Saturday 23 September 2023

(6.8.10 भगवान् शिव के बारह नाम अर्थात श्री शिव द्वादश नामावली Shivaji Ke Baarah Naam

भगवान् शिव के बारह नाम अर्थात श्री शिव द्वादश नामावली Shivaji Ke Baarah Naam

Shiva Dwadash Naamaawali 

भगवान् शिव के ये बारह नाम उनके बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम हैं . जो व्यक्ति इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण, उच्चारण, जप या पाठ करता है, उसके सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध होते हैं. उसे मानसिक शांति मिलती है और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है. जो निष्काम भाव से इन नामों का जप करता है, वह मोक्ष गति को प्राप्त होता है. यह द्वादश नामावली इस प्रकार हैं –

ॐ सोमनाथाय नमः

ॐ मल्लिकार्जुनाय  नमः

ॐ महाकालेश्वराय  नमः

ॐ ॐकारेश्वराय  नमः

ॐ वैद्यनाथाय  नमः

ॐ भीमशंकराय  नमः

ॐ रामेश्वराय नमः

ॐ नागेश्वराय  नमः

ॐ विश्वनाथाय  नमः

ॐ त्र्यम्ब्केश्वराय नमः

ॐ केदारनाथाय  नमः

ॐ घुश्मेश्वराय नमः

श्री शिव द्वादशनामावली सम्पूर्ण

 

(6.8.9)पंचाक्षर मंत्र / Panchakshar Mantra (Om Namah Shivay)

पंचाक्षर मंत्र / Panchakshar Mantra (Om Namah Shivay)

Om Namah Shivay

जिस प्रकार भगवान् शिव देवादिदेव हैं, उसी प्रकार सब मन्त्रों में भगवान् शिव का पंचाक्षर मंत्र “ नमः शिवाय “ श्रेष्ठ मन्त्र है . इस मंत्र के शुरू में प्रणव अर्थात  “ ॐ “ जोड़ देने से यह षडाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय “ हो जाता है . इस मंत्र में अक्षर तो कम हैं, परन्तु यह महान अर्थ से संपन्न है. यह मोक्ष देने वाला है , भगवान् शिव की आज्ञा से सिद्ध है , संदेह रहित है तथा शिव स्वरुप वाक्य है. यह अनेक प्रकार की सिद्धियों से युक्त और दिव्य है. यह इसके जपकर्ता के मनोरथों को सिद्ध करने वाला है . इस मंत्र की जप प्रक्रिया इस प्रकार है - 

दैनिक कार्य से निवृत होकर किसी शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊनी आसन पर बैठ जाएँ। भगवान् शिव का चित्र अपने सामने रखें।घी का दीपक  तथा धूपबत्ती जलाएं।  अपनी आखें बंद करके अपना ध्यान भगवान् शिव पर केन्द्रित करें।तथा भावना करें कि भगवान् शिव इस संसार का स्रोत हैं और सम्पूर्ण प्राणियों के स्वामी हैं।वे  बहुत दयालु हैं जो अपनी कृपा से उनके भक्तों का उद्धार  करते हैं।  मैं ऐसे  भगवान् शिव से प्रार्थना  करता हूँ कि वे मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।इस तरह की प्रार्थना के बाद इस मंत्र का 108 बार अर्थात एक माला का जप करें . प्रणव सहित मंत्र इस प्रकार है  :-  

“ॐ नमः शिवाय “ 

मंत्र जप समाप्त हो जाये तो उस स्थान को तुरंत नहीं छोड़ें।मंत्र जप के बाद थोड़े समय के लिए शांत बैठ जाये। अपनी आखें बंद कर लें और भगवान् शिव के असीम स्नेह का मनन करें।मन में भावना करें कि भगवान् शिव ने आपकी प्रार्थना को सुन लिया है।वे उनका आशीर्वाद आपको प्रदान कर रहे हैं।उनकी कृपा से जिस भी कामना से आपने मंत्र का जप किया है, वह कामना पूर्ण हो रही है.

इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान् शिव के प्रति सम्मान प्रकट करें और पूजा का स्थान छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ।

(पंचाक्षर मंत्र जप विधि समाप्त ) 

Friday 22 September 2023

(6.8.8) त्र्यक्षर मृत्युंजय मंत्र Tryakshar Mrityunjay Mantra /Om Joom Sah Tryakshar Mrityunjay Mantra

त्र्यक्षर मृत्युंजय मंत्र Tryakshar Mrityunjay Mantra /Om Joom Sah Tryakshar Mrityunjay Mantra

त्र्यक्षर मृत्युंजय मंत्र का जप जीवन को उल्लास से भर देता है ।जिस घर में त्र्यक्षर मृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है ,उस घर के सदस्यों को बीमारीआकस्मिक या असामयिक  मृत्यु का  भय नहीं रहता है।यह मंत्र स्वास्थ्य और प्रसन्नता प्रदान करने वाला है। इस मंत्र के जप से नकारात्मक भावना दूर होती है. यह व्यक्ति को उसकी कठिनाईयों और बाधाओं पर विजय पाने में सहायता करता है। इसके प्रभाव से ग्रह दोष दूर हो जाता है.

मंत्र जप प्रक्रिया इस प्रकार है :-

दैनिक कार्य से निवृत होकर किसी शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊनी आसन पर बैठ जाएँ।भगवान् शिव का चित्र अपने सामने रखें।घी का दीपक  तथा अगरबत्ती जलाएं।  अपनी आखें बंद करके अपना ध्यान भगवान् शिव पर केन्द्रित करें।तथा भावना करें कि भगवान् शिव इस संसार का स्रोत हैं और सम्पूर्ण प्राणियों के स्वामी हैं।वे  बहुत दयालु हैं जो अपनी कृपा से उनके भक्तों का उद्धार  करते हैं।  मैं ऐसे  भगवान् शिव से प्रार्थना  करता हूँ कि वे मुझे स्वस्थ रहने का आशीर्वाद प्रदान करें।इस तरह की प्रार्थना के बाद इस मंत्र का 108 बार अर्थात एक माला का जप करें . मंत्र इस प्रकार है  :-   

ॐ जूं सः

मंत्र जप समाप्त हो जाये तो उस स्थान को तुरंत नहीं छोड़ें।मंत्र जप के बाद थोड़े समय के लिए शांत बैठ जाये। अपनी आखें बंद कर लें और भगवान् शिव के असीम स्नेह का मनन करें।मन में भावना करें कि भगवान् शिव ने आपकी प्रार्थना को सुन लिया है।वे उनका आशीर्वाद आपको प्रदान कर रहे हैं।उनकी कृपा से जिस भी कामना से आपने मंत्र का जप किया है, वह कामना पूर्ण हो रही है.

इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान् शिव के प्रति सम्मान प्रकट करें और पूजा का स्थान छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ।

  

Wednesday 20 September 2023

(6.8.7) महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjay Mantra Benefits of Mahamrityunjay Mantra

महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjay Mantra Benefits of Mahamrityunjay Mantra

महामृत्यंजय मंत्र एक महामंत्र है. इस मंत्र का जप जीवन की  अवधि को दीर्घ बनाता है,बीमारी का उन्मूलन करता है और मृत्यु भय को मिटाता है।जिस घर में महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है ,उस घर के सदस्यों को बीमारी ,आकस्मिक या असामयिक  मृत्यु का  भय नहीं रहता है।यह मंत्र स्वास्थ्य और प्रसन्नता प्रदान करने वाला है। इस मंत्र के जप से नकारात्मक भावना दूर होती है. यह व्यक्ति को उसकी कठिनाईयों और बाधाओं पर विजय पाने में सहायता करता है। इसके प्रभाव से ग्रह दोष दूर हो जाता है.

मंत्र जप प्रक्रिया इस प्रकार है :-

दैनिक कार्य से निवृत होकर किसी शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊनी आसन पर बैठ जाएँ।भगवान् शिव का चित्र अपने सामने रखें।घी का दीपक  तथा अगरबत्ती जलाएं।  अपनी आखें बंद करके अपना ध्यान भगवान् शिव पर केन्द्रित करें।तथा भावना करें कि भगवान् शिव इस संसार का स्रोत हैं और सम्पूर्ण प्राणियों के स्वामी हैं।वे  बहुत दयालु हैं जो अपनी कृपा से उनके भक्तों का उद्धार  करते हैं।  मैं ऐसे  भगवान् शिव से प्रार्थना  करता हूँ कि वे मुझे स्वस्थ रहने का आशीर्वाद प्रदान करें।इस तरह की प्रार्थना के बाद इस मंत्र का 108 बार अर्थात एक माला का जप करें . मंत्र इस प्रकार है  :-   

ॐ त्र्यम्बकं  यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |

  उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माSमृतात् |

मंत्र जप समाप्त हो जाये तो उस स्थान को तुरंत नहीं छोड़ें।मंत्र जप के बाद थोड़े समय के लिए शांत बैठ जाये। अपनी आखें बंद कर लें और भगवान् शिव के असीम स्नेह का मनन करें।मन में भावना करें कि भगवान् शिव ने आपकी प्रार्थना को सुन लिया है।वे उनका आशीर्वाद आपको प्रदान कर रहे हैं।उनकी कृपा से जिस भी कामना से आपने मंत्र का जप किया है, वह कामना पूर्ण हो रही है.

इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान् शिव के प्रति सम्मान प्रकट करें और पूजा का स्थान छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ।

 

  

(6.8.6) शिव मंत्र Om Namah Shivay Shubham Shubham Kuru Kuru Shivay Namah Om

 शिव मंत्र Om Namah Shivay Shubham Shubham Kuru Kuru Shivay Namah Om

 शिव मंत्र – (समस्त महत्वाकांक्षाओ तथा शुभ कामनाओं की पूर्ति हेतु )ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नमः ॐ

 भारतीय ऋषि मुनियों ने जीवन को सहज तरीके से बिताने के लिए कई उपाय बताये हैं। उन उपायों को करने से उत्पन्न समस्या का निवारण हो जाता है और उन उपायों को पूर्व में किया जाए तो भावी समस्याएं स्वतः ही टल जाती हैं। प्रार्थना के रूप में किये गए उपाय श्रेष्ठ माने जाते हैं। इस मंत्र में भगवान् शिव से जीवन में शुभ और मंगलमय होने की प्रार्थना की गई है. भगवान् शिव को प्रसन्न करने तथा समस्त शुभ कामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान् विष्णु ने देवताओं को इस मंत्र के जप करने का निर्देश दिया था.

उत्तर या पूर्व दिशा में मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ कर भगवान् शिव का इस प्रकार ध्यान करे -

जो आदि और अंत में नित्य मंगलमय हैं, जिनकी समानता अथवा तुलना कही भी, किसी से भी नहीं की जा सकती है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले परमात्मा हैं, जिनके पांच मुख हैं और जो जगत की रचना, पालन, संहार तथा अनुग्रह करते रहते है. उन सर्वश्रेष्ठ, अजर, अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान शिव का मैं मन ही मन चिंतन करता हूँ। ध्यान के पश्चात् इस मंत्र का एक, तीन या पांच माला का जप करे। मंत्र इस प्रकार है -

ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नमः ॐ

जप के बाद भावना करे कि भगवान शिव आपकी समस्त शुभ कामनाओं की पूर्ति कर रहे है और आपकी समस्या का समाधान हो रहा है तथा आपको उनका आशीर्वाद मिल रहा है।

Tuesday 19 September 2023

(6.7.9) देवी लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम Lakshmi Ke 18 Putron Ke Naam

देवी लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम Lakshmi Ke 18 Putron Ke Naam

देवी लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम

देवी लक्ष्मी धन, सम्पति तथा सम्पन्नता की देवी है. इनके आशीर्वाद से इनके भक्तों को कभी भी आर्थिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है. इनकी कृपा पाने के लिए कई स्तोत्र, मन्त्र आदि हैं. इनके 18 पुत्रों के नामों का स्मरण भी उनमें से एक है. प्रतिदिन इन 18 नामों का जप करने से देवी लक्ष्मी की कृपा से सम्पन्नता आती है और मानसिक शान्ति मिलती है. 

देवी माँ लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं –

ॐ देवसखाय नमः

ॐ चिक्लीताय नमः

ॐ आनन्दाय नमः

ॐ कर्दमाय नमः

ॐ श्रीप्रदाय नमः

ॐ जातवेदाय नमः

ॐ अनुरागाय नमः

ॐ सम्वादाय नमः

ॐ विजयाय नमः

ॐ वल्लभाय नमः

ॐ मदाय नमः

ॐ हर्षाय नमः

ॐ बलाय नमः

ॐ तेजसे नमः

ॐ दमकाय नमः

ॐ सलिलाय नमः

ॐ गुग्गुलाय नमः

ॐ कुरुन्टकाय नमः 

(6.7.8) श्री सूक्त (आर्थिक सम्पन्नता हेतु) Shree Sukt for wealth and prosperity / Shri Sukt in Hindi

 श्री सूक्त (आर्थिक सम्पन्नता हेतु) Shree Sukt for wealth and prosperity / Shri Sukt in Hindi

श्री सूक्त / श्री सूक्तम्

श्री सूक्त, देवी लक्ष्मी से सम्बंधित स्तोत्रों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तोत्र है. यह स्तोत्र भौतिक कामनाओं की पूर्ति तथा यश प्राप्त करने का अमोघ साधन है.

श्री सूक्त का हिंदी रूपान्तरण इस प्रकार है –

हे जातवेद, अग्निदेव, आप सुवर्ण के समान रंगवाली, किंचित हरितवर्ण विशिष्टा, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रवत प्रसन्नकान्ति, स्वर्णमय लक्ष्मीदेवी का मेरे लिए आह्वान करें. (१)

हे जातवेद, अग्निदेव, उन लक्ष्मीदेवी का, जिनका कभी विनाश नहीं होता है, तथा जिनके आगमन से मैं स्वर्ण, गायें, घोड़े तथा पुत्रादि प्राप्त करूँगा, मेरे लिए आप उनका आह्वान करे. (२)

देवी, जो घोड़े जुते रथ के मध्य में विराजमान रहती हैं. जो हस्तिनाद सुनकर प्रसन्न होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आह्वान करता हूँ. सबकी आश्रयदाता माता लक्ष्मी मेरे घर में सदैव निवास करे.(३)

जिस देवी का स्वरुप, मन और वाणी का विषय न होने के कारण, अवर्णनीय है तथा जिनके अधरों पर सदैव मुस्कान रहती है, जो चारों ओर स्वर्ण से ओतप्रोत हैं, जिनका ह्रदय दया से द्रवित है, जो अपने भक्तों के मनोरथों को पूर्ण करने वाली हैं, कमल के आसन पर विराजमान और पद्मवर्णा हैं, मैं ऐसी देवी लक्ष्मी को मेरे घर में आने के लिए उनका आह्वान करता हूँ. (४)

चन्द्रमा के समान प्रकाश वाली, श्रेष्ठ कान्ति वाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्गलोक में देवगणों द्वारा पूजिता, उदारशीला, पद्महस्ता लक्ष्मी देवी की मैं शरण ग्रहण करता हूँ. आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो. (५)

हे सूर्य के समान कान्ति वाली देवी, आपके ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ है. उस बिल्व वृक्ष का फल आपके अनुग्रह से मेरी बाहरी और भीतरी दरिद्रता को दूर् करे. (६)

हे देवी लक्ष्मी, देव सखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हो अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो. मैं इस राष्ट्र में पैदा हुआ हूँ. मुझे कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें. (७)

लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी का, जो क्षुधा और विपासा से मलीन व क्षीणकाय रहती है, मैं उसका नाश चाहता हूँ. हे देवी, मेरे घर से हर प्रकार की दरिद्रता और अमंगल को दूर करो. (८)

सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी न दबने योग्य, धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर समृद्धि देने वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी का मैं अपने घर में सादर आह्वान करता हूँ. (९)

हे माँ लक्ष्मी आपकी कृपा से मेरे मनोरथ, संकल्प सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो. आपकी कृपा से मुझे गाय आदि पशुओं के दूध, दही एवं विभिन्न प्रकार के भोजनादि प्राप्त हो, हे माँ लक्ष्मी सभी प्रकार की संपत्ति को आप मुझे प्राप्त कराये अर्थात मैं लक्ष्मीवान व कीर्तिमान बनूँ (१०)

हे देवी लक्ष्मी, आप कर्दम नामक पुत्र से युक्त हो, हे लक्ष्मी पुत्र कर्दम, आप मेरे घर में प्रसन्नता के साथ निवास करो, और कमल की माला धारण करने वाली आपकी माता श्री लक्ष्मीजी को मेरे घर में स्थापित कराओ. (११)

हे लक्ष्मी के पुत्र चिक्लीत आप मेरे घर में निवास करें. केवल आप ही नहीं, आपके साथ दिव्य गुणों से युक्त सबको आश्रय देने वाली लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ. (१२)

हे अग्निदेव, आप मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात हाथियों की सूंडों से आद्र शरीर वाली, पुष्टि प्रदान करने वाली, पीतवर्ण वाली, कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त , स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी का मेरे यहाँ आह्वान करें. (१३)

हे अग्ने, जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलंबन प्रदान करने वाली, सुवर्ण माला धारिणी, सूर्य स्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिए आह्वान करें. (१४)

हे अग्ने, कभी नष्ट न होने वाली, उन लक्ष्मी देवी का मेरे यहाँ आह्वान करें, जिनके आगमन से मुझे बहुत सारा धन, गायें, दासियाँ, अश्व और पुत्रादि प्राप्त हो. (१५)

जिस व्यक्ति को सुख समृद्धि व अतुल लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और सयंमशील होकर अग्नि में घी की आहुति दे तथा इन पन्द्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त का पाठ करे. (१६)

इति श्री सूक्त सम्पूर्ण

 

 

 

(6.7.7) श्री सूक्त के पाठ करने के लाभ और पाठ की विधि Benefits of Shree Sookt

 श्री सूक्त के पाठ करने के लाभ और पाठ की विधि Benefits of Shree Sookt

श्री सूक्त के पाठ करने के लाभ और विधि

श्री सूक्त या श्री सूक्तम् देवी लक्ष्मी की आराधना के लिए उनको समर्पित स्तोत्र है. इस स्तोत्र मन्त्र का पाठ करने के लाभ इस प्रकार हैं –

श्रीसूक्त का श्रद्धा और विश्वास पाठ करने वाले व्यक्ति पर देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है जिससे उसको किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता है. इस संसार के समस्त सुखों की प्राप्ति होती है. उसकी मनोकामना पूर्ण होती है,

उसे आर्थिक सम्पन्नता और यश प्राप्त होते हैं. जीवन में सुख, समृद्धि और वैभव आते हैं.

रचनात्मकता का विकास होता है और कार्य में अपेक्षित सफलता प्राप्त होती है.

श्री सूक्त के पाठ करने की विधि –

श्री सूक्त का पाठ शुक्रवार या किसी शुभ दिन से प्रारम्भ किया जा सकता है. देवी लक्ष्मी का चित्र अपने सामने रखें. पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जाएँ. फिर देवी लक्ष्मी का ध्यान करे.

ध्यान इस प्रकार है –

भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान जिनके सुन्दर नेत्र हैं. जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्त वाली नाभि है, जो सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि जड़ित दिव्य स्वर्ण कलशों के द्वारा स्नान किये हुए हैं, जो भगवान् विष्णु को बहुत प्रिय है, वे कमलहस्ता सदा सभी मंगलों के सहित मेरे घर में निवास करें.    

ध्यान के बाद प्रतिदिन श्री सूक्त का पाठ करें. पाठ करने के बाद भावना करें कि देवी लक्ष्मी की आप पर कृपा वृष्टि हो रही है और आप भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न हो रहे हैं. आपकी मनोकामना पूर्ण हो रही है.

 

Monday 4 September 2023

(8.3.2) शिक्षक दिवस पर भाषण Speech on Teachers’ Day

 शिक्षक दिवस पर भाषण Speech on Teachers’ Day

शिक्षक दिवस पर भाषण

शिक्षक दिवस के अवसर पर शुभ कामना.

शिक्षकों को समर्पित यह शुभ दिन भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन है, जिसे हम शिक्षकों का सम्मान करने हेतु शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं. 

“आचार्य देवो भवः” यह उक्ति भारत में प्राचीन काल से ही गुरु - शिष्य परम्परा की आधार शिला रही है. आचार्य, जिसे शिक्षक, अध्यापक, गुरु आदि के नाम से संबोधित किया जाता है, वह अपने शिष्य, विद्यार्थी या शिक्षार्थी के लिए देवता के समान है. क्योंकि शिक्षक ही विद्यार्थी को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है और उचित मार्गदर्शन प्रदान करता है.

विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. शिक्षक शिक्षा के साथ - साथ अनुशासन, चरित्र निर्माण और नैतिक आचरण जैसे मूल्यों की स्थापना करके विद्यार्थियों को भावी परिस्थितियों का सामना करने के लिए सक्षम नागरिक बनाता है.

विद्यार्थी राष्ट्र का भविष्य होते हैं. वे शिक्षकों का उचित मार्गदर्शन पाकर, योग्य और कुशल नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए राष्ट्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ा कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते हैं.

शिक्षक सामाजिक अभियंता होते हैं. वे भावी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील. शिक्षक, वैज्ञानिक, राजनेता और समाज के लिए उपयोगी कार्यकर्ताओं का निर्माण करते हैं. यह शिक्षक ही है जो विद्यार्थी की योग्यता और क्षमता को पहचानता है और उसके अनुरूप ही उसका मार्गदर्शन करके उसे क्षेत्र विशेष में उपयुक्त स्थान दिलाता है. इतिहास गवाह है, यदि द्रोणाचार्य नहीं होते तो, अर्जुन धनुष विद्या में निपुण नहीं होता, यदि रामकृष्ण नहीं होते तो विवेकानंद नहीं होते. चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य की भूमिका को कौन नहीं जानता है? ऐसे आदर्श गुरु और शिष्यों की लम्बी सूची है.

एक विद्यार्थी के लिए शिक्षक के सहयोग और उसकी भूमिका के महत्व के बारे में बताते हुए हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कहते हैं कि मेरे अध्यापक, जिनका नाम अय्या दुराई सोलोमन था, ने मुझे उनके व्यक्तिव तथा विचारों द्वारा गहन रूप से प्रभावित किया. सोलोमन ने मेरे आत्म सम्मान को उच्चतम बिन्दु तक पहुँचा दिया और मुझे आश्वस्त कर दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने खुद के महत्त्व को समझे और सफल होने का विश्वास रखे तो वह सफल हो सकता है, अपनी तकदीर बदल सकता है. वे आगे कहते हैं कि जीवन में सफल होने व अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को इच्छा, आस्था और आशा नामक तीन वृहद ताकतों को समझना और उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए.

इस प्रकार डॉ. कलाम के शिक्षक ने उनके जीवन में आत्मविश्वास, आत्मबल और स्वयं का मूल्य समझने की भावना उत्पन्न कर दी. परिणामस्वरूप वे एक सफल वैज्ञानिक और सफल राष्ट्रपति के रूप में स्थापित हुए.

इसी प्रकार प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन पर शिक्षक का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है इसलिए शिक्षकों को अपने कार्य, आचरण तथा व्यवहार द्वारा ऐसा प्रदर्शन करना चाहिए, ऐसी छाप छोड़नी चाहिए जिससे उनके विद्यार्थियों पर रचनात्मक और सकारात्मक प्रभाव पड़े और वे उनके शिक्षकों को सम्मान के साथ स्मरण करते रहें जैसे डॉ. कलाम उनके शिक्षक को याद करते थे.

मैं, शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी शिक्षकों को नमन करता हुआ अपनी वाणी को विराम देता हूँ.

धन्यवाद      

  

Sunday 3 September 2023

(6.7.6) लक्ष्मी गायत्री मन्त्र / लक्ष्मी गायत्री मंत्र के लाभ Benefits of Lakshmi Gayatri Mantra

 लक्ष्मी गायत्री मन्त्र / लक्ष्मी गायत्री मंत्र के लाभ Benefits of Lakshmi Gayatri Mantra

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र Lakshmi Gayatri Mantra

देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि, सम्पदा और शौभाग्य की देवी है. यह अपने भक्तों को सभी प्रकार की सम्पदा प्रदान करती है. देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताये गए हैं. लक्ष्मी गायत्री मन्त्र का जप करना भी उन उपायों में से एक उपाय है.

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र के जप करने के लाभ इस प्रकार हैं –

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र का निष्ठा और विश्वास के साथ जप करने से जप कर्ता को देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.

जपकर्ता का भाग्योदय होता है.

आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त होती है.

व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है.

व्यापार में घाटे की स्थिति नहीं आती है.

मनोकामना पूर्ण होती है.

ऋणी को ऋण से मुक्ति मिलती है.

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र के जप करने की विधि –

देवी लक्ष्मी का चित्र अपने सामने रखें. पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके ऊन के आसन पर बैठ जाएँ. फिर देवी लक्ष्मी का ध्यान करे.

ध्यान इस प्रकार है –

भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान जिनके सुन्दर नैत्र हैं. जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्त वाली नाभि है, जो सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि जड़ित दिव्य स्वर्ण कलशों के द्वारा स्नान किये हुए हैं, जो भगवान् विष्णु को बहुत प्रिय है, वे कमलहस्ता सदा सभी मंगलों के सहित मेरे घर में निवास करें.    

ध्यान के बाद लक्ष्मी गायत्री मन्त्र का श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रतिदिन सुविधा अनुसार पाँच, तीन या एक माला का जप करें. जप करने के बाद भावना करें कि देवी लक्ष्मी की आप पर कृपा वृष्टि हो रही है और आप भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न हो रहे हैं. आपकी मनोकामना पूर्ण हो रही है.

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र इस प्रकार है -

ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु प्रियायै धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्

 

 

Saturday 2 September 2023

(6.7.5) लक्ष्मी कहाँ नहीं रहती है ? लक्ष्मी कहाँ वास नहीं करती है. Laxmi Kahan Nahin Rahati Hai?

 लक्ष्मी कहाँ नहीं रहती है ? लक्ष्मी कहाँ वास नहीं करती है. Laxmi Kahan Nahin Rahati Hai?

 लक्ष्मी कहाँ नहीं रहती है ?

लक्ष्मी कहाँ नहीं रहती है इस संबंध में देवी लक्ष्मी स्वयं कहती हैं कि मैं मिथ्यावादी अर्थात झूठ बोलने वाले, धर्म ग्रंथों को कभी भी नहीं देखने वाले यानि धर्म ग्रंथों को पढ़ने सुनने से परहेज करने वाले, पराक्रम से हीन, दुष्ट स्वभाव वाले पुरुषों के घर मैं नहीं जाती हूँ.  

सत्य से हीन, किसी की धरोहर छीनने वाले, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघात करने वाले, तथा कृतघ्न पुरुषों के घर भी मैं नहीं जाती हूँ.

चिंता ग्रस्त, भय में सदा डूबे हुए, शत्रुओं से घिरे हुए, अत्यंत पातकी, कर्जदार और अत्यन्त कंजूस के घर मैं नहीं जाती हूँ. परिणाम स्वरुप वे जीवन भर दीन हीन ही बने रहते हैं.

मैं दीक्षाहीन, शोकग्रस्त, मन्दबुद्धि और व्यभिचारी मनुष्य के घर में भी मैं नहीं रहती हूँ.

कटुभाषी, कलह प्रिय अर्थात जिस परिवार में कलह या लड़ाई झगड़े का वातावरण होता है, ऐसे परिवार में भी मैं नहीं रहती हूँ.

जिस घर में भगवान की पूजा और कीर्तन नहीं होते हैं अर्थात जहाँ सात्विक वातावरण का प्रभाव नहीं होता है, जिस व्यक्ति के मन में भगवान की प्रशंसा का भाव नहीं होता है, मैं वहाँ नहीं रहती हूँ.     

मैं अकर्मण्य, आलसी, नास्तिक, परलोक और ईश्वर को नहीं मानने वाले, वर्णसंकर   जारज,  कृतघ्न यानि उपकार को भुला देने वाले, अपनी बात पर स्थिर नहीं रहने वाले, कठोर वचन बोलने वाले, चोर और गुरुजन के प्रति इर्ष्या – द्वेष तथा डाह रखने वाले पुरुषों के घर में भी मैं कभी नहीं रहती हूँ.

मैं ऐसे पुरुषों के पास भी कभी नहीं रहना चाहती, जिनमें तेज, बल और आत्म गौरव का सदा अभाव रहता है. जो लोग थोड़े में ही कष्ट का अनुभव करने लगते हैं, जरा – जरा सी बात पर क्रोध करने लगते हैं तथा जिनके मनोरथ कभी कार्यरूप में परिणित नहीं होते हैं.

चाणक्य नीति के अनुसार गन्दा वस्त्र पहनने वाले, दांतों को साफ़ नहीं रखने वाले, अधिक भोजन करने वाले, निष्ठुर भाषण करने वाले तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है.

विदुर नीति के अनुसार जो व्यक्ति दुःख से पीड़ित, प्रमादी, नास्तिक, आलसी और उत्साह रहित हैं, उनके यहाँ भी लक्ष्मी वास नहीं करती है. इसके अतिरिक्त महात्मा विदुर आगे कहते हैं कि जैसे हंस सूखे सरोवर के आस पास ही मंडराकर रह जाते हैं, भीतर प्रवेश नहीं करते, उसी प्रकार जिसका चित्त चंचल है, जो अज्ञानी और इन्द्रियों का गुलाम है, उसके घर में लक्ष्मी प्रवेश नहीं करती है.