Sunday 22 May 2016

(2.2.4) Rigved ki Sooktiyan

Rig ved ki sooktiyan ऋग वेदीय सूक्तियाँ 

> परिश्रम किये बिना देवता भी सहायक नहीं होते हैं।
> जो जाग्रत रहता है, उसे ऋचाएँ चाहती हैं।
> इस लोक में कर्मशील रहते हुए ही सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करें।
> मेरे दाहिने हाथ में कर्म है, तो बायें हाथ पर सफलता रखी है।
> सभी दिशाएँ हमारे लिए मित्र हो।
> सौ हाथों से संग्रह करो तथा हजार हाथों से दान दो।
> क्या उचित है और क्या अनुचित है, यह विचार कर जरूरी कार्य पहले कीजिये।
> मानव जीवन श्रेष्ठ और बड़ा बनने के लिए है। हमें चाहिये की हम सदा उन्नति और प्रगति की ओर कदम रखें, ऊँचे उठते रहें।
> कायर मत बनो। उठो, होश संभालो।