Saturday 26 December 2015

(5.1.6) Surya Grahan /Solal Eclipse

सूर्य ग्रहण - संभावना,सूतक, पुण्य काल आदि

सूर्य ग्रहण क्या होता है –
सूर्य ग्रहण एक खगोलीय और प्राकृतिक घटना है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है.इस प्रक्रिया में चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है, जिससे सूर्य की चमकती हुई सतह आंशिक या पूर्ण रूप से ढक जाती है, इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है .सूर्य ग्रहण की संभावना कब होती है
सूर्य ग्रहण सदैव अमावस्या को ही होता है, परन्तु प्रत्येक अमावस्या को सूर्य ग्रहण नही होता है. यह चन्द्रमा की गति व पृथ्वी की गति तथा पात अर्थात राहु –केतु पर निर्भर करता है.
सूर्य ग्रहण के लिए आवश्यक स्थितियाँ इस प्रकार हैं -
अमावस्या तिथि होनी चाहिए.
चन्द्रमा क्षीणतम होना चाहिए.
चन्द्रमा और राहु या केतु के रेखांश बहुत निकट होने चाहिये.
चन्द्रमा के अक्षांश लगभग शून्य होने चाहिए.
सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है – सूर्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है –
(1)पूर्ण सूर्य ग्रहण – जब चन्द्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से ढक लेता है तो, इस अवस्था को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
(2)खंड या आंशिक सूर्य ग्रहण – जब चन्द्रमा सूर्य के कुछ भाग को ढके तो, इस स्थिति को खंड सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
(3)वलयाकार सूर्य ग्रहण – जब चन्द्रमा सूर्य को इस प्रकार ढके कि सूर्य बीच में से ढका हुआ दिखाई दे और उसके किनारों पर प्रकाश  का छल्ला बना हुआ दिखाई दे तो इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
चूड़ामणि योग किसे कहते हैं – जब सूर्य ग्रहण रविवार में हो तो उसे चूड़ामणि योग कहा जाता है. सूर्य पुराण के अनुसार इस योग में सूर्य ग्रहण का फल बहुत अधिक होता है.
सूर्य ग्रहण का पुण्य काल –
जहाँ और जिस क्षेत्र में सूर्य ग्रहण दिखाई पड़े, वहीँ पुण्य काल होता है तथा उस क्षेत्र में  ही स्नान – दान, जप, पुण्य आदि करने का विधान है. जिस स्थान पर ग्रहण दिखाई नहीं दे तो, वहाँ धार्मिक दृष्टि से सूतक, स्नान, दान,पुण्य आदि नियम लागू नहीं होते हैं,
सूतक क्या होता है –
सूतक अशुभ काल होता है. यह सूतक ग्रहण स्पर्श के समय से बारह घन्टे पूर्व लग जाता है और ग्रहण के मोक्ष यानि समाप्ति के साथ ही सूतक समाप्त हो जाता है. सूतक लगने के पहले ही पानी, आटा,आदि खाद्य पदार्थों में कुशा (एक प्रकार की पवित्र घास) के तिनके रख देने चाहिए.
ग्रहण के पहले, ग्रहण के मध्य और ग्रहण समाप्ति पर क्या करें –
ग्रहण शुरू होने से पहले स्नान, ग्रहण के मध्य में हवन, पूजा पाठ, देवार्चन, और ग्रहण की समाप्ति के समय दान और ग्रहण समाप्त होने पर फिर स्नान करने से प्राणी शुद्ध होता है.
ग्रहण का धार्मिक महत्व –
ग्रहण के समय साफ़ जल चाहे कहीं से भी लिया गया हो, गंगाजल के समान पवित्र होता है. सभी द्विजाचार्य व्यासजी के समान कहे गए गये हैं और दान सर्वभूमि दान के समान होता है.
ग्रहण के दौरान क्या करें –
ग्रहण के समय गायत्री मन्त्र, विष्णु सहस्त्र नाम स्तोत्र पाठ, आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ, इष्ट मन्त्र या नव ग्रहमन्त्र का जप करना चाहिए. धार्मिक पुस्तकें पढ़नी चाहिए. .
हवन करना चाहिए.
दान देना चाहिये.
गर्भवती महिलाओं को शांत भाव से ईश्वर व अपने इष्ट देव का ध्यान करना चाहिए.
ग्रहण के दौरान क्या नहीं करें –
ग्रहण काल में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए.
भोजन पकाना, भोजन करना, शयन करना, आदि कार्य नहीं करना चाहिए. लेकिन यह बात बालक, वृद्ध और रोगी के लिए लागू नहीं होती है.
ग्रहण काल में देवता की प्रतिमा को नहीं छूना चाहिए.
ग्रहण के समय सूर्य की तरफ नंगी आँखों से नहीं देखना चाहिए.
गर्भवती महिलाओं को सूर्य की तरफ नहीं देखना चाहिए.
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Friday 25 December 2015

(3.1.22) Ek Shloki Ramayan in Hindi

Ek Shloki Ramayan with Sanskrit Shlok / एक श्लोकी रामायण (हिंदी में ) एक श्लोकी रामायण पाठ का फल 

(For English translation / version  CLICK HERE)
एक श्लोकी रामायण में सम्पूर्ण रामायण का सार  एक श्लोक में शामिल किया गया है। इस का पठन,जप  व मनन व्यक्ति के पापों को दूर कर के उसे प्रसन्नता तथा उत्साह  से भर देता है,सही मार्ग दिखाता है,भौतिक औरआध्यात्मिक रूप से संपन्न बनाता है और उसके परिवार में स्नेह का वातावरण निर्मित करता है।
पठन या जप प्रक्रिया :- सुबह स्नान के बाद ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके बैठ जाएँ और अपने समक्ष भगवान राम का चित्र रखें।अपनी आखें बंद करें व ध्यान करें कि भगवान् राम सम्पूर्ण संसार की रक्षा करने वाले हैं।वे उन सभी गुणों के प्रतीक हैं जो  किसी श्रेष्ठ व्यक्ति में होने चाहिए।वे पुरुषोत्तम हैं।मैं उनके कमल रुपी चरणों में बार बार नमन करता हूँ। फिर नीचे लिखे श्लोक का प्रतिदिन 11 या  21 बार जप / पठन करें।
आदौ  रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।
बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लंकापुरी दाहनं
पश्चाद्रावण कुम्भकर्ण हनन मेतद्धि रामायणम्।।  
इस प्रकार इस श्लोक का पठन करने के बाद भगवान राम के दिव्य स्नेह पर मनन -चिंतन करें और भावना करें कि भगवान् राम की कृपा से आपके जीवन में प्रतिदिन नया उत्साह,उमंग आते जा रहे हैं।आपका जीवन प्रसन्नता से भरता जा रहा है,आप ज्यादा अच्छा जीवन जी रहे हैं और आपके परिवार का प्रत्येक सदस्य प्रसन्न आशा वादी ,सहयोगी और आज्ञाकारी है।    

Thursday 24 December 2015

(1.1.13) Vidur Neeti in Hindi / Vidur ke Quotations in Hindi

Vidur Neeti  विदुर नीति / विदुर के कॉटेसन (हिंदी में )

भागवत धर्म को जानने वालों में महात्मा विदुर जी कास्थान सर्वोपरि है। वे परम बुद्धिमान , प्रज्ञा शक्ति से संपन्न तथा महान योग बल से प्रतिष्ठित थे। महामति विदुर धृतराष्ट्र और पाण्डु के लघु भ्राता थे। इनके द्वारा रचित 'विदुरनीति' एक प्रामाणिक नीति ग्रन्थ माना जाता है।
(1) जलती हुई आग से सोने की पहचान होती है , सदाचार से सत्पुरुष की , व्यवहार से साधु की , भय आने पर शूर की , आर्थिक कठिनाई में धीर की, और कठिन  आपत्ति में शत्रु और मित्र की परीक्षा (पहचान) होती है।(3/49)
(2 ) शुभ कर्मों से लक्ष्मी की उत्पत्ति होती है , प्रगल्भता से वह बढती है ,चतुरता से जड़ जमा लेती है और संयम से सुरक्षित रहती है।(3/51)
(3) ये आठ गुण पुरुष की शोभा बढ़ाते हैं :- बुद्धि , कुलीनता , दम ,शास्त्र ज्ञान, पराक्रम , बहुत नहीं बोलना , यथा शक्ति दान देना और कृतज्ञ होना। (3/52)
(4) देवता चरवाहों की तरह डण्डा लेकर पहरा नहीं देते हैं। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं,उसे उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं। (3 /40)
(5) घोर जंगल में ,दुर्गम मार्ग में ,कठिन आपत्ति के समय , घबराहट में और प्रहार के लिए शस्त्र उठे रहने पर भी मनोबल सम्पन्न पुरुष को कोई भय नहीं होता है। (7 /67)
(6) उद्योग , संयम , दक्षता , सावधानी , धैर्य , स्मृति और सोच विचारकर कार्य आरम्भ करना -इन्हें उन्नति का मूल मन्त्र समझिये। (7 /68 )
(7) बोलने से नहीं बोलना अच्छा बताया गया है किन्तु सत्य बोलना वाणी की दूसरी विशेषता है, यानि मौन की अपेक्षा भी दुगना लाभप्रद है। सत्य भी यदि प्रिय बोला जाये तो यह तीसरी विशेषता है और वह भी यदि धर्म सम्मत कहा जाये तो वह वचन की चौथी विशेषता है। (4 /12)
(8) जो सबका कल्याण चाहता है , किसी के अकल्याण की बात मन में नहीं लाता है , जो सत्य वादी है , कोमल और जितेन्द्रिय है , वह उत्तम पुरुष माना गया है। (4 / 16)
(9) जो झूठी सांत्वना नहीं देता है , देने की प्रतिज्ञा करके दे ही डालता है , दूसरों के दोषों को जानता है , वह मध्यम श्रेणी का पुरुष है। (4 / 17 )
(10) जो अपने ही ऊपर संदेह होने के कारण दूसरों से भी कल्याण होंने  का विश्वास नहीं करता है , मित्रों को भी दूर रखता है , अवश्य ही वह अधम पुरुष है। (4 /19)

Monday 30 November 2015

(1.1.12) Brahamakumaris Quotations in Hindi

 Brahamakumaris Quotations ब्रह्मा कुमारीज कोट्स (हिन्दी में )

(1) संतुष्टता व ख़ुशी साथ - साथ रहते हैं। इन गुणों से दूसरे ( गुण व व्यक्ति ) आपकी ओर स्वत: ही आकर्षित होंगें।
(2) जीवन एक नाटक है, यदि हम इसके कथानक को समझ लें तो सदैव प्रसन्न रह सकते हैं।

(3) यदि मैं एक क्षण खुश रहता हूँ, तो इससे मेरे अगले क्षण में भी खुश होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

(4) दुखों से भरी इस दुनियां में वास्तविक सम्पत्ति , धन नहीं, संतुष्टता है।

(5) विकट समस्याओं का आसान हल ढूंढ़ निकलना सबसे मुश्किल काम है।

(6) अगर आप हर कार्य ख़ुशी से करें तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं लगेगा।

(7) जो भविष्य है ,  वह अब हो रहा है, और जो अब हो रहा है वह अतीत बनता जा रहा है, तो चिंता किस लिए की जाये।

(8) यदि मैं अपने प्रयासों का फल प्राप्त करने के लिए बेचैन  हूँ, तो यह कच्चा फल खाने की इच्छा के समान है।

(9) यदि आप दूसरों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि आप वह हैं , जो कि  आप नहीं हैं, तो मूर्ख कौन बना ?

(10) सफलता मन की शीतलता से उत्पन्न होती है। ठंडा लोहा ही गर्म लोहे को काट  व मोड़  सकता है।

(11) जन्म का अंत है मृत्यु , और मृत्यु का अंत है जन्म।

(12) यदि आप को अपने ही अन्दर शांति नहीं मिल पाती,  तो भला इस विश्व में कहीं और कैसे पा  सकते हैं।

(13) जब हम क्रोध की अग्नि में जलते हैं, तो इसका धुँआ हमारी ही आँखों में जाता है।

(14) जहाँ बुद्धि प्रयोग करने की आवश्यकता है ,वहाँ  बल प्रयोग करने से कोई लाभ नहीं होता है।

(15) मूर्ख व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं हो सकता, जबकि बुद्धिमान व्यक्ति की सबसे बड़ी पूँजी संतुष्टता  ही है।

(16)  दूसरों की सफलता के प्रति भी उतना ही उत्साह दिखाएँ, जितना आप अपनी सफलता के प्रति दिखातें हैं।

(17) महान  कार्य करने के लिए उमंग और उत्साह को अपना साथी बनाइये।

(18) यदि हम भविष्य के बारे में भय भीत हो जायेंगें , तो वर्तमान में प्राप्त अवसरों को खो देंगे।

(19) दूसरों की गलती सहन करना एक बात है, परन्तु उन्हें माफ़ कर देना और भी महान बात है।

(20) यदि हम अपनी प्रशंसा व ख्याति सुनकर फूले नहीं समाते, तो निंदा व अपमान में भी  हम संतुलित नहीं रह सकेंगें।

(21) दो बातें हैं - कर्म तथा कर्म का प्रभाव। कर्म भले ही साधारण हो परन्तु इसका प्रभाव सकारात्मक, उत्पादक व रचनात्मक होना चाहिए।

(22) यदि मन में दृढ निश्चय व विश्वास है तो विजय निश्चित है। अगर संकल्प कमजोर है तो पराजय होगी।

(23) अपने मार्ग में आने वाले किसी भी विघ्न  से घबरायें नहीं। हर विघ्न को उन्नति की ओर ले जाने वाली सीढ़ी समझें।

(24) आपकी नियंत्रण शक्ति इतनी सशक्त होनी चाहिए कि एक समय में आप के मन में सिर्फ वही संकल्प उत्पन्न हों जो आप चाहते हैं, न अधिक, न कम।

(25)  हम सभी को समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि हम सभी इनका सामना किस ढंग से करते हैं।

(26) जो मैं अब अनुभव कर रहा हूँ, वह अतीत का फल है, भविष्य में जो अनुभव करूँगा वह इस बात पर निर्भर करता है कि मैं अब क्या कर रहा हूँ।

(27)  कुछ लोग इसलिए परिपक्व नहीं बन पाते क्योंकि उन्हें भय होता है कि कहीं वे वृद्ध न हो जायें, और कुछ इसलिए क्योंकि वे जिम्मेदारी लेने से मना कर देते हैं।

(28) पहाड़ जैसी विपत्ति को दूर करने के लिए सिर्फ थोडा सा साहस ही पर्याप्त है।

(29) विपत्ति आने पर हिम्मत बनाये रखना ही सब से अच्छा उपाय है।

(30) जीवन में सबसे बड़ा प्रश्न है - मृत्यु। और मृत्यु का उत्तर है - जीवन।

(31) यदि आप को दूसरों की प्रतीक्षा करने की आदत है, तो आप अवश्य ही पीछे रह जायेंगें।

(32) ज्ञान सबसे बड़ा धन है। स्वयं से पूछें - " मैं कितना धनवान हूँ ? "

(33) अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से आप में अहंकार आ सकता है परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है।

(34) यदि आतंरिक स्थिति अशांति की होगी, तो सभी बाह्य चीजों में गड़बड़ी मालूम पड़ती है।

(35) यदि आप गलती करके स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास  करते हैं तो समय आपकी मूर्खता पर हँसा करेगा।

(36) अपने सहज स्वाभाविक स्वरूप में रहिये, यह कुछ और होने का स्वांग करने से कहीं अधिक अच्छा है।

(37)यदि आप के संकल्प शुद्ध हैं, तो जो आप सोचते हैं , वह कहना तथा जो आप कहते हैं, वह करना, सरल हो जाता है।

(38) यदि आप गपोड़ शंख लोगों के साथ सहमत हो जाते हैं, तो उनकी निंदा के अगले पात्र आप ही होंगे।

(39) आप समस्या स्वरुप नहीं , समाधान स्वरूप बनो और बनाओ।

(40)जो सदा संतुष्ट है , वही सदा हर्षित एवं आकर्षण मूर्त हैं।

(41) यह संसार हार जीत का खेल है, इसे नाटक समझ कर खेलो।
oooooooo

Friday 20 November 2015

(1.1.11) Geeta ki Shiksha गीता की शिक्षा Teachings of Geeta / Geeta saar

Geeta kee Shiksha गीता की शिक्षा Teachings of Geeta

1. संदेह नकारात्मक भाव उत्पन्न करता है। जो व्यक्ति संशय रखता है , वह सुखी नहीं हो सकता है।
2. आत्मा अमर है। आत्मा न मारती है , न ही मारी जाती है।  (आत्मा न मरती है , न किसी को मारती है )
जिस प्रकार व्यक्ति पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र पहनता है , उसी प्रकार शरीर धारण की हुई आत्मा शरीररूपी पुराने वस्त्र को त्याग देती है और नया शरीर धारण कर लेती है।
यदि कोई व्यक्ति यह मानता है कि आत्मा जन्म लेती है और फिर मर जाती है तब भी उसे शोक नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिसने जन्म लिया है , उसकी  मृत्यु निश्चित है। इसलिए हमें इस अपरिहार्य स्थिति पर शोक नहीं करना चाहिए।
(3) कार्य संसार को चलायमान रखता है , बिना कार्य किये नहीं रहा जा सकता है। हमारा निर्धारित कार्य करना हमारा कर्तव्य है , परन्तु साथ ही हमें इस किये गए कार्य के फल की आशा भी नहीं रखनी चाहिए क्योंकि किसी भी कार्य का फल हमारे अधीन नहीं है। साथ ही निर्धारित कर्म न करने की इच्छा रखना भी उचित नहीं है क्योंकि कर्म अपरिहार्य है।
(4) जिसका मन दुःख की स्थिति में भी क्षुब्ध नहीं होता है , जो प्रसन्नता की कामना नहीं करता है , जो आसक्ति , भय और क्रोध से मुक्त है , हर चीज़ से आसक्ति रहित है , जिसे अच्छाई और बुराई की स्थिति में न तो प्रसन्नता होती है और न ही अप्रसन्नता होती है , वह स्थिर बुद्धि वाला है।
(5) जो व्यक्ति कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है अर्थात जो कर्म और अकर्म के प्रति आसक्ति रहित है  वही बुद्धिमान है , और वह योगी सम्पूर्ण कर्मो को करने वाला  है।
(6) जो व्यक्ति जो कुछ भी प्राप्त हो , उससे संतुष्ट रहने वाला है , (और) जो इर्ष्या  रहित है , द्वंद्वो से मुक्त है , जो सफलता तथा असफलता में संतुलित है , कर्मों को करता हुआ भी उनसे बंधा हुआ नहीं है वही व्यक्ति सम्पूर्ण कर्म का वास्तव में कर्ता  है।
(7) जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की  आकांक्षा करता है , तथा न ही कार्य के फल की आशा करता है , वही हमेशा सन्यासी ( त्यागी ) समझने योग्य है , क्योंकि राग- द्वेष आदि द्वद्वों  से रहित हुआ पुरुष सुख पूर्वक संसार रूपी बंधन से मुक्त हो जाता है। 
(8) जो पुरुष न कभी हर्षित होता है , न द्वेष करता है , न शोक  करता है , न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों के फल के प्रति उदासीन है ( फल को त्यागता है ) वही भक्ति युक्त पुरुष ईश्वर को प्रिय है।
(9) जो पुरुष शत्रु व् मित्र के प्रति समान भाव रखता है , जो मान व अपमान को समान समझता है , जो सर्दी-गर्मी , प्रसन्नता-अप्रसन्नता में संतुलित रहता है , जो आसक्ति रहित है , वह व्यक्ति जो निंदा-स्तुति को समान समझता है , जो बोलने से पूर्व मननशील है , स्वतः प्राप्त वस्तुओं से संतुष्ट रहता है , जो रहने के स्थान और जीवन के प्रति आसक्ति नहीं रखता है , अपने निश्चय में द्रढ़ रहता है , भक्ति युक्त कार्यों में लगा रहता है  , ऐसा व्यक्ति ईश्वर  को अति प्रिय है।
(10) बुद्धिमान ( गुणातीत ) पुरुष वह है जो सभी स्थितियों में समान रहता है और समभाव रखता है। यदि उसके सामने विपदा भी आती है तो वह हतोत्साहित नहीं होता है और यदि वह सम्पन्नता को प्राप्त करले तो भी गर्वित नहीं होता है। वह प्रिय और अप्रिय के प्रति समभाव रखता है। वह किसी भी कार्य के कर्तापन की भावना से मुक्त रहता है , ऐसा व्यक्ति कामना रहित होता है अतः उसे कुछ भी बाधित नहीं कर सकता है।
(11) जहाँ जहाँ भी कृष्ण ( विशुद्ध बुद्धि के प्रतीक ) और अर्जुन  (विशुद्ध कर्म का प्रतीक ) हैं , वहीं पर ही सम्पन्नता , श्रेष्टता , विजय , शक्ति और नीति (धर्म) है।
(12) जब जब और जहाँ जहाँ धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है , तब तब ईश्वर  धरती पर धर्म की पुनः स्थापना  करने के लिए अवतार लेते हैं।
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(1.1.10) चाणक्य नीति Chankya Niti / Teachings of Chankya

 Chanakya Niti (selected Shloks)चाणक्य नीति (चुने हुए श्लोक )
अध्याय -1 श्लोक -12
बीमारी में ,विपत्तिकाल में , अकाल   के समय ,दुश्मनो से दुःख पाने या आक्रमण होने पर , राजदरबार में और श्मशान भूमि में जो साथ रहता है. ,वही सच्चा भाई अथवा बंधु है।

अध्याय -1 श्लोक -13
जो अपने निश्चित कर्मो  अथवा वस्तु का त्याग करके , अनिश्चित की चिंता करता है ,उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है , निश्चित भी नष्ट हो जाता है।
अध्याय-2-श्लोक-5:-
जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता है और पीठ पीछे आपके सारे कार्यों में रोड़ा अटकाता हो ,ऐसे मित्र को उस  घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और उपर मुँह के पास दूध भरा

अध्याय -2-श्लोक -9
हर एक पर्वत में मणि नहीं होती है और हर एक हाथी के मस्तक में मोती नहीं होते हैं।इसी प्रकार साधु लोग सभी जगह नहीं  मिलते हैं,और हर एक वन में चन्दन के वृक्ष नही होते हैं।
अध्याय -3 श्लोक -1
संसार मे ऐसा कौन सा कुल अथवा वंश है ,जिसमें कोई न  कोई दोष अथवा अवगुण न हो ,प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रोग का सामना करना ही पड़ता है ,ऐसा मनुष्य कौन सा है ,जिसने व्यसनों में पड़कर कष्ट न झेला हो और सदा सुखी रहने वाला व्यक्ति भी कठिनता से ही प्राप्त होता है ,क्योंकि प्रत्येक के जीवन में कभी न कभी कष्ट अथवा संकट उठाने का अवसर आ ही जाता है।
अध्याय - 3-श्लोक -4
दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक रहता है क्योंकि सांप समय आने पर ही काटता है जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय आपको हानि पहुँचाता है।
अध्याय -3-श्लोक-7
मूर्ख व्यकि से बचना चाहिए क्योंकि वह दो पैरों वाले जानवर से भिन्न नहीं है। वह (मूर्ख व्यक्ति )आपको शब्दों से उसी प्रकार पीड़ित करता है जैसे कोई बिना दिखने वाला कांटा चुभता है।
अध्याय -3-श्लोक-12
अत्यन्त रूपवती होने के कारण ही सीता का अपहरण हुआ ,अधिक अभिमान होने के कारण रावण मारा गया
अत्यधिक दान देने के कारण राजा बलि को कष्ट उठाना पड़ा।इसलिए चाणक्य कहते हैं की अति किसी भी कार्य में नहीं करनी चाहिए।
अध्याय -3-श्लोक-13
समर्थ को भार कैसा?व्यवसायी के लिए कोई स्थान दूर नहीं  है।विद्वान् व्यक्ति के लिए कोई भी देश विदेश नहीं है। जो व्यक्ति मधुर शब्द बोलता है उसके लिए कोई दुश्मन नहीं है।
अध्याय -3श्लोक -14
एक ही सुगन्धित फूल वाले वृक्ष से जिस प्रकार सारा वन सुगन्धित हो जाता है,उसी प्रकार एक सुपुत्र से सारा कुल सुशोभित हो जाता है।
अध्याय -3श्लोक -21
जहाँ मूर्खों का सम्मान नहीं होता है ,जहाँ अन्न भंडार सुरक्षित रहता है ,जहाँ पति -पत्नी में कभी झगड़ा नहीं होता ,वहां लक्ष्मी बिना बुलाये ही निवास करती है।
अध्याय -4-श्लोक -10
इस संसार में दुखी लोगों को तीन बातों से ही शांति प्राप्त हो सकती है -अच्छी सन्तान ,अच्छी पत्नी और भले लोगों की संगति।
अध्याय -4-श्लोक -18
बुद्धिमान व्यक्ति को बार -बार यह सोचना चाहिए कि उसके मित्र कितने हैं,उसका समय कैसा है -अच्छा है या बुरा है, और यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाया जाये।उसका निवास स्थान कैसा है,उसकी आय कितनी है ,वह कौन है ,उसकी शक्ति कितनी है अर्थात वह क्या करने में समर्थ है? व्यक्ति को ऐसा मनन करना चाहिए।
अध्याय -5-श्लोक-15
विदेश में विद्या ही मनुष्य की सच्ची मित्र होती है,घर में उसकी पत्नी उसकी मित्र होती है,दवाई रोगी व्यक्ति की मित्र होती है और मृत्यु के समय उसके सत्कर्म ही उसके मित्र होते हैं।
अध्याय -5श्लोक -17
बादल के जल के समान दूसरा कोई जल शुद्ध नहीं होता है,आत्मबल के समान दूसरा कोई बल नही है,नेत्र ज्योति के समान दूसरी कोई ज्योति नहीं है और अन्न के समान दूसरा कोई भी प्रिय पदार्थ नहीं है।
अध्याय -5-श्लोक -20
इस संसार में लक्ष्मी (धन )अस्थिर है अर्थात चलाय मान है,प्राण भी नाश वान है ,जीवन और यौवन भी नष्ट होने वाले हैं,इस चराचर संसार में धर्म ही स्थिर है।
अध्याय -6-श्लोक -16
काम छोटा हो या बड़ा हो ,उसे एक बार हाथ में लेने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए।उसे पूरी लगन और सामर्थ्य के साथ पूरा करना चाहिए।जैसे सिंह पकड़े हुए शिकार को कदापि नहीं छोड़ता है।सिंह का यह गुण मनुष्य को सीखना चाहिए।
.अध्याय -6श्लोक -18
अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना,ठंडे -गर्म का विचार न करना,सदा संतोष पूर्वक विचरण करना ,ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए।
अध्याय -7-श्लोक -2
जो व्यक्ति धन धान्य के लेन देन  में, विद्या के सीखने में,भोजन के समय और अन्य व्यवहारों में संकोच नहीं करता है,वही व्यक्ति सुखी रहता है।
अघ्याय -7-श्लोक -4
अपनी पत्नी,भोजन और धन -इन तीनों के प्रति मनुष्य को संतोष रखना चाहिए ,परन्तु विद्या के अध्ययन ,तप और दान के प्रति कभी संतोष नहीं करना चाहिए।
अध्याय -8श्लोक -19
संसार में विद्वान् की ही प्रशंसा होती है ,विद्वान व्यक्ति ही सब जगह पूजे जाते हैं।विद्या से ही सब कुछ मिलता हैं ,विद्या की सब जगह पूजा होती है।
अध्याय -10-श्लोक -1
निर्धन व्यक्ति दीन हीन नहीं होता है यदि वह विद्वान् हो तो लेकिन व्यक्ति विद्या रूपी धन से हीन है तो वह निश्चित ही निर्धन समझा जाता है।अर्थात विद्या ही सच्चा  धन है।
अध्याय-10-श्लोक-2
भली प्रकार आँख से देखकर अगला कदम  रखना चाहिए,कपड़े से छानकर पानी पीना चाहिए ,शास्त्र के अनुसार कोई बात कहनी चाहिए और कोई भी कार्य मन में अच्छी प्रकार सोच कर करना चाहिए।
अध्याय -10-श्लोक -5
भाग्य की शक्ति बहुत प्रबल होती है।वह पल भर में ही निर्धन को राजा और राजा को निर्धन बना देती है।धनवान व्यक्ति निर्धन बन जाता है और  निर्धन के पास अनायास ही धन आ जाता है।
अध्याय -12-श्लोक-1
वही गृहस्थी सुखी  हो सकता है जिसके पुत्र और पुत्रियां प्रतिभावान हो ,जिसकी पत्नी मधुर वचन बोलने वाली हो,जिसके पास इच्छा पूर्ति के लायक धन हो, जिसके मन में अपनी पत्नी के प्रति प्रेम भाव हो ,जिसके सेवक आज्ञाकारी हो ,जिसके घर में अतिथि का सत्कार होता हो ,जहां प्रतिदिन इश्वर की पूजा होती हो ,जिस घर में स्वादिष्ट भोजन और ठंडा जल उपलब्ध रहता हो और जिस गृहस्थी को सदा भले लोगों की संगति मिलती हो।
इस प्रकार के घर का मालिक सुखी और सौभाग्यशाली होता  है।
अध्याय -12-श्लोक -3
वही व्यक्ति इस संसार में सुखी है जो अपने सम्बन्धियों के प्रति उदार है ,अपरिचितों के प्रति दयालु है ,दुष्टों के प्रति उपेक्षा का भाव रखता है,भले लोगों के प्रति स्नेह पूर्ण व्यवहार रखता है,अकुलीन व्यक्ति के प्रति चतुराई का व्यवहार करता है,विद्वानों के प्रति सरलता से पेश आता है, दुश्मनों के साथ साहस का व्यवहार करता है ,बुजर्गो के प्रति विनम्रता का व्यवहार करता है, और जो महिला वर्ग के प्रति चतुराई का व्यवहार करता है। ऐसे लोगों से ही इस संसार की मर्यादा बनी हुई है।
अध्याय -13-श्लोक -6
भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति पर जो व्यक्ति तत्काल विचार करके उसका समाधान खोज लेते हैं,वे सदा सुखी रहते हैं।इस के अलावा जो व्यक्ति यह सोचते हैं  कि  जो भाग्य में लिखा है,वही होगा,ऐसा सोचकर कोई उपाय नहीं करते हैं,ऐसे व्यक्ति विनाश को प्राप्त होते हैं।
अध्याय -13-श्लोक -15
अव्यवस्थित कार्य करने वाले को न तो समाज में और न ही जंगल में सुख प्राप्त होता है,क्योंकि समाज में लोग उसे भला बुरा कहकर दुखी करते है और जंगल में अकेला होने के कार वह  दुखी होता है।
अध्याय -16-श्लोक -5
आज तक न तो सोने के मृग की रचना हुई और न ही किसी ने सोने का मृग देखा और सुना ।फिर भी श्री राम ने सोने के मृग को पाने की इच्छा की और मृग को पाने के लिए दौड़ पड़े।यह बात ठीक ही है कि जब मनुष्य के बुरे दिन आते हैं,तो उसकी बुद्धि विपरीत बातें सोचने लगती है।
अध्याय -16-श्लोक -6
मनुष्य अपने अच्छे गुणों के कारण श्रेष्ठता प्राप्त करता है।उसके उचें आसन पर बैठ जाने के कारण श्रेष्ठ नहीं  माना जाता है।राज भवन की सबसे ऊँची चोटी पर बैठ ने पर भी कौआ,गरुड़ कभी नही बन सकता।
अध्याय -16-श्लोक -8
जिस मनुष्य के गुणों की प्रशंसा दूसरे लोग करते हैं,तो वह मनुष्य गुणों से रहित होने पर भी गुणी मान लिया जाता है,परन्तु अपने मुख से अपनी बड़ाई करने पर इंद्र भी छोटा हो जाता है

(1.1.9) Good Company / Achchhi Sangati अच्छी संगति

Achchhi Sangati अच्छी संगति Good company 

> सज्जनों की संगति स्वर्ग में निवास करने के बराबर है।
चाणक्य
> जिसने शीतल तथा शुभ्र सज्जन संगति रुपी गंगा में स्नान कर लिया, उसको दान, तीर्थ, तप तथा यज्ञ आदि से क्या प्रयोजन?
वाल्मीकि
> हीन लोगों की संगति से अपनी बुद्धि भी हीन हो जाती है, सामान्य लोगों के साथ सामान्य बनी रहती है, और विशिष्ट लोगों की संगति विशिष्ट हो जाती है।
महाभारत
> परमेश्वर विद्वानों की संगति से ही प्राप्त हो सकता है।
ऋग्वेद
> बुरे आचरण वाला, पाप दृष्टि वाला, निकृष्ट स्थान पर रहने वाला और दुष्टों से मित्रता करने वाला मनुष्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
चाणक्य
> सज्जनों की संगति कभी विफल नहीं होती है।
महाभारत
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Saturday 17 October 2015

(1.1.8) Maniratna Mala मणिरत्न माला

मणिरत्न माला प्रश्नोत्तरी - आदि शंकराचार्यकृत

आदि शंकराचार्य जी महाराज ने भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक प्रकार के कार्य किये हैं। आध्यात्मिक साहित्य की रचना उनका महत्वपूर्ण कार्य है।  उनकी एक पुस्तक है 'मणिरत्नमाला' जो प्रश्नोत्तर रूप में है इसलिए इसे प्रश्नोत्तरी भी कहा जाता है। उदाहरणार्थ कुछ प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं -
प्रश्न - दरिद्र कौन है?
उत्तर - जिसकी तृष्णा बढी हुई है।
प्रश्न - श्रीमान (धनी) कौन है?
उत्तर -जो पूर्ण संतोषी है।
प्रश्न - जीवित ही कौन मरा हुआ है?
उत्तर - उद्यमहीन।
प्रश्न - उत्तम भूषण क्या है?
उत्तर - सच्चरिता।
प्रश्न - परम तीर्थ क्या है?
उत्तर - अपना विशुद्ध मन।
प्रश्न - प्राणियों का ज्वर क्या है?
उत्तर - चिंता?
प्रश्न - मूर्ख कौन है?
उत्तर - विवेकहीन।
प्रश्न - जगत को किसने जीता है?
उत्तर - जिसने मन को जीत लिया है।
प्रश्न - हीनता का मूल क्या है?
उत्तर - याचना।
प्रश्न - दुःख का कारण क्या है?
उत्तर - ममता।
प्रश्न - शत्रु कौन है?
उत्तर - उद्योग का अभाव।
प्रश्न - अँधा कौन है?
उत्तर - जो अकर्तव्य में लिप्त है।
प्रश्न - बहरा कौन है?
उत्तर -जो हित की बात नहीं सुनता।
प्रश्न - गूंगा कौन है?
उत्तर - जो प्रिय वचन बोलना नहीं जनता।
प्रश्न - अधम कौन है?
उत्तर -चरित्रहीन।
प्रश्न - जगत को जीतने में समर्थ कौन है?
उत्तर - सत्यनिष्ठ और सहनशील।
प्रश्न - शोचनीय क्या है?
उत्तर - धन होने पर भी कृपणता।
प्रश्न - यथार्थ दान क्या है?
उत्तर - कामनारहित दान।
प्रश्न - आभूषण क्या है?
उत्तर - शील।
प्रश्न - वाणी का भूषण क्या है?
उत्तर - सत्य।
प्रश्न - अविद्या क्या है?
उत्तर - आत्मा की स्पूर्ति का न होना।
प्रश्न - सुख दायक कौन है?
उत्तर - सज्जनों की मित्रता।
प्रश्न - प्रशंसनीय क्या है?
उत्तर - उदारता। 

Wednesday 14 October 2015

(3.1.21) Navratra / Navratri (in Hindi) Importance of Navratra (in Hindi)

नवरात्र / नवरात्रा / नवरात्रि  ( उत्सव )
नवरात्रा कब आते हैं? पूजा विधि क्या है / घट स्थापना कैसे करें / नवरात्र के दौरान किस मन्त्र या स्तोत्र का जप करे? हवन / नवरात्र उत्थापन कब करें 

. नवरात्र में प्रयुक्त  'नव' शब्द 'नौ' का और ' रात्र ' शब्द 'रात्रि' का प्रतीक है। नवरात्र का अर्थ नव अहो रात्र के रूप में भी उल्लिखित है। इस प्रकार जो पर्व नौ दिन और नौ रात तक चले वही नवरात्र है।इसे शक्ति संचय और उपासना -आराधना का पर्व भी माना जाता है। ये नौ दिन देवी पार्वती , लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं। जिन्हें नव दुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती  के तीन स्वरूपों की, अगले तीन दिन लक्ष्मी के तीन स्वरूपों के और आखिर के तीन दिन सरस्वती के तीन स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों के नाम हैं :-1 शैल पुत्री 2. ब्रह्म चारिणी 3. चंद्रघंटा 4. कूष्मांडा 5. स्कंदमाता 6. कात्यायनी 7. काल रात्रि 8. महा गौरी 9. सिद्धि दात्री।
वर्ष में चार बार नवरात्र पर्व मनाये जाते हैं 
चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों को प्रकट नवरात्र कहा जाता है और माघ तथा आषाढ़  माह के नवरात्रों को गुप्त नवरात्रा कहा जाता है।
पूजा विधि एवं घट स्थापना या कलश स्थापना :-
नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घट स्थापना या कलश स्थापना का विधान है। घट स्थापना के लिए मिट्टी  या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें। कलश के मुंह पर नारियल को लाल वस्त्र में लपेटकर अशोक के पत्तों सहित रखें। कलश के नीचे बालू मिट्टी की वेदी बनायें व इसमें जौ के दाने व पानी डाल दें। इस वेदी पर कलश रखदें । कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनायें । वेदी की रेत में जौ बोने  के बजाय अलग से किसी पात्र में भी मिट्टी डाल कर जौ बोये जाते हैं, जिन्हें जुवारे कहते हैं। घट स्थापना या कलश स्थापना मूल रूप से देवी दुर्गा का आव्हान है।
मूर्ति या तस्वीर स्थापना -
घट या कलश के पास एक पाटे पर लाल वस्त्र बिछा कर माँ भगवती की तस्वीर भगवान राम , हनुमान जी या अपने ईष्ट देव की तस्वीर रखें।
आसन - देवी उपासक लाल या सफेद रंग के ऊनी आसन का प्रयोग करें। पूर्व की तरफ मुँह करके पूजा , मंत्र , हवन एवं अनुष्ठान समाप्त  करें।
नवरात्र के दौरान पाठ- जप आदि :-
साधक अपनी इच्छानुसार दुर्गासप्तशती का पाठ या दुर्गा के किसी मन्त्र का जप करे।
(या ) सुन्दर काण्ड का पाठ
 (या ) राम रक्षा स्त्रोत का पाठ
(या ) रामचरित मानस पाठ
 पाठ या मन्त्र जाप  का  फल - नवरात्रि  का समय वर्ष के श्रेष्ट समय में से एक है अत: इस अवधि में किये गए जप - तप , व्रत, उपवास का फल तुलनात्मक रूप से ज्यादा मिलता है।जप - तप  या पाठ निष्काम भाव से किया जाये या सकाम  भाव से, सभी का सुफल मिलता है, सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। यदि  किसी विशेष उद्देश्य के लिए जप या पाठ किया जाता है तो उस उद्देश्य की अवश्य पूर्ति होती है।
कुमारी पूजन - अपनी कुल परम्परा के अनुसार अष्टमी या नवमी के दिन दो वर्ष से नौ वर्ष तक की उम्र की नौ कन्याओं को अपने घर बुलाकर उनकी पूजा करें, उन्हें भोजन करायें व यथा शक्ति दक्षिणा दें।
हवन -
नवरात्रि  के दौरान जितने मन्त्रों का जप किया जाता है उसके दसवें भाग का हवन दसमी के दिन या नवमी के दिन किया जाता है।(यदि हवन नहीं किया जा सके तो कुल जपे हुये मन्त्रों की संख्या के दसवें भाग का जप और करें।)
नवरात्र उत्थापन -
नवरात्र के नवें या दसवें दिन बोये हुए जवारे उग कर बड़े हो जाते हैं , उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। घट के जल का आचमन कर उसे अपने शरीर पर स्पर्श कराया जाता है तथा कुछ जल को अपने घर में भी छिड़का जाता है। फिर विधि विधान पूर्वक पूजा करके समस्त पूजा सामग्री को जलाशय में विसर्जित किया जाता है।     

(1.3.4) Ganesh Smaran / Pratah Smaran Ganesh Shlok

प्रातः स्मरण गणेश श्लोक

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं 
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्। 
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्ड दण्ड-
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्ध्यम्। 
अर्थ - अनाथों के बंधु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों में नमस्कृत श्री गणेश का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ।
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Monday 12 October 2015

(1.1.7) Tulsi Das ke Dohe (Dohe of Tulsidas) in Hindi

Tulsi Das ke Dohe (तुलसीदास के दोहे ) हिंदी में

(For English translation CLICK HERE )
गोस्वामी तुलसीदास भारत के ऐसे संत महापुरुष हैं , जिनके आविर्भाव से भगवद्भक्ति की धारा प्रवाहित हुई है। उन्हें महान कवि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस नैतिक शिक्षा का आदर्श ग्रन्थ है।
> रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। 
अजहुँ देत दुःख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु। 
(रामचरितमानस 1/170)
अर्थ - तेजस्वी शत्रु अकेला भी हो, तो भी उसे छोटा नहीं समझना चाहिये। जिस राहु का मात्र सर बचा था, वह राहु आज तक सूर्य और चन्द्रमा को दुःख देता है।
> सचिव, बैद, गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। 
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगहीं नास। 
(रामचरितमानस 5 /37)
अर्थ - मन्त्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि किसी भय या आशा से (हित की बात नहीं कह कर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य,शरीर और धर्म - इन तीनों का शीघ्र ही नाश हो जाता है।
> प्रीति, बिरोध समान सन करिअ नीति असि आहि। 
जौं मृगपति बध मेडु कन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि। 
(रामचरितमानस 6 /23 ग)
अर्थ - प्रीति और वैर बराबर वालों से ही करना चाहिये, नीति ऐसी ही है। सिंह यदि मेंढकों को मारे तो क्या उसे कोई भला कहेगा?
> रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। 
(रामचरितमानस 3 /21)
अर्थ - शत्रु, आग, रोग, पाप, स्वामी और सर्प को कभी छोटा नहीं समझना चाहिये।  समय पाकर ये सभी विनाश का कारण बन सकते हैं।
> मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ। 
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ।
(रामचरितमानस 2 /70)
अर्थ - जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ा कर उनका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है; नहीं तो जगत में जन्म लेना व्यर्थ ही है।
> गगन चढइ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।
साधु असाधु सदन सुक सारीं।  सुमरहिं राम देहिं गनि गारीं।
(रामचरितमानस १/७/९-१० )
अर्थ - पवन के संग से धूल आकाश की ओर ऊँची चढ़ जाती है और वही धूल नीचे की ओर बहने वाले जल के संग से कीचड में मिल जाती है। संगति के प्रभाव से ही व्यक्ति उच्चता या निम्नता की स्थिति को प्राप्त होता है। इसी प्रकार साधु के घर पलने वाले तोता-मैना राम-राम का सुमिरन करते हैं और असाधु के घर पलने वाले तोता-मैना गिन -गिन कर गालियाँ देते हैं। यह सब अच्छी और बुरी संगति का परिणाम है।
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(3.1.20) Sapt Shloki Durga Jap Process and Importance in Hindi

सप्त श्लोकी दुर्गा, जप प्रक्रिया तथा महत्व - Shapt Shloki Durga with Hindi Translation


सप्त श्लोकी दुर्गा में सात श्लोक हैं ,  जिनमें  दिव्य शक्तियों से युक्त देवी दुर्गा की प्रार्थना है।  जब कोई व्यक्ति विश्वास , निष्ठा और एकाग्रता के साथ इन श्लोकों  का पाठ करता है तो उस उपासक को देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसे अपने शुभ उद्देश्य में सफलता मिलती है।देवी कृपा से उसे धन सम्पदा मिलती है। उसका पारिवारिक जीवन सुख शांति मय रहता है। उसे बिमारियों और दुविधाओं से छुटकारा मिलता है तथा जीवन प्रसन्नता  पूर्वक व्यतीत होता है।
श्लोक पठन प्रक्रिया :-प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त हो कर किसी शांत स्थान पर ऊनी आसन पर बैठ जायें।देवी दुर्गा का चित्र अपने सामने रखें। आँखें  बंद करके देवी का ध्यान करें व भावना करें कि वह  दिव्य शक्तियों  से युक्त है और अपने भक्तों की सद इच्छा की पूर्ति करती है और उनके कष्टों को दूर करती है। मैं ऐसी शक्ति संपन्न  देवी दुर्गा से प्रार्थना करता हूँकि  वे मुझे प्रसन्नता , बुद्धि ,शांति , स्वास्थ्य  व सम्पन्नता प्रदान करें। इस ध्यान व प्रार्थना के बाद निम्नांकित श्लोकों का तीन माह तक ग्यारह या सात या पाँच बार निष्ठा पूर्वक पाठ करें। ( चारों नवरात्रियों में भी इन का पाठ किया जा सकता है।)

1. ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
2. दुर्गे स्मृता हरसि भीति मशेषजन्तो: ,
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य दुःख भय हारिणि का त्वदन्या ,
सर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता।।
3.सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि  नारायणि नमोSस्तु ते।।
4. शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते।।
5.सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य स्त्राहि नो  देवि दुर्गे देवि नमोSस्तु ते।।
6.रोगानशेषानपहंसि तुष्टा ,
रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान।
त्वामा श्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
7.सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्य स्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्य मस्म द्वैरिविनाशनं।।
II इति श्री सप्त श्लोकी दुर्गा II 
पाठ के बाद शांत बैठकर भावना करें की देवी दुर्गा ने आप की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है और वे आप को आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। आप देवी कृपा से जीवन में नये उत्साह से भरते जा रहे है और सफल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके बाद पूजा के स्थान को छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ।  

Sunday 11 October 2015

(1.3.3) Shloks (Verses) to be recited in the Morning (in Hindi)

Benefits of the recitation of Shloks in the Morning (Pratah Kaleen Smaraniya Shloks) प्रातः कालीन स्मरणीय श्लोक तथा उनके लाभ 

निम्नांकित श्लोकों का प्रातः काल पाठ करने के लाभ निम्नानुसार हैं -
> दिन अच्छा बीतता है।
> दुःस्वप्न, कलिदोष, शत्रु, पाप, और भव के भय का नाश होता है।
> विष का भय नहीं होता।
> धर्म की वृद्धि होती है और ज्ञान प्राप्त होता है।
> व्यक्ति निरोगी रहता है।
> पूरी आयु मिलती है।
> कार्यों में सफलता मिलती है।
> सम्पन्नता आती है।
> सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है।
> सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण निर्मित होताहै।
निम्नांकित श्लोकों का स्मरण करना चाहिए -
> गणेश स्मरण श्लोक
> विष्णु स्मरण श्लोक
> शिव स्मरण श्लोक
> देवी स्मरण श्लोक
> सूर्य स्मरण श्लोक
> त्रिदेवों केसाथ नव ग्रह स्मरण श्लोक
> ऋषि स्मरण श्लोक
> प्रकृति स्मरण श्लोक
(source - नित्य कर्म पूजा प्रकाश - गीता प्रेस गोरखपुर )

Friday 9 October 2015

(1.3.2) Bhoomi Vandana

 Bhoomi Vandana (भूमि वन्दना )

करावलोकन के बाद निम्नानुसार भूमि वंदना करें :- 
 भूमि वंदना - करावलोकन के बाद शय्या से उठकर पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें और उन पर पैर रखने की विवशता के लिए उनसे क्षमा मांगते हुए निम्नांकित श्लोक का पाठ करें -

समुद्र वसने देवि पर्वतस्तन मण्डिते।
विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

हिन्दी अर्थ :- समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली , पर्वत रूप स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी देवी पृथ्वी , आप मेरे पाद स्पर्श को क्षमा करें।
( पृथ्वी वन्दनाके बाद  निम्नांकित मंगल वस्तुओं में से सबके या कम से कम एक -दो  के दर्शन करें।) 

मंगल दर्शन - फिर गोरोचन , चन्दन , सुवर्ण ,शंख ,मृदंग ,दर्पण ,मणि आदि मांगलिक वस्तुओं का दर्शन करें तथा गुरु , अग्नि और सूर्य को नमस्कार करें।

(1.3.1) Karaavlokan Mantra (to keep away negative effects)

 करावलोकन मंत्र - सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हेतु (Karavalokan - to create positive energy)

 प्रात: काल की शुरुआत आध्यात्मिक और सकारात्मक भावनाओं से होनी चाहिये। इसलिए जागने के उपरांत आप अपने हाथों की हथेलियों की तरफ देखें और निम्नांकित श्लोक का पाठ करें -
कराग्रे वसते लक्ष्मी:  कर मध्य सरस्वती।करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम।।

अर्थ - हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी , हाथ के मध्य में सरस्वती और हाथ के मूल भाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं। अत: प्रात: काल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहिये।
इस श्लोक के पाठ के बाद , दोनों हथेलियों को एक साथ रगड़िये और फिर इन्हें धीरे - धीरे आप के सिर , कन्धों , भुजाओं और टांगों पर फिराइये। इससे एक उर्जा रुपी ढाल निर्मित होती है जो पूरे दिन व्यक्ति को नकारात्मक प्रभावों से बचाये रखती है।

(2.1.10) Hazlitt's Letter to his Son / On the conduct of Life (in Hindi)

जीवन में आचरण (हेजलिट का पत्र उसके पुत्र के नाम ) William Hazlitt's Letter (in Hindi)

'जीवन में आचरण 'एक पत्र है जिसे  हेजलिट  ने अपने पुत्र को वर्षों पूर्व लिखा था। इस पत्र में बुद्धिमतापूर्ण सलाह है। हेज़लिट चाहता था कि उसका पुत्र विद्यालय के जीवन को अपने भावी जीवन की तैयारी माने। वह चाहता था कि उसका पुत्र खुला मस्तिष्क रखे,दूसरों के साथ आसानी से घुल मिल सके और सम्मानजनक तरीके से दूसरों के साथ अपने मत भेद सुलझा ले।'
 पत्र का सारांश निम्नानुसार  है :-
1." हमेशा ही अच्छे की आशा करो।"
2. "यदि बातें  तुम्हारी अपेक्षाओं के विपरीत हो तो तुम्हे उनको बदलने का प्रयास करना चाहिए। यदि तुम उन्हें बदल नहीं सको तो उन्हें धैर्यपूर्वक सहन करो।"
3. "चीजें हमेशा ही वैसी नहीं होती है जैसा तुम उन्हें देखना चाहते हो। "
4. "यदि तुम बुरा घटित होने की आशा करोगे तो तुम अपने द्वेष या अड़ियल रुख से उन बातों  को पहले से भी ज्यादा ख़राब बना दोगे। इसलिये तुम्हें  कभी भी बुराई की प्रत्याशा नहीं करनी चाहिए। "
5."किसी के बारे में पूर्वाग्रह का सृजन करना गलत बात है , और वह भी केवल इसलिये कि तुम उनके बारे में कुछ नहीं जानते हो। यदि तुम ऐसा  करते हो और दूसरों के बारे में बुरा सोचते हो तो, शीघ्र ही वे  तुम्हारे  दुश्मन बन जायेंगे  ।"
6. "तुम्हें दूसरों  को बुरा नहीं समझना चाहिए जब तक वे तुम्हारे प्रति खराब व्यवहार नहीं करें। फिर तुम्हें उस बुराई से बचने का प्रयास  करना चाहिये जो तुम्हें  उनमें  दिखाई दे।"
7. हेज़लिट अपने पुत्र से कहते हैं ," तुम्हें किसी से भी बिलकुल भी घृणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की  घृणा का अर्थ होता है, किसी दूसरे की हानि में अपनी जीत समझना और प्रसन्न होना।"
8." तुम्हें   यह भी जानना चाहिए कि इस संसार में तुम्हारे  अतिरिक्त अन्य लोग भी हैं और उनकी भी कामना, पसंद या नापसंद होती है। इसलिए तुम्हें  उनकी इच्छाओं को स्वीकार करना तथा उनकी पसंद नापसंद को सहन करना सीखना चाहिए।"
9. "तुम्हें दूसरे लोगों की वेशभूषा की आलोचना नहीं करनी चाहिए और न ही इस के कारण उनसे घृणा करनी चाहिए। तुम्हारे पास अच्छे कपड़े हैं परन्तु इसके कारण तुम्हें अपने आप को ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं समझाना चाहिए।"
 10. "तुम्हें लोगों  की आलोचना या उनसे किसी ऐसी बात के लिए घृणा नहीं करनी चाहिए जिसके लिए वे विवश हैं,और कम से कम उनकी निर्धनता के लिए तो बिलकुल नहीं।"
11 . "तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि तुम सब लोगों में से एक हो और तुम्हें समाज में अपने स्थान को कभी नहीं भूलना चाहिए। सच्ची समानता ही सच्ची नैतिकता व सच्ची बुद्धिमता है।"
12 ."जितना जल्दी तथा जितना कम कष्ट हो सके, तुम्हें  अपनी परिस्थितियों से समझौता कर लेना चाहिए। "
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Thursday 8 October 2015

(2.1.9) Abraham Lincoln's Letter (in Hindi)

अब्राहम लिंकन का पत्र उसके बेटे के अध्यापक के नाम 

(अब्राहम लिंकन , संयुक्त राज्य अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति, ने यह पत्र उनके पुत्र के  अध्यापक को लिखा था। यद्यपि यह एक पत्र मात्र है परन्तु यह नैतिक मूल्यों का एक दस्तावेज बन गया है।)

आदरणीय श्रीमान,
आज मेरे बेटे का विद्यालय का पहला दिन है। उसके लिए हर चीज नई और अनजान है।मैं  चाहता हूँ  कि  आप उसे वो बातें  सिखायें जो उसके जीवन के लिए उपयोगी हो। 
- आप उसे सिखाएं की सभी लोग न्याय प्रिय,सरल या सच्चे  नहीं होते हैं, साथ ही आप उसे यह भी सिखाएं कि प्रत्येक बुरे से बुरे व्यक्ति में एक अच्छाई का गुण होता है, स्वार्थी नेताओं में कोई समर्पित नेता भी होता है, दुश्मनों के बीच कोई मित्र भी होता है अर्थात  दुश्मन में दोस्त बनने की संभावना भी होती है। 
- मैं जानता हूँ कि  इन बातों को सीखने में उसे समय लगेगा, परन्तु आप उसे सिखाएं कि  मेहनत से कमाया हुआ एक डॉलर, सड़क पर पड़े मिलने वाले पाँच डॉलर से कहीं ज्यादा मूल्यवान होता है।
- आप उसे सिखायें  कि उसे  हार को  शालीनता के साथ स्वीकार करनी चाहिये और जीत का शालीनता के साथ आनन्द लेना चाहिए। 
- आप उसे बतायें कि वह दूसरों के प्रति इर्ष्या की भावना न रखे। 
- आप उसे किताबी  ज्ञान सिखाएं , पर साथ ही उसे आसमान में उड़ते हुए पक्षियों , धूप में उडती हुई मधु मक्खियों , हरी भरी पहाड़ियों के बीच लगे सुन्दर फूलों को निहारना भी सिखाएं। 
- विद्यालय में आप उसे यह सिखाएं कि नकल करके परीक्षा उत्तीर्ण करने के बजाय अनुत्तीर्ण होना ज्यादा अच्छा है। 
-आप उसे यह भी सिखायें कि  उसे अपने सही विचारों  पर विश्वास रखना चाहिये, चाहे दूसरे व्यक्ति उन विचारों को गलत कहें।
- शिष्ट लोगों के साथ शिष्टता का व्यवहार  करने  और ख़राब (अशिष्ट ) लोगों के साथ कठोरता का व्यवहार करने की बात भी आप उसे बताएं। 
- आप उसमें  इस प्रकार के विचार भर दें कि वह भीड़ का अनुकरण न  करे, जबकि  दूसरे व्यक्ति भले ही ऐसा कर रहे हों। 
- उसे बताएं कि  वह प्रत्येक व्यक्ति की बातों को  सुने और फिर उन  बातों  को सत्य की कसौटी पर कस कर, उनमें से जो अच्छी बात हो, उसे अपना ले। 
- आप उसे बतायें कि  किस प्रकार दुःख को ख़ुशी में  बदला जाये।किसी गलत बात पर रोने या पश्चाताप करने में कोई शर्म की बात नहीं है। उसे बतायें कि  असफलता के साथ गौरव जुड़ा  हो सकता है तथा सफलता के साथ हताशा जुड़ी हो सकती है। 
-आप उसे बताएं कि  वह अपनी प्रतिभा को उच्चतम कीमत देने वाले को बेचे लेकिन अपने दिल और आत्मा को कभी नहीं बेचे। 
- आप उसे सिखाएं कि भीड़ द्वारा किये गये हा-हुल्ले को वह नहीं सुने और यदि वह सोचता है कि  उसकी बात सही है, तो वह उस बात पर अडिग रहे।  
- आप उस के साथ अच्छा व्यवहार करें परन्तु उससे अधिक लाड़ - प्यार मत करिये क्योंकि अग्नि की परीक्षा ही लोहे को अच्छा बनाती  है।
-उसमें अधीर होने का साहस हो  साथ ही बहादुर होने का धैर्य भी उसमें होवे।
-आप उसे सिखाएं कि  वह स्वयं पर भरोसा रखे तभी वह ईश्वर व मानव जाति के प्रति विश्वास रख सकेगा।
-आप उसे बतायें कि सफलता पाने के लिए सारा आसमान उसका है।
आपका,
अब्राहम लिंकन

(2.3.6) Gyani Vyakti (Wisest Person)

सबसे ज्ञानी व्यक्ति 

यूनान के डेल्फी में एक देवी  भविष्यवाणियां करने के लिए विख्यात थी।एक दिन किसी ने उसे पूछा,"इस समय यूनान में सबसे ज्ञानी व्यक्ति कौन है ?"
देवी ने कहा ,"सुकरात।"
यह सुनकर कुछ लोग सुकरात के पास गए और बोले,"देवी ने घोषणा की है कि तुम इस समय यूनान में सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति हो।"
सुकरात के कहा ,"यह गलत है।मैं विद्वान या ज्ञानी  नहीं हूँ, मै तो अज्ञानी हूँ, वैसे  ज्ञान प्राप्त की मेरी इच्छा अवश्य है।"
यह सुनकर लोग फिर देवी के पास गए और बोले,"आप ने तो सुकरात को यूनान का सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति बताया था।लेकिन वह तो इन्कार करता है और कहता है कि वह तो अज्ञानी है।"
देवी ने कहा,"बस,इसी लिए तो वह सबसे बड़ा बुद्धिमानी और ज्ञानी है, क्योंकि  विद्वान और ज्ञानी  होते हुए भी उसे अपने ज्ञान का अहंकार नहीं है।"
शिक्षा :- विद्वान और ज्ञानी  व्यक्ति को कभी भी अपने ज्ञान का अहंकार नहीं होता है।

(2.3.5) Einstein Ki Sadagi (in Hindi )

आइन्स्टाइन की सादगी 

नोबेल पुरस्कार विजेता महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन बहुत सादा जीवन बिताते थे। उनको दैनिक जीवन में दिखावा पसंद नहीं था। उनके पचासवें जन्म दिन के अवसर पर, उनके प्रशंसकों ने उनकों शुभ कामनायें भेजी।कुछ प्रशंसक व्यक्ति गत रूप से उन्हें बधाई देना चाहते थे। इस लिए वे उनके साथ गुलदस्ते लाए और उनके घर गये।उस समय आइन्स्टाइन अपनी प्रयोग शाला में कार्य कर रहे थे।उनकी पत्नी  उनके (प्रशंसको के) आने की सूचना देने के लिए प्रयोग शाला में गई। वे उनकी पत्नी के साथ बाहर  आये।उनकी पत्नी नहीं चाहती थी कि  उसके पति गंदे कपडों  में उनके प्रशंसकों  से मिले।वह झुंझलाते हुई बोली,"इन लोगों से मिलते समय आप कम से कम गन्दीऔर पुरानी  पतलून तो बदल लेते।"आइन्स्टाइन हँसे और विनोद करते हुए बोले " ये  लोग मुझ से मिलने आये हैं, मेरी पतलून से नहीं।"आइन्स्टाइन की पत्नी मौन हो गई।आइन्स्टाइन उन्ही गंदे और पुराने कपड़ों में लोगों से मिलकर उनकी शुभ कामनायें स्वीकारते रहे। ऐसी थी आइन्स्टाइन  की सादगी।

(2.3.4) Tenzing Norgey (Life Story of TenZing Norgay in Hindi)

तेनजिंग नोर्गे - परिश्रमी, साहसी और हिम्मती व्यक्ति की जीवनी 

तेनजिंग का जन्म 1914में हुआ था। वह उसके माता  पिता के साथ नेपाल के एक छोटे से गाँव में रहता  था।गाँव में या उसके आस पास कोई विद्यालय नहीं था।गरीबी के कारण उसके माता पिता उसे कस्बे के विद्यालय  में नहीं भेज सके।तेनजिंग उसके बचपन से ही   पहाड़ियों के बीच दिन को बिताना और नए स्थानों का भ्रमण करना पसंद करता था।
1935में ब्रिटिश दल ने उसे भार  वाहक के रूप में चुन लिया। दल एवेरेस्ट पर जाने के लिए तैयार था। तेनजिंग इस दल के साथ गया। वह नोर्थ कोल पहुँचने वाले कुछ शेरपाओं में से एक था। यह एवेरेस्ट के रास्ते में एक महत्वपूर्ण स्थान है। 1935 के बाद तेनजिंग  पर्वतारोहियों के कई दलों में शामिल हुआ। वह हमेशा पर्वतारोहियों के मुख्य दल के साथ रहता था। वह अभी तक भी भार वाहक के रूप में काम करता था लेकिन उसने शीघ्र ही पहाड़ों  पर चढ़ना सीख लिया। उसने 1938 में पर्वतारोहण के लिए मेडल जीता।
कठोर परिश्रम के कारण तेनजिंग एक अच्छा पर्वतारोही बन गया। वह खराब मौसम में भी चढ़ सकता था। वह अपने लिए सबसे मुश्किल कार्य को चुनता था।वह कठिनाई के समय दूसरे भार वाहकों की भी सहायता करता था।
1952 में तेनजिंग एक स्विस पर्वतारोही दल में शामिल हो गया। इस दल ने दो प्रयास किये परन्तु एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने में असफल रहे।दो पर्वतारोही - तेनजिंग और लेम्बर्ट 27500फीट की ऊँचाई तक पहुँच गए।उन्होंने वहाँ बिना स्टोव और बिना स्लीपिंग बैग्स के रात्रि बिताई।उन्होंने अपने आप को गर्म रखने के लिए एक दूसरे  को थप्पड़ लगाई।सुबह  वे नीचे आये।एवरेस्ट  पर चढने का यह तेनजिंग के लिए छठा प्रयास था।
1953 का ब्रिटिश पर्वतारोहियों का प्रयास तेनजिंग के लिए सातवाँ  प्रयास था। इस बार वह शेरपाओं का नेता होने के साथ साथ पर्वतारोही भी था।इस दल ने 27900 फीट की ऊँचाई पर नवां कैंप लगाया। वहाँ से एवरेस्ट की चोटी  पर चढने के लिए प्रयास किया। इस दल ने दो व्यक्तियों को भेजा लेकिन वे चोटी  पर चढने में असफल रहे।फिर तेनजिंग और एडमंड हिलेरी ने  अगला प्रयास किया।उन्होंने सुबह  जल्दी ही कैंप को छोड़ दिया और तीन घंटे तक चढ़ते रहे।वे अब चोटी से केवल 300फीट दूर थे। वे धीरे धीरे चोटी  की  तरफ चढ़ते रहे और लगभग  दो घंटे में वहां  पहुंचे। दो आदमी, तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी 29 मई 1953 को सुबह 11.30 बजे चोटी  पर खड़े थे।वे  29028 फीट की ऊँचाई तक पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय,साहस और इच्छा शक्ति के कारण सफलता प्राप्त की और संसार में प्रसिद्ध हो गए।
शिक्षा :- कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय,साहस और इच्छा शक्ति ही सफलता की कुंजी है। 



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(2.3.3) Teen Prashna (Three Questions)

 तीन प्रश्न 

एक बार एक महत्वाकांक्षी राजा था।वह किसी भी कार्य में असफल नहीं होना चाहता था। इस के लिए वह तीन बातें जानना चाहता था -
 1.किसी कार्य को करने का सही समय कौनसा है?
 2 .सही व्यक्ति कौनसा है जिस की बातें उसे माननी चाहिए और किस व्यक्ति की अवहेलना करनी चाहिए?
3. वह महत्वपूर्ण कार्य कौनसा  है, जिसे उसे करना चाहिए?
राजा इन प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु एक प्रसिद्ध सन्यासी के पास गया।सन्यासी ने उसके प्रश्नों के उत्तर निम्नानुसार दिए - 
1. वर्तमान समय ही सबसे महत्वपूर्ण समय है क्योंकि केवल यही समय होता है जब हममें किसी कार्य को करने की शक्ति होती है। 
2. सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति वह है जो इस समय हमारे साथ है। 
3. सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, उस व्यक्ति की भलाई करना जो इस समय हमारे साथ है क्योंकि ईश्वर ने हमें दूसरों की भलाई करने के लिए ही इस धरती पर भेजा  है। 
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(2.3.2) Lal Bahadur ki Sanvedansheelata

 लाल बहादुर की संवेदन शीलता  

जब लाल बहादुर 6 वर्ष के थे तब एक दिन वे लड़कों  के एक समूह के साथ केवल शरारत की नीयत से एक उद्यान में प्रवेश किया। जब उनके साथी पेड़ों पर चढ़ गए और फल तोड़ने लगे,तब लाल बहादुर ने विचार पूर्ण भाव के साथ चारों तरफ देखा व पास की झाड़ी से एक फूल तोडा। तभी उन लडको में से एक लडके ने माली को आते हुए देख कर खतरे की चेतावनी दी,और तुरंत ही लाल बहादुर के अलावा  सभी लडके गायब हो गए। माली ने लाल बहादुर को पकड़ लिया और पिटाई कर दी।
लाल बहादुर ने कहा,"मैं एक गरीब और बिना पिता का लड़का हूँ , आप मुझे मत पीटो।"
माली मुस्कराया और उत्तर में बोला,"मेरे बच्चे,तब तो इस कारण से तुम्हे और भी अधिक अच्छा  व्यवहार करना चाहिए।"फिर उन्होंने (लाल बहादुर ने ) शपथ ली कि वे अन्य लड़कों की अपेक्षा अधिक अच्छा व्यवहार करेंगे और अपने आप से कहा कि  उन्हें ऐसा इसलिए करना होगा क्योंकि उनके पिता जीवित नहीं हैं।
लाल बहादुर के प्रारम्भिक जीवन की यह घटना,उनकी अतिशय संवेदन शीलता को प्रकट करती है।

Wednesday 7 October 2015

(2.3.1) This is the Difference

This is the Difference  यही मुख्य अंतर है 

तानसेन के गुरु,हरिदास के संगीत की विशेषताओं को सुनकर अकबर ने इसे सुनने की तीव्र इच्छा की।इसलिए वह स्वामी के संगीत को सुनने के लिए तानसेन के साथ उनके आश्रम पर गया ।वे स्वामी हरिदास का संगीत सुनने के लिए कई दिनों तक उनके आश्रम में रुके।लेकिन स्वामी जी ने नहीं गाया क्योंकि वे तभी गाते थे,जब उनकी इच्छा होती थी।फिर एक दिन तानसेन ने जानबूझ कर अशुद्ध स्वर छेड़ दिया।स्वामी जी को यह सहन नहीं हुआ और वे स्वयं गाने लगे।
उन्होंने वही गीत ठीक प्रकार से गाया,तरंग ने आकर उन्हें आवृत्त कर लिया और वे स्वयं को उस संगीत  में भूल गए जो पृथ्वी और आकाश पर छा गया।अकबर और तानसेन ने स्वयं को  स्वर माधुर्य और संगीत के आकर्षण में भुला दिया।
यह एक अद्वितीय अनुभूति थी।जब संगीत रुका,अकबर तानसेन की ओर मुड़ा और बोला,"तुम कहते हो तुमने इस संत से संगीत सीखा है और तब भी तुम इसका सम्पूर्ण जीवंत आकर्षण खो चुके मालूम पड़ते हो।तुम्हारा संगीत इस मर्मस्पर्शी संगीत के समक्ष भूसा मात्र प्रतीत होता है।
"यह सत्य है,श्रीमान,"तानसेन ने कहा,"यह सत्य है कि मेरा संगीत मेरे गुरु की जीवंत स्वरसंगति और माधुर्य की समक्ष भावशून्य और निर्जीव है।परन्तु यहाँ यह अंतर है कि  मैं सम्राट के आदेश पर गाता हूँ,परन्तु मेरे गुरु किसी व्यक्ति के आदेश पर नहीं गाते हैं, वे केवल तभी गाते हैं जबकि उनके अंतरतम की आत्मा से प्रेरणा प्राप्त होती है। इसी से सारा अंतर है।   

(2.2.3) Practical Quotations in Hindi

Practical Quotations in Hindi व्यवहारिक कोटेसन 

(1) अपने कार्य के प्रति निष्ठा रखो। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है। निष्ठा से किया गया कार्य स्वतः ही बड़ा लगने लगता है।
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(2) अपने सहकर्मियों का सम्मान करें व उन्हें  नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करें। अपने अधीनस्थों पर विश्वास करें परन्तु उनकी गतिविधि उनके व उनके द्वारा किये गए कार्य पर अपनी नज़र रखें।
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(3) किसी कार्य को  जल्दबाजी या  हडबड़ाहट में नहीं करें क्योंकि ऐसा करना आपके कार्य की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
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(4) दूसरे  व्यक्ति की बात को पूरी तरह सुने। अपनी बात को संक्षेप में परन्तु  तथ्यात्मक व  प्रभावशाली तरीके से कहें।
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(5) किसी व्यक्ति को तब तक बुरा मत समझो जब  तक वह बुरा सिद्ध न हो जाये।                                           =====                                              
(6) दूसरो  के अनुभवों से सीखिए परन्तु अपनी मौलिकता की छाप आपके कार्य पर रहनी चाहिये।आपके द्वारा किया गए कार्य थोडा अलग लगना चाहिये।                                                                                                    =====                    
(7) कुछ व्यक्तियों को हमेशा के लिए और सब व्यक्तियों को कुछ समय के लिए मूर्ख  बनाया जा सकता है परन्तु सब व्यक्तियों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। इसलिये झूठ या कुतर्क का सहारा मत  लो। यह आपके कमजोर व्यक्तित्त्व का संकेतक माना जाएगा।
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(8)किसी भी चीज़ की अति से बचो ,चाहे इस अति का सम्बन्ध अच्छाई से हो चाहे बुराई से हो।
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(9) मन:स्थिति संतुलित और दृष्टिकोण व्यवहारिक रखो।
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(10) रातोंरात आपके जीवन में चमत्कार हो जाएगा और आप धनवान तथा स्मृद्धि शाली बन जाओगे , ऐसी कल्पना से बचो। क्योकि ऐसी कल्पना व्यक्ति के मन में दूसरो की वस्तु-धन आदि हड़पने की लालसा व बेईमानी  करने  की इच्छा अंकुरित करती है जो उसके जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
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(11) अनुचित तरीके से कमाया हुआ धन गलत मार्ग की ओर ले जाता है। दूसरो को दुखी करके प्राप्त किया हुआ धन कल्याणकारी नहीं हो सकता भले ही थोड़े समय के लिये हमारे मन को राजी कर दे।
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(12) जो आपका है वह जाएगा नहीं और जो चला गया वह आपका नहीं था। इसे परमसत्ता के द्वारा निर्धारित व्यवस्था समझ कर जो चला गया उसके प्रति मन में उदासी या अप्रसन्नता लाने से बचे, क्योंकि  कई बातें व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं होती हैं ।
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(13) प्रकृति का विस्तार अनंत है। यदि कोई व्यक्ति बहुत कुछ प्राप्त कर ले फिर भी किसी न किसी वस्तु का अभाव रहेगा। अत: बुद्धिमान मनुष्य अधिक पाने का रचनात्मक प्रयास तो  करता है, परन्तु प्राप्त वस्तुओं  का ही उत्तम उपयोग करता है न कि अप्राप्त वस्तुओं की चाहत में दुखी होता है।
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(14) अपनी सफलता से सीखें ताकि  आप उन्हें दोहरा सकें, अपनी असफलता व गलतियों से सीखे। ताकि ऐसी गलतियाँ दुबारा न हो।
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(15) अपने जीवन में हमेशा ही अच्छा घटित होने की उम्मीद करे फिर भी कुछ विपरीत घटित हो जाए तो जाए तो उसे ईश्वर द्वारा हमारे हित के लिए घटित  किया हुआ  माने। हमारा अच्छा-बुरा हमारे बजाय ईश्वर ज्यादा जानता है।
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(16) स्वयं को आवश्यकता से अधिक आलोचनात्मक होकर नही देखे। अपने मजबूत बिन्दुओ का विशलेषण   करे और कमियों को दूर करने का प्रयास करे परन्तु कमियो या कमजोरियों पर ज्यादा जोर देकर कुंठित होने से बचे।
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(17) दिल का काम दिमाग से और दिमाग का काम दिल से मत करो।
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(18)परिवार में छोटे-बड़े का ध्यान रखते हुए आचरण करे।  अपनी ओर  से सोहार्द बनाये रखने की पहल करे। छोटी- छोटी अप्रिय बातो व् घटनाओं को अधिक तूल नही देवे। परिवार की नीव विश्वास पर टिकी है। हर बात को संदेह की दृष्टि से नही देखे। स्नेह  जीवन का आधार है यह  जीने  को सार्थक और आनंददायक बनाता है। यदि कोई घटना, कोई बात, कोई परिस्थिति अप्रिय लगे तो उस चतुराई के साथ एक ख़ूबसूरत मोड़  दे दे।
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(19) मजाक करने और मजाक बनाने में अंतर है।
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(20) अपनी स्थिति पर संतोष करो, दूसरो के उत्कर्ष को देखकर मुदित होओ, दूसरों को दुखी देखकर मन मे करुणा का भाव लाओ, जो आपके प्रति विरोधी भाव रखते है, आप उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखो।
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(21) कुछ व्यक्तियों को हमेशा के लिये मूर्ख बनाया जा सकता है परन्तु सब व्यक्तियों को हमेशा के लिए मूर्ख नही बनाया जा सकता है। इसलिए झूठ या कुतर्क सहारा मत लो। यह आपके व्यक्तित्व की कमजोरी माना जाएगा।
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(22) सर्वश्रेष्ठ विचार की प्रतीक्षा मत करो, श्रेष्ठ विचार पर अमल करो, इससे श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ स्वयं पीछे आयेंगे।
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(23) जीवन के मार्ग में जो भी खुशिया मिले उनसे खुश रहिये। ये छोटी छोटी खुशियां ही एक दिन बड़ी ख़ुशी बन जायेंगी।
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(24) आशा, उमंग , उत्साह और उल्लास से भरा हुआ जीवन जीओ। इन भावनाओं की झलक आपके चेहरे, कार्य, व्यवहार व् आचरण पर भी दिखनी चाहिए।
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(25) संकट के समय धैर्य और साहस से काम लें , पुरुषार्थ की बात सोचें  और कठिनायों  से  लड़ने  और उन्हें  परास्त  करने  का  चाव  रखें। ऐसे समय पर ईश्वर पर विश्वास  रखें। .
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(1.1.8) The Best Season of the Year

 वर्ष की श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है ?
एक बार राजस्थान के किसी एक कस्बे में गोविन्द नारायण नामक सेठ (धनवान व्यापारी )रहता था। उसके एक पुत्र था। जब उसका पुत्र विवाह योग्य उम्र तक पहुंचा तो उस व्यापारी ने उसके विवाह के लिए गुण वान व सुन्दर लड़की की तलाश शुरू की।जब भी कोई व्यक्ति उस के पुत्र के  विवाह का प्रस्ताव लाता तो व्यापारी प्रस्तावक की बेटी से एक प्रश्न पूछता - "वर्ष की सबसे  श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है?" प्रत्येक लड़की इस प्रश्न का भिन्न उत्तर देती और उसका कारण भी बताती।परन्तु सेठ को कोई भी उत्तर संतुष्ट नहीं कर सका।
एक दिन हरि  प्रकाश नामक एक अन्य व्यापारी अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा था।रात्रि हो जाने से उसने उस कस्बे में रात्रि गुजारना चाहा जहाँ सेठ गोविन्द नारायण रहता था। गोविन्द नारायण ने सेठ हरि प्रकाश को अपनी हवेली में रात्रि बिताने के लिए निवेदन किया। 
गोविन्द नारायण ने हरि प्रकाश की अच्छी आव भगत की।सेठ हरि प्रकाश के भी एक पुत्री थी।वार्ता लाप के दौरान हरि प्रकाश ने अपनी पुत्री का विवाह सेठ गोविन्द नारायण के पुत्र के साथ  करने की इच्छा प्रकट की।गोविन्द नारायण ने वही प्रश्न उसकी बेटी से भी पूछा -"वर्ष की श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है?" लड़की ने उत्तर दिया -"यदि परिवार में शांति हो, परिवार के छोटे सदस्य परिवार के बड़े सदस्यों का सम्मान  करते हों और उनकी  आज्ञा पालन करते हों, और परिवार के बड़े सदस्य छोटों  के प्रति स्नेह की भावना रखते हों,परिवार के सभी सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना हो तो उस परिवार और उसके सदस्यों के लिए वर्ष की प्रत्येक ऋतु श्रेष्ट है क्योंकि ऐसे वातावरण में ही लक्ष्मी निवास करती है।"सेठ गोविन्द नारायण लड़की के उत्तर से प्रभावित हुआ और उसके पुत्र के साथ उस लड़की के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।    

(1.1.7) Kartvya / Duty is more important

 कर्तव्य ज्यादा महत्व पूर्ण है 

किसी एक गांव में एक धनवान भेड़ पालक रहता था।एक बार उसने दो लडकों को भेड़ें चराने के लिए रख लिया। उसने भेड़ों को दो समूह में विभाजित कर लिया और प्रत्येक को एक एक झुण्ड चराने के लिए दे दिया .कुछ दिन बाद उसने देखा कि दोनों ही समूह में कुछ भेड़ें मर गई हैं और कुछ अन्य दुबली हो गई हैं।भेड मालिक ने दोनों ही लडकों को दोषी पाया।
पता लगा की दोनों ही लडकें प्रतिदिन सुबह भेड़ों को अपने साथ ले जाते थे लेकिन उन्हें (भेड़ों को ) केवल इधर उधर भटकने देते थे और वे अपने व्यसन जिसके वे आदी थे, में लग जाते थे।उन में से एक को गपशप करने की आदत थी। इसलिये वह दूसरे लड़कों के साथ बैठ जाता था  और गपशप  लगाता रहता था।भेड़े आस पास के क्षेत्र में इधर उधर घूमती रहती थी चाहे वहां चरने के लिए पर्याप्त चारा हो या नहीं हो।यही बात भेड़ो के दूसरे समूह के साथ भी होती थी।दूसरे समूह को चराने वाला लड़का अपना समय पूजा पाठ और धार्मिक कार्य करने में लगाता था और भेड़ों की तरफ ध्यान नहीं देता था।
 भेड़ पालक ने उन दोनों के विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई।दोनों को गाँव के न्यायाधीश के कोर्ट में उपस्थित किया गया।यद्यपि  दोनों के ही कार्यों (व्यसन )में गुणवत्ता का बहुत अधिक अंतर था तो भी दोनों को ही उनके सौंपे गये कर्तव्य की अवहेलना का दोषी पाये जाने पर समान सजा दी गई।
न्यायाधीश ने निर्णय देते हुए कहा,"कर्तव्य भाव के बिना जो कुछ भी किया जाता है वह व्यसन ही है,चाहे वह व्यसन गप्पे लगाने  का हो चाहे पूजा पाठ करने का हो। दोनों ही व्यसन सामान रूप से सजा योग्य हैं क्योंकि प्रत्येक में कर्तव्य पालन की पूर्ण रूप से उपेक्षा हुई है।   
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(5.1.5) Good son / Achchha Putra kaun hota hai ?

Achchhe putra ke Lakshan अच्छे पुत्र के लक्षण
> जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा ही सम्पूर्ण अंधकार को दूर कर देता है जिसे अनगिनत तारे मिलकर भी दूर नहीं कर सकते। उसी प्रकार गुण रहित  सैंकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणवान पुत्र ही श्रेष्ठ होता है.
(चाणक्य नीति)
> उस पुत्र को धिक्कार है, जो समर्थ होते हुए भी पिता के मनोरथ पूर्ण करने में सहयोग नहीं करता है। ऐसा पुत्र  जो पिता की चिंता को दूर नहीं कर सकता, उस पुत्र के जन्म लेने का क्या लाभ ?
(देवी भागवत)
> श्रेष्ठ पुत्र वही है, जो माता-पिता का भक्त होता है, श्रेष्ठ पिता वह है जो अपने पुत्र-पुत्रियों का उत्तम पालन-पोषण करता है, श्रेष्ठ मित्र वह है जिस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके और श्रेष्ठ पत्नी वह है जिससे सुख प्राप्त हो।
(चाणक्य)
> आदर्श पुत्र वह है, जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल आचरण करता है तथा उनके प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है।
(आदिपर्व - महाभारत)
> सुन्दर व सुगन्धित पुष्पों से युक्त केवल एक वृक्ष ही सम्पूर्ण वन को सुगन्धित बना देता है, ठीक उसी प्रकार सुपुत्र से पूर्ण एक ही कुल समाज में आंनद और उल्लास का सृजन करके उसे उन्नतिशील बना देता है।
(चाणक्य नीति)
> अधिक अवगुणी पुत्रों की अपेक्षा एक ही गुणी तथा ज्ञानी पुत्र उत्तम है, जिसके आश्रय से सम्पूर्ण परिवार सुख भोगता है।
(चाणक्य नीति )
> जिस प्रकार स्वयं आग से जलता हुआ एक ही सूखा वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र अपने वंश के नाश का कारण बनता है।  
(चाणक्य नीति)
> मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पुत्रहीन होना ही श्रेष्ठ है।
(देवी भागवत)

Friday 25 September 2015

(2.1.8) Good Quotes in Hindi

अच्छे विचार (हिन्दी में)


 1.पहले उन कार्यों को पहचानिये जिन्हें किया जाना जरुरी है, फिर उन्हें करने का रास्ता खोजिये।  
(अब्राहम लिंकन)  
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विफलता से शिक्षा पा लेना बहुत बड़ी सफलता है। (मैल्कम फ़ोर्ब्स)  
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3.जीवन के प्रति हमारा रुख ही हमारे प्रति जीवन का रुख तय करता है।  
(जान मिचेल)   
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4.आप आराम की जिंदगी चाहते हैं, तो कुछ परेशानी तो आपको उठानी ही होगी।    
(एबिगैल वैन ब्यूरेन)   
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5.सुअवसरों पर कदम बढ़ाना सफलता पाने का सबसे उत्तम तरीका है।  
(ऐन रैंड)   
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6.इस संसार में वही व्यक्ति अपने कार्य में सफल होते हैं जो अपनी परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं और यदि वे नहीं बना सकें, तो अपने अनुकूल परिस्थितियों को पैदा कर लेते हैं। 
(जार्ज बर्नार्ड शा)   
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7.बीता हुआ कल आज की याद है, और आने वाला कल आज का स्वप्न है। 
(खलील जिब्रान)   
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8 हम अपने आप को अपने इरादों से और दूसरों को उनके कर्मों से आँकते हैं। 
(स्टीफनआर कोवी)       
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9.कमजोर व्यक्ति अवसरों का इंतजार करते हैं; जब कि निर्भीक व्यक्ति इनका निर्माण करते हैं।    
(स्वेट मार्डेन)    
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10.जो मूर्ख ( व्यक्ति) अपनी मूर्खता से सीखता है, वह - धीरे धीरे सीख सकता है। परन्तु जो मूर्ख ( व्यक्ति ) अपने को बुद्धिमान समझता है, उसके रोग की कोई दवा नहीं है।  
(अज्ञात)    
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11.पढ़ना सब जानते हैं, पर क्या पढना चाहिए, बहुत कम लोग जानते हैं।  
(बर्नार्ड शा)  
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12.जो कुछ नहीं करता, केवल वही आलसी नहीं है, आलसी वह भी है जो अपने काम से भी अच्छा काम कर सकता है, परन्तु वह करता नहीं है।  
(सुकरात)   
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13.आत्म विश्वासी व्यक्ति समुद्र के बीचों बीच जहाज के नष्ट हो जाने पर भी तैरकर समुद्र पार कर लेता है।   (पंचतंत्र)    
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14. क्रोध में व्यक्ति का मुँह तो खुला रहता है, किन्तु आँखे बंद रहती हैं।   
(अज्ञात)   
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15.मूर्खता सब कर लेगी, लेकिन बुद्धि का आदर कभी नहीं करेगी।  
(गेटे)    
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16.अगर हम वे सारे कार्य कर दें, जिन्हें करने में हम समर्थ हैं, तो हम वास्तव में खुद को ही हैरान कर देंगे। (थॉमस ए. एडीसन)  

17.हमारे पास असफलता के चार करोड़ कारण हैं, लेकिन बहाना  एक भी नहीं है।    
(रुडयार्ड किपलिंग    
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18.कभी निराश मत होना, लेकिन अगर हो भी जाओ, तो निराशा में भी काम करते रहना। 
(एडमंड बर्क)   
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19.हर समस्या में इसके समाधान के बीज छिपे हुए होते हैं।  
(स्टेन ले अरनाल्ड)   
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20.हम हौंसला नहीं करते, इस लिए नहीं कि कुछ  करना दुष्कर है, कुछ करना दुष्कर है, क्योंकि हम हौंसला नहीं करते हैं।   
(मेनेका)   
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21.जो हाथ फूल  बाँटता है, उसमें  भी  सुगंध आ जाती है।  
(चीनी  कहावत)  
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22.ख़ुशी कोई बनी बनाई चीज नहीं है, यह आपके अपने कर्मों से ही आती है।  
(दलाई लामा)    
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23.सिर्फ खड़े होकर पानी को ताकते रहने से आप समुद्र को पार नहीं कर सकते।  
(रविन्द्र नाथ टैगोर)   
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24. लक्ष्यों के बारे में सब से महत्पूर्ण बात है, उनका होना।  
(जेफ्री एफ एबर्ट)    

25.सारे विश्व का भार आप कर नहीं है। आप सिर्फ अपने प्रभारी हैं। 
(ए. बैनेट)   
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26. हमें  जो मिलता है, उससे हमारा निर्वाह होता है, लेकिन हम जो देते हैं, उससे जीवन निर्माण होता है।   (विंस्टन चर्चिल)    
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27.हम किसी से धोखा नहीं खाते, हम ही स्वयं को धोखा देते हैं।  
(गेटे)    
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28.वह मनुष्य सुखी है जो आज को अपना कह सके, जो निश्चिन्तता के साथ कह सके,  ' ओ कल, जो तेरे वश में हो, कर ले, आज मैं  जी भर कर जी लिया।  
(ड्राइडेन)     
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29.जितनी शीघ्रता करोगे, उतना ही विलम्ब होगा।   
(चर्चिल)    
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30.पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है , फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।   
(स्वामी विवेकानंद) 
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नोट - उपर्युक्त quotations हमारे द्वारा संकलित हैं न कि मौलिक।