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Wednesday, 14 May 2025
(6.8.26)शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने के लाभ Shiva Ling Par Kale Til Chadhane Ke Laabh Va Vidhi
भगवान शिव को आशुतोष कहा जाता है। आशुतोष का अर्थ होता है
शीघ्र प्रसन्न होने वाले अर्थात भगवान शिव ऐसे देव हैं जो किसी छोटे से उपाय से भी
प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं।
पानी में मिले हुए काले तिल से शिवलिंग का
अभिषेक करना भी भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला उपाय है।
आस्था और विश्वास के साथ शिवलिंग पर काले
तिल मिश्रित जल चढ़ाने के लाभ इस प्रकार हैं -
मन शांत और प्रसन्न रहता है।
परिवार के सदस्यों को आकस्मिक और असामयिक मृत्यु का भय नहीं
रहता है।
नकारात्मक भावनाएं दूर होती हैं।
कठिनाइयों और बाधाओं पर विजय पाने का मार्ग प्रशस्त होता है।
जन्म कुंडली में अशुभ स्थिति में पड़े हुए ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोचर के अनुसार ग्रहों की खराब स्थिति का असर भी नहीं पड़ता
है।
पारिवारिक कठिनाइयां दूर होती हैं।
स्वास्थ्य लाभ होता है और सुख समृद्धि की वृद्धि होती है।
काले तिल से अभिषेक करने की विधि इस प्रकार है -
तांबे या पीतल के लोटे में शुद्ध जल भरलें और यदि संभव हो तो
उसमें थोड़ा गंगा जल भी डाल दें। पानी से भरे इसी लोटे में साफ किए हुए 21 काले
तिल डाल दें। इस जल से भरे हुए लोटे को लेकर शिव मंदिर में जाए। “ॐ नमः शिवाय “बोलकर सबसे पहले
गणेश जी को जल चढ़ाएं, फिर
पार्वती को, फिर
कार्तिकेय जी को और फिर नंदी को जल
चढ़ाएं। बाद में बचे हुए जल को पतली धार
से “ॐ
नमः शिवाय” बोलते
हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और अंत में गिरे हुए जल से अपनी तीन अंगुलियों की सहायता
से ललाट पर पानी का त्रिपुंड बना लें।
अभिषेक करने के बाद अपनी आंखें बंद करके 2 मिनट तक
भगवान शिव के स्वरूप का चिंतन करते रहें और फिर आपकी जो भी मनोकामना हो उसको मन ही
मन दोहरा दें तथा विश्वास करें कि भगवान शिव ने आपकी प्रार्थना को सुन
लिया है और भगवान शिव की कृपा से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी तथा आपकी कठिनाइयाँ
दूर होगी।
(6.8.25) रुद्राक्ष के विभिन्न प्रकार और उनके लाभ Rudraksh Ke Prakaar Aur Laabh / Benefits of Rudraksh
रुद्राक्ष के विभिन्न प्रकार और उनके लाभ Rudraksh Ke Prakaar Aur Laabh / Benefits of Rudraksh
गीताप्रेस द्वारा
प्रकाशित संक्षिप्त शिवपुराण के विश्वेश्वर संहिता के अध्याय 25 के अनुसार एक बार भगवान शिव
ने देवी पार्वती से कहा कि हे देवी, रुद्राक्ष अनेक प्रकार के होते हैं। उनके मुखों के
अनुसार उनका वर्गीकरण किया गया है और इसी आधार पर उनका महत्व और फल भी मिलता है।
तुम उत्तम भाव से उनका परिचय सुनो -
एक मुख वाला रुद्राक्ष
साक्षात शिव का स्वरूप है, वह भोग और मोक्ष रूपी फल
प्रदान करता है। जहाँ इस रुद्राक्ष की पूजा
होती है, वहाँ से लक्ष्मी दूर नहीं
जाती है। उस स्थान के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं तथा वहाँ रहने वाले लोगों की
संपूर्ण कामनाएं पूर्ण होती हैं। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
दो मुख वाला रुद्राक्ष
देव देवेश्वर कहा गया है वह संपूर्ण मनोकामनाओं और फलों को देने वाला है। इस
रुद्राक्ष को “ॐ नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
तीन मुख वाला रुद्राक्ष
सदा साक्षात साधन का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्यायें प्रतिष्ठित होती हैं।
इस रुद्राक्ष को “ॐ क्लीं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
चार मुख वाला रुद्राक्ष
साक्षात ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को
देने वाला है। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
पांच मुख वाला रुद्राक्ष
साक्षात् कालाग्नि रूद्र रूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने
वाला और संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। यह समस्त पापों को दूर करता
है। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
छः मुखों वाला रुद्राक्ष
कार्तिकेय का स्वरूप है। यदि दाहिनी बाँह में उसे धारण
किया जाए, तो धारण करने वाला पापों
से मुक्त हो जाता है इसमें कोई संशय नहीं है। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं हुं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
सात मुख वाला रुद्राक्ष
अनंग स्वरूप और अनंग नाम से ही प्रसिद्ध है। हे देवी, उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्वर्यशाली हो जाता है।
इस रुद्राक्ष को “ॐ हुं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
आठ मुख वाला रुद्राक्ष
अष्टमूर्ति भैरव रूप है। उसको धारण करने से मनुष्य पूर्णायु होता है और मृत्यु के
बाद शूलधारी शंकर हो जाता है।
इस रुद्राक्ष को “ॐ हुं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
नौ मुख वाले रुद्राक्ष को
भैरव तथा कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है तथा नौ रूप धारण करने वाली महेश्वरी
दुर्गा उसकी अधिष्ठात्री देवी मानी गई है। जो मनुष्य भक्ति भाव से अपने बाएं हाथ
में नौ मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करता है, वह निश्चित ही मेरे समान सर्वेश्वर हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं हुं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
दस मुख वाला रुद्राक्ष
साक्षात भगवान विष्णु का रूप है। उसको धारण करने से मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं
पूर्ण हो जाती हैं। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
ग्यारह मुख वाला जो
रुद्राक्ष है, वह रूद्र रूप है। उसको
धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजय होता है। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं हुं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
बारह मुख वाले रुद्राक्ष को केश प्रदेश में धारण करे। उसके
धारण करने से मानो मस्तक पर बारह आदित्य विराजमान हो जाते हैं। यह अपार शक्ति और आरोग्य प्रदान करता है। इस रुद्राक्ष को “ॐ क्रौं क्षौ रौं
नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विश्वे देवों
का स्वरूप है। उसको धारण करके मनुष्य संपूर्ण
अभीष्टों को पाता है तथा सौभाग्य और मंगल का लाभ करता है। इस रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
चौदह मुख वाला जो
रुद्राक्ष है, वह परम शिव रूप है। उसे
भक्ति पूर्वक मस्तक पर धारण करे। यह समस्त प्रकार की सफलता प्रदान करता है। इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस रुद्राक्ष को “ॐ नमः” बोल कर धारण करना चाहिये।
Friday, 2 May 2025
(6.5.10) भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे प्राप्त हुआ? Bhagwan Vishnu Ko Sudarshan Chakra Kisne Diya
भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे प्राप्त हुआ? Bhagwan Vishnu Ko Sudarshan Chakra Kisne Diya
भगवान विष्णु को सुदर्शन
चक्र कैसे प्राप्त हुआ? इस संदर्भ में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त शिव पुराण के कोटि रुद्र
संहिता के अध्याय 34 में एक कथा इस प्रकार है -
एक समय की बात है, दैत्य अत्यंत प्रबल होकर लोगों को पीड़ा देने और धर्म
का लोप करने लगे थे। उन महाबली और पराक्रमी दैत्यों से पीड़ित होकर देवताओं ने देव रक्षक भगवान विष्णु से अपना सारा दुख कहा। तब
श्री हरि विष्णु कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना करने लगे। वे
भगवान शिव के 1000 नामों से उनकी स्तुति
करते तथा प्रत्येक नाम बोल कर कमल का एक पुष्प चढ़ा देते थे। एक दिन भगवान शंकर ने
भगवान विष्णु के भक्ति भाव की परीक्षा करने के लिए उनके द्वारा लाए हुए एक हजार
कमल के पुष्पों में से एक पुष्प को छिपा दिया।
शिव की माया के कारण घटित
हुई इस अद्भुत घटना का भगवान विष्णु को पता नहीं लगा। उन्होंने एक फूल कम जानकर
इसकी खोज आरंभ की, लेकिन वह फूल उनको कहीं
भी नहीं मिला, तब भगवान विष्णु ने एक
फूल की पूर्ति के लिए अपने कमल के समान एक नेत्र को ही निकाल कर ही भगवान शिव पर
चढ़ा दिया। यह देख सबका दुख दूर करने वाले भगवान शंकर बड़े प्रसन्न हुए और वहीं
उनके सामने प्रकट हो गए। प्रकट होकर वे श्री हरि से बोले, हे हरि मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम इच्छा
अनुसार वर मांगो। मैं तुम्हें मनोवांछित वस्तु दूंगा। तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी
अदेय नहीं है।
तब विष्णु बोले, हे नाथ आपके सामने मुझे क्या कहना है आप अंतर्यामी है
अतः सब कुछ जानते हैं तथापि आपके आदेश का गौरव रखने के लिए मैं कहता हूँ। दैत्यों
ने सारे जगत को पीड़ित कर रखा है। सदाशिव, सभी देवता दुखी हैं। उन्होंने आगे कहा कि
मेरा अपना अस्त्र-शस्त्र दैत्यों के वध में काम नहीं
देता है। हे परमेश्वर, इसलिए मैं आपकी शरण में
आया हूँ।
भगवान विष्णु का यह वचन
सुनकर देवाधिदेव महेश्वर ने अपना सुदर्शन चक्र उन्हें दे दिया। उसे पाकर भगवान
विष्णु ने उन समस्त प्रबल दैत्यों का उस चक्र के द्वारा बिना परिश्रम के संहार कर
डाला। इससे सारा जगत प्रसन्न हो गया। देवताओं को भी सुख मिला और अपने लिए उस आयुध
को पाकर भगवान विष्णु भी अत्यंत प्रसन्न और परम सुखी हो गए।