Saturday 17 October 2015

(1.1.8) Maniratna Mala मणिरत्न माला

मणिरत्न माला प्रश्नोत्तरी - आदि शंकराचार्यकृत

आदि शंकराचार्य जी महाराज ने भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक प्रकार के कार्य किये हैं। आध्यात्मिक साहित्य की रचना उनका महत्वपूर्ण कार्य है।  उनकी एक पुस्तक है 'मणिरत्नमाला' जो प्रश्नोत्तर रूप में है इसलिए इसे प्रश्नोत्तरी भी कहा जाता है। उदाहरणार्थ कुछ प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं -
प्रश्न - दरिद्र कौन है?
उत्तर - जिसकी तृष्णा बढी हुई है।
प्रश्न - श्रीमान (धनी) कौन है?
उत्तर -जो पूर्ण संतोषी है।
प्रश्न - जीवित ही कौन मरा हुआ है?
उत्तर - उद्यमहीन।
प्रश्न - उत्तम भूषण क्या है?
उत्तर - सच्चरिता।
प्रश्न - परम तीर्थ क्या है?
उत्तर - अपना विशुद्ध मन।
प्रश्न - प्राणियों का ज्वर क्या है?
उत्तर - चिंता?
प्रश्न - मूर्ख कौन है?
उत्तर - विवेकहीन।
प्रश्न - जगत को किसने जीता है?
उत्तर - जिसने मन को जीत लिया है।
प्रश्न - हीनता का मूल क्या है?
उत्तर - याचना।
प्रश्न - दुःख का कारण क्या है?
उत्तर - ममता।
प्रश्न - शत्रु कौन है?
उत्तर - उद्योग का अभाव।
प्रश्न - अँधा कौन है?
उत्तर - जो अकर्तव्य में लिप्त है।
प्रश्न - बहरा कौन है?
उत्तर -जो हित की बात नहीं सुनता।
प्रश्न - गूंगा कौन है?
उत्तर - जो प्रिय वचन बोलना नहीं जनता।
प्रश्न - अधम कौन है?
उत्तर -चरित्रहीन।
प्रश्न - जगत को जीतने में समर्थ कौन है?
उत्तर - सत्यनिष्ठ और सहनशील।
प्रश्न - शोचनीय क्या है?
उत्तर - धन होने पर भी कृपणता।
प्रश्न - यथार्थ दान क्या है?
उत्तर - कामनारहित दान।
प्रश्न - आभूषण क्या है?
उत्तर - शील।
प्रश्न - वाणी का भूषण क्या है?
उत्तर - सत्य।
प्रश्न - अविद्या क्या है?
उत्तर - आत्मा की स्पूर्ति का न होना।
प्रश्न - सुख दायक कौन है?
उत्तर - सज्जनों की मित्रता।
प्रश्न - प्रशंसनीय क्या है?
उत्तर - उदारता। 

Wednesday 14 October 2015

(3.1.21) Navratra / Navratri (in Hindi) Importance of Navratra (in Hindi)

नवरात्र / नवरात्रा / नवरात्रि  ( उत्सव )
नवरात्रा कब आते हैं? पूजा विधि क्या है / घट स्थापना कैसे करें / नवरात्र के दौरान किस मन्त्र या स्तोत्र का जप करे? हवन / नवरात्र उत्थापन कब करें 

. नवरात्र में प्रयुक्त  'नव' शब्द 'नौ' का और ' रात्र ' शब्द 'रात्रि' का प्रतीक है। नवरात्र का अर्थ नव अहो रात्र के रूप में भी उल्लिखित है। इस प्रकार जो पर्व नौ दिन और नौ रात तक चले वही नवरात्र है।इसे शक्ति संचय और उपासना -आराधना का पर्व भी माना जाता है। ये नौ दिन देवी पार्वती , लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं। जिन्हें नव दुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती  के तीन स्वरूपों की, अगले तीन दिन लक्ष्मी के तीन स्वरूपों के और आखिर के तीन दिन सरस्वती के तीन स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों के नाम हैं :-1 शैल पुत्री 2. ब्रह्म चारिणी 3. चंद्रघंटा 4. कूष्मांडा 5. स्कंदमाता 6. कात्यायनी 7. काल रात्रि 8. महा गौरी 9. सिद्धि दात्री।
वर्ष में चार बार नवरात्र पर्व मनाये जाते हैं 
चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों को प्रकट नवरात्र कहा जाता है और माघ तथा आषाढ़  माह के नवरात्रों को गुप्त नवरात्रा कहा जाता है।
पूजा विधि एवं घट स्थापना या कलश स्थापना :-
नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घट स्थापना या कलश स्थापना का विधान है। घट स्थापना के लिए मिट्टी  या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें। कलश के मुंह पर नारियल को लाल वस्त्र में लपेटकर अशोक के पत्तों सहित रखें। कलश के नीचे बालू मिट्टी की वेदी बनायें व इसमें जौ के दाने व पानी डाल दें। इस वेदी पर कलश रखदें । कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनायें । वेदी की रेत में जौ बोने  के बजाय अलग से किसी पात्र में भी मिट्टी डाल कर जौ बोये जाते हैं, जिन्हें जुवारे कहते हैं। घट स्थापना या कलश स्थापना मूल रूप से देवी दुर्गा का आव्हान है।
मूर्ति या तस्वीर स्थापना -
घट या कलश के पास एक पाटे पर लाल वस्त्र बिछा कर माँ भगवती की तस्वीर भगवान राम , हनुमान जी या अपने ईष्ट देव की तस्वीर रखें।
आसन - देवी उपासक लाल या सफेद रंग के ऊनी आसन का प्रयोग करें। पूर्व की तरफ मुँह करके पूजा , मंत्र , हवन एवं अनुष्ठान समाप्त  करें।
नवरात्र के दौरान पाठ- जप आदि :-
साधक अपनी इच्छानुसार दुर्गासप्तशती का पाठ या दुर्गा के किसी मन्त्र का जप करे।
(या ) सुन्दर काण्ड का पाठ
 (या ) राम रक्षा स्त्रोत का पाठ
(या ) रामचरित मानस पाठ
 पाठ या मन्त्र जाप  का  फल - नवरात्रि  का समय वर्ष के श्रेष्ट समय में से एक है अत: इस अवधि में किये गए जप - तप , व्रत, उपवास का फल तुलनात्मक रूप से ज्यादा मिलता है।जप - तप  या पाठ निष्काम भाव से किया जाये या सकाम  भाव से, सभी का सुफल मिलता है, सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। यदि  किसी विशेष उद्देश्य के लिए जप या पाठ किया जाता है तो उस उद्देश्य की अवश्य पूर्ति होती है।
कुमारी पूजन - अपनी कुल परम्परा के अनुसार अष्टमी या नवमी के दिन दो वर्ष से नौ वर्ष तक की उम्र की नौ कन्याओं को अपने घर बुलाकर उनकी पूजा करें, उन्हें भोजन करायें व यथा शक्ति दक्षिणा दें।
हवन -
नवरात्रि  के दौरान जितने मन्त्रों का जप किया जाता है उसके दसवें भाग का हवन दसमी के दिन या नवमी के दिन किया जाता है।(यदि हवन नहीं किया जा सके तो कुल जपे हुये मन्त्रों की संख्या के दसवें भाग का जप और करें।)
नवरात्र उत्थापन -
नवरात्र के नवें या दसवें दिन बोये हुए जवारे उग कर बड़े हो जाते हैं , उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। घट के जल का आचमन कर उसे अपने शरीर पर स्पर्श कराया जाता है तथा कुछ जल को अपने घर में भी छिड़का जाता है। फिर विधि विधान पूर्वक पूजा करके समस्त पूजा सामग्री को जलाशय में विसर्जित किया जाता है।     

(1.3.4) Ganesh Smaran / Pratah Smaran Ganesh Shlok

प्रातः स्मरण गणेश श्लोक

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं 
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्। 
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्ड दण्ड-
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्ध्यम्। 
अर्थ - अनाथों के बंधु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों में नमस्कृत श्री गणेश का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ।
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Monday 12 October 2015

(1.1.7) Tulsi Das ke Dohe (Dohe of Tulsidas) in Hindi

Tulsi Das ke Dohe (तुलसीदास के दोहे ) हिंदी में

(For English translation CLICK HERE )
गोस्वामी तुलसीदास भारत के ऐसे संत महापुरुष हैं , जिनके आविर्भाव से भगवद्भक्ति की धारा प्रवाहित हुई है। उन्हें महान कवि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस नैतिक शिक्षा का आदर्श ग्रन्थ है।
> रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। 
अजहुँ देत दुःख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु। 
(रामचरितमानस 1/170)
अर्थ - तेजस्वी शत्रु अकेला भी हो, तो भी उसे छोटा नहीं समझना चाहिये। जिस राहु का मात्र सर बचा था, वह राहु आज तक सूर्य और चन्द्रमा को दुःख देता है।
> सचिव, बैद, गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। 
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगहीं नास। 
(रामचरितमानस 5 /37)
अर्थ - मन्त्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि किसी भय या आशा से (हित की बात नहीं कह कर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य,शरीर और धर्म - इन तीनों का शीघ्र ही नाश हो जाता है।
> प्रीति, बिरोध समान सन करिअ नीति असि आहि। 
जौं मृगपति बध मेडु कन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि। 
(रामचरितमानस 6 /23 ग)
अर्थ - प्रीति और वैर बराबर वालों से ही करना चाहिये, नीति ऐसी ही है। सिंह यदि मेंढकों को मारे तो क्या उसे कोई भला कहेगा?
> रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। 
(रामचरितमानस 3 /21)
अर्थ - शत्रु, आग, रोग, पाप, स्वामी और सर्प को कभी छोटा नहीं समझना चाहिये।  समय पाकर ये सभी विनाश का कारण बन सकते हैं।
> मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ। 
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ।
(रामचरितमानस 2 /70)
अर्थ - जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ा कर उनका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है; नहीं तो जगत में जन्म लेना व्यर्थ ही है।
> गगन चढइ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।
साधु असाधु सदन सुक सारीं।  सुमरहिं राम देहिं गनि गारीं।
(रामचरितमानस १/७/९-१० )
अर्थ - पवन के संग से धूल आकाश की ओर ऊँची चढ़ जाती है और वही धूल नीचे की ओर बहने वाले जल के संग से कीचड में मिल जाती है। संगति के प्रभाव से ही व्यक्ति उच्चता या निम्नता की स्थिति को प्राप्त होता है। इसी प्रकार साधु के घर पलने वाले तोता-मैना राम-राम का सुमिरन करते हैं और असाधु के घर पलने वाले तोता-मैना गिन -गिन कर गालियाँ देते हैं। यह सब अच्छी और बुरी संगति का परिणाम है।
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(3.1.20) Sapt Shloki Durga Jap Process and Importance in Hindi

सप्त श्लोकी दुर्गा, जप प्रक्रिया तथा महत्व - Shapt Shloki Durga with Hindi Translation


सप्त श्लोकी दुर्गा में सात श्लोक हैं ,  जिनमें  दिव्य शक्तियों से युक्त देवी दुर्गा की प्रार्थना है।  जब कोई व्यक्ति विश्वास , निष्ठा और एकाग्रता के साथ इन श्लोकों  का पाठ करता है तो उस उपासक को देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसे अपने शुभ उद्देश्य में सफलता मिलती है।देवी कृपा से उसे धन सम्पदा मिलती है। उसका पारिवारिक जीवन सुख शांति मय रहता है। उसे बिमारियों और दुविधाओं से छुटकारा मिलता है तथा जीवन प्रसन्नता  पूर्वक व्यतीत होता है।
श्लोक पठन प्रक्रिया :-प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त हो कर किसी शांत स्थान पर ऊनी आसन पर बैठ जायें।देवी दुर्गा का चित्र अपने सामने रखें। आँखें  बंद करके देवी का ध्यान करें व भावना करें कि वह  दिव्य शक्तियों  से युक्त है और अपने भक्तों की सद इच्छा की पूर्ति करती है और उनके कष्टों को दूर करती है। मैं ऐसी शक्ति संपन्न  देवी दुर्गा से प्रार्थना करता हूँकि  वे मुझे प्रसन्नता , बुद्धि ,शांति , स्वास्थ्य  व सम्पन्नता प्रदान करें। इस ध्यान व प्रार्थना के बाद निम्नांकित श्लोकों का तीन माह तक ग्यारह या सात या पाँच बार निष्ठा पूर्वक पाठ करें। ( चारों नवरात्रियों में भी इन का पाठ किया जा सकता है।)

1. ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
2. दुर्गे स्मृता हरसि भीति मशेषजन्तो: ,
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य दुःख भय हारिणि का त्वदन्या ,
सर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता।।
3.सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि  नारायणि नमोSस्तु ते।।
4. शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते।।
5.सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य स्त्राहि नो  देवि दुर्गे देवि नमोSस्तु ते।।
6.रोगानशेषानपहंसि तुष्टा ,
रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान।
त्वामा श्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
7.सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्य स्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्य मस्म द्वैरिविनाशनं।।
II इति श्री सप्त श्लोकी दुर्गा II 
पाठ के बाद शांत बैठकर भावना करें की देवी दुर्गा ने आप की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है और वे आप को आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। आप देवी कृपा से जीवन में नये उत्साह से भरते जा रहे है और सफल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके बाद पूजा के स्थान को छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ।  

Sunday 11 October 2015

(1.3.3) Shloks (Verses) to be recited in the Morning (in Hindi)

Benefits of the recitation of Shloks in the Morning (Pratah Kaleen Smaraniya Shloks) प्रातः कालीन स्मरणीय श्लोक तथा उनके लाभ 

निम्नांकित श्लोकों का प्रातः काल पाठ करने के लाभ निम्नानुसार हैं -
> दिन अच्छा बीतता है।
> दुःस्वप्न, कलिदोष, शत्रु, पाप, और भव के भय का नाश होता है।
> विष का भय नहीं होता।
> धर्म की वृद्धि होती है और ज्ञान प्राप्त होता है।
> व्यक्ति निरोगी रहता है।
> पूरी आयु मिलती है।
> कार्यों में सफलता मिलती है।
> सम्पन्नता आती है।
> सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है।
> सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण निर्मित होताहै।
निम्नांकित श्लोकों का स्मरण करना चाहिए -
> गणेश स्मरण श्लोक
> विष्णु स्मरण श्लोक
> शिव स्मरण श्लोक
> देवी स्मरण श्लोक
> सूर्य स्मरण श्लोक
> त्रिदेवों केसाथ नव ग्रह स्मरण श्लोक
> ऋषि स्मरण श्लोक
> प्रकृति स्मरण श्लोक
(source - नित्य कर्म पूजा प्रकाश - गीता प्रेस गोरखपुर )

Friday 9 October 2015

(1.3.2) Bhoomi Vandana

 Bhoomi Vandana (भूमि वन्दना )

करावलोकन के बाद निम्नानुसार भूमि वंदना करें :- 
 भूमि वंदना - करावलोकन के बाद शय्या से उठकर पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें और उन पर पैर रखने की विवशता के लिए उनसे क्षमा मांगते हुए निम्नांकित श्लोक का पाठ करें -

समुद्र वसने देवि पर्वतस्तन मण्डिते।
विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

हिन्दी अर्थ :- समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली , पर्वत रूप स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी देवी पृथ्वी , आप मेरे पाद स्पर्श को क्षमा करें।
( पृथ्वी वन्दनाके बाद  निम्नांकित मंगल वस्तुओं में से सबके या कम से कम एक -दो  के दर्शन करें।) 

मंगल दर्शन - फिर गोरोचन , चन्दन , सुवर्ण ,शंख ,मृदंग ,दर्पण ,मणि आदि मांगलिक वस्तुओं का दर्शन करें तथा गुरु , अग्नि और सूर्य को नमस्कार करें।

(1.3.1) Karaavlokan Mantra (to keep away negative effects)

 करावलोकन मंत्र - सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हेतु (Karavalokan - to create positive energy)

 प्रात: काल की शुरुआत आध्यात्मिक और सकारात्मक भावनाओं से होनी चाहिये। इसलिए जागने के उपरांत आप अपने हाथों की हथेलियों की तरफ देखें और निम्नांकित श्लोक का पाठ करें -
कराग्रे वसते लक्ष्मी:  कर मध्य सरस्वती।करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम।।

अर्थ - हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी , हाथ के मध्य में सरस्वती और हाथ के मूल भाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं। अत: प्रात: काल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहिये।
इस श्लोक के पाठ के बाद , दोनों हथेलियों को एक साथ रगड़िये और फिर इन्हें धीरे - धीरे आप के सिर , कन्धों , भुजाओं और टांगों पर फिराइये। इससे एक उर्जा रुपी ढाल निर्मित होती है जो पूरे दिन व्यक्ति को नकारात्मक प्रभावों से बचाये रखती है।

(2.1.10) Hazlitt's Letter to his Son / On the conduct of Life (in Hindi)

जीवन में आचरण (हेजलिट का पत्र उसके पुत्र के नाम ) William Hazlitt's Letter (in Hindi)

'जीवन में आचरण 'एक पत्र है जिसे  हेजलिट  ने अपने पुत्र को वर्षों पूर्व लिखा था। इस पत्र में बुद्धिमतापूर्ण सलाह है। हेज़लिट चाहता था कि उसका पुत्र विद्यालय के जीवन को अपने भावी जीवन की तैयारी माने। वह चाहता था कि उसका पुत्र खुला मस्तिष्क रखे,दूसरों के साथ आसानी से घुल मिल सके और सम्मानजनक तरीके से दूसरों के साथ अपने मत भेद सुलझा ले।'
 पत्र का सारांश निम्नानुसार  है :-
1." हमेशा ही अच्छे की आशा करो।"
2. "यदि बातें  तुम्हारी अपेक्षाओं के विपरीत हो तो तुम्हे उनको बदलने का प्रयास करना चाहिए। यदि तुम उन्हें बदल नहीं सको तो उन्हें धैर्यपूर्वक सहन करो।"
3. "चीजें हमेशा ही वैसी नहीं होती है जैसा तुम उन्हें देखना चाहते हो। "
4. "यदि तुम बुरा घटित होने की आशा करोगे तो तुम अपने द्वेष या अड़ियल रुख से उन बातों  को पहले से भी ज्यादा ख़राब बना दोगे। इसलिये तुम्हें  कभी भी बुराई की प्रत्याशा नहीं करनी चाहिए। "
5."किसी के बारे में पूर्वाग्रह का सृजन करना गलत बात है , और वह भी केवल इसलिये कि तुम उनके बारे में कुछ नहीं जानते हो। यदि तुम ऐसा  करते हो और दूसरों के बारे में बुरा सोचते हो तो, शीघ्र ही वे  तुम्हारे  दुश्मन बन जायेंगे  ।"
6. "तुम्हें दूसरों  को बुरा नहीं समझना चाहिए जब तक वे तुम्हारे प्रति खराब व्यवहार नहीं करें। फिर तुम्हें उस बुराई से बचने का प्रयास  करना चाहिये जो तुम्हें  उनमें  दिखाई दे।"
7. हेज़लिट अपने पुत्र से कहते हैं ," तुम्हें किसी से भी बिलकुल भी घृणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की  घृणा का अर्थ होता है, किसी दूसरे की हानि में अपनी जीत समझना और प्रसन्न होना।"
8." तुम्हें   यह भी जानना चाहिए कि इस संसार में तुम्हारे  अतिरिक्त अन्य लोग भी हैं और उनकी भी कामना, पसंद या नापसंद होती है। इसलिए तुम्हें  उनकी इच्छाओं को स्वीकार करना तथा उनकी पसंद नापसंद को सहन करना सीखना चाहिए।"
9. "तुम्हें दूसरे लोगों की वेशभूषा की आलोचना नहीं करनी चाहिए और न ही इस के कारण उनसे घृणा करनी चाहिए। तुम्हारे पास अच्छे कपड़े हैं परन्तु इसके कारण तुम्हें अपने आप को ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं समझाना चाहिए।"
 10. "तुम्हें लोगों  की आलोचना या उनसे किसी ऐसी बात के लिए घृणा नहीं करनी चाहिए जिसके लिए वे विवश हैं,और कम से कम उनकी निर्धनता के लिए तो बिलकुल नहीं।"
11 . "तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि तुम सब लोगों में से एक हो और तुम्हें समाज में अपने स्थान को कभी नहीं भूलना चाहिए। सच्ची समानता ही सच्ची नैतिकता व सच्ची बुद्धिमता है।"
12 ."जितना जल्दी तथा जितना कम कष्ट हो सके, तुम्हें  अपनी परिस्थितियों से समझौता कर लेना चाहिए। "
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Thursday 8 October 2015

(2.1.9) Abraham Lincoln's Letter (in Hindi)

अब्राहम लिंकन का पत्र उसके बेटे के अध्यापक के नाम 

(अब्राहम लिंकन , संयुक्त राज्य अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति, ने यह पत्र उनके पुत्र के  अध्यापक को लिखा था। यद्यपि यह एक पत्र मात्र है परन्तु यह नैतिक मूल्यों का एक दस्तावेज बन गया है।)

आदरणीय श्रीमान,
आज मेरे बेटे का विद्यालय का पहला दिन है। उसके लिए हर चीज नई और अनजान है।मैं  चाहता हूँ  कि  आप उसे वो बातें  सिखायें जो उसके जीवन के लिए उपयोगी हो। 
- आप उसे सिखाएं की सभी लोग न्याय प्रिय,सरल या सच्चे  नहीं होते हैं, साथ ही आप उसे यह भी सिखाएं कि प्रत्येक बुरे से बुरे व्यक्ति में एक अच्छाई का गुण होता है, स्वार्थी नेताओं में कोई समर्पित नेता भी होता है, दुश्मनों के बीच कोई मित्र भी होता है अर्थात  दुश्मन में दोस्त बनने की संभावना भी होती है। 
- मैं जानता हूँ कि  इन बातों को सीखने में उसे समय लगेगा, परन्तु आप उसे सिखाएं कि  मेहनत से कमाया हुआ एक डॉलर, सड़क पर पड़े मिलने वाले पाँच डॉलर से कहीं ज्यादा मूल्यवान होता है।
- आप उसे सिखायें  कि उसे  हार को  शालीनता के साथ स्वीकार करनी चाहिये और जीत का शालीनता के साथ आनन्द लेना चाहिए। 
- आप उसे बतायें कि वह दूसरों के प्रति इर्ष्या की भावना न रखे। 
- आप उसे किताबी  ज्ञान सिखाएं , पर साथ ही उसे आसमान में उड़ते हुए पक्षियों , धूप में उडती हुई मधु मक्खियों , हरी भरी पहाड़ियों के बीच लगे सुन्दर फूलों को निहारना भी सिखाएं। 
- विद्यालय में आप उसे यह सिखाएं कि नकल करके परीक्षा उत्तीर्ण करने के बजाय अनुत्तीर्ण होना ज्यादा अच्छा है। 
-आप उसे यह भी सिखायें कि  उसे अपने सही विचारों  पर विश्वास रखना चाहिये, चाहे दूसरे व्यक्ति उन विचारों को गलत कहें।
- शिष्ट लोगों के साथ शिष्टता का व्यवहार  करने  और ख़राब (अशिष्ट ) लोगों के साथ कठोरता का व्यवहार करने की बात भी आप उसे बताएं। 
- आप उसमें  इस प्रकार के विचार भर दें कि वह भीड़ का अनुकरण न  करे, जबकि  दूसरे व्यक्ति भले ही ऐसा कर रहे हों। 
- उसे बताएं कि  वह प्रत्येक व्यक्ति की बातों को  सुने और फिर उन  बातों  को सत्य की कसौटी पर कस कर, उनमें से जो अच्छी बात हो, उसे अपना ले। 
- आप उसे बतायें कि  किस प्रकार दुःख को ख़ुशी में  बदला जाये।किसी गलत बात पर रोने या पश्चाताप करने में कोई शर्म की बात नहीं है। उसे बतायें कि  असफलता के साथ गौरव जुड़ा  हो सकता है तथा सफलता के साथ हताशा जुड़ी हो सकती है। 
-आप उसे बताएं कि  वह अपनी प्रतिभा को उच्चतम कीमत देने वाले को बेचे लेकिन अपने दिल और आत्मा को कभी नहीं बेचे। 
- आप उसे सिखाएं कि भीड़ द्वारा किये गये हा-हुल्ले को वह नहीं सुने और यदि वह सोचता है कि  उसकी बात सही है, तो वह उस बात पर अडिग रहे।  
- आप उस के साथ अच्छा व्यवहार करें परन्तु उससे अधिक लाड़ - प्यार मत करिये क्योंकि अग्नि की परीक्षा ही लोहे को अच्छा बनाती  है।
-उसमें अधीर होने का साहस हो  साथ ही बहादुर होने का धैर्य भी उसमें होवे।
-आप उसे सिखाएं कि  वह स्वयं पर भरोसा रखे तभी वह ईश्वर व मानव जाति के प्रति विश्वास रख सकेगा।
-आप उसे बतायें कि सफलता पाने के लिए सारा आसमान उसका है।
आपका,
अब्राहम लिंकन

(2.3.6) Gyani Vyakti (Wisest Person)

सबसे ज्ञानी व्यक्ति 

यूनान के डेल्फी में एक देवी  भविष्यवाणियां करने के लिए विख्यात थी।एक दिन किसी ने उसे पूछा,"इस समय यूनान में सबसे ज्ञानी व्यक्ति कौन है ?"
देवी ने कहा ,"सुकरात।"
यह सुनकर कुछ लोग सुकरात के पास गए और बोले,"देवी ने घोषणा की है कि तुम इस समय यूनान में सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति हो।"
सुकरात के कहा ,"यह गलत है।मैं विद्वान या ज्ञानी  नहीं हूँ, मै तो अज्ञानी हूँ, वैसे  ज्ञान प्राप्त की मेरी इच्छा अवश्य है।"
यह सुनकर लोग फिर देवी के पास गए और बोले,"आप ने तो सुकरात को यूनान का सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति बताया था।लेकिन वह तो इन्कार करता है और कहता है कि वह तो अज्ञानी है।"
देवी ने कहा,"बस,इसी लिए तो वह सबसे बड़ा बुद्धिमानी और ज्ञानी है, क्योंकि  विद्वान और ज्ञानी  होते हुए भी उसे अपने ज्ञान का अहंकार नहीं है।"
शिक्षा :- विद्वान और ज्ञानी  व्यक्ति को कभी भी अपने ज्ञान का अहंकार नहीं होता है।

(2.3.5) Einstein Ki Sadagi (in Hindi )

आइन्स्टाइन की सादगी 

नोबेल पुरस्कार विजेता महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन बहुत सादा जीवन बिताते थे। उनको दैनिक जीवन में दिखावा पसंद नहीं था। उनके पचासवें जन्म दिन के अवसर पर, उनके प्रशंसकों ने उनकों शुभ कामनायें भेजी।कुछ प्रशंसक व्यक्ति गत रूप से उन्हें बधाई देना चाहते थे। इस लिए वे उनके साथ गुलदस्ते लाए और उनके घर गये।उस समय आइन्स्टाइन अपनी प्रयोग शाला में कार्य कर रहे थे।उनकी पत्नी  उनके (प्रशंसको के) आने की सूचना देने के लिए प्रयोग शाला में गई। वे उनकी पत्नी के साथ बाहर  आये।उनकी पत्नी नहीं चाहती थी कि  उसके पति गंदे कपडों  में उनके प्रशंसकों  से मिले।वह झुंझलाते हुई बोली,"इन लोगों से मिलते समय आप कम से कम गन्दीऔर पुरानी  पतलून तो बदल लेते।"आइन्स्टाइन हँसे और विनोद करते हुए बोले " ये  लोग मुझ से मिलने आये हैं, मेरी पतलून से नहीं।"आइन्स्टाइन की पत्नी मौन हो गई।आइन्स्टाइन उन्ही गंदे और पुराने कपड़ों में लोगों से मिलकर उनकी शुभ कामनायें स्वीकारते रहे। ऐसी थी आइन्स्टाइन  की सादगी।

(2.3.4) Tenzing Norgey (Life Story of TenZing Norgay in Hindi)

तेनजिंग नोर्गे - परिश्रमी, साहसी और हिम्मती व्यक्ति की जीवनी 

तेनजिंग का जन्म 1914में हुआ था। वह उसके माता  पिता के साथ नेपाल के एक छोटे से गाँव में रहता  था।गाँव में या उसके आस पास कोई विद्यालय नहीं था।गरीबी के कारण उसके माता पिता उसे कस्बे के विद्यालय  में नहीं भेज सके।तेनजिंग उसके बचपन से ही   पहाड़ियों के बीच दिन को बिताना और नए स्थानों का भ्रमण करना पसंद करता था।
1935में ब्रिटिश दल ने उसे भार  वाहक के रूप में चुन लिया। दल एवेरेस्ट पर जाने के लिए तैयार था। तेनजिंग इस दल के साथ गया। वह नोर्थ कोल पहुँचने वाले कुछ शेरपाओं में से एक था। यह एवेरेस्ट के रास्ते में एक महत्वपूर्ण स्थान है। 1935 के बाद तेनजिंग  पर्वतारोहियों के कई दलों में शामिल हुआ। वह हमेशा पर्वतारोहियों के मुख्य दल के साथ रहता था। वह अभी तक भी भार वाहक के रूप में काम करता था लेकिन उसने शीघ्र ही पहाड़ों  पर चढ़ना सीख लिया। उसने 1938 में पर्वतारोहण के लिए मेडल जीता।
कठोर परिश्रम के कारण तेनजिंग एक अच्छा पर्वतारोही बन गया। वह खराब मौसम में भी चढ़ सकता था। वह अपने लिए सबसे मुश्किल कार्य को चुनता था।वह कठिनाई के समय दूसरे भार वाहकों की भी सहायता करता था।
1952 में तेनजिंग एक स्विस पर्वतारोही दल में शामिल हो गया। इस दल ने दो प्रयास किये परन्तु एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने में असफल रहे।दो पर्वतारोही - तेनजिंग और लेम्बर्ट 27500फीट की ऊँचाई तक पहुँच गए।उन्होंने वहाँ बिना स्टोव और बिना स्लीपिंग बैग्स के रात्रि बिताई।उन्होंने अपने आप को गर्म रखने के लिए एक दूसरे  को थप्पड़ लगाई।सुबह  वे नीचे आये।एवरेस्ट  पर चढने का यह तेनजिंग के लिए छठा प्रयास था।
1953 का ब्रिटिश पर्वतारोहियों का प्रयास तेनजिंग के लिए सातवाँ  प्रयास था। इस बार वह शेरपाओं का नेता होने के साथ साथ पर्वतारोही भी था।इस दल ने 27900 फीट की ऊँचाई पर नवां कैंप लगाया। वहाँ से एवरेस्ट की चोटी  पर चढने के लिए प्रयास किया। इस दल ने दो व्यक्तियों को भेजा लेकिन वे चोटी  पर चढने में असफल रहे।फिर तेनजिंग और एडमंड हिलेरी ने  अगला प्रयास किया।उन्होंने सुबह  जल्दी ही कैंप को छोड़ दिया और तीन घंटे तक चढ़ते रहे।वे अब चोटी से केवल 300फीट दूर थे। वे धीरे धीरे चोटी  की  तरफ चढ़ते रहे और लगभग  दो घंटे में वहां  पहुंचे। दो आदमी, तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी 29 मई 1953 को सुबह 11.30 बजे चोटी  पर खड़े थे।वे  29028 फीट की ऊँचाई तक पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय,साहस और इच्छा शक्ति के कारण सफलता प्राप्त की और संसार में प्रसिद्ध हो गए।
शिक्षा :- कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय,साहस और इच्छा शक्ति ही सफलता की कुंजी है। 



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(2.3.3) Teen Prashna (Three Questions)

 तीन प्रश्न 

एक बार एक महत्वाकांक्षी राजा था।वह किसी भी कार्य में असफल नहीं होना चाहता था। इस के लिए वह तीन बातें जानना चाहता था -
 1.किसी कार्य को करने का सही समय कौनसा है?
 2 .सही व्यक्ति कौनसा है जिस की बातें उसे माननी चाहिए और किस व्यक्ति की अवहेलना करनी चाहिए?
3. वह महत्वपूर्ण कार्य कौनसा  है, जिसे उसे करना चाहिए?
राजा इन प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु एक प्रसिद्ध सन्यासी के पास गया।सन्यासी ने उसके प्रश्नों के उत्तर निम्नानुसार दिए - 
1. वर्तमान समय ही सबसे महत्वपूर्ण समय है क्योंकि केवल यही समय होता है जब हममें किसी कार्य को करने की शक्ति होती है। 
2. सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति वह है जो इस समय हमारे साथ है। 
3. सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, उस व्यक्ति की भलाई करना जो इस समय हमारे साथ है क्योंकि ईश्वर ने हमें दूसरों की भलाई करने के लिए ही इस धरती पर भेजा  है। 
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(2.3.2) Lal Bahadur ki Sanvedansheelata

 लाल बहादुर की संवेदन शीलता  

जब लाल बहादुर 6 वर्ष के थे तब एक दिन वे लड़कों  के एक समूह के साथ केवल शरारत की नीयत से एक उद्यान में प्रवेश किया। जब उनके साथी पेड़ों पर चढ़ गए और फल तोड़ने लगे,तब लाल बहादुर ने विचार पूर्ण भाव के साथ चारों तरफ देखा व पास की झाड़ी से एक फूल तोडा। तभी उन लडको में से एक लडके ने माली को आते हुए देख कर खतरे की चेतावनी दी,और तुरंत ही लाल बहादुर के अलावा  सभी लडके गायब हो गए। माली ने लाल बहादुर को पकड़ लिया और पिटाई कर दी।
लाल बहादुर ने कहा,"मैं एक गरीब और बिना पिता का लड़का हूँ , आप मुझे मत पीटो।"
माली मुस्कराया और उत्तर में बोला,"मेरे बच्चे,तब तो इस कारण से तुम्हे और भी अधिक अच्छा  व्यवहार करना चाहिए।"फिर उन्होंने (लाल बहादुर ने ) शपथ ली कि वे अन्य लड़कों की अपेक्षा अधिक अच्छा व्यवहार करेंगे और अपने आप से कहा कि  उन्हें ऐसा इसलिए करना होगा क्योंकि उनके पिता जीवित नहीं हैं।
लाल बहादुर के प्रारम्भिक जीवन की यह घटना,उनकी अतिशय संवेदन शीलता को प्रकट करती है।

Wednesday 7 October 2015

(2.3.1) This is the Difference

This is the Difference  यही मुख्य अंतर है 

तानसेन के गुरु,हरिदास के संगीत की विशेषताओं को सुनकर अकबर ने इसे सुनने की तीव्र इच्छा की।इसलिए वह स्वामी के संगीत को सुनने के लिए तानसेन के साथ उनके आश्रम पर गया ।वे स्वामी हरिदास का संगीत सुनने के लिए कई दिनों तक उनके आश्रम में रुके।लेकिन स्वामी जी ने नहीं गाया क्योंकि वे तभी गाते थे,जब उनकी इच्छा होती थी।फिर एक दिन तानसेन ने जानबूझ कर अशुद्ध स्वर छेड़ दिया।स्वामी जी को यह सहन नहीं हुआ और वे स्वयं गाने लगे।
उन्होंने वही गीत ठीक प्रकार से गाया,तरंग ने आकर उन्हें आवृत्त कर लिया और वे स्वयं को उस संगीत  में भूल गए जो पृथ्वी और आकाश पर छा गया।अकबर और तानसेन ने स्वयं को  स्वर माधुर्य और संगीत के आकर्षण में भुला दिया।
यह एक अद्वितीय अनुभूति थी।जब संगीत रुका,अकबर तानसेन की ओर मुड़ा और बोला,"तुम कहते हो तुमने इस संत से संगीत सीखा है और तब भी तुम इसका सम्पूर्ण जीवंत आकर्षण खो चुके मालूम पड़ते हो।तुम्हारा संगीत इस मर्मस्पर्शी संगीत के समक्ष भूसा मात्र प्रतीत होता है।
"यह सत्य है,श्रीमान,"तानसेन ने कहा,"यह सत्य है कि मेरा संगीत मेरे गुरु की जीवंत स्वरसंगति और माधुर्य की समक्ष भावशून्य और निर्जीव है।परन्तु यहाँ यह अंतर है कि  मैं सम्राट के आदेश पर गाता हूँ,परन्तु मेरे गुरु किसी व्यक्ति के आदेश पर नहीं गाते हैं, वे केवल तभी गाते हैं जबकि उनके अंतरतम की आत्मा से प्रेरणा प्राप्त होती है। इसी से सारा अंतर है।   

(2.2.3) Practical Quotations in Hindi

Practical Quotations in Hindi व्यवहारिक कोटेसन 

(1) अपने कार्य के प्रति निष्ठा रखो। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है। निष्ठा से किया गया कार्य स्वतः ही बड़ा लगने लगता है।
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(2) अपने सहकर्मियों का सम्मान करें व उन्हें  नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करें। अपने अधीनस्थों पर विश्वास करें परन्तु उनकी गतिविधि उनके व उनके द्वारा किये गए कार्य पर अपनी नज़र रखें।
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(3) किसी कार्य को  जल्दबाजी या  हडबड़ाहट में नहीं करें क्योंकि ऐसा करना आपके कार्य की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
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(4) दूसरे  व्यक्ति की बात को पूरी तरह सुने। अपनी बात को संक्षेप में परन्तु  तथ्यात्मक व  प्रभावशाली तरीके से कहें।
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(5) किसी व्यक्ति को तब तक बुरा मत समझो जब  तक वह बुरा सिद्ध न हो जाये।                                           =====                                              
(6) दूसरो  के अनुभवों से सीखिए परन्तु अपनी मौलिकता की छाप आपके कार्य पर रहनी चाहिये।आपके द्वारा किया गए कार्य थोडा अलग लगना चाहिये।                                                                                                    =====                    
(7) कुछ व्यक्तियों को हमेशा के लिए और सब व्यक्तियों को कुछ समय के लिए मूर्ख  बनाया जा सकता है परन्तु सब व्यक्तियों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। इसलिये झूठ या कुतर्क का सहारा मत  लो। यह आपके कमजोर व्यक्तित्त्व का संकेतक माना जाएगा।
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(8)किसी भी चीज़ की अति से बचो ,चाहे इस अति का सम्बन्ध अच्छाई से हो चाहे बुराई से हो।
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(9) मन:स्थिति संतुलित और दृष्टिकोण व्यवहारिक रखो।
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(10) रातोंरात आपके जीवन में चमत्कार हो जाएगा और आप धनवान तथा स्मृद्धि शाली बन जाओगे , ऐसी कल्पना से बचो। क्योकि ऐसी कल्पना व्यक्ति के मन में दूसरो की वस्तु-धन आदि हड़पने की लालसा व बेईमानी  करने  की इच्छा अंकुरित करती है जो उसके जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
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(11) अनुचित तरीके से कमाया हुआ धन गलत मार्ग की ओर ले जाता है। दूसरो को दुखी करके प्राप्त किया हुआ धन कल्याणकारी नहीं हो सकता भले ही थोड़े समय के लिये हमारे मन को राजी कर दे।
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(12) जो आपका है वह जाएगा नहीं और जो चला गया वह आपका नहीं था। इसे परमसत्ता के द्वारा निर्धारित व्यवस्था समझ कर जो चला गया उसके प्रति मन में उदासी या अप्रसन्नता लाने से बचे, क्योंकि  कई बातें व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं होती हैं ।
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(13) प्रकृति का विस्तार अनंत है। यदि कोई व्यक्ति बहुत कुछ प्राप्त कर ले फिर भी किसी न किसी वस्तु का अभाव रहेगा। अत: बुद्धिमान मनुष्य अधिक पाने का रचनात्मक प्रयास तो  करता है, परन्तु प्राप्त वस्तुओं  का ही उत्तम उपयोग करता है न कि अप्राप्त वस्तुओं की चाहत में दुखी होता है।
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(14) अपनी सफलता से सीखें ताकि  आप उन्हें दोहरा सकें, अपनी असफलता व गलतियों से सीखे। ताकि ऐसी गलतियाँ दुबारा न हो।
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(15) अपने जीवन में हमेशा ही अच्छा घटित होने की उम्मीद करे फिर भी कुछ विपरीत घटित हो जाए तो जाए तो उसे ईश्वर द्वारा हमारे हित के लिए घटित  किया हुआ  माने। हमारा अच्छा-बुरा हमारे बजाय ईश्वर ज्यादा जानता है।
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(16) स्वयं को आवश्यकता से अधिक आलोचनात्मक होकर नही देखे। अपने मजबूत बिन्दुओ का विशलेषण   करे और कमियों को दूर करने का प्रयास करे परन्तु कमियो या कमजोरियों पर ज्यादा जोर देकर कुंठित होने से बचे।
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(17) दिल का काम दिमाग से और दिमाग का काम दिल से मत करो।
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(18)परिवार में छोटे-बड़े का ध्यान रखते हुए आचरण करे।  अपनी ओर  से सोहार्द बनाये रखने की पहल करे। छोटी- छोटी अप्रिय बातो व् घटनाओं को अधिक तूल नही देवे। परिवार की नीव विश्वास पर टिकी है। हर बात को संदेह की दृष्टि से नही देखे। स्नेह  जीवन का आधार है यह  जीने  को सार्थक और आनंददायक बनाता है। यदि कोई घटना, कोई बात, कोई परिस्थिति अप्रिय लगे तो उस चतुराई के साथ एक ख़ूबसूरत मोड़  दे दे।
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(19) मजाक करने और मजाक बनाने में अंतर है।
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(20) अपनी स्थिति पर संतोष करो, दूसरो के उत्कर्ष को देखकर मुदित होओ, दूसरों को दुखी देखकर मन मे करुणा का भाव लाओ, जो आपके प्रति विरोधी भाव रखते है, आप उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखो।
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(21) कुछ व्यक्तियों को हमेशा के लिये मूर्ख बनाया जा सकता है परन्तु सब व्यक्तियों को हमेशा के लिए मूर्ख नही बनाया जा सकता है। इसलिए झूठ या कुतर्क सहारा मत लो। यह आपके व्यक्तित्व की कमजोरी माना जाएगा।
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(22) सर्वश्रेष्ठ विचार की प्रतीक्षा मत करो, श्रेष्ठ विचार पर अमल करो, इससे श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ स्वयं पीछे आयेंगे।
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(23) जीवन के मार्ग में जो भी खुशिया मिले उनसे खुश रहिये। ये छोटी छोटी खुशियां ही एक दिन बड़ी ख़ुशी बन जायेंगी।
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(24) आशा, उमंग , उत्साह और उल्लास से भरा हुआ जीवन जीओ। इन भावनाओं की झलक आपके चेहरे, कार्य, व्यवहार व् आचरण पर भी दिखनी चाहिए।
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(25) संकट के समय धैर्य और साहस से काम लें , पुरुषार्थ की बात सोचें  और कठिनायों  से  लड़ने  और उन्हें  परास्त  करने  का  चाव  रखें। ऐसे समय पर ईश्वर पर विश्वास  रखें। .
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(1.1.8) The Best Season of the Year

 वर्ष की श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है ?
एक बार राजस्थान के किसी एक कस्बे में गोविन्द नारायण नामक सेठ (धनवान व्यापारी )रहता था। उसके एक पुत्र था। जब उसका पुत्र विवाह योग्य उम्र तक पहुंचा तो उस व्यापारी ने उसके विवाह के लिए गुण वान व सुन्दर लड़की की तलाश शुरू की।जब भी कोई व्यक्ति उस के पुत्र के  विवाह का प्रस्ताव लाता तो व्यापारी प्रस्तावक की बेटी से एक प्रश्न पूछता - "वर्ष की सबसे  श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है?" प्रत्येक लड़की इस प्रश्न का भिन्न उत्तर देती और उसका कारण भी बताती।परन्तु सेठ को कोई भी उत्तर संतुष्ट नहीं कर सका।
एक दिन हरि  प्रकाश नामक एक अन्य व्यापारी अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा था।रात्रि हो जाने से उसने उस कस्बे में रात्रि गुजारना चाहा जहाँ सेठ गोविन्द नारायण रहता था। गोविन्द नारायण ने सेठ हरि प्रकाश को अपनी हवेली में रात्रि बिताने के लिए निवेदन किया। 
गोविन्द नारायण ने हरि प्रकाश की अच्छी आव भगत की।सेठ हरि प्रकाश के भी एक पुत्री थी।वार्ता लाप के दौरान हरि प्रकाश ने अपनी पुत्री का विवाह सेठ गोविन्द नारायण के पुत्र के साथ  करने की इच्छा प्रकट की।गोविन्द नारायण ने वही प्रश्न उसकी बेटी से भी पूछा -"वर्ष की श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है?" लड़की ने उत्तर दिया -"यदि परिवार में शांति हो, परिवार के छोटे सदस्य परिवार के बड़े सदस्यों का सम्मान  करते हों और उनकी  आज्ञा पालन करते हों, और परिवार के बड़े सदस्य छोटों  के प्रति स्नेह की भावना रखते हों,परिवार के सभी सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना हो तो उस परिवार और उसके सदस्यों के लिए वर्ष की प्रत्येक ऋतु श्रेष्ट है क्योंकि ऐसे वातावरण में ही लक्ष्मी निवास करती है।"सेठ गोविन्द नारायण लड़की के उत्तर से प्रभावित हुआ और उसके पुत्र के साथ उस लड़की के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।    

(1.1.7) Kartvya / Duty is more important

 कर्तव्य ज्यादा महत्व पूर्ण है 

किसी एक गांव में एक धनवान भेड़ पालक रहता था।एक बार उसने दो लडकों को भेड़ें चराने के लिए रख लिया। उसने भेड़ों को दो समूह में विभाजित कर लिया और प्रत्येक को एक एक झुण्ड चराने के लिए दे दिया .कुछ दिन बाद उसने देखा कि दोनों ही समूह में कुछ भेड़ें मर गई हैं और कुछ अन्य दुबली हो गई हैं।भेड मालिक ने दोनों ही लडकों को दोषी पाया।
पता लगा की दोनों ही लडकें प्रतिदिन सुबह भेड़ों को अपने साथ ले जाते थे लेकिन उन्हें (भेड़ों को ) केवल इधर उधर भटकने देते थे और वे अपने व्यसन जिसके वे आदी थे, में लग जाते थे।उन में से एक को गपशप करने की आदत थी। इसलिये वह दूसरे लड़कों के साथ बैठ जाता था  और गपशप  लगाता रहता था।भेड़े आस पास के क्षेत्र में इधर उधर घूमती रहती थी चाहे वहां चरने के लिए पर्याप्त चारा हो या नहीं हो।यही बात भेड़ो के दूसरे समूह के साथ भी होती थी।दूसरे समूह को चराने वाला लड़का अपना समय पूजा पाठ और धार्मिक कार्य करने में लगाता था और भेड़ों की तरफ ध्यान नहीं देता था।
 भेड़ पालक ने उन दोनों के विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई।दोनों को गाँव के न्यायाधीश के कोर्ट में उपस्थित किया गया।यद्यपि  दोनों के ही कार्यों (व्यसन )में गुणवत्ता का बहुत अधिक अंतर था तो भी दोनों को ही उनके सौंपे गये कर्तव्य की अवहेलना का दोषी पाये जाने पर समान सजा दी गई।
न्यायाधीश ने निर्णय देते हुए कहा,"कर्तव्य भाव के बिना जो कुछ भी किया जाता है वह व्यसन ही है,चाहे वह व्यसन गप्पे लगाने  का हो चाहे पूजा पाठ करने का हो। दोनों ही व्यसन सामान रूप से सजा योग्य हैं क्योंकि प्रत्येक में कर्तव्य पालन की पूर्ण रूप से उपेक्षा हुई है।   
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(5.1.5) Good son / Achchha Putra kaun hota hai ?

Achchhe putra ke Lakshan अच्छे पुत्र के लक्षण
> जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा ही सम्पूर्ण अंधकार को दूर कर देता है जिसे अनगिनत तारे मिलकर भी दूर नहीं कर सकते। उसी प्रकार गुण रहित  सैंकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणवान पुत्र ही श्रेष्ठ होता है.
(चाणक्य नीति)
> उस पुत्र को धिक्कार है, जो समर्थ होते हुए भी पिता के मनोरथ पूर्ण करने में सहयोग नहीं करता है। ऐसा पुत्र  जो पिता की चिंता को दूर नहीं कर सकता, उस पुत्र के जन्म लेने का क्या लाभ ?
(देवी भागवत)
> श्रेष्ठ पुत्र वही है, जो माता-पिता का भक्त होता है, श्रेष्ठ पिता वह है जो अपने पुत्र-पुत्रियों का उत्तम पालन-पोषण करता है, श्रेष्ठ मित्र वह है जिस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके और श्रेष्ठ पत्नी वह है जिससे सुख प्राप्त हो।
(चाणक्य)
> आदर्श पुत्र वह है, जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल आचरण करता है तथा उनके प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है।
(आदिपर्व - महाभारत)
> सुन्दर व सुगन्धित पुष्पों से युक्त केवल एक वृक्ष ही सम्पूर्ण वन को सुगन्धित बना देता है, ठीक उसी प्रकार सुपुत्र से पूर्ण एक ही कुल समाज में आंनद और उल्लास का सृजन करके उसे उन्नतिशील बना देता है।
(चाणक्य नीति)
> अधिक अवगुणी पुत्रों की अपेक्षा एक ही गुणी तथा ज्ञानी पुत्र उत्तम है, जिसके आश्रय से सम्पूर्ण परिवार सुख भोगता है।
(चाणक्य नीति )
> जिस प्रकार स्वयं आग से जलता हुआ एक ही सूखा वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र अपने वंश के नाश का कारण बनता है।  
(चाणक्य नीति)
> मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पुत्रहीन होना ही श्रेष्ठ है।
(देवी भागवत)