Sunday 15 March 2015

(3.1.19) Benefits of Gayatri Mantra (in Hindi)


गायत्री साधना सिद्धि के लक्षण Benefits of Gayatri Mantra

गायत्री मन्त्र की उपयोगिता और लाभ को शब्दों में बाँधना  संभव नहीं है क्योंकि वे अनंत हैं। उनमें से कुछ निम्नांकित हैं -  
(1) विधि विधान से गायत्री साधना की जाए तो उस साधना के परिणाम हमेशा ही आशानुकूल निकलते है।जितना जप किया जाएगा उतनी ही सफलता सुनिश्चित है।
(2) साधना के परिणामस्वरूप साधक यह अनुभव करने लगता है कि जप के पूर्व जो उसका मानसिक स्तर था वह उससे ऊँचा उठ रहा है, विचारों, भावनाओं  और वृत्तियों में परिवर्तन आ रहा है। उसमें  एक नयी शक्ति व स्फूर्ति आ रही है। उत्साह, आशा और आत्मविश्वास उसके मन में भरता जा रहा है।
(3) ज्यों -ज्यों  जप की संख्या बढ़ने लगती है उसका अज्ञान दूर होकर उसमे विवेक और ज्ञान का उदय होता है। मानसिक शक्तियों और आनंद की अनुभूति होती है। उसके जीवन में अशांति उत्पन्न करने वाली परिस्थितियां आ सकती हैं परन्तु वे प्रभावहीन रहती हैं। 
(4) सांसारिक दुःख या संकट साधक को उसके पथ से विचलित नहीं कर सकते हैं।
(5) परमार्थवृत्ति  उसके स्वभाव में आने लगाती है, जिससे वह ऐसी गतिविधियों का सञ्चालन करता है जो नैतिक, धार्मिक व सामजिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाली होती है। 
(6) ऐसे साधक को आर्थिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। उसके व्यवसाय में उत्थान होता रहता है। समस्याओं का सामाधान निकलता रहता है और विपरीत परिस्थितियां अनुकूल बनने लगती है।
(7) कभी-कभी चमत्कारिक रूप से उसे ऐसे सहयोग मिलते हैं जिनकी उसने आशा भी नहीं की थी। वह नित्य प्रति सृजनात्मक विचारों का धनी होता रहता है। जिसके परिणामस्वरूप वह रचनात्मक प्रवृत्तियों में लगा रहता है। सामाजिक और आर्थिक रूप से उच्च परिस्थिति वाले लोग भी गायत्री साधक को सम्मान देते  हैं। 
(8) उसके मन में आपदा के समय भी उल्लास और विश्वास भरा रहता है। उसके नेत्रों में तेज चमकने लगता है। वह अपने विचारों को अपनी इच्छाशक्ति के माध्यम  से दूसरे व्यक्ति के मन में पंहुचा सकता है। दूसरे लोग उसके पास बैठकर अच्छा अनुभव करते हैं। 
(3.1.7) Gayatri Mantra Jap kyon
(3.1.8) Meaning of Gayatri Mantra
(3.1.9) Gayatri Mantra Jap Vidhi
(3.1.10) Gayatri Mantra jap ke upyog
(3.1.11) Gayatri Mantra for wisdom
(3.1.12) Gayatri Mantra for wealth
(3.1.13

(3.1.18) Gayatri Mantra removing evil omens
(3.1.19) Benefits of Gayatri Mantra


Friday 13 March 2015

(3.1.18) Gayatri Mantra for removing evil omens

गायत्री मंत्र  बुरे मुहूर्त और शकुन का परिहार Gayatri mantra removing evil omens)


कभी-कभी किसी कार्य  को आरम्भ करते समय कोई खराब मुहूर्त, शकुन अथवा कोई निराशावादी विचार उत्पन्न हो जाता है। परिणाम स्वरुप कार्य करने में झिझक होती है, मन में आशंका उत्पन्न होती हो तो ऐसी परिस्थिति में गायत्री मंत्र की एक माला का जप कर कार्य प्रारंभ किया जाना चाहिए साथ ही मन में यह  धारणा करें कि कार्य से जुडी हुई आशंका व अनिष्ट निर्मूल हो गए हैं। देवी गायत्री की कृपा से वह कार्य निर्बाध रूप से पूर्ण होगा।
 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

(3.1.17) Gayatri mantra for happiness in the family

 महिलाओं के लिए सुखी गृहस्थ बनाने वाली गायत्री साधना ( Gayatri mantra For happiness in family )

 दाम्पत्य जीवन को सुखी समृद्ध बनाने के लिए गायत्री मंत्र जप श्रेष्ठ है। यह उपासना स्वयं साधिका के स्वभाव में ऐसा परिवर्तन लाती है कि  वह  अपने परिवार के लिए हँसती-खेलती मूर्ती सी लगने लगती है। दुःख, अभाव और कष्ट में भी वह प्रसन्नता पूर्वक अपने परिवार का साथ देती है। दुःख से चिंतित होकर वह पति या परिवार की चिंता नहीं बढाती है बल्कि उपयुक्त सलाह व सहयोग की भावना से उस चिंता को दूर कर देती है। पतन के मार्ग पर चल रही संतान को भी वह सद् मार्ग पर ला सकती है। परिवार को सुखी व संपन्न बनाने के लिए गायत्री साधना इस प्रकार करनी चाहिए:-
पूर्व की ओर मुख करके ऊन या कुश के आसन  पर बैठकर तुलसी की माला से प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जप करना चाहिए। पीत वस्त्र तथा पीले सिंह पर सवार गायत्री का ध्यान करे। पूजा की सभी वस्तुएं पीली हो जैसे पीले  रंग के पुष्प, पीले चावल (चावल हल्दी से पीले किये हुए) और वस्त्र भी पीले रंग के हो। भोजन में भी एक वस्तु पीली हो तो उत्तम रहता है। हर पूर्णमासी को व्रत रखकर विशेष जप साधना करनी चाहिए। कुमार्गी बच्चो को सुधरने के लिए साधना से बचे हुए जल को उन्हें पिलाना चाहिए।
गोदी के बच्चे को गोद में लेकर जप करे तो वह हर प्रकार से स्वस्थ बना रहता है। इस हेतु साधिका को चाहिए कि वह गुलाबी कमल पुष्पों से लदी हुई हंसरूढ़, शंख चक्र धारण किये हुए गायत्री का ध्यान करे। दूध पिलाते हुए भी  जप करती रहे तो बच्चा सदाचारी होता है तथा स्वस्थ रहता है। दूध पिलाते समय माँ को भावना करनी चाहिए कि उसके दूध के माध्यम से दिव्य शक्तियों का संचार उसके बच्चे में हो रहा है और बच्चा स्वस्थ तथा आयुवान होता जा रहा है।
गृहस्थ जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट और विपत्तियाँ आती हैं जिनको दूर करने में यदि घोर निराशा की स्थिति उत्पन्न हो रही हो तो गायत्री माँ का आँचल पकड़ना चाहिए अर्थात गायत्री का मानसिक जप करते रहना चाहिए और भावना करनी चाहिए कि माँ गायत्री की कृपा से या तो निराशा की स्थिति समाप्त हो जायेगी या उसकी समाप्ति के लिए कोई मार्ग सूझ जाएगा। श्रद्धा पूर्वक गायत्री की उपासना करने वाला कभी निराश नहीं होता हैं।
 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

(3.1.16) Gayatri mantra for removing undesirable situations

गायत्री मन्त्र - अनिष्टों का नाश करने के लिए ( Gayatri mantra For removing undesirable situations )


 किसी बुरे शकुन के उपस्थित होने पर या किसी कार्य को आरम्भ करने में आशंका हो तो गायत्री मंत्र की एक माला का जप करके वह कार्य आरम्भ किया जा सकता है। विवाह आदि में चन्द्रमा, बृहस्पति, सूर्यादि की कोई बाधा बताई जाती हो, विवाह नहीं हो रहा हो या ऐसी ही कोई और रूकावट हो तो गायत्री मंत्र का नौ दिन का चौबीस हजार जप का एक लघु अनुष्ठान करना चाहिए। इससे इस प्रकार की सभी बाधाएं शांत हो जाती हैं और किसी भी अनिष्ट का भय नहीं रहता है।
 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

Thursday 12 March 2015

(3.1.15) Gayatri Mantra for success in Govt. work

 राजकीय कार्यों में सफलता के लिए-( Gayatri mantra For success in govt. work)

नौकरी के लिए किसी अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना हो, कोई आवश्यक आवेदनपत्र स्वयं देना हो, कोई मुक़दमा या किसी प्रकार का कोई कार्य हो तो इस प्रकार साधना करनी चाहिए:-
इस तरह के कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए स्वर योग का प्रयोग किया जाता हैं। पहले यह देखना चाहिए कि बायाँ या दायाँ कौनसा स्वर चल रहा है। बायाँ स्वर चलने पर हरित वर्ण ज्योति का ध्यान करें, दाहिना स्वर चलने पर पीत वर्ण प्रकाश का ध्यान करें और सप्त व्याहृतियाँ (ॐ भू: भुवः स्वः तपः जनः महः सत्यम) सहित मानसिक रूप से गायत्री मंत्र का कम से कम बारह बार जप करें। जप करते समय उसी हाथ के अंगूठे के नाखून पर दृष्टि बनी रहे जो स्वर चल रहा है। इस प्रकार कार्यालय में प्रविष्ट हो और भावना  करें कि वह अधिकारी हमारी इच्छा के अनुरूप हमसे वार्तालाप कर रहा है। जब तक कार्यालय में रहे इसी प्रकार का मानसिक जप व भावना करते रहना चाहिए। यह साधना प्रतिकूल विचारों को अनुकूल बना देती है।
 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

(3.1.14) Gayatri Mantra for making opposing persons in favour

विरोधियों को अपने अनुकूल बनाने के लिए ( Gayatri mantra For making opposing persons in favour)

विरोधी कितना भी शक्तिशाली, उच्च पद पर आसीन हो और आपके हर काम में बाधा उत्पन्न कर रहा हो तो उसे अपने अनुकूल बनाने के लिए तीन प्रणव (ॐ) लगाकर गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। जपकाल में इस प्रकार ध्यान करना चाहिए कि हमारे मष्तिष्क में नीलवर्ण का विद्युत  प्रवाह निकल रहा है और उसके (विरोधी के) मस्तिष्क में जा रहा हैं और वह उससे प्रभावित होकर हाथ जोड़कर हमारे सामने खड़ा होकर प्रसन्न मुद्रा में हमारे अनुकूल विचारों में बातचीत कर रहा है और अपनी मित्रता व सहयोग का आश्वाशन दे रहा है।
 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

(3.1.13) Gayatri Mantra for son/ daughter (in Hindi)

 संतान प्राप्ति के लिए गायत्री मन्त्र - ( Gayatri mantra for good son/ offspring /progeny)(in Hindi) 
गर्भ की स्थापना नहीं हो रही हो या गर्भ गिर जाता हैं तो संतान प्राप्ति के लिए इस प्रकार साधना करनी चाहिए:-
इस साधना को पति पत्नी दोनों करें। पुष्प हाथ में धारण किये हुए किशोर अवस्था वाली, श्वेत वस्त्र व आभूषणों से विभूषित गायत्री का ध्यान करें। "यं" बीज मंत्र के तीन बार सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। माला चन्दन की होनी चाहिए। गायत्री जप के पूर्व प्राणायाम की निम्नांकित विधि का उपयोग करना चाहिए:-
पूरक में धीरे-धीरे पेडू तक पूरी सांस भर लें। अंतर कुम्भक में जब सांस रोकें तो "यं" बीज  मंत्र का सम्पुट लगाकर तीन बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। तीन बार अधिक प्रतीत हो तो एक बार जप करना चाहिए। फिर धीरे-धीरे सांस को बहार निकाल देवे। रेचक में उतना ही समय लगना चाहिए जितना कि  पूरक में लगाया था। बाह्य कुम्भक में भी अंतर कुम्भक के सामान समय लगना  चाहिए। इस प्रकार नित्य दस बार प्राणायाम करना चाहिए। इस प्रकार पेडू में गायत्री शक्ति का आकर्षण किया जाता हैं और पति-पत्नी अपने अन्दर शुभ्रवर्ण ज्योति का ध्यान करना चाहिए। साथ ही यह ध्यान करें कि देवी गायत्री उत्तम संतान का आशीर्वाद दे रही है। इसके बाद गायत्री मंत्र का कम से कम एक माला का जप करना चाहिए।
जब तक साधना चले, प्रत्येक रविवार को भोजन में श्वेत वस्तुओं का ही प्रयोग करें। इनमे दूध, दही, चावल आदि श्रेष्ठ माने जातें हैं। गायत्री शक्ति को धारण कराने वाली इस साधना से चरित्रवान, बुद्धिमान और स्वस्थ संतान की आशा करनी चाहिए।
 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

Wednesday 11 March 2015

(3.1.12) Gayatri Mantra getting wealth, money (in Hindi)

(3.1.12) लक्ष्मी प्राप्ति के लिए- (Gayatri mantra for wealth/ money)  (हिंदी में )                                                                                          

आर्थिक स्थिति कमजोर हो, परिवार पालन पोषण के लिए पर्याप्त आय न हो, नौकरी नहीं मिल रही हो अथवा कर्जदारी बढ़ रही हो तो साधक को चाहिए कि वह तीन बार "श्रीं" बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करे (अर्थात गायत्री मंत्र के पूर्व में और अंत में तीन बार "श्रीं" लगाकर जप करें।) पीतवर्ण लक्षी का प्रतीक मन जाता हैं अतः जप के पूर्व हाथी पर सवार पीताम्बर धारी लक्ष्मी का ध्यान करे। पूजा में आसन यज्ञोपवीत, वस्त्र, पुष्प सभी पीले होने चाहिए। भोजन में भी पीली वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। जप करते समय इस प्रकार ध्यान करें कि गायत्री माता प्रसन्न होकर आपको सफलता का आशीर्वाद दे रही है और धन की वर्षा कर रही है ।

 ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!



(3.1.11) Gayatri Mantra for wisdom and intelligence in Hindi

Buddhi ke vikas hetu Gayatri Mantra बुद्धि विकास के लिए गायत्री मंत्र (हिन्दी में )                                                                                           

 गायत्री मंत्र बुद्धि को शुद्ध पवित्र और प्रखर बनाता है। इसके लिए साधक को चाहिए कि  वह स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे। अपनी आँखों को अधखुली रखे। सूरज की किरणों को अपने मष्तिष्क पर पड़ने दे । गायत्री मंत्र के पहले तीन बार ॐ जोड़ दे और श्रद्धा पूर्वक मंत्र का जप करें। जप कम से कम एक माला का तो होना ही चाहिए। अधिक कर सके तो तीन, पांच, सात मालाओं का जप किया जा सकता है। जप के बाद दोनों हाथों की हथेलियों को सूर्य की तरफ करे तथा भावना करे कि उनमे सूर्य की शक्ति प्रविष्ट हो रही है। गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए हथेलियों को आपस में रगड़े और उनको अपने मस्तक, ललाट, नेत्रों, मुँह , गले, कान आदि गले के सभी भागों पर फेरे और भावना करे कि  आपके मस्तिष्क के तंतु खुल रहे हैं और आप सदबुद्धि  संपन्न होते जा रहे हैं और आपकी बुद्धि प्रखर होती जा रही है।

ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!

(3.1.10) Gayatri Mantra ke Upyog / Uses of Gayatri Matra

 Various uses of Gayatri Mantra /गायत्री मंत्र के विविध उपयोग (हिंदी में )

गायत्री मंत्र व्यक्ति को सद मार्ग की ओर ले जाता है, उसकी बुद्धि को निर्मल करता है। गायत्री मंत्र के जप से व्यक्ति की बुद्धि सतोगुणी दिव्य तत्वों से आच्छादित हो जाती है जिससे मनुष्य कल्याणकारी मार्ग की ओर बढ़ता है।  गायत्री उपासना व्यक्तित्व को परिष्कृत और प्रखर करती है और साथ ही सांसारिक और पारलौकिक सुख प्रदान करती है। गायत्री मंत्र आध्यात्मिक और भौतिक सिद्धियाँ प्रदान करता है।  
विशेष:- निश्चित रूप से ही गायत्री मंत्र के जप के प्रभाव से विपत्तियों का सामना करने के लिए के एक प्रकार का मनोबल प्राप्त होता है तथा सूझबूझ उत्पन्न होती है और अप्रत्याशित सहायता मिलती है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति गायत्री मंत्र का उपयोग दूसरों के अनिष्ट के लिए करना चाहे तो साधक को निराशा ही हाथ लगेगी।
गायत्री मंत्र के विविध उपयोग निम्नांकित हैं - 
1. बुद्धि विकास के लिए- (Gayatri Mantra for wisdom / intelligence) 
गायत्री मंत्र बुद्धि को पवित्र और निर्मल व प्रखर  बनाता है इसके लिए साधक को चाहिये कि वह स्नान आदि से निवृत्त होकर पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे। अपनी आँखों को अधखुली रखे। सूरज की किरणों को अपने मष्तिष्क पर पड़ने दे । गायत्री मंत्र के पहले तीन बार ॐ जोड़ दे और श्रद्धा पूर्वक मंत्र का जप करें। जप कम से कम एक माला का तो होना ही चाहिए। अधिक कर सके तो तीन, पांच, सात मालाओं का जप किया जा सकता है। जप के बाद दोनों हाथों की हथेलियों को सूर्य की तरफ करे तथा भावना करे कि उनमे सूर्य की शक्ति प्रविष्ट हो रही है। गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए हथेलियों को आपस में रगड़े और उनको अपने मस्तक, ललाट, नेत्रों, मुँह , गले, कान आदि गले के सभी भागों पर फेरे और भावना करे कि  आपके मस्तिष्क के तंतु खुल रहे हैं और आप सदबुद्धि  संपन्न होते जा रहे हैं और आपकी बुद्धि प्रखर होती जा रही है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
 (2) लक्ष्मी प्राप्ति के लिए- (Gayatri mantra for wealth/ money)                                                                                              
आर्थिक स्थिति कमजोर हो, परिवार पालन पोषण के लिए पर्याप्त आय न हो, नौकरी नहीं मिल रही हो अथवा कर्जदारी बढ़ रही हो तो साधक को चाहिए कि वह तीन बार "श्रीं" बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करे (अर्थात गायत्री मंत्र के पूर्व में और अंत में तीन बार "श्रीं" लगाकर जप करें।) पीतवर्ण लक्षी का प्रतीक मन जाता हैं अतः जप के पूर्व हाथी पर सवार पीताम्बर धारी लक्ष्मी का ध्यान करे। पूजा में आसन यज्ञोपवीत, वस्त्र, पुष्प सभी पीले होने चाहिए। भोजन में भी पीली वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। जप करते समय इस प्रकार ध्यान करें कि गायत्री माता प्रसन्न होकर आपको सफलता का आशीर्वाद दे रही है और धन की वर्षा कर रही है ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

(3) संतान प्राप्ति के लिए- ( Gayatri mantra for good son/ offspring /progeny)
गर्भ की स्थापना नहीं हो रही हो या गर्भ गिर जाता हैं तो संतान प्राप्ति के लिए इस प्रकार साधना करनी चाहिए:-
इस साधना को पति पत्नी दोनों करें। पुष्प हाथ में धारण किये हुए किशोर अवस्था वाली, श्वेत वस्त्र व आभूषणों से विभूषित गायत्री का ध्यान करें। "यं" बीज मंत्र के तीन बार सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। माला चन्दन की होनी चाहिए। गायत्री जप के पूर्व प्राणायाम की निम्नांकित विधि का उपयोग करना चाहिए:-
पूरक में धीरे-धीरे पेडू तक पूरी सांस भर लें। अंतर कुम्भक में जब सांस रोकें तो "यं" बीज  मंत्र का सम्पुट लगाकर तीन बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। तीन बार अधिक प्रतीत हो तो एक बार जप करना चाहिए। फिर धीरे-धीरे सांस को बहार निकाल देवे। रेचक में उतना ही समय लगना चाहिए जितना कि  पूरक में लगाया था। बाह्य कुम्भक में भी अंतर कुम्भक के सामान समय लगना  चाहिए। इस प्रकार नित्य दस बार प्राणायाम करना चाहिए। इस प्रकार पेडू में गायत्री शक्ति का आकर्षण किया जाता हैं और पति-पत्नी अपने अन्दर शुभ्रवर्ण ज्योति का ध्यान करना चाहिए। साथ ही यह ध्यान करें कि देवी गायत्री उत्तम संतान का आशीर्वाद दे रही है। इसके बाद गायत्री मंत्र का कम से कम एक माला का जप करना चाहिए।
जब तक साधना चलें, प्रत्येक रविवार को भोजन में श्वेत वस्तुओं का ही प्रयोग करें। इनमे दूध, दही, चावल आदि श्रेष्ठ माने जातें हैं। गायत्री शक्ति को धारण कराने वाली इस साधना से चरित्रवान, बुद्धिमान और स्वस्थ संतान की आशा करनी चाहिए।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

(4) विरोधियों को अपने अनुकूल बनाने के लिए ( Gayatri mantra For making opposing persons in favour)
विरोधी कितना भी शक्तिशाली, उच्च पद पर आसीन हो और आपके हर काम में बाधा उत्पन्न कर रहा हो तो उसे अपने अनुकूल बनाने के लिए तीन प्रणव (ॐ) लगाकर गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। जपकाल में इस प्रकार ध्यान करना चाहिए कि हमारे मष्तिष्क में नीलवर्ण का विद्युत  प्रवाह निकल रहा है और उसके (विरोधी के) मस्तिष्क में जा रहा हैं और वह उससे प्रभावित होकर हाथ जोड़कर हमारे सामने खड़ा होकर प्रसन्न मुद्रा में हमारे अनुकूल विचारों में बातचीत कर रहा है और अपनी मित्रता व सहयोग का आश्वाशन दे रहा है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
(5) राजकीय कार्यों में सफलता के लिए-( Gayatri mantra For success in govt. work)
नौकरी के लिए किसी अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना हो, कोई आवश्यक आवेदनपत्र स्वयं देना हो, कोई मुक़दमा या किसी प्रकार का कोई कार्य हो तो इस प्रकार साधना करनी चाहिए:-
इस तरह के कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए स्वर योग का प्रयोग किया जाता हैं। पहले यह देखना चाहिए कि बायाँ या दायाँ कौनसा स्वर चल रहा है। बायाँ स्वर चलने पर हरित वर्ण ज्योति का ध्यान करें, दाहिना स्वर चलने पर पीत वर्ण प्रकाश का ध्यान करें और सप्त व्याहृतियाँ (ॐ भू: भुवः स्वः तपः जनः महः सत्यम) सहित मानसिक रूप से गायत्री मंत्र का कम से कम बारह बार जप करें। जप करते समय उसी हाथ के अंगूठे के नाखून पर दृष्टि बनी रहे जो स्वर चल रहा है। इस प्रकार कार्यालय में प्रविष्ट हो और भावना  करें कि वह अधिकारी हमारी इच्छा के अनुरूप हमसे वार्तालाप कर रहा है। जब तक कार्यालय में रहे इसी प्रकार का मानसिक जप व भावना करते रहना चाहिए। यह साधना प्रतिकूल विचारों को अनुकूल बना देती है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

(6) अनिष्टों का नाश करने के लिए:-( Gayatri mantra For removing undesired situations )
 किसी बुरे शकुन के उपस्थित होने पर या किसी कार्य को आरम्भ करने में आशंका हो तो गायत्री मंत्र की एक माला का जप करके वह कार्य आरम्भ किया जा सकता है। विवाह आदि में चन्द्रमा, बृहस्पति, सूर्यादि की कोई बाधा बताई जाती हो, विवाह नहीं हो रहा हो या ऐसी ही कोई और रूकावट हो तो गायत्री मंत्र का नौ दिन का चौबीस हजार जप का एक लघु अनुष्ठान करना चाहिए। इससे इस प्रकार की सभी बाधाएं शांत हो जाती हैं और किसी भी अनिष्ट का भय नहीं रहता है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
(7) महिलाओं के लिए सुखी गृहस्थ बनाने वाली साधना:- ( Gayatri mantra For happiness in family )
 दाम्पत्य जीवन को सुखी समृद्ध बनाने के लिए गायत्री मंत्र जप श्रेष्ठ है। यह उपासना स्वयं साधिका के स्वभाव में ऐसा परिवर्तन लाती है कि  वह  अपने परिवार के लिए हँसती-खेलती मूर्ती सी लगने लगती है। दुःख, अभाव और कष्ट में भी वह प्रसन्नता पूर्वक अपने परिवार का साथ देती है। दुःख से चिंतित होकर वह पति या परिवार की चिंता नहीं बढाती है बल्कि उपयुक्त सलाह व सहयोग की भावना से उस चिंता को दूर कर देती है। पतन के मार्ग पर चल रही संतान को भी वह सद् मार्ग पर ला सकती है। परिवार को सुखी व संपन्न बनाने के लिए गायत्री साधना इस प्रकार करनी चाहिए:-
पूर्व की ओर मुख करके ऊन या कुश के आसन  पर बैठकर तुलसी की माला से प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जप करना चाहिए। पीत वस्त्र तथा पीले सिंह पर सवार गायत्री का ध्यान करे। पूजा की सभी वस्तुएं पीली हो जैसे पीले  रंग के पुष्प, पीले चावल (चावल हल्दी से पीले किये हुए) और वस्त्र भी पीले रंग के हो। भोजन में भी एक वस्तु पीली हो तो उत्तम रहता है। हर पूर्णमासी को व्रत रखकर विशेष जप साधना करनी चाहिए। कुमार्गी बच्चो को सुधरने के लिए साधना से बचे हुए जल को उन्हें पिलाना चाहिए।
गोदी के बच्चे को गोद में लेकर जप करे तो वह हर प्रकार से स्वस्थ बना रहता है। इस हेतु साधिका को चाहिए कि वह गुलाबी कमल पुष्पों से लदी हुई हंसरूढ़, शंख चक्र धारण किये हुए गायत्री का ध्यान करे। दूध पिलाते हुए भी  जप करती रहे तो बच्चा सदाचारी होता है तथा स्वस्थ रहता है। दूध पिलाते समय माँ को भावना करनी चाहिए कि उसके दूध के माध्यम से दिव्य शक्तियों का संचार उसके बच्चे में हो रहा है और बच्चा स्वस्थ तथा आयुवान होता जा रहा है।
गृहस्थ जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट और विपत्तियाँ आती हैं जिनको दूर करने में यदि घोर निराशा की स्थिति उत्पन्न हो रही हो तो गायत्री माँ का आँचल पकड़ना चाहिए अर्थात गायत्री का मानसिक जप करते रहना चाहिए और भावना करनी चाहिए कि माँ गायत्री की कृपा से या तो निराशा की स्थिति समाप्त हो जायेगी या उसकी समाप्ति के लिए कोई मार्ग सूझ जाएगा। श्रद्धा पूर्वक गायत्री की उपासना करने वाला कभी निराश नहीं होता हैं।


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

(8) बुरे मुहूर्त और शकुन का परिहार:-Gayatri mantra removing evil omens)
कभी-कभी किसी कार्य  को आरम्भ करते समय कोई खराब मुहूर्त, शकुन अथवा कोई निराशावादी विचार उत्पन्न हो जाता है। परिणाम स्वरुप कार्य करने में झिझक होती है, मन में आशंका उत्पन्न होती हो तो ऐसी परिस्थिति में गायत्री मंत्र की एक माला का जप कर कार्य प्रारंभ किया जाना चाहिए साथ ही मन में यह  धारणा करें कि कार्य से जुडी हुई आशंका व अनिष्ट निर्मूल हो गए हैं। देवी गायत्री की कृपा से वह कार्य निर्बाध रूप से पूर्ण होगा।


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

Tuesday 10 March 2015

(3.1.9) Gayatri Matra Jap Vidhi in Hindi / Gayatri Puja

Gayatri Mantra Jap Process  गायत्री मंत्र के जप की क्रियाएं


गायत्री मन्त्र का दैनिक जप साधना संध्या वंदन के बाद की जाती है। शास्त्रों में त्रिकाल संध्या करने का विधान मिलता है, प्रातःकाल, दोपहर व सांयकाल। परन्तु तीनों समय न की जाए तो कम से कम प्रातःकाल तो करनी ही चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच स्नान आदि से निवृत्त होकर धुले हुए वस्त्र धारण करके साधना पर बैठना चाहिए। गायत्री का सविता से सम्बन्ध है अतः जिधर सूर्य हो उधर ही मुँह करके साधना करनी चाहिए। प्रातः पूर्व की ओर, दोपहर में उत्तर की ओर तथा सांयकाल पश्चिम की ओर मुँह करके साधना करनी चाहिए। आसन कुश या ऊन का हो। गायत्री मन्त्र के जप के लिए स्थान एकांत व शांत हो। ऋतु के अनुसार व शरीर की आवश्यकता के अनुसार वस्त्र धारण किये जा सकते हैं । कमर सीधी करके बैठे। आसन पर बैठकर अपने शरीर और मन को  पवित्र बनाने के लिए पांच कृत्य किये जाते हैं:-     1. पवित्रीकरण   2. आचमन    3. शिखाबंधन   4. प्राणायाम   5. न्यास
1. पवित्रीकरण:- पानी से भरे पात्र में से चम्मच के द्वारा बाएं हाथ में जल ले ले तथा उसे दाहिने हाथ से ढक लें। निम्नांकित मन्त्र का उच्चारण करें और उस जल को अपने सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। मन्त्र इस प्रकार है:-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोSपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरिकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
ॐ पुनातु पुण्डरिकाक्ष: पुनातु पुण्डरिकाक्ष: पुनातु।
इस जल को अपने सिर  व शरीर पर छिड़कते समय यह भावना करें कि हमारे द्वारा शुद्ध भाव से किये गए आव्हान के द्वारा दिव्य सत्ता हम पर पवित्रता की वृष्टि कर रही है तथा हम उसे धारण कर रहें हैं। हम मन, कर्म और वचन से पवित्र होते जा रहें हैं।
2. आचमन:-  जल से भरे पात्र में से दाहिने  हाथ की हथेली में चम्मच से जल लेकर उसका तीन बार पान करें। प्रत्येक पान के साथ निम्नांकित मन्त्र का एक बार उच्चारण करें:-
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।।
ॐ  सत्यं यशः श्रीर्मायि, श्री: श्रयतां स्वाहा ।।
3. शिखा बंधन:- गायत्री मन्त्र का उच्चारण करके शिखा में गाँठ लगावें। जिनके शिखा नहीं है ऐसे पुरुष  व महिलाएं भीगे हाथ से उस स्थान का स्पर्श कर लें। स्पर्श करते समय यह भावना करें कि मष्तिष्क के विद्युत  भण्डार में से विचार, संकल्प व शक्ति के परमाणु बहार निकलकर आकाश में विलीन होते हैं उन  पर रोक लग गयी है। साधना के समय जो शक्ति व सद् विचार उपार्जित होंगे वो सुरक्षित रहेंगे, उनका आकाशी करण नहीं  होगा।
4. प्राणायाम:- प्राणायाम क्रिया के द्वारा विश्वव्यापी प्राणतत्व को अपने अन्दर धारण किया जाता है तथा कमजोरियों, आसुरी शक्तियों, व्याधियों  को शरीर से बाहर निकाला जाता है। इस क्रिया के चार भाग हैं:-
1. पूरक   2. अंतर्कुम्भक   3. रेचक   4. बाह्य  कुम्भक
1. पूरक:- इसमें वायु को भीतर खींचा  जाता है और वायु को भीतर  खींचते समय "ॐ भू: भुवः स्वः" का मानसिक उच्चारण करना चाहिए और भावना करनी चाहिए कि वायु के साथ विश्वव्यापी चैतन्य प्राण शक्ति मेरे भीतर प्रविष्ठ  हो रही है। देवी गायत्री की कृपा से दिव्य शक्ति और श्रेष्ठता मेरे रोम रोम में प्रवेश करके उसमे रम रही है। वायु को धीरे-धीरे खींचना चाहिए।
2. अंतर्कुम्भक:- इसमें वायु को यथाशक्ति अपने भीतर रोका जाता है। अंतर्कुम्भक में "तत्सवितुर्वरेण्यम" का मानसिक उच्चारण करते रहना चाहिए और यह भावना करनी चाहिए की गायत्री की कृपा से तेजस्वी प्राणशक्ति को खींचने से चारों ओर शक्ति का संचार हो रहा है और मैं शक्तिपुंज बनता जा रहा हूँ।
3. रेचक:- इसमें रोकी गयी वायु को बाहर निकाला जाता है। रेचक में "भर्गो देवस्य धीमहि" का जप करते हुए यह भावना करनी चाहिए कि सतोगुणी शक्तियों के आगमन से मेरे पापों, बुराइयों व व्याधियों का विनाश होता जा रहा है और वायु के साथ ये बाहर निकलते जा रहें हैं।
4. बाह्य कुम्भक:- इसमें वायु को बाहर रोका जाता है। बाह्य कुम्भक में "धियो यो न: प्रचोदयात्" का मानसिक उच्चारण करते हुए यह भावना करनी चाहिए कि सम्पूर्ण बुराइयों, व्याधियों के विनाश से मेरा शरीर पवित्र हो गया है। में शक्तिपुंज बन गया हूँ।
यह एक प्राणायाम की विधि है। संध्या में कम से कम पांच प्राणायाम करने चाहिए। पूरक व रेचक का समय   बराबर होता है यानि जितना समय वायु खीचने में लगाया जाता है उतना ही वायु को बाहर निकालने में लगाना चाहिए। अंतर्कुम्भक और बाह्यकुम्भक का समय सामान होना चाहिए। अर्थात् वायु को भीतर व बाहर रोकने का समय भी सामान होना चाहिए।
5. न्यास:- न्यास का अर्थ है धारण करना। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में गायत्री की सतोगुणी शक्ति धारण करने के लिए न्यास किया जाता है।
अंगूठा और अनामिका अंगुली को मिलाकर नीचे लिखे मन्त्र भाग को बोलकर शरीर के अंगो का स्पर्श इस भावना के साथ करना चाहिए कि मेरा यह अंग गायत्री शक्ति से पवित्र व बलवान हो रहा है:-
     1. ॐ भू: भूः स्वः -  मूर्धाय नमः             -  मष्तिष्क को।
     2. तत्सवितु:       - नेत्राभ्याम नमः         -  नेत्रों को।
     3. वरेण्यम्          - कर्णाभ्याम् नमः        -  कानो को।
     4. भर्गो              - मुखाय नम:              -  मुख को।
     5. देवस्य            - कंठाय नमः              -  कंठ को।
     6. धीमहि           - हृदयाय नमः             -  ह्रदय को।
     7. धियो यो न:     - नाभ्यैनमः                -  नाभि को।
     8. प्रचोदयात्       - हस्त-पादाभ्यां  नमः   -  हाथ पैरों को।
देवी पूजन:- देवी गायत्री के चित्र को सामने रखकर यह भावना करें कि देवी गायत्री की शक्ति यहाँ अवतरित होकर स्थापित हो रही है।
इसके पश्चात मानसिक रूप से यह ध्यान करें किमैं  देवी गायत्री को जल, अक्षत, धूप, नेवैध्य अर्पित कर रहा हूँ और देवी गायत्री इन्हें ग्रहण कर रही है।
ध्यान:- निम्नांकित भावनाओ के साथ देवी गायत्री का मन में ध्यान करना चाहिए-
देवी गायत्री का श्री विग्रह जपा कुसुम के समान प्रतिभा से संपन्न होकर आभास दे रहा है।
वे कुमारी अवस्था में विराजमान है। लाल चन्दन से अनुलिप्त होकर रक्त कमल आसान पर आसीन है। इनकी माला भी लाल वर्ण की है। ये देवी लाल रंग के वस्त्र पहने हुए है। इन्होने जप माला और कमंडल धारण कर रखा है। ये भगवती ऋग्वेद का अध्ययन कर रही है। हंस इनका वाहन है। ब्रह्माजी इनकी उपासना करते है। ऐसी देवी गायत्री का में स्मरण करता हूँ और उनको प्रणाम करता हूँ।
मंत्र जप:- ध्यान के बाद गायत्री मन्त्र का जप इस प्रकार किया जाए कि होंठ, कंठ, जीभ आदि तो चले परन्तु शब्द सुनाई  न पड़े। जप के समय यह भावना करनी चाहिए कि मन्त्र शक्ति की तरंगे सारे शरीर संस्थान में फ़ैल रही हैं। उन दिव्य तरंगो से शरीर, मन एवं अंतःकरण निरोग, पुष्ट, शुद्ध, पवित्र एवं विकसित हो रहा है।
गायत्री मन्त्र:-
ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात !!
प्रतिदिन  गायत्री मन्त्र की पांच माला का नियमित रूप से जप किया जाए और पांच नहीं तो कम से कम एक माला का जप तो प्रतिदिन किया जाना चाहिए। 
क्षमा प्रार्थना:- जप के पश्चात साधना में हुई त्रुटियों के लिए निम्नांकित प्रकार से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए:-
हे देवी गायत्री ! अज्ञान अथवा प्रमाद से या साधन की कमी से मेरे द्वारा जप करते समय न्यूनता या अधिकता का दोष बन गया हो उसे आप क्षमा करें। मैंने जो द्रव्यहीन, क्रियाहीन तथा मन्त्रहीन यदि कोई कर्म किया है उसे आप कृपापूर्वक क्षमा करें। आप सभी प्रकार के अपराधों को क्षमा करने में सक्षम है। मैं आपकी शरण में हूँ अतः करुणा पूर्वक मेरी त्रुटी को क्षमा करें। 

(3.1.8) Meaning of Gayatri Mantra in Hindi

Gayatri Mantra Ka Hindi Men Arth गायत्री मन्त्र का हिन्दी में अर्थ 

गायत्री मन्त्र का हिन्दी में अर्थ 
गायत्री मन्त्र एक वैदिक मन्त्र है।  ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद में गायत्री मन्त्र का उल्लेख है।  गायत्री मन्त्र गायत्री छन्द में है अतः इसका नाम गायत्री है।  ब्रह्ममुख से निर्गत होने  कारण इसको ब्रह्म गायत्री भी कहते हैं।  गायत्री मन्त्र के देवता सविता हैं और इसके ऋषि विश्वामित्र हैं।  गायत्री मन्त्र में 24 अक्षर हैं। इस मन्त्र में (गायत्री छन्द के अनुसार ) आठ - आठ अक्षरों के तीन चरण हैं।   चरणों के पूर्व तीन व्याहृतियाँ (भूः , भुवः , स्वः ) हैं।  और व्याहृतियों से पूर्व प्रणव अर्थात ॐ लगाया जाता है।  इस मन्त्र का पूरा स्वरुप इस प्रकार है -  
ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् !!   

गायत्री मन्त्र का अर्थ इस प्रकार है:-
ॐ   - परब्रह्म परमात्मा का नाम है
भूः   - प्राणस्वरुप                 
भुवः - दुःख नाशक
स्वः - सुख स्वरुप                
तत्  - वह ईश्वर
सवितु  - तेजस्वी                
वरेण्यं  - श्रेष्ठ
भर्गो - पापों का नाश करने वाला      
देवस्य - दिव्य, देने वाला
धीमहि - धारण करें               
धियो - बुद्धि
यो - जो                                
नः - हमारी
प्रचोदयात् - प्रेरित करें
भावार्थ:-                                                                                                                              
उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, तेजस्वी, श्रेष्ठ, पापनाशक, देवस्वरूप को हम अपनी अन्तरात्मा  में धारण करें, वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।
अर्थ का चिंतन:- ॐ रुपी परमात्मा जो पृथ्वीलोक, अन्तरिक्षलोक और स्वर्गलोक में सूक्ष्म रूप में  व्यापकता के साथ समाया हुआ है वह मेरी गतिविधियों का निरीक्षण भी कर रहा है और संचालन भी कर रहा है। वह ई श्वर मेरे अंतःकरण में प्रविष्ट होकर मुझे तेजस्वी और श्रेष्ठ बना रहा है। मेरे अंतःकरण में ईश्वर के निवास के कारण मेरी बुद्धि निर्मल होती जा रही है। मैं  महान सोच का स्वामी बनता जा रहा हूँ। महानता मेरे जीवन का लक्ष्य बन रहा है। ईश्वर के मेरे अंतःकरण में प्रविष्ट होने से मैं  तेजस्वी, श्रेष्ठ और दिव्य बनता जा रहा हूँ। मैं सद् मार्ग का अनुसरण कर रहा हूँ। विश्व की महानतम शक्ति मुझ पर बरस रही है और मैं मेरे परम लक्ष्य की और बढता जा रहा हूँ।

(3.1.7) Gayatri Mantra, Kyon / Why to Jap Gayatri Mantra

Gayatri mantra ka jap kyon karen गायत्री मंत्र का जप क्यों करें 

शब्दों  की  शक्ति को  प्रतिदिन के  जीवन में अनुभव किया जाता रहा हैं। शब्दों  से व्यक्ति को क्रोधित किया जा सकता हैं, व्यथित किया जा सकता हैं, प्रसन्न किया जा सकता हैं। इसी प्रकार मन्त्र एक या एक से अधिक शब्दों का समूह होता हैं जिसका श्रद्धा व निष्ठा के साथ मनन व चिंतन किया जाए तो एक विशिष्ठ वातावरण निर्मित होता हैं। इसका मनन व चिंतन करने वाला व्यक्ति अपने अन्दर व अपने आस-पास इस  को अनुभव कर सकता हैं। जब  व्यक्ति  किसी विचार का बार-बार मनन करता हैं तो उसका उस पर प्रभाव पड़ता हैं। इसलिए मनोवैज्ञानिकों की राय हैं कि व्यक्ति वैसा ही बनता है जैसा वह सोचता हैं और चिंतन करता हैं। उसकी सफलता, आचरण, व्यवहार उसकी सोच व चिंतन से प्रभावित होते हैं। मंत्र इष्ट शक्ति का सूक्ष्म स्वरुप होता हैं। जिसके बार बार मनन करने व इष्ट के स्वरुप का ध्यान करने से साधक की चित्तवृत्तियाँ, स्वभाव आदि उसी मंत्र के गुण धर्म के अनुरूप बन जाते हैं। लेकिन मंत्र का जप शब्दों के बार बार दोहरान तक सीमित नहीं है, यह जप तब प्रभावी होता है जब इसके साथ  भावना जुड़ जाएँ। यह भावना श्रद्धा और विश्वास की होती है। इसी भावना से उस मंत्र जप का फल व प्रभाव देखा जा सकता है। शारीरिक व मानसिक शुद्धता तथा संयम भी मंत्र जप के फल में वृद्धि करतें हैं। मंत्र जप से साधक के  शरीर में एक प्रकार की उर्जा उत्पन्न होती है इस उर्जा को साधक अपने हित में तथा अन्य लोगों के हित में उपयोग कर सकता है। प्राचीनकाल में मंत्र शक्ति से अस्त्र-शस्त्र  चलाये जाते थे।गायत्री मंत्र सद् बुद्धि का मंत्र माना  गया है। इस मंत्र के अक्षरों में ज्ञान-विज्ञान तो भरा हुआ है इसके अतिरिक्त इस महामंत्र की रचना भी ऐसे विलक्षण ढंग से हुई है कि उसका उच्चारण एवं साधना करने से शरीर और मन के सूक्ष्म केन्द्रों में छिपी हुई अत्यंत महत्वपूर्ण शक्तियां जागृत होती हैं जिनके कारण देवी वरदानों की तरह सद् बुद्धि प्राप्त होती है। सद् बुद्धि द्वारा लाभ उठाना भी सरल है परन्तु असद् बुद्धि वाले के लिए यही बड़ा कठिन है कि वह अपने आप कुसंस्कारों को हटाकर सुसंस्कारित सद् बुद्धि का स्वामी बन जाये। इस कठिनाई का हल गायत्री महामंत्र की उपासना द्वारा होता है। जो इस साधना को करतें हैं वे अनुभव करतें हैं कि  कोई अज्ञात शक्ति रहस्यमय ढंग से उनके मन क्षेत्र में नवीन ज्ञान, प्रकाश, नवीन उत्साह आश्चर्यजनक रीति से  बढ़ा रही है।
(1) गायत्री, देवी तत्वों से परिपूर्ण बुद्धि का नाम है जिसकी प्रेरणा से मनुष्य का मष्तिष्क और शरीर कल्याणकारी मार्ग का अनुशरण करता है। जिसके हर कदम पर आनंद का संचार होता है। सात्विक विचार और कार्यों को अपनाने से मनुष्य की प्रत्येक शक्ति की रक्षा और वृद्धि होती है। उसकी प्रत्येक क्रिया उसे अधिक पुष्ट, शशक्त एवं सुदृढ़ बनाती है और वह प्रतिदिन अधिक शक्ति संपन्न बनता चला  जाता  है। मन में अपरिग्रह, परमार्थ, मैत्री, करुणा, नम्रता , धर्म, श्रद्धा, ईश्वर परायणता आदि की भावना विकसित होती  है। यह भावना जहाँ  रहती है वहाँ  के परमाणु सदैव प्रफुल्ल  और चेतन्य रहतें हैं  तथा उनका विकास  होता है। इस प्रकार गायत्री सद् बुद्धि देकर हमारी प्राण रक्षा का सेतु बनती हुई अपने नाम को सार्थक करती है। 
(2) गायत्री एक प्रकाश है, एक आशापूर्ण सन्देश है, एक दिव्य मार्ग हैं जो हमें समस्त भौतिक, आध्यात्मिक, सांसारिक और मानसिक आनंदों की खान तक ले जाता हैं। वह हमारे मूंदे हुए विवेक के तृतीय नेत्र को खोलती हैं। यह हमें सद् विवेकी बऩाती हैं जिससे हम इस संसार को देख सकें। 
(3) आत्मा में अनेक ज्ञान-विज्ञान, साधारण, असाधारण, अद् भुत, आश्चर्यजनक शक्ति के भण्डार छिपे पड़े हैं, गायत्री मंत्र के जप से वे खुल जातें हैं और जपकर्ता अपने को असाधारण शक्ति से भरा हुआ अनुभव करता है। 
(4) सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिये बाहर से कुछ नहीं लाना पड़ता है केवल अंतःकरण पर पड़े हुए आवरण को हटाना पड़ता है। गायत्री की सतोगुणी साधना मानसिक अन्धकार के पर्दे को हठा देती है और आत्मा का सहज ईश्वरीय रूप प्रकट हो जाता है। आत्मा का यह  निर्मल रूप सभी रिद्धि सिद्धियों से परिपूर्ण होता है। 
(5) गायत्री साधना द्वारा हुई सतोगुणों की वृद्धि अनेक प्रकार की आध्यात्मिक और सांसारिक समृद्धियों को जन्म देती है। शरीर और मन  को  शुद्ध बनाती  है जिससे सांसारिक जीवन अनेक प्रकार से सुखी व शांतिमय बन जाता है। 
(6) गायत्री मंत्र जप आत्मा में विवेक और आत्मबल को बढाता  है जो अनेक ऐसी कठिनाइयों को जो दूसरों को पर्वत के सामान भारी मालूम पड़ती हैं, उस आत्मवान व्यक्ति के लिए तिनके के समान हल्की बन जाती हैं। उसका कोई कार्य रुका नहीं रहता या तो उसकी इच्छानुसार परिस्थितियाँ बदल जाती हैं या फिर परिस्थितिनुसार उसकी इच्छा बदल जाती है। क्लेश का कारण इच्छा और परिस्थिति के बीच प्रतिकूलता का होना ही तो है। विवेकवान इन दोनों में से किसी एक को अपनाकर उस संघर्ष को टाल  देता है और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है। 
(7) गायत्री सद् बुद्धि की देवी है और साधक उससे सद् बुद्धि की प्रार्थना करता है। इस सद् बुद्धि द्वारा सभी प्रकार के दुखों को मिटाया जा सकता है। सद् बुद्धि के प्रकाश में वे सभी उपाय दिखाई देने लगतें हैं जिनको काम में लाने पर दुःख के कारण दूर हो जातें हैं।
(8) गायत्री साधना द्वारा मानसिक परिष्कार, व्यक्तित्व के विकास, दुखों के निवारण और आत्मिक विकास के दिव्य लाभों के अतिरिक्त कई सिद्धियाँ और शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। इन शक्तियों को क्रमशः अर्जित करते हुए व्यक्ति अनुपम, अद्वितीय व असाधारण व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है।