भद्रा
क्या है Bhadra kya hai भद्रा की उत्पत्ति, bhadra aur raakhi tatha holi भद्रा में क्या करें Bhadra me kya nahi karen
भद्रा
क्या है?
भद्रा
एक करण का नाम है। भद्रा को विष्टि करण के नाम से जाता है।
भद्रा
की उत्पत्ति कैसे हुई?
भद्रा
की उत्पत्ति के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भद्रा की
उत्पत्ति देवासुर संग्राम के समय हुई थी। भगवान शंकर ने अपने शरीर पर दृष्टिपात
किया। इस दृष्टिपात से भगवान शिव के शरीर से एक भयंकर शरीर वाली देवी प्रकट हुई।
इसी देवी ने सभी असुरों का संहार कर देवताओं को विजय दिलाई। देवताओं ने इसे भद्रा
के नाम से संबोधित किया और प्रसन्न होकर भद्रा देवी को करण रूप में सदा के लिए
स्थान दे दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार भद्रा माता छाया से उत्पन्न भगवान सूर्य की
पुत्री तथा शनि देव की बहन है। इनका वर्ण काला, भयंकर लंबे बाल और दांत
विकराल हैं। जब इनका जन्म हुआ तो ये संसार को अपना ग्रास बनाने के लिए दौड़ी। यज्ञ
में विघ्न बाधाएं पहुंचाने लगी। उत्सव तथा मंगल कार्यों में बाधा डालते हुए जगत को
पीड़ा पहुंचने लगी इनके ऐसे आचरण को देखकर सूर्य की पुत्री होते हुये भी कोई भी
देवता उससे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ। एक बार सूर्य देव ने उसके स्वयंवर
का भी आयोजन किया लेकिन भद्रा ने मंडप, आसन आदि को उखाड़ दिया और
फेंक दिया।
तब
सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि आप मेरी पुत्री को समझाओ। इस पर
ब्रह्मा जी ने समझाया ; हे
भद्रे तुम सातवें करण के रूप में स्थित रहो, जिसे विष्टि करण के नाम से
जाना जाएगा। विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है।
ब्रह्मा
जी ने आगे कहा कि जो व्यक्ति भद्रा काल में यानि तुम्हारे समय में यात्रा, गृह प्रवेश, व्यापार या अन्य किसी भी
प्रकार का मंगल कार्य करेगा तो, तुम उसमें विघ्न डालो और तुम्हारा अनादर करें उसका कार्य
ध्वस्त कर दो। भद्रा ने ब्रह्मा जी का आदेश मान लिया और विष्टि करण के रूप में
विद्यमान हो गई। उसकी उपेक्षा करना विपरीत परिणाम कारक होता है।
भद्रा
का निवास
भद्रा
का निवास या वास चंद्रमा की स्थिति के अनुसार रहता है यानि चंद्रमा जिस राशि में
स्थित होता है उसके अनुसार ही भद्रा का निवास रहता है। यदि चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में हो
तो, भद्रा
का निवास स्वर्ग लोक में होता है, यदि चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि पर हो तो
भद्रा का निवास पाताल लोक में होता है और यदि चंद्रमा कुंभ, मीन, कर्क और सिंह राशि में हो तो, भद्रा का निवास पृथ्वी लोक पर
होता है।
भद्रा
के निवास के संबंध में एक श्लोक इस प्रकार है :
स्वर्गै
भद्रा शुभं कार्यें, पाताले
च धनागमनम् ।
मृत्यु
लोके यदा भद्रा, सर्व
कार्य विनाशिनी।
अर्थात
भद्रा का वास स्वर्ग लोक में हो तो, यह शुभ कार्य करती है, पाताल में हो तो धन की
प्राप्ति कराती है और यदि मृत्यु लोक में हो तो सब कार्यों का नाश करती है।
इसलिए
जब भी भद्रा का वास मृत्यु लोक में हो तो कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
भद्रा
काल में वर्जित कार्य
भद्रा
के समय विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, सगाई, नया कारोबार, यात्रा, वस्तु खरीदना, जमीन जायदाद खरीदना और बेचना
आदि कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। इनके अलावा राखी बांधना और होलिका दहन करना
भी वर्जित है।
भद्रा
के समय करने योग्य कार्य
भद्रा
के समय उच्चाटन का कार्य, घोड़ा, भैंस, ऊंट आदि से संबंधी कार्य
सिद्ध होते हैं। इसके अलावा युद्ध का कार्य, राज दर्शन,
वैद्यागमन,किसी पर मुकदमा करना, शत्रु पक्ष से मुकाबला करना, राजनीतिक कार्य,
ऑपरेशन
और वाहन खरीदना आदि कार्य भद्रा के समय किए जा सकते हैं।
भद्रा
के अशुभ प्रभाव से बचने के उपाय
यदि
अनजाने में कोई कार्य कर लिया जाए और फिर पता चले कि यह कार्य भद्रा काल में हो
गया अथवा कोई अति आवश्यक कार्य करना ही हो तो भद्रा के इन 12 नाम का स्मरण करके करना
चाहिए।
भद्रा
के 12 नाम इस
प्रकार हैं : धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुर क्षयकारी।
भद्रा
तथा रक्षाबंधन और होली
भद्रा
और रक्षाबंधन तथा होली के संबंध में एक श्लोक है:
भद्रायं
द्वे न कर्तव्यम् श्रावणी फाल्गुनी तथा।
अर्थात
भद्राकाल में राखी बांधना और होलिका दहन वर्जित रहता है।
यदि
भद्राकाल में रक्षाबंधन होता है तो यह अमंगलकारी होता है। इसी प्रकार यदि होली को
भद्रा काल में जलाया जाता है तो, यह भी विनाशकारी होता है।
इस
प्रकार होली का दहन और राखी बांधना इन दोनों कार्यों को भद्राकाल में सर्वथा
वर्जित माना गया है।
हालांकि
कुछ विद्वान भद्रा के परिहार के रूप में मानते हैं कि यदि भद्रा का वास पाताल या
स्वर्ग में तो राखी बांधी जा सकती है। तथा भद्रा के पुच्छकाल में भी राखी बांधी जा
सकती है।
लेकिन
शास्त्रकारों ने इन परिहारों को विशेष स्थिति यानि आपातकाल में ही स्वीकारने के
लिए सावधान किया है। पीयूष धाराकार ने भद्रा के इन परिहारो के बारे में स्पष्ट
लिखा है कि यदि भद्रा रहित काल की प्रतीक्षा कर पाना संभव हो तो सर्वथा भद्रा रहित
काल में ही शुभ कृत्य करना चाहिए। यदि आपात स्थिति में भद्रा रहित काल की
प्रतीक्षा कर पाना संभव न हो तभी भद्रा परिहार का आश्रय लेना चाहिए।
निष्कर्ष
के रूप में कह सकते हैं कि भद्रा काल में शुभ कार्य को नहीं करना ही अच्छा है।