Saturday, 21 December 2024

(6.1.13) Shanti Shabd Ko Teen Baar Kyon Bola Jata Hai

शान्ति शब्द को तीन बार क्यों बोला जाता है? Why is shanti chanted three times 

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सनातन धर्म में पवित्र पूजा या अनुष्ठान तथा हवन में सारी प्रार्थनाएं तीन बार शान्ति, शान्ति, शान्ति बोलकर समाप्त की जाती है।

ऐसा करने से हम तीन प्रकार से उत्पन्न बाधाओं पर नियन्त्रण कर पाने में सफल होते हैं और हमें शांति मिलती है। ये तीन बाधाएं हैं, दैविक बाधा, भौतिक बाधा और अध्यात्मिक बाधा.  -

दैविक बाधाएं -  ऐसी बाधाएं बाढ़, भूकंप, तूफ़ान आदि के कारण उत्पन्न होती हैं. इस प्रकार की बाधाओं पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है. इसलिए जब हम पहली बारशान्तिशब्द बोलते हैं तो हम प्रार्थना कर रहे होते कि हे ईश्वर, हमें ऐसी बाधाओं से बचाओ, जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है और हमें शांति प्रदान करो।  

भौतिक बाधाएं  -  ऐसी समस्या या बाधाएं, दुर्घटना, अपराध, मानवीय संपर्क या आस पास के माहोल से उत्पन्न होती हैं. इसलिए जब हम दूसरी  बारशान्तिशब्द बोलते हैं तो हम प्रार्थना कर रहे होते कि हे इश्वर, हमें ऐसी बाधाओं से बचाकर हमें शान्ति प्रदान करो. 

आध्यात्मिक बाधाएं ऐसी बाधाएं हमारे क्रोध, अहंकारनिराशा, ईर्ष्या और भय  आदि  से उत्पन्न होती  हैं. इसलिए जब हम तीसरी बारशान्तिशब्द बोलते हैं तो, हम प्रार्थना कर रहे होते कि हे इश्वर, हमें ऐसी बाधाओं से बचाकर हमें शान्ति प्रदान करो. 

जब तीसरी बारशान्तिशब्द बोला जाता है तो, “शांतिशब्द पर थोड़ा जोर देकर बोला जाता है; जैसे -शा -न -ति ई।

ऐसा करने से हमें एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है।

इसके अतिरिक्त मन, शरीर और आत्मा, इन तीनों की शांति के लिए भीशान्तिशब्द का तीन बार उच्चारण किया जाता है। 

जब पहली बारशांतिशब्द बोला जाता है तो, यह शरीर को शुद्ध करता है और उसे बीमारियों और परेशानियों से मुक्त करता है। जिससे शरीर तरोताजा हो जाता है। 

जबशांति शब्द दूसरी बार बोला जाता है तो, यह मन की शांति के लिए एक अतुलनीय अनुभूति होती है और मन अपनी नकारात्मक भावनाओं, चिंताओं और तनाव से मुक्त हो जाता है। 

जबशान्तिशब्द को तीसरी बार बोला जाता है तो, यह व्यक्ति की आत्मा को छूते हुए उसे एक उच्च आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। 

Wednesday, 18 December 2024

(6.8.23)Shivaratri Par Chaar Prahar Ki Pooja Aur Iske Laabh

 शिवरात्रि पर चार प्रहर की पूजा तथा इसके लाभ Shivaratri Par Chaar Prahar Ki Pooja Aur Iske Laabh

शिवरात्रि पर चार प्रहर की पूजा

शिवरात्रि पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाले चार प्रहर की पूजा की जाती है। यह पूजा प्रदोष काल यानि संध्या काल से शुरू होकर अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त तक चलती है। रात्रि के पहले प्रहर में पहली, दूसरे प्रहर में दूसरी, तीसरी प्रहर में तीसरी और चौथे प्रहर में चौथी पूजा की जाती है। पहले प्रहर में दूध से शिवजी के ईशान स्वरूप कादूसरे प्रहर में दही से अघोर स्वरूप का, तीसरे प्रहर में घी से वामदेव स्वरूप का और चौथे प्रहर में शहद से सद्योजात स्वरूप का अभिषेक कर पूजा करें।

महाशिवरात्रि की रात महा सिद्धि दाहिनी है। इसलिए इस महाशिवरात्रि में की गई पूजा - अर्चना विशेष पुण्य प्रदान करने वाली होती है। यदि कोई व्यक्ति चार बार पूजन और अभिषेक नहीं कर सके तो पहले प्रहर में एक बार ही पूजन कर ले तो भी उसके लिए यह फलदाई होती है।

शिवरात्रि पर चार प्रहर की पूजा के लाभ

शिवरात्रि के महापर्व पर रात्रि में चार प्रहर की पूजा करने से अज्ञानता दूर होती है।

पूजा करने वाले को पापों से मुक्ति मिलती है।

उसे कष्टों से छुटकारा मिलता है। 

उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। 

उसको शिव कृपा प्राप्त होती है. 

उसे सुख समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

उसका भाग्य सूर्य के समान चमकने लगता है।

उसके रोग-शोक, दूर हो जाते हैं तथा सुख सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

Tuesday, 17 December 2024

(2.3.7)दृष्टिकोण का अंतर Difference of Attitude (An Instructive Story)

 दृष्टिकोण का अंतर  Difference of Attitude (An Instructive Story)

एक बार एक भिक्षुक जंगल में लड़कियां चुन रहा था तभी उसने देखा कि एक लोमड़ी जिसके पैर नहीं थे, एक पेड़ के नीचे बैठी हुई थी। उससे इधर उधर भी नहीं चला जा रहा था। भिक्षुक को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि वह बिना कुछ खाए पिए कैसे जिंदा है ? वह यह सोच ही रहा था तभी उसने एक शेर को आते हुए देखा। शेर ने एक हिरण का शिकार किया था और वह उसे अपने मुँह  में दबाकर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था। भिक्षुक को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया बल्कि खाने के लिए उसके पास मांस का एक बड़ा टुकड़ा डाल दिया। लोमड़ी ने उस टुकड़े को खा लिया।

अगले दिन वह भिक्षुक वापस आया और छिपकर बैठ गया और शेर का इंतजार करने लगा। आज भी वैसा ही हुआ। भिक्षुक ने अपने आप से कहा कि यह भगवान के होने का प्रमाण है। वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का प्रबंध भी वही करता है। ऐसा सोचते हुए वह एक एकांत जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। पहला दिन बीत गया पर वहाँ कोई भी नहीं आया। दूसरे दिन भी  किसी ने भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। वह भूखे मरने लगा। तभी एक महात्मा उधर से गुजरे। भिक्षुक ने अपनी व्यथा सुनाई। महात्मा बोले,” तुम यह क्यों नहीं  समझे कि भगवान तुम्हें शेर की तरह देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह नहीं। इसलिए तुम अपने कर्म पर ध्यान दो।

इस कहानी की शिक्षा -

जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीज जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं। सफल वही होता है जो इशारों को सही अर्थ में समझता है।

 

Saturday, 14 December 2024

(7.1.28) Bhadra Kya Hai? Bhadra Ki Utpatti भद्रा क्या है ? भद्रा में क्या करें?

भद्रा क्या है Bhadra kya hai भद्रा की उत्पत्ति, bhadra aur raakhi tatha holi भद्रा में क्या करें Bhadra me kya nahi karen

भद्रा क्या है?

भद्रा एक करण का नाम है। भद्रा को विष्टि करण के नाम से जाता है।

भद्रा की उत्पत्ति कैसे हुई

भद्रा की उत्पत्ति के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भद्रा की उत्पत्ति देवासुर संग्राम के समय हुई थी। भगवान शंकर ने अपने शरीर पर दृष्टिपात किया। इस दृष्टिपात से भगवान शिव के शरीर से एक भयंकर शरीर वाली देवी प्रकट हुई। इसी देवी ने सभी असुरों का संहार कर देवताओं को विजय दिलाई। देवताओं ने इसे भद्रा के नाम से संबोधित किया और प्रसन्न होकर भद्रा देवी को करण रूप में सदा के लिए स्थान दे दिया। 

 एक अन्य कथा के अनुसार भद्रा माता छाया से उत्पन्न भगवान सूर्य की पुत्री तथा शनि देव की बहन है। इनका वर्ण काला, भयंकर लंबे बाल और दांत विकराल हैं। जब इनका जन्म हुआ तो ये संसार को अपना ग्रास बनाने के लिए दौड़ी। यज्ञ में विघ्न बाधाएं पहुंचाने लगी। उत्सव तथा मंगल कार्यों में बाधा डालते हुए जगत को पीड़ा पहुंचने लगी इनके ऐसे आचरण को देखकर सूर्य की पुत्री होते हुये भी कोई भी देवता उससे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ। एक बार सूर्य देव ने उसके स्वयंवर का भी आयोजन किया लेकिन भद्रा ने मंडप, आसन आदि को उखाड़ दिया और फेंक दिया। 

तब सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि आप मेरी पुत्री को समझाओ। इस पर ब्रह्मा जी ने समझाया ; हे भद्रे तुम सातवें करण के रूप में स्थित रहो, जिसे विष्टि करण के नाम से जाना जाएगा। विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है।

ब्रह्मा जी ने आगे कहा कि जो व्यक्ति भद्रा काल में यानि तुम्हारे  समय में यात्रा, गृह प्रवेश, व्यापार या अन्य किसी भी प्रकार का मंगल कार्य करेगा तो, तुम उसमें विघ्न डालो और तुम्हारा अनादर करें उसका कार्य ध्वस्त कर दो। भद्रा ने ब्रह्मा जी का आदेश मान लिया और विष्टि करण के रूप में विद्यमान हो गई। उसकी उपेक्षा करना विपरीत परिणाम कारक होता है। 

भद्रा का निवास 

भद्रा का निवास या वास चंद्रमा की स्थिति के अनुसार रहता है यानि चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है उसके अनुसार ही भद्रा का निवास रहता है। यदि चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में हो तो, भद्रा का निवास स्वर्ग लोक में होता हैयदि चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि पर हो तो भद्रा का निवास पाताल लोक में होता है और  यदि चंद्रमा कुंभ, मीन, कर्क और सिंह राशि में हो तो, भद्रा का निवास पृथ्वी लोक पर होता है। 

भद्रा के निवास के संबंध में एक श्लोक इस प्रकार है :

स्वर्गै भद्रा शुभं कार्यें, पाताले च धनागमनम् ।

मृत्यु लोके यदा भद्रा, सर्व कार्य विनाशिनी।

अर्थात भद्रा का वास स्वर्ग लोक में हो तो, यह शुभ कार्य करती है, पाताल में हो तो धन की प्राप्ति कराती है और यदि मृत्यु लोक में हो तो सब कार्यों का नाश करती है। 

इसलिए जब भी भद्रा का वास मृत्यु लोक में हो तो कोई भी शुभ  कार्य नहीं करना चाहिए। 

भद्रा काल में वर्जित कार्य 

भद्रा के समय विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, सगाई, नया कारोबार, यात्रा, वस्तु खरीदना, जमीन जायदाद खरीदना और बेचना आदि कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। इनके अलावा राखी बांधना और होलिका दहन करना भी वर्जित है।

भद्रा के समय करने योग्य कार्य 

भद्रा के समय उच्चाटन का कार्य, घोड़ा, भैंस, ऊंट आदि से संबंधी कार्य सिद्ध होते हैं।  इसके अलावा युद्ध का कार्य, राज दर्शनवैद्यागमन,किसी पर मुकदमा करना, शत्रु पक्ष से मुकाबला करना, राजनीतिक कार्यऑपरेशन और वाहन खरीदना आदि कार्य भद्रा के समय किए जा सकते हैं। 

भद्रा के अशुभ प्रभाव से बचने के उपाय 

यदि अनजाने में कोई कार्य कर लिया जाए और फिर पता चले कि यह कार्य भद्रा काल में हो गया अथवा कोई अति आवश्यक कार्य करना ही हो तो भद्रा के इन 12 नाम का स्मरण करके करना चाहिए। 

भद्रा के 12 नाम इस प्रकार हैं : धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुर क्षयकारी।

भद्रा तथा रक्षाबंधन और होली 

भद्रा और रक्षाबंधन तथा होली के संबंध में एक श्लोक है: 

भद्रायं द्वे  न कर्तव्यम् श्रावणी फाल्गुनी तथा। 

अर्थात भद्राकाल में राखी बांधना और होलिका दहन वर्जित रहता है। 

यदि भद्राकाल में रक्षाबंधन होता है तो यह अमंगलकारी होता है। इसी प्रकार यदि होली को भद्रा काल में जलाया जाता है तो, यह भी विनाशकारी होता है। 

इस प्रकार होली का दहन और राखी बांधना इन दोनों कार्यों को भद्राकाल में सर्वथा वर्जित माना गया है।

हालांकि कुछ विद्वान भद्रा के परिहार के रूप में मानते हैं कि यदि भद्रा का वास पाताल या स्वर्ग में तो राखी बांधी जा सकती है। तथा भद्रा के पुच्छकाल में भी राखी बांधी जा सकती है।

लेकिन शास्त्रकारों ने इन परिहारों को विशेष स्थिति यानि आपातकाल में ही स्वीकारने के लिए सावधान किया है। पीयूष धाराकार ने भद्रा के इन परिहारो के बारे में स्पष्ट लिखा है कि यदि भद्रा रहित काल की प्रतीक्षा कर पाना संभव हो तो सर्वथा भद्रा रहित काल में ही शुभ कृत्य करना चाहिए। यदि आपात स्थिति में भद्रा रहित काल की प्रतीक्षा कर पाना संभव न हो तभी भद्रा परिहार का आश्रय लेना चाहिए।

निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि भद्रा काल में शुभ कार्य को नहीं करना ही अच्छा है।

Tuesday, 27 August 2024

(6.9.1) SaraswatiMantra for Viddhya and intelligence

Saraswati Mantra  शिक्षा, बुद्धि, धारणा शक्ति तथा विद्या की प्राप्ति हेतु सरस्वती मंत्र

देवी सरस्वती को हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी माना जाता है | वे विद्या, बुद्धि, साहित्य, संगीत और कला की देवी हैं | इनकी आराधना – उपासना से बुद्धि तीव्र होती है, मानसिक जड़ता दूर होती है और धारणा शक्ति बढ़ती है |

देवी सरस्वती का बीज मंत्र ऐं है | इस बीज मंत्र से युक्त प्रभावशाली मंत्र है – ऐं श्री सरस्वत्यै नमः देवी सरस्वती के इस मंत्र का निष्ठा तथा विश्वास के साथ जप करने से जपकर्ता की बुद्धि तीव्र होती है,  विवेकशक्ति और तार्किक योग्यता का विकास होता है, वाणी प्रभावशाली हो जाती है , धारणाशक्ति बढ़ती है और परीक्षा में सफलता मिलती है | इस मंत्र के जप करने की विधि इस प्रकार है –

दैनिक कार्य से निवृत होकर  पूर्व  या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके ऊन के आसन पर बैठ जायें .

अपने सामने देवी सरस्वती का चित्र रखें। मन ही मन सरस्वती का ध्यान करें कि देवी जिसने श्वेत वस्त्र धारण कर रखें हैं जिसके हाथ में वीणा और पुस्तक हैं . जो  श्रेष्ठ कमल के फूल का आसन ग्रहण करती है । ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देव जिनकी स्तुति करतें हैं ऐसी देवी सरस्वती मेरी बुद्धि को निर्मल बनायें व तीक्ष्ण करें . मेरी  मानसिक जड़ता को दूर करें और मेरी धारणा शक्ति को बढायें .

इस प्रकार ध्यान करने के बाद देवी सरस्वती के मंत्र - ऐं श्री सरस्वत्यै नमः  का पांच, सात या ग्यारह माला का जप करें जितना ज्यादा जप होगा उतना ही फलदायक हैं |

जप के बाद आँखें बंद करके पांच मिनट तक मन ही मन भावना करें कि देवी सरस्वती आपकी  प्रार्थना को स्वीकार कर रही हैं, आपके ऊपर देवी की कृपा की वर्षा हो रही हैं। आपकी  बुद्धि निर्मल और तीक्ष्ण हो रही है |

 

 

  

Wednesday, 3 July 2024

(7.3.4) राहु काल क्या होता है? राहुकाल किसे कहते हैं? What is Rahukaal

 राहु काल क्या होता है? राहुकाल किसे कहते हैं? What is Rahukaal

राहुकाल क्या होता है - 

राहुकालदो शब्दों से मिलकर बना है, एक शब्द हैराहुजो एक अशुभ और पाप ग्रह है और दूसरा शब्द है, ‘कालजिसका अर्थ होता है, ‘समयअर्थात वह समायावधि जिसका स्वामी राहु होउस कालखंड को या समयावधि को राहुकाल कहा जाता है।

दक्षिण भारत में इसकी  यानि राहुकाल की बहुत अधिक मान्यता है . अब धीरे-धीरे उत्तर भारत में भी इसको माना जाने लगा है। 

हिंदू मान्यता के अनुसार सभी शुभ कार्य शुभ समय में ही करने की प्रथा है। लेकिन कुछ कालखंड या समयावधि ऐसी आती है जो अशुभ होती है। राहुकाल भी अशुभ काल कहलाता है। इसलिए इस समय अवधि में कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है।

राहुकाल की गणना कैसे की जाती है?

सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य, दिन के आठ बराबर भागों में से प्रतिदिन कोई न कोई एक भाग राहुकाल होता है। यानि किसी भी स्थान के  सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य की कुल समय अवधि को निकाल कर उस अवधि को 8 बराबर भागों में विभाजित किया जाता है। इन आठ भागों में से  एक भाग की समय अवधि राहुकाल की अवधि होती है। यह अवधि प्रतिदिन के वार के अनुसार अलग अलग होती है।

जैसे किसी शहर या स्थान पर सूर्योदय सुबह 6:00 बजे और सूर्यास्त शाम को 6:00 बजे हो तो यह सूर्योदय से सूर्यास्त की अवधि 12 घंटे की हुई। इस 12 घंटे की अवधि को आठ भागों में बराबर विभाजित करें  तो प्रत्येक भाग 1 घंटा और 30 मिनट का होगा। इन आठ भागों में से पहला भाग राहुकाल से मुक्त रहता है और अन्य सात भागों में से एक भाग राहु काल का होता है। यह भाग या खंड वार के अनुसार प्रतिदिन बदलता रहता है, जैसे सोमवार को दूसरा भाग राहुकाल होगा, मंगलवार को सातवां भाग, बुधवार को पांचवा भाग, गुरुवार को छठा भाग, शुक्रवार को चौथा भाग, शनिवार को तीसरा भाग और रविवार को आठवां भाग राहुकाल होगा।

सप्ताह में राहु काल का समय इस प्रकार रहता है - 

सोमवार को प्रातः 7:30 से 9:00 बजे तक 

मंगलवार को सायं 3:00 बजे से 4:30 तक

बुधवार को दिन में 12:00 बजे से 1:30 तक

गुरुवार को दिन में 1:30 से 3:00 बजे तक

शुक्रवार को सुबह 10:30 से 12:00 तक 

शनिवार को सुबह 9:00 बजे से 10:30 तक

रविवार को सायंकाल 4:30 से 6:00 बजे तक।

लेकिन दिन छोटा या बड़ा होगा तो राहुकाल की अवधि भी छोटी या बड़ी होती रहती है। जैसे, किसी दिन सोमवार को सूर्य 7:19 पर उदय हो और 6:03 पर अस्त हो तो इस दिन का दिनमान यानी पूरे दिन की अवधि 10 घंटे और 44 मिनट की होगी अब इसे 8 बराबर भागों में बांटने पर प्रत्येक भाग 1 घंटा और 20 मिनट का होगा अतः उस दिन सोमवार को राहुकाल 8:39 बजे से 9:59 तकरहेगा .

राहुकाल में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए यानि कौन से कार्य वर्जित हैं

राहुकाल में विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, नया व्यापार शुरू करना, वाहन खरीदना, किसी वस्तु का क्रय विक्रय करना, गृह आरंभ करना, किसी नवीन कार्य की  शुरुआत आदि शुभ कार्य नहीं करने चाहिए. 

लेकिन जो कार्य पहले से ही चल रहें हो तो उन कार्यों को जारी रखा जा सकता है या ऐसा कार्य जिसे राहुकाल के पहले शुरू कर दिया गया हो तो उसे भी जारी रखा जा सकता है. इस राहुकाल में दैनिक पूजा पाठ किये जा सकते हैं. विशेष रूप से राहु से पूजा, मंत्र जप आदि विशेष फलदायी होते हैं. कोर्ट केस, वाद विवाद और बहस भी इस राहुकाल के समय में की जा सकती है.

सामान्यतया  राहुकाल की  दिन के समय ज्यादा मान्यता की गई है लेकिन कुछ लोग राहुकाल को रात्रि की अवधि के लिए भी मानते हैं. हालाँकि रात को राहुकाल  मानने की परम्परा कम लोकप्रिय है क्योंकि अधिकांश महत्वपूर्ण और शुभ कार्य दिन के समय आरंभ किए जाते हैं. फिर भी यदि  रात्रि के समय भी राहुकाल की गणना करना हो तो सूर्यास्त तथा अगले दिन सूर्योदय के बीच की अवधि को आठ भागों में विभाजित करके की जा सकती है.