Sunday, 30 March 2025

(9.4.7) सफलता का मूल मंत्र / सफलता के सात सूत्र Safalata Ka Mantra ? Safalata Paane Ke Saat Sootra (Vidur Neeti )

सफलता का मूल मंत्र / सफलता के सात सूत्र Safalata  Ka  Mantra ? Safalata  Paane Ke Saat Sootra (Vidur Neeti )

अलग-अलग व्यक्तियों के लिए सफलता का अर्थ तथा परिभाषा अलग-अलग हो सकती है, परंतु सामान्य रूप से तथा सरल शब्दों में कहा जाए तो निर्धारित किए गए लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त कर लेना सफलता है। यह लक्ष्य या उद्देश्य कोई भी हो सकता है, परंतु इसे पाने के लिए महात्मा विदुर ने सात सूत्र बताएं हैं, जिनके द्वारा निश्चित रूप से सफलता प्राप्त की जा सकती है।

इन सात सूत्रों में से पहला सूत्र है, उद्योग-  

उद्योग से तात्पर्य है परिश्रम व प्रयास। किसी भी कार्य का अपने अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए केवल लक्ष्य निर्धारित करना ही पर्याप्त नहीं है। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जितने व जैसे परिश्रम की आवश्यकता हो, उतना परिश्रम तथा प्रयास करना आवश्यक है।

दूसरा सूत्र  है, संयम - 

संयम से तात्पर्य है, आत्म नियंत्रण। किसी भी कार्य को प्रारंभ करते ही सफलता की आशा करने से बचना चाहिए। साथ ही कार्य की पूर्णता व उद्देश्य प्राप्ति तक सहज बने रहना चाहिए। इसके विपरीत उतावलेपन या असहजता से सफलता पाने में रुकावट आ सकती है। अतः महात्मा विदुर के अनुसार उन्नति व सफलता चाहने वाले को संयम रखना चाहिए, संयमी होना चाहिए।

तीसरा सूत्र है, दक्षता -

दक्षता से तात्पर्य है, किसी कार्य को अच्छी तरह करने की निपुणता, कुशलता या चतुराई। कार्य का अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए उस कार्य की प्रकृति के अनुसार पर्याप्त कुशलता तथा निपुणता अति आवश्यक है। महात्मा विदुर कहते हैं, दक्षता या कुशलता से ही किसी कार्य में सफलता मिलती है।

चौथा सूत्र है, सावधानी।

कार्य या लक्ष्य छोटा हो या बड़ा, उसकी पूर्णता हेतु अपेक्षित सावधानी रखनी होती है। कार्य को सफलता की ओर ले जाने के लिए किन बातों को ध्यान में रखना है? किस विषय को ज्यादा प्राथमिकता देना है? या किस विषय को कम प्राथमिकता देना है? आदि बातों पर विचार करने में पूर्ण सावधानी रखने की आवश्यकता है, तभी सफलता प्राप्त होती है और उन्नति के द्वार खुलते हैं।

पांचवा सूत्र है, धैर्य -

धैर्य का तात्पर्य शिथिलता या लापरवाही करना नहीं है, बल्कि कार्य को सहज गति से संपन्न करना है, जिसमें उतावलेपन का अभाव होता है। कवि वृंद ने भी कहा है कि कोई भी कार्य धीरे-धीरे ही होता है, इसके लिए अधीर होना व्यर्थ है। वे कहते हैं पेड़ को चाहे कितना भी पानी दे दो, वह पेड़ समय आने पर ही फल देगा। अतः अपेक्षित सफलता के लिए प्रयास व परिश्रम के साथ-साथ धैर्य रखना ही बुद्धिमानी है।

छठ सूत्र है, स्मृति -

स्मृति का तात्पर्य है, याददाश्त। तेज स्मृति वाला व्यक्ति, उद्देश्य की प्राप्ति या कार्य की सफलता के लिए किन-किन बातों को ध्यान में रखना है, किन-किन लोगों से मिलना है? क्या-क्या कार्य करने हैं ? आदि बातें याद रखता है।

सतवाँ सूत्र है, सोच विचार कर कार्य करना -

कार्य शुरू करने से पहले उसके प्रत्येक पहलू के बारे में पूरी तरह सोच विचार करना आवश्यक है। व्यक्ति को सोचना चाहिए कि कार्य को शुरू करने का उपयुक्त समय है या नहीं? उसके सहयोगी कौन है? इस कार्य में कितनी शक्ति या ऊर्जा की आवश्यकता है? याद रखिए बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय। काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हँसाय।

अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि सफलता या उन्नति के लिए उद्योग, संयम, दक्षता, सावधानी, धैर्य, स्मृति तथा सोच विचार कर किसी कार्य को करना, यही उन्नति का मूल मंत्र है।


Wednesday, 26 March 2025

(9.4.6) धन पाने तथा उसे बढ़ाने के चार सूत्र Dhan Paane Tatha Badhane Ke Chaar Sootra (Vidur Niti )

धन पाने तथा उसे बढ़ाने के चार सूत्र Dhan  Paane  Tatha  Badhane  Ke Chaar Sootra (Vidur  Niti )

महात्मा विदुर धर्मराज के अवतार थे। वे जो भी बात कहते थे, उसमें सभी का हित छुपा हुआ होता था। महात्मा विदुर ने एक श्लोक में बताया है कि लक्ष्मी अर्थात धन की प्राप्ति कैसे की जाए, उसे कैसे बढ़ाए जाएउसे कैसे बचाया जाये, और कैसे सुरक्षित रखा जाये। इसके लिए उन्होंने चार सूत्र बताए हैं।

इन चार सूत्रों में से पहला सूत्र है, शुभ कर्म करना 

शुभ कर्मों से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। शुभ कर्मों से तात्पर्य है परिश्रम, मेहनत व ईमानदारी से अपने कार्य या व्यवसाय को करना। ऐसा करने से निश्चित ही धन की प्राप्ति होती है।

दूसरा सूत्र है, प्रगल्भता

प्रगल्भता से तात्पर्य है, गहनता, पारंगतता, समझदारी व कुशलता अर्थात धन प्राप्ति के साथ इस धन के उपयोग में कुशलता व समझदारी दिखानी होगी। जैसे धन का निवेश कहाँ और कैसे किया जाए? इन बातों का ध्यान रखने से धन बढ़ता है।

तीसरा सूत्र है, चतुराई

अर्थात प्राप्त धन का उपयोग चतुराई व सावधानी के साथ करना चाहिये। धन के आय तथा व्यय का ब्यौरा प्रतिदिन तैयार किया जाए, जिससे खर्च और बचत की जानकारी हो सके। धन के निवेश, उपयोग तथा व्यय में सावधानी व चतुराई से लक्ष्मी जड़ जमा लेती है।

चौथा सूत्र है, संयम

संयम से तात्पर्य है, आत्म नियंत्रण अर्थात किसी व्यक्ति के पास धन का आगमन हो भी जाए, प्राप्त धन बढ़ता भी रहे, लेकिन संयम या आत्म नियंत्रण के अभाव में वह धन सुरक्षित नहीं रह सकता। संयम के बिना धन की बर्बादी हो सकती है। इसलिए धन का उपयोग उपभोग संयम से करने पर ही वह सुरक्षित रहता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि शुभ कर्मों से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, प्रगल्भता से वह बढ़ती है, चतुराई से वह जड़ जमा लेती है और संयम से वह सुरक्षित रहती है। 

Monday, 24 March 2025

(9.4.5) उन्नति में बाधक 6 दुर्गुण (Unnati Me Baadhak 6 Durgun) Vidur Niti

 उन्नति में बाधक 6 दुर्गुण (Unnati  Me Baadhak  6 Durgun)   

महात्मा विदुर को एक नीतिज्ञ के रूप में जाना  पहचाना जाता है। विदुर ने धृतराष्ट्र को नीति की बातें बताई थी, लेकिन वे बातें केवल राजा या राज परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि सामान्य व्यक्ति के लिए भी बहुत उपयोगी हैं। उन्होंने ऐसे कई सूत्र दिए हैं जो जीवन को सुखी व उपयोगी बनाने के लिए अति आवश्यक हैं। इसी क्रम में उन्होंने बताया है कि ऐश्वर्य और उन्नति चाहने वाले व्यक्ति को इन 6 दुर्गुणों को त्याग देना चाहिए। ये 6 दुर्गण इस प्रकार हैं -  

(पहला - ज्यादा नींद)  नींद स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है तथा ठीक तरह से नींद आने पर ही व्यक्ति अपने आप को तरोताजा अनुभव करता है लेकिन यदि कोई व्यक्ति अधिकतर समय नींद लेने में बिता देता है, तो वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं होता है। जितने भी सफल या कामयाब व्यक्ति हैं, उन्होंने नींद की बजाय कार्य को महत्व दिया है। महात्मा विदुर के अनुसार उन्नति व ऐश्वर्य चाहने वाले व्यक्ति को अत्यधिक नींद का मोह छोड़ देना चाहिए। यदि कोई देर तक सोता है तो उसके जीवन की गाड़ी पीछे छूट जाती है।

(दूसरा - तंद्रा) तंद्रा, नींद आने के पहले की अवस्था है। इसे ऊंघना या उनींदापन भी कहा जा सकता है। तंद्रा के कारण कर्मेंद्रियाँ व ज्ञानेंद्रियाँ शिथिल हो जाती हैं जिसके परिणाम स्वरुप किसी भी कार्य को सतर्कता पूर्वक नहीं किया जा सकता है। जीवन में सुख, समृद्धि उन्नति चाहने वाले व्यक्ति को तंद्रा का त्याग कर देना चाहिए।

( तीसरा - डर) डर एक नकारात्मक प्रवृत्ति है। डरपोक व्यक्ति में साहस जैसे सकारात्मक गुण का अभाव होता है। वह डर के कारण न तो जोखिम ले सकता है और न ही कोई ठोस निर्णय ले पाता है। जोखिम, साहस, और प्रभावी निर्णय के अभाव में जीवन में उन्नति की संभावना  कमजोर हो जाती है। अतः व्यक्ति को निडर होना चाहिए, ताकि वह उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सके।

(चौथा - क्रोध) क्रोध के कारण व्यक्ति न सही सोच सकता है, न ही सही निर्णय ले पाता है, और न ही सही बोल पाता है। क्रोध के कारण व्यक्ति अच्छे बुरे का ध्यान भी नहीं रख पाता है जिससे उसके कई कार्य बिगड़ जाते हैं। उसके सगे संबंधी भी उससे दूरी बनाए रखना चाहते हैं। क्रोध का त्याग करने से व्यक्ति में शालीनता व शिष्टता आती है,  लोगों का सहयोग मिलता है, जिससे उन्नति का मार्ग दिखने लगता है।

(पाँचवा - आलस्य) आलस व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है। आलस के कारण व्यक्ति में क्षमता व कार्य कुशलता होते हुए भी वह अपने कार्य में लापरवाही बरतता है, जिससे उसका कार्य निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो पाता है। आलस्य का त्याग करके ही व्यक्ति उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।

(छठा - दीर्घ सूत्रता) दीर्घ सूत्रता का तात्पर्य है, जल्दी हो जाने वाले कार्य में भी अधिक देर लगने की आदत का होना। किसी भी कार्य में अपेक्षित समय से अधिक समय लगाने वाला व्यक्ति अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। वह इस दीर्घसूत्रता की प्रवृत्ति के कारण उन्नति के मार्ग में पीछे छूट जाता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि उन्नति या ऐश्वर्य चाहने वाले व्यक्ति को नींद, तंद्रा, डर, क्रोध,आलस्य तथा दीर्घ सूत्रता, इन 6 दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए।

Saturday, 22 March 2025

(9.4.4) मूर्ख व्यक्ति के लक्षण Moorkh Vyakti Ke Lakshan / Moorkh Kaun Hota Hai? Vidur Niti

 मूर्ख व्यक्ति के लक्षण Moorkh Vyakti Ke Lakshan / Moorkh Kaun Hota Hai?

मूर्ख व्यक्ति कौन होता है?

महात्मा विदुर ज्ञानी, दार्शनिक और महान नीतिज्ञ थे। उनके द्वारा धृतराष्ट्र को कही गई बातें सभी व्यक्तियों के लिए तथा हर युग में उतनी ही उपयोगी, प्रभावी और प्रासंगिक हैं, जितनी महाभारत काल में थी। उनके द्वारा बताए गए मूर्ख व्यक्ति के लक्षण इस प्रकार हैं -

(पहला) अज्ञानी होते हुए भी अपने आप को ज्ञानी मानना और घमंड करना, दरिद्र होकर भी बड़े-बड़े मंसूबे बांधना, बिना परिश्रम किये ही धन पाने की इच्छा रखना, ये सब मूर्ख व्यक्ति के लक्षण हैं।

(दूसरा) जो अपना कर्तव्य छोड़कर दूसरों के कर्तव्य का पालन करता है और अपने मित्रों के साथ अनुचित आचरण करता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(तीसरा) जो न चाहने वालों को चाहता है और चाहने वालों का त्याग कर देता है अर्थात जो उसके मित्र नहीं हैं, उसको चाहते नहीं हैं, उससे स्नेह नहीं करते हैं, उनको तो वह गले लगाता है और जो उसको चाहते हैं, जो उसके शुभचिंतक हैं, उनको त्याग देता है, उनकी परवाह नहीं करता है, उनसे कोई संबंध नहीं रखना चाहता है, ऐसा व्यक्ति मूर्ख के श्रेणी में आता है।

(चौथा) जो व्यक्ति अपने से ज्यादा बलवान के साथ दुश्मनी रखता है अर्थात यह जानते हुए भी कि वह स्वयं कमजोर है, फिर भी अपने से अधिक बलवान या शक्तिशाली व्यक्ति से शत्रुता रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मूर्ख कहलाता है।

(पाचवाँ) जो अपने हितेषी को त्याग कर अपने शत्रु को मित्र बनाता है और अपने मित्र से द्वेष करता है, उसे किसी न किसी प्रकार से कष्ट पहुंचता है तथा बुरे कर्मों में लीन रहता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(छठा)  जो अपने कार्य को व्यर्थ ही फैलाता है, सर्वत्र संदेह करता है तथा शीघ्र होने वाले कार्य में भी देरी लगाता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(सातवाँ ) जो बिना बुलाए किसी के कक्ष में प्रवेश कर लेता है, बिना पूछे बहुत बोलता है और जिन लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए उन पर विश्वास करता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(आठवाँ) जो व्यक्ति स्वयं दोष युक्त बर्ताव करता है अर्थात गलत व्यवहार और कार्य करता है और उस गलती के लिए दूसरों को दोषी मानता है अर्थात दूसरों पर उस गलती का आरोप लगा देता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(नवाँ) जो व्यक्ति किसी कार्य को करने में असमर्थ होता है और कार्य पूरा नहीं होने पर क्रोध करता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(दसवाँ) जो अपने बल और क्षमता का अनुमान लगाए बिना ही धर्म के विपरीत जाकर न पाने  योग्य वस्तुओं को पाने की इच्छा करता है, वह मूर्ख कहलाता है।

(ग्यारहवाँ) जो अपात्र को उपदेश देता है,शून्य की उपासना करता है अर्थात जिसकी उपासना नहीं करनी चाहिए उसकी उपासना करता है, और कृपण यानि कंजूस व्यक्ति का आश्रय लेता है अर्थात कृपण या कंजूस व्यक्ति से कुछ पाने के लालसा करता है, वह मूर्ख कहलाता है।