Tuesday 28 July 2020

(6.7.2) Ashta Lakshmi Mantra - Benefits

Ashta Lakshmi Mantra for Material and Spiritual Prosperity / Benefits of Ashtalakshmi Mantra / अष्ट  लक्ष्मी मन्त्र के लाभ

अष्ट लक्ष्मी मन्त्र के लाभ क्या हैं
देवी लक्ष्मी को विभिन्न स्वरूपों में पूजा जाता है।  मुख्य रूप से इनके आठ स्वरुप मने गए हैं। इन आठ स्वरूपों के समूह को अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है।  ये आठ स्वरुप इस प्रकार हैं -

आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान  लक्ष्मी, धैर्य  लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी। 
इन आठ  स्वरूपों के  मन्त्र का श्रद्धा और विश्वास के साथ जप करें तो, जपकर्ता के जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक सम्पन्नता और सुखों की कोई कमी नहीं रहती है।
मन्त्र जप की विधि इस प्रकार है  

इन मन्त्रों के जप के लिए लक्ष्मी के आठ स्वरुप वाला चित्र तथा श्री यन्त्र अपने सामने रखले. उत्तर या पूर्व की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जायें. कुछ समय तक देवी लक्ष्मी के चित्र की तरफ देख कर उनके विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करें. ध्यान के बाद इन आठ मन्त्रों का कम से कम एक माला का जप करें. मन्त्र इस प्रकार है –

ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः

ॐ धनलक्ष्म्यै नमः

ॐ धान्यलक्ष्म्यै नमः

ॐ गजलक्ष्म्यै नमः

ॐ संतानलक्ष्म्यै नमः

ॐ धैर्यलक्ष्म्यै नमः

ॐ विजयलक्ष्म्यै नमः

ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः

मन्त्र जप के बाद मन ही मन भावना करें कि देवी लक्ष्मी की कृपा से आपको सभी प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक सम्पदा प्राप्त हो रही है. 

Wednesday 22 July 2020

(6.7.1)) Ashta Lakshmi - Eight Forms of Lakshmi

Ashta Lakshmi - Eight Forms of Lakshmi अष्ट लक्ष्मी - लक्ष्मी के आठ स्वरुप
अष्ट लक्ष्मी - लक्ष्मी के आठ स्वरुप कौनसे हैं

अष्ट लक्ष्मी - लक्ष्मी के आठ स्वरुप
लक्ष्मी भगवान् विष्णु की पत्नी है। उन्हें सम्पदा, सम्पन्नता व सौभाग्य की देवी के रूप में जाना जाता है। लक्ष्मी को आठ स्वरूपों में पूजा जाता है।  इन आठ स्वरूपों के समूह को अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है। इन स्वरूपों में वह अपने उपासकों व भक्तों को  विभिन्न प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक सम्पदा प्रदान करती है।  लक्ष्मी के आठ स्वरुप इस प्रकार हैं -
(1) आदि लक्ष्मी -
लक्ष्मी के इस रूप में वे कमल पर विराजमान हैं। उनके चार हाथ हैं जिनमें से  एक में कमल है, दूसरे में पताका है, तीसरे में अभय मुद्रा और चौथे वरदा मुद्रा है।  इस रूप में ये पवित्रता और प्रसन्नता का प्रतीक हैं। इनकी साधना उपासना से मानसिक शांति व सम्पन्नता मिलती है।
(2) धन लक्ष्भी  -
लाल वस्त्र धारण किये देवी की इस छवि में छः भुजाएं हैं जिनमें चक्र,कलश, धनुष , कमल, अभय  मुद्रा (स्वर्ण मुद्रा सहित) हैं। वे धन और स्वर्ण की प्रतीक हैं।वे अपने भक्तों को आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करती हैं।
(3) धान्य लक्ष्मी -
इस रूप में देवी हरित वस्त्र धारण किये हुए होती है। इनके आठ भुजाएं हैं जिनमें दो कमल, गदा, धान की फसल,गन्ना, केला, अभय मुद्रा तथा वरदा  मुद्रा हैं। वे अपने भक्तों को भोजन, अनाज और विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री के साथ साथ सांसारिक भोग की वस्तुएं भी प्रदान करती हैं।
(4) गज लक्ष्मी -
इस छवि में वे लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। उनके दोनों तरफ एक - एक हाथी है। उनके चार भुजाएं हैं, जिनमें दो कमल,अभय मुद्रा तथा वरदा मुद्रा हैं। इनको पशुधन की समृद्धि की दाता माना जाता है। ये कार्य में गतिशीलता प्रदान करती हैं।
(5) संतान लक्ष्मी -
इस रूप में देवी के छः भुजाएं हैं।  उनके दो हाथों में कलश हैं, दो हाथों में तलवार और ढाल हैं,  एक हाथ अभय मुद्रा में है , उनकी गोद में एक बच्चा है  जिसे एक हाथ से थामा हुआ है, बच्चे के हाथ में एक कमल है। संतान लक्ष्मी के रूप में वे अपने उपासकों को उत्तम संतान प्रदान करती हैं।
(6)धैर्य लक्ष्मी  -
इस रूप में वे लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं।  उनके आठ भुजाएं हैं, जिनमें चक्र,शंख, धनुष, तीर, तलवार, ताड़ के पत्तों पर लिखी हुई पाण्डुलिपि, अभय मुद्रा तथा वरदा मुद्रा हैं।  ये वीरता, साहस की प्रतीक हैं , इसलिए इनको वीर लक्ष्मी भी कहा जाता है। वे अपने भक्तों को  सभी प्रकार की बाधाओं पर विजय पाने के लिए साहस , शक्ति और धैर्य प्रदान करती हैं।
(7) विजय लक्ष्मी -
इस छवि में देवी लाल वस्त्र धारण किये हुए है।  उनके आठ भुजाएं हैं , जिनमें चक्र, शंख, तलवार, कवच, कमल, पाशा, अभय मुद्रा और वरदा मुद्रा हैं। ये श्रेष्ठ वरदानों की प्रतीक हैं। यह अपने उपासकों को जीवन के सभी क्षेत्रों में विजय दिलाने के लिए जानी जाती है।  इनकी कृपा से शत्रु का दमन होता है।  नकारात्मक विचार प्रभावहीन  रहते हैं।
(8) विद्या लक्ष्मी -
इस छवि में देवी  सफ़ेद साड़ी पहने हुई है। वे सरस्वती की तरह दिखाई देती हैं। उनके चार भुजाएं हैं, जिनमें पुस्तक, कलम के रूप में मोर पंख, वरदा मुद्रा और अभय मुद्रा हैं।  वे अपने भक्तों को कला, विज्ञानं आदि सभी क्षेत्रों का  ज्ञान प्रदान करती हैं। वे सद्बुद्धि दायनी हैं। 

Wednesday 15 July 2020

(6.8.5) Shivling Ki Parikrama Ka Vidhan

Shvaling Ki Parikrama Kaise Ki Jati Hai ? Shivling Ki Kitani Parikrama Ki Jati Hai ?Shiv Ling Ki Adhi Parikrama Kyon Ki Jati Hai शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्योंऔर कैसे की जाती है 

शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों और कैसे की जाती है
भगवान शिव की पूजा - अर्चना करने से सम्पूर्ण मनोकामनाओं की पूर्ती होती है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शिवलिंग की परिक्रमा करना भी शिव पूजा का ही अंग है।
शिवलिंग की परिक्रमा  का विधान -
शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का ही विधान है। परिक्रमा करते समय सोम सूत्र लांघा नहीं जाता है। सोमसूत्र से तात्पर्य उस स्थान से है जिस स्थान की ओर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल गिरता है। अतः जो व्यक्ति परिक्रमा करना चाहता है, उसे सोमसूत्र के पास इस तरह खड़ा होना चाहिए जिससे उसका दाहिना हाथ सोमसूत्र और शिवलिंग की तरफ रहे। परिक्रमा करते हुए सोमसूत्र तक जाकर बिना उसे लांघे पीछे मुड़कर वापस उस स्थान तक पहुँच जाये जहाँ से परिक्रमा शुरू की गई थी। इस प्रकार सोमसूत्र के पास से चल कर वापस सोमसूत्र तक आना शिवलिंग की आधी परिक्रमा पूर्ण होती है।
किस स्थिति में सोमसूत्र का लंघन किया जा सकता है - 
नित्य कर्म पूजा प्रकाश के पृष्ठ संख्या 297 के अनुसार यदि सोमसूत्र तृण, काष्ठ, पत्थर, ईंट आदि से ढका हुआ हो तो, उस सोमसूत्र का लंघन किया जा सकता है अर्थात लांघा जा सकता है।