Wednesday 24 June 2015

(2.1.4) Safalata ke Quotations (Success Quotes) in Hindi

सफलता के उद्दरण (Safalata ke quotations)


1."सफलता कोई रहस्य नहीं है। वरन कुछ बुनियादी नियमों  का सतत पालन करने का सुखद परिणाम है। इसके विपरीत असफलता कुछ गलतियों  को लगातार दोहराने का परिणाम है।"
(संकलन )
2."सफलता तभी मिलती है , जब छोटे  - छोटे प्रयास  नियमित रूप से किये जायें।"
(संकलन )
3."रुकावटें( बाधाएं ) वे वस्तुएं हैं , जिन्हें आप तब देखतें हैं , जब आप अपना ध्यान लक्ष्य से हटा लेते हैं।"
(संकलन )
4."सफलता मात्र संयोग का नाम नहीं है ,यह दृष्टि कोण का परिणाम है।"
(संकलन )
5."जब तक आप प्रयास को नहीं छोड़ते हैं , तब तक आप असफल नहीं होते हैं।"
(संकलन )
6."लक्ष्य मिलने पर एक सुखद अनुभव होता है।  सफलता इसी अनुभूति का नाम है।"
(संकलन )
7."यदि लक्ष्य उत्कृष्ट एवं ऊँचा है , तो सफलता भी उतनी ही ऊँची होगी। यही सफलता की कहानी है।"
(संकलन )
8."किसी व्यक्ति की सफलता का मूल्यांकन उसके लक्ष्य प्राप्ति से नहीं किया जाता है, बल्कि उसने सफलता प्राप्ति के प्रयास के दौरान आने वाली बाधाओं को किस प्रकार जीता है , इससे किया जाता है।"
(संकलन )
9."सही दिशा में , सही प्रयास, सफलता की पहली सीढी है।"
(संकलन )
10."मजबूत इन्सान हमेशा अपने उद्धेश्य की पूर्ति में लगे रहते हैं।वे बुरे समय के ख़त्म होने की प्रतीक्षा नहीं करते हैं।"
(संकलन )
11."हर चीज आसान होने से पहले कठिन होती है।"
(संकलन )
11 A "सफल व्यक्ति किसी कार्य की क्रियान्विति का साहस करते हैं , जबकि असफल व्यक्ति ऐसा करने में झिझकते हैं।" 
(संकलन )
12."जीवन में सफलता इस बात से नहीं नापी जाती कि दूसरों की तुलना में हम क्या कर रहे हैं  ? हमारी सफलता इस तथ्य पर आधारित है कि  हम अपनी क्षमताओं की तुलना में क्या कुछ कर रहे हैं।"
(संकलन )
13."व्यक्ति की सफलता का मूल्यांकन उसके द्वारा  सफलता के लिए देखे गए सपनों के आकार से किया जाता है।"
(संकलन )
14."सफलता के लिए आवश्यक है, दृढ इच्छा शक्ति।किसी स्थिति में हम अपने आप को कैसे सँभालते हैं और ढालते हैं, इसी से हमारी सफलता तय होती है।"
(संकलन )
15."दो प्रकार के लोग असफल होते हैं - वे जो करते तो हैं परन्तु सोचते नहीं हैं। दूसरे वे जो सोचते तो हैं , परन्तु करते कुछ नहीं हैं।"
(संकलन )
16."सोचने और विचारने की क्षमता का प्रयोग किये बिना जीवन जीना ठीक उसी तरह है जैसे बिना निशाने के तीर चलाना।"
(संकलन )
17."अपनी पुरानी विफलताओं को भूल जाईये , अभी जो कर रहे हैं , बस उसे याद  रखिये।"
(संकलन )
18."परिवर्तन एवं बदलाव प्रकृति प्रदत्त नियम है। हर प्रगति एक बदलाव है , परन्तु हर बदलाव एक प्रगति नहीं है। अत: परिवर्तन या बदलाव को जाँच परख कर स्वीकार करना चाहिए।"
(संकलन )
19."सफलता और असफलता के बीच वही अंतर है जो बिलकुल सही और लगभग सही के बीच है।"
(संकलन )
20."जीवन में बहुत सारे लोग उस समय कोशिश बंद कर देते हैं , जब वे मंजिल के नजदीक होते हैं।"
(संकलन )
21. सफलता की कहानियाँ , बड़ी असफलता की कहानियाँ भी होती हैं।
(संकलन )
22."आप बीते समय को नहीं बदल सकते , पर आप चाहें  तो अभी नई शुरुआत कर सकते हैं।"
(संकलन )
23."सफल व्यक्ति छोटे -छोटे कार्यों को भी  कुशलता एवं धैर्य पूर्वक करते हैं। वे किसी महान कार्य की प्रतीक्षा में बैठे नहीं रहते हैं।"
(संकलन )
24."प्रतिबद्धता सफलता का आवश्यक गुण है। निष्ठा और बुद्धिमता प्रतिबद्धता बनाने के दो दृढ आधार हैं।"
(संकलन )
25."प्रयास करना कभी न छोड़े , लगे रहें , सफलता अवश्य मिलेगी।"
(संकलन )
26."हर अवसर को महत्वपूर्ण मानकर उसका उपयोग करें। सफलता का अवसर कभी भी आ सकता है।"
(संकलन )
27."असफलता मिलने पर , सफलता का प्रयत्न नहीं करना, असफ़ल जीवन का चिन्ह है।"
(संकलन )
28. "असफलता का उपयुक्त  उपयोग,  सफलता है।"
(संकलन )
29. "सफल व्यक्ति किसी कार्य की क्रियान्विति का साहस करते हैं , जबकि असफल व्यक्ति ऐसा करने में झिझकते हैं."
(संकलन )

Tuesday 23 June 2015

(2.1.3) Chanakya quotes( Chanakya ki shiksha ) in Hindi


 Quotations of Chankya in Hindi चाणक्य के कोटेसन 

1. अपने  व्यवहार में बहुत अधिक सरल मत रहो। जंगल  में सीधे पेड़ों को पहले  काटा जाता है और टेढ़े पेड़ों को छोड़ दिया जाता है।    
 ( चाणक्य )
2.संतुलित मतिष्क के समान कोई आत्म संयम नहीं है , संतोष के समान कोई सुख नहीं है , लालच के समान कोई व्याधि नहीं है , और दया के समान कोई गुण नहीं है।          
 ( चाणक्य )
3. दूसरों की गलतियों से सीखो।आप का जीवन इतना लम्बा नहीं होता  है कि हर बात को सीखने के लिए आप गलती करें।         
 ( चाणक्य )
4. अपने सेवक को उसके कर्त्तव्य पालन के समय परखो , सम्बन्धी को कठिनाई में परखो , मित्र को विपदा में और पत्नी को दुर्भाग्य व  गरीबी में परखो।       
( चाणक्य )
5. चाहे सर्प जहरीला नहीं हो तो भी उसे फुफकारते रहना चाहिये।      
 ( चाणक्य )
 6. सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है ,"अपने रहस्यों को कभी भी प्रकट मत करो ,यह (प्रकट करना )आप का विनाश कर देगा।        
 ( चाणक्य )
7. व्यक्ति कर्म से महान होता है , न कि जन्म से।        
 ( चाणक्य )
8. व्यक्ति जो अपने परिवार के सदस्यों से बहुत अधिक लगाव (आसक्ति )रखता है ,वह दुःख और भय का अनुभव करेगा , क्योंकि सभी दुखों का मूल कारण  आसक्ति ही है। इसलये  सुख चाहते हो तो आसक्ति को त्याग दो।           
 ( चाणक्य )
9. प्रत्येक मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ निहित होता है। स्वार्थ के बिना कोई मित्रता नहीं हो सकती है।
 ( चाणक्य )
10. वह व्यक्ति जो हमारे मन में रहता है , वह हमारे नजदीक होता है भले ही वह हमसे दूर हो। लेकिन जो हमारे हृदय में नहीं है, वह हमसे काफी दूर है, भले ही वह हमारे नजदीक ही क्यों नहीं हो?        
 ( चाणक्य )
11. प्रत्येक कार्य को शुरू करने से पहले ,अपने आपसे हमेशा तीन प्रश्न पूछो ,- मैं इसे क्यों कर रहा हूँ , इसके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं इसमें सफल हो जाऊंगा ?जब आप इन पर गहनता से विचार कर लें और प्रश्नों का संतोष जनक उत्तर मिल जाये ,तो आप उस कार्य के लिए आगे  बढ़िये।   
 ( चाणक्य ) 
12. पहले पांच वर्ष तक आप अपने बच्चे से स्नेह करो ,अगले पांच वर्षों में उसे डाटो - फटकारो। जब वह सोलह वर्ष का हो जाये तो उसे मित्र के समान समझो।       
 ( चाणक्य )
13. जो कुछ भी पहले  हो चुका है उसके लिए उद्विग्न नहीं होना चाहिए , न ही भविष्य के लिए चिंतित होना चाहिए। विवेकी व्यक्ति केवल वर्तमान पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं।     
 ( चाणक्य )
14. ज्योंही भय आपके नजदीक आये , उस पर आक्रमण करके उसे नष्ट कर दो।      
 ( चाणक्य )
15. आप से उच्च या निम्न श्रेणी के व्यक्तियों  से मित्रता मत करो। ऐसी मित्रता से आप को कोई लाभ नहीं मिलेगा।          
 ( चाणक्य )
16. शिक्षा व्यक्ति का सर्व श्रेष्ठ मित्र होती है। शिक्षित व्यक्ति का हर जगह समान किया जाता है। शिक्षा , सौन्दर्य त्तथा युवावस्था से भी बढ कर है।          
( चाणक्य )
17. पुस्तकें मूर्ख व्यक्ति के लिए उतनी ही अनुपयोगी हैं  जितना दर्पण किसी अंधे व्यक्ति के लिए होता है।
 ( चाणक्य )
18.  ईश्वर प्रतिमा में स्थित नहीं होता है,वह व्यक्ति की भावना में होता है।आत्मा व्यक्ति का मंदिर होती है।
 ( चाणक्य )
19. सांप , राजा , चीता ,ततैया ,छोटा बच्चा , दूसरों  का पालतू कुत्ता और मूर्ख , इन सात को नींद से नहीं जगाना चाहिए।     
 ( चाणक्य )     
20. जब आप किसी कार्य को शुरू  कर देते हो , तो असफलता से मत डरो और न ही उसे बीच में छोडो। निष्ठा पूर्वक कार्य करने वाले लोग ही सफल होते हैं और  प्रसन्न रहते हैं।        
 ( चाणक्य )
21. किसी पुष्प की गंध हवा की दिशा में ही फैलती है। लेकिन किसी व्यक्ति के द्वारा की गई भलाई चारों दिशा में फैलती है।         
 ( चाणक्य )
22. जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा रात की शोभा बढा देता है , ठीक उसी प्रकार एक ही विद्वान व सज्जन पुत्र कुल को निहाल कर देता है।          
( चाणक्य )
23. दिन में दीपक जलना , समुद्र में वर्षा , भरे पेट के लिए भोजन और धनवान को दान देना व्यर्थ है।
 ( चाणक्य )
24. जिस प्रकार  सोने में जड़े जाने पर ही रत्न सुंदर लगता है उसी प्रकार  गुण भी योग्य व विवेक शील व्यक्ति के पास जाकर ही सुंदर लगता है।       
  ( चाणक्य )
25. किसी भी चीज के बाहरी रूप को देख कर आप उसके बारे में निर्णय नहीं करें।जो कुछ बाहर से दिखाई देता है, जरूरी नहीं कि अंदर से भी वैसा ही हो।
 ( चाणक्य )
26 जिस प्रकार सूर्योदय होने पर चन्द्रमा का प्रकाश अपनी चमक खो देता है, उसी प्रकार दूसरों का सहारा लेने पर व्यक्ति का स्वयं का अस्तित्व गौण हो जाता है।अत: महान वही है जो अपने बल पर खड़ा है।
( चाणक्य )
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(2.1.2) Dohe in Rajasthani / Inspirational Dohe in Rajasthani language

Prerak Dohe (राजस्थानी साहित्य में प्रेरणादायक दोहे) संकलित अंश 


Ethics ( Teachings ) in Rajasthani literature --
राजस्थान वीरों की भूमि रहा है। इसका इतिहास गौरव गाथाओं से भरा हुआ है। राजस्थानी साहित्य ने  ऐतिहासिक नर - नरियों  को स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य कार्य करने हेतु प्रेरित किया है। जो  रोचक, सुबोध और सरल  भी है।
1. सुख सम्पत अर औदसा , सब काहू के होय।
    ज्ञानी कटे ज्ञान सूं , मूरख काटे रोय।।
अर्थ - सुख - सम्पति और बुरे दिन तो समयानुसार  सभी के सामने आते रहते हैं, परन्तु ज्ञानी व्यक्ति बुरे दिनों को ज्ञान से काटता है और मूर्ख व्यक्ति उन्हें रोकर  कर काटता है।

2. राम कहे सुग्रीव नैं , लंका केती दूर।
  आलसियाँ अलधी घणी , उद्यम हाथ हजूर।।
अर्थ - राम चंद्र जी ने सुग्रीव  से पूछा , " लंका कितनी दूर है ? " सुग्रीव ने तत्काल उत्तर दिया , " आलसी के लिए तो वह बहुत दूर है , परन्तु उद्यमी के लिए मात्र एक हाथ की  दूरी पर ही है।  अर्थात कर्म वीर के लिए जीवन में उद्यम का ऊँचा स्थान है। बिना उद्यम किसी को भी अपने जीवन में  नहीं मिलती है।

3. कहा लंकपत ले गयो , कहा करण गयो  खोय।
   जस जीवन , अपजस मरण , कर देखो सब कोय।।
अर्थ - लंकापति रावण अपने साथ क्या ले गया और महारथी कर्ण ने संसार में क्या खोया ? सोने की लंका का स्वामी होते हुए भी रावण ने अपयश प्राप्त किया और महारथी कर्ण ने सोने का दान करके संसार में यश प्राप्त किया। कोई भी करके देख ले , यश और अपयश हीतो जीवन और मृत्यु है।

4. जननी जण ऐहडा जणे, के दाता  के सूर।
नातर रहजे बाझडी , मती गमाजे नूर।।
अर्थ - कोई भी माता ऐसी संतान को जन्म दे, जो या तो वीर हो अथवा दानी। ऐसी  संतान के अभाव में जननी का वन्ध्या रहना ही अच्छा  है। असत संतान को जन्म देकर यौवन सौन्दर्य नष्ट करना उचित नहीं है।

5. केहरी केस,  भुजंग मिण , सरणाई सुहड़ाह।
  सती पयोधर , क्रपण धन , पडसी हाथ मुवाँह।।
 अर्थ - सिंह के केश , नाग की मणि , शूरवीर का शरणागत व्यक्ति , सती के पयोधर और कृपण का धन उन के जीवित रहते किसी के हाथ में नहीं आ सकते , ये तो उनके मरने पर ही प्राप्त हो सकते हैं।  

6. रण - चढ़ण , कंकण - बंधण , पुत्र - बधाई चाव।
  ये तीनूं दिन त्याग रा , कहा रंक , कहा राव।।
अर्थ - जब कोई व्यक्ति रणक्षेत्र में जाता हो अथवा जब घर में विवाह का मांगलिक कार्य संपन्न हो या पुत्र का बधाई सन्देश सुनाया जाता हो तो, राजा अथवा रंक सबके लिए ये तीनों त्याग अर्थात दान के  शुभ अवसर हैं।

7. सत मत छोडो हे नराँ , सत  छोड्याँ पत जाय।
 सत  बांधी  लिच्छ्मी , फेर मिलेगी आय।।
अर्थ - अरे लोगों , सत्य अर्थात सन्मार्ग को कभी मत छोडो , उसे छोड़ने से प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। यदि सन्मार्ग पर दृढ रहे , तो गई हुई लक्ष्मी फिर वापस मिल जाएगी।

8.  सील सरीरह अम्भरण , सोनो भारिम अंग।
    मुख - मण्डण सच्चउ वयण , विण तम्बोलह रंग।।
अर्थ - वास्तव में सील ही वास्तविक अलंकार है , सोना तो अंगों पर पड़ा हुआ भार है। मुख की शोभा सत्य वचन है , न कि ताम्बूल से उसे रँगना।

9. चन्दण , चन्द , सुमाणसां , तीनूं एक निकास।
     उण घसियाँ उण बोलिया , उण ऊँगा होय उजास।।
अर्थ - चन्दन , चन्द्रमा , तथा सज्जन - इन तीनों की उत्पत्ति का मूल स्थान एक ही है, इनके क्रमश: घिसने पर , उगने पर और बोलने पर चतुर्दिक प्रकाश हो जाता है।

10. सरुवर , तरुवर , संत जन , चौथो बरसण मेह।
      परमारथ रे कारणै , च्यारों धारी देह।।
अर्थ - सरोवर , तरुवर , संत जन और जल बरसाने वाला बादल - ये चारों परमार्थ के लिए ही उत्पन्न होते हैं।

11.  घर - कारज, सीलावणा , पर कारज समरत्थ।
      जां नैं राखै सांइयाँ , आडा दे दे हत्थ।।
अर्थ - जो व्यक्ति अपने घर के कार्य में भले ही ढिलाई कर दे  , परन्तु दूसरों का काम पूरा करने में कभी देर नहीं करते हैं, ऐसे व्यक्तियों  को भगवान दीर्घ जीवन प्रदान करे।

12. भल्ला जो सहजे भला , भूंडा किम हिंन हुंत।
      चन्दन विस हर ढंकिऊं, परिमल तउ न तजंत।।
 अर्थ -  जो भोले होते हैं , वे स्वभाव से ही भले होते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में बुरे नहीं बनते। चन्दन पर सर्प लिपटे रहते  हैं; परन्तु वह अपना सुवास कभी नहीं छोड़ता।

13. कद सबरी चौका दिया , कद हरि पूछी जात।
     प्रीत पुरातन जाणकर , फल खाया रघुनाथ।।
 अर्थ - शबरी ने अपनी  कुटिया को चौका देकर पवित्र कब किया था और भगवान् श्री राम चन्द्र जी ने उसको अपनी जाति बतलाने के लिए कब कहा था ? पुरातन प्रीति  के कारण  ही तो श्री रामचन्द्रजी ने उसके जूठे बेर खाये  थे।  
14. साईं सूँ  सांचा रहो , बन्दा सूँ सत  भाव।
    भावूं लाम्बां कैस रख , भाबूं घोट मुंडाव।।
 अर्थ - भगवान के प्रति सच्चा रहना चाहिए और भगवद - भक्तों के प्रति सदैव सद्भावना रखनी चाहिए। इतना होने पर चाहे कोई लम्बे केश धारण करे अथवा मुण्डित - मस्तक रहे , इसमें कोई अंतर नहीं पड़ता।

15. जात वलै नहीं दीहड़ा, जिम गिर -निरझरणांह।
      उठरे आतम , धरमकर , सुवै निचंता काह।।
अर्थ - जिस प्रकार पहाड़ के झरने बह जाने के बाद वापस लौट कर नहीं आते , उसी प्रकार बीते हुए दिन लौटकर नहीं आते, ऐसी हालत में हे आत्मन! तुम कभी निश्चिन्त होकर मत सोओ , हर समय धर्म का आचरण करते रहो।
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