Saturday 26 December 2015

(5.1.6) Surya Grahan /Solal Eclipse

सूर्य ग्रहण - संभावना,सूतक, पुण्य काल आदि

सूर्य ग्रहण क्या होता है –
सूर्य ग्रहण एक खगोलीय और प्राकृतिक घटना है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है.इस प्रक्रिया में चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है, जिससे सूर्य की चमकती हुई सतह आंशिक या पूर्ण रूप से ढक जाती है, इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है .सूर्य ग्रहण की संभावना कब होती है
सूर्य ग्रहण सदैव अमावस्या को ही होता है, परन्तु प्रत्येक अमावस्या को सूर्य ग्रहण नही होता है. यह चन्द्रमा की गति व पृथ्वी की गति तथा पात अर्थात राहु –केतु पर निर्भर करता है.
सूर्य ग्रहण के लिए आवश्यक स्थितियाँ इस प्रकार हैं -
अमावस्या तिथि होनी चाहिए.
चन्द्रमा क्षीणतम होना चाहिए.
चन्द्रमा और राहु या केतु के रेखांश बहुत निकट होने चाहिये.
चन्द्रमा के अक्षांश लगभग शून्य होने चाहिए.
सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है – सूर्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है –
(1)पूर्ण सूर्य ग्रहण – जब चन्द्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से ढक लेता है तो, इस अवस्था को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
(2)खंड या आंशिक सूर्य ग्रहण – जब चन्द्रमा सूर्य के कुछ भाग को ढके तो, इस स्थिति को खंड सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
(3)वलयाकार सूर्य ग्रहण – जब चन्द्रमा सूर्य को इस प्रकार ढके कि सूर्य बीच में से ढका हुआ दिखाई दे और उसके किनारों पर प्रकाश  का छल्ला बना हुआ दिखाई दे तो इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
चूड़ामणि योग किसे कहते हैं – जब सूर्य ग्रहण रविवार में हो तो उसे चूड़ामणि योग कहा जाता है. सूर्य पुराण के अनुसार इस योग में सूर्य ग्रहण का फल बहुत अधिक होता है.
सूर्य ग्रहण का पुण्य काल –
जहाँ और जिस क्षेत्र में सूर्य ग्रहण दिखाई पड़े, वहीँ पुण्य काल होता है तथा उस क्षेत्र में  ही स्नान – दान, जप, पुण्य आदि करने का विधान है. जिस स्थान पर ग्रहण दिखाई नहीं दे तो, वहाँ धार्मिक दृष्टि से सूतक, स्नान, दान,पुण्य आदि नियम लागू नहीं होते हैं,
सूतक क्या होता है –
सूतक अशुभ काल होता है. यह सूतक ग्रहण स्पर्श के समय से बारह घन्टे पूर्व लग जाता है और ग्रहण के मोक्ष यानि समाप्ति के साथ ही सूतक समाप्त हो जाता है. सूतक लगने के पहले ही पानी, आटा,आदि खाद्य पदार्थों में कुशा (एक प्रकार की पवित्र घास) के तिनके रख देने चाहिए.
ग्रहण के पहले, ग्रहण के मध्य और ग्रहण समाप्ति पर क्या करें –
ग्रहण शुरू होने से पहले स्नान, ग्रहण के मध्य में हवन, पूजा पाठ, देवार्चन, और ग्रहण की समाप्ति के समय दान और ग्रहण समाप्त होने पर फिर स्नान करने से प्राणी शुद्ध होता है.
ग्रहण का धार्मिक महत्व –
ग्रहण के समय साफ़ जल चाहे कहीं से भी लिया गया हो, गंगाजल के समान पवित्र होता है. सभी द्विजाचार्य व्यासजी के समान कहे गए गये हैं और दान सर्वभूमि दान के समान होता है.
ग्रहण के दौरान क्या करें –
ग्रहण के समय गायत्री मन्त्र, विष्णु सहस्त्र नाम स्तोत्र पाठ, आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ, इष्ट मन्त्र या नव ग्रहमन्त्र का जप करना चाहिए. धार्मिक पुस्तकें पढ़नी चाहिए. .
हवन करना चाहिए.
दान देना चाहिये.
गर्भवती महिलाओं को शांत भाव से ईश्वर व अपने इष्ट देव का ध्यान करना चाहिए.
ग्रहण के दौरान क्या नहीं करें –
ग्रहण काल में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए.
भोजन पकाना, भोजन करना, शयन करना, आदि कार्य नहीं करना चाहिए. लेकिन यह बात बालक, वृद्ध और रोगी के लिए लागू नहीं होती है.
ग्रहण काल में देवता की प्रतिमा को नहीं छूना चाहिए.
ग्रहण के समय सूर्य की तरफ नंगी आँखों से नहीं देखना चाहिए.
गर्भवती महिलाओं को सूर्य की तरफ नहीं देखना चाहिए.
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