा तथा व्रत से ही तीर्थ यात्रा के बराबर शुभ फल की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व के बारे में प्राचीन ग्रंथों में बहुत कुछ कहा गया है। एक श्लोक इस प्रकार है - 

न कार्तिक समो मास, न कृतेन  समम् युगं ।

न वेद सदृश्यम शास्त्रम, न तीर्थ गंगा समम्

अर्थात -

कार्तिक के समान कोई माह नहीं है, सतयुग  के समान कोई  युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई अन्य तीर्थ नहीं है।

 इस प्रकार कार्तिक मास का हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है। यह मास भगवान विष्णु और लक्ष्मी का अत्यंत ही प्रिय महिना होता है। इस महिने भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं तथा सृष्टि में आनंद और कृपा की वर्षा होती है। माता लक्ष्मी भी इसी माह धरती पर भ्रमण करने के लिए उतरती हैं और भक्तों को अपार धन का आशीर्वाद देती हैं।

कार्तिक माह को शास्त्र मेंपुण्य माहकहा गया है। इस माह में जितने भी पुण्य कार्य किए जाते हैं उन का विशेष महत्व बताया गया है . इस माह में प्रातःकाल तारों की छांव में स्नान का भी बहुत अधिक महत्व है.  ‘पद्मपुराणतथाविष्णु रहस्य' में कार्तिक स्नान के बारे में बहुत कुछ बताया गया है.

सामान्य दिनों  में 1000 बार तथा प्रयाग में कुंभ के दौरान गंगा स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है और वही फल कार्तिक माह में  सूर्योदय से पूर्व  किसी भी नदी में स्नान करने से प्राप्त हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार कार्तिक माह  में स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो जाती है और इस का समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है.  इस माह भगवान विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं इसलिए इस महीने में किसी भी नदी तथा तालाब में स्नान करने से भगवान विष्णु की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य लाभ प्राप्त होता है.  

शास्त्रों में कार्तिक मास को बहुत पवित्र माना गया है तथा इसे  ‘मोक्ष का द्वारकहकर संबोधित किया गया है. कार्तिक मास की प्रत्येक तिथि में कोई न कोई पर्व या उत्सव मनाया जाता है.  दीपों का पर्व दीपावली भी इसी माह  का उत्सव है. यह मास हमारे जीवन के अंधकार को दूर करके हमें प्रकाश की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है. 

कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोग विनाशकसद्बुद्धि प्रदान करने वाला तथा महालक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम माह है.


Tuesday 10 October 2023

(6.8.17) शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र Shiva Panchakshar Stotra (in Hindi) Shri Shiva Panchakshar Stotra

 शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र Shiva Panchakshar Stotra (in Hindi) Shri Shiva Panchakshar Stotra

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र

श्री आदि शंकराचार्यजी द्वारा रचित शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र भगवान् शिव का स्तुति मन्त्र है. इसमें भगवान् शिव के स्वरुप व गुणों को दर्शाया गया है. इसका पाठ करने से विचारों में पवित्रता व रचनात्मकता आती है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है.

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र का हिंदी रूपान्तरण    

जिनके कंठ में साँपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग (अनुलेपन) है, दिशाएँ ही जिनके वस्त्र हैं, उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’ कार स्वरूप शिव को नमस्कार है. (1)

गंगाजल और चन्दन से जिनकी अर्चा हुई ही, मन्दार पुष्प तथा अन्यान्य कुसुमों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर ‘म’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है. (2)

जो कल्याण स्वरुप हैं, पार्वतीजी के मुख कमल को विकसित यानि प्रसन्न करने के लिए जो सूर्य स्वरुप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिन्ह है, उन शोभा वाली नीलकन्ठ ‘शि’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है. (3)

वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है. (4)

जिन्होंने यक्ष रूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव ‘य’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है. (5)

जो शिव के समीप इस पवित्र पञ्चाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित होता है. (6)

 

(6.8.16)अमोघ शिव कवच के लाभ, महत्त्व और पाठ करने की विधि Benefits of Amogh Shiva Kavach

अमोघ शिव कवच के लाभ, महत्त्व और पाठ करने की विधि Benefits of Amogh Shiva Kavach

अमोघ शिव कवच के लाभ, महत्त्व और पाठ करने की विधि

सनातन धर्म के ऋषि मुनियों ने भगवान् शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए कई मन्त्र, स्तोत्र और कवचों की रचना की है, जिनका पाठ करने से भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं और उनके भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं.

अमोघ शिव कवच भी एक शक्तिशाली रक्षा कवच है. यह कवच परम गोपनीय और अत्यंत आदरणीय है. यह सारे अमंगलों और विघ्न बाधाओं को हरने वाला है. महर्षि ऋषभ ने इसका उपदेश करके एक संकटग्रस्त राजा को दुःख मुक्त किया था. यह कवच स्कन्द पुराण के ब्रह्मोत्तर खण्ड में है.

इस अमोघशिव कवच का पाठ करने के लाभ इस प्रकार हैं –

जो मनुष्य इस उत्तम शिव कवच को धारण करता है यानि नियमित पाठ करता है, उसे भगवान् शिव के अनुग्रह से कभी भी और कहीं भी भय नहीं होता है.

जिसकी आयु क्षीण हो चली है, जो मरणासन्न हो गया है अथवा जिसे रोगों और व्याधियों ने मृतक सा कर दिया है, वह भी इस कवच के प्रभाव से तत्काल सुखी हो जाता है और दीर्घायु प्राप्त कर लेता है.

शिव कवच समस्त दरिद्रता का शमन करने वाला और सौमंगल्य को बढाने वाला है. इसका पाठ करने से अर्थाभाव से पीड़ित व्यक्ति की सारी दरिद्रता दूर हो जाती है और उसको सुख और वैभव की प्राप्ति होती है. 

जो इसे धारण करता है, वह देवताओं से भी पूजित हो जाता है.

इस कवच के प्रभाव से मनुष्य महापातकों के समूहों और उपपातकों से भी छुटकारा पा जाता है तथा शरीर का अंत होने पर शिव को पा लेता है.

अमोघ शिव कवच का पाठ करने की विधि –

पहले विनियोग छोड़कर भगवान् शिव का ध्यान करे. इसके बाद कवच का पाठ करे.

विनियोग –

इस शिवकवच स्तोत्र मन्त्र के ब्रह्मा ऋषि हैं, अनुष्टुप छन्द है, श्रीसदाशिवरूद्र देवता हैं, ह्रीं शक्ति है, वं कीलक है, श्रीं ह्रीं क्लीं बीज हैं, सदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिव कवच स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता है.

ध्यान –

जिनकी दाढ़ें वज्र के समान हैं. जो तीन नेत्र धारण करते हैं, जिनके कंठ में हलाहल पान का नील चिन्ह सुशोभित है, जो शत्रुभाव रखने वालों का दमन करते हैं, जिनके सहस्त्रों कर यानि हाथ अथवा किरणें हैं तथा जो अभक्तों के लिए अत्यन्त उग्र हैं, उन उमापति शम्भु को मैं प्रणाम करता हूँ.

ध्यान के बाद अमोघ शिवकवच का पाठ करे.      

 

 

  

Monday 9 October 2023

(6.8.15)शिवरक्षा स्तोत्र (हिन्दी में) रक्षा पाने हेतु Shiva raksha Stotra in Hindi

शिवरक्षा स्तोत्र (हिन्दी में) रक्षा पाने हेतु Shiva raksha Stotra in Hindi

शिवरक्षा स्तोत्र (हिन्दी में)

विनियोग-

इस शिवरक्षा स्तोत्र मन्त्र के याज्ञवल्क्य ऋषि हैं, श्री सदाशिव देवता हैं, अनुष्टुप छंद है, श्री सदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिवरक्षा स्तोत्र के जप में इसका विनियोग किया जाता है.

स्तोत्र

देवादिदेव भगवानशंकर का यह चरित्र, परम पवित्र , अपार, अत्यंत उदार एवं चतुवर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) को देने वाला है. (1)

पांच मुखवाले, तीन नेत्र वाले, दश भुजाओं वाले शिव का गौरी और विनायक (गणेश) जी सहित ध्यान करके साधक पुरुष को शिवरक्षास्रोत का पाठ करना चाहिए. (2)

गंगाधर शिव मेंरे सिर की, अर्धचन्द्रधारी मेरे कपाल की, काम देव को भस्म करने वाले (मदनध्वंसी) मेरे दोनों नेत्रों की तथा सांपो को आभूषण के रूप में धारण करने वाले (सर्पविभूषण) मेरे दोनों कानो की रक्षा करे.(3)

त्रिपुरासुर का वध करने वाले (पुराराति) मेरी नाक की, जगतपति मेरे मुख की, वागीश्वर मेरी जिह्वा की, शितिकन्धर मेरी ग्रीवा की रक्षा करे.(4)

मेरे कंठ की श्रीकंठ, मेरे दोनों कंधो की विश्वधुरंधर, भूभार संहर्ता मेरी दोनों भुजाओ की तथा पिनाकधृक मेरे दोनों हाथो की रक्षा करे. (5)

शंकर मेरे ह्रदय की, गिरिजापति पेट की, मृत्युंजय नाभि की तथा व्याघ्रजिनाम्बर मेरी कटि की रक्षा करे. (6)

दीनार्त-शरणागतवत्स्वल मेरी समस्त हड्डियों की, महेश्वर मेरे उरु की तथा जगदीश्वर मेरे जानु की रक्षा करे. (7)

मेरी दोनों जांघो की जगत्कर्ता, दोनों घुटनों की गणाधिप, मेरे दोनों पैरो की करुणासिंधु तथा मेरे सारे अंगो की सदाशिव रक्षा करे. (8)

फलश्रुति - 

जो साधक शिव बल से युक्त होकर इस शिवरक्षा स्रोत का पाठ करते हैं, वे अन्त में शिवसायुज्य (मोक्ष) को प्राप्त होते है. (9)

इस त्रिलोकी में जितने भी ग्रह- भूत -पिशाच आदि विचरण करते है, वे मात्र इस शिवरक्षा स्रोत के पाठ से तत्काल दूर भाग जाते है. (10)

जो साधक भक्ति पूर्वक पार्वतीपति शंकर के अभयंकर नामक कवच को अपने कंठ में धारण करते है, तीनो लोक उनके वशीभूत हो जाते हैं. (11)

जिस प्रकार भगवान नारायण ने स्वप्न में याज्ञवल्क्य ऋषि को इस कवच का उपदेश किया किया था, उसी प्रकार मुनिश्रेष्ठ ने उसे प्रात:काल उठकर लिख दिया था.(12)

(याज्ञवल्क्य द्वारा रचित शिवरक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण)