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Saturday, 26 April 2025
(7.1.29) गुमी हुई वस्तु मिलेगी या नहीं मिलेगी? Khoi Ya Gumi Hui Vastu Milegi Ya Nahin ?
कभी-कभी हमारी कोई वस्तु गुम जाती है, खो जाती है या चोरी हो जाती है, तो यह खोई हुई वस्तु वापस मिलेगी या नहीं? इसका
पता ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से लगाया जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खोई हुई वस्तु को
वापस ढूंढने या प्राप्त करने के लिए नक्षत्र को आधार बनाया जाता है और खोई हुई
वस्तु के वापस मिलने की संभावना का पता लगाया जा सकता है। जिस दिन और जिस समय आपकी
कोई वस्तु गुमी है या चोरी हुई है तो उस दिन और उस समय कौन सा नक्षत्र था, उसी नक्षत्र के अनुसार खोई हुई वस्तु के मिलने
या नहीं मिलने का अनुमान लगाया जा सकता है।
किस दिन कौनसा नक्षत्र है, यह जानने के लिए पंचांग देखा जा सकता है या कई
अखबारों में भी प्रतिदिन का नक्षत्र लिखा हुआ होता है, जिसकी सहायता से भी उस दिन के नक्षत्र का पता
लगाया जा सकता है, जिस
दिन कोई वस्तु गुमी है।
हिंदू पंचांग में पांच अंग होते हैं जिनमें से
एक अंग है, नक्षत्र। पंचांग के अनुसार 27 नक्षत्र होते हैं और अभिजीत सहित 28 नक्षत्र होते हैं, जिन्हें चार समूह में बांटा जाता है। इनमें से
पहला समूह, अंध नक्षत्र कहलाता है, दूसरा है, मंद लोचन नक्षत्र, तीसरा मध्य लोचन नक्षत्र और चौथा है सुलोचन
नक्षत्र।
नक्षत्रों के इन समूहों के आधार पर जो वस्तु
गुम जाती है, वह मिलेगी या नहीं मिलेगी, जल्दी मिलेगी या देरी से मिलेगी इसका अनुमान
लगाया जाता है।
किस समूह में कौन कौन से नक्षत्र आते हैं और
इनमें गुमी हुई वस्तु मिलेगी या नहीं मिलेगी? और मिलेगी तो कब और किस दिशा में मिलेगी ? इसके लिए इन नक्षत्रों के बारे में हम विस्तृत
जानकारी करेंगे।
अंध नक्षत्र
रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा और रेवती। ये अंध नक्षत्र कहलाते हैं।
इनमें खोई हुई वस्तु के पूर्व दिशा में और
शीघ्र मिलने की प्रबल संभावना बनती है।
मंद नक्षत्र
मृगशिरा, अश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा, शतभिषा और अश्विनी, ये मंद नक्षत्र कहलाते हैं। इन नक्षत्रों में
खोई हुई वस्तु के तीन दिन में और दक्षिण दिशा में मिलने की संभावना बनती है।
मध्यलोचन नक्षत्र
आद्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत, पूर्वाभाद्रपद, और भरणी, ये मध्य लोचन नक्षत्र कहलाते हैं। इन नक्षत्रों
में खोई हुई वस्तु के पश्चिम की दिशा में मिलने की संभावना बनती है। लेकिन इस
वस्तु के मिलने की संभावना कम ही होती है।
सुलोचन नक्षत्र
पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद और कृतिका, ये सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं। इनमें खोई हुई
वस्तु के बारे में माना जाता है कि वह उत्तर दिशा में गई है लेकिन इस वस्तु के
मिलने के संभावना नहीं के बराबर होती है।
Thursday, 24 April 2025
(6.13.1) परशुराम जी ने क्षत्रिय जैसा आचरण क्यों किया? Parashuraam Ji Ka Acharan Kshatriyon Jaisa Tha
ब्राह्मण होते हुए भी परशुराम जी ने क्षत्रिय जैसा आचरण क्यों किया? Parashuraam Ji Ka Acharan Kshatriyon Jaisa Tha
प्राचीन काल में कन्नौज में गाधि नाम के राजा राज्य करते
थे। उनके एक पुत्री थी जिसका नाम सत्यवती था। एक बार भृगु ऋषि के पुत्र ऋषि ऋषिक
राजा गाधि के पास गए और कहा कि तुम
तुम्हारी पुत्री सत्यवती का विवाह मुझसे कर दो। राजा गाधि सत्यवती का विवाह ऋषि ऋचीक के साथ नहीं करना
चाहते थे, परंतु ऋषि के श्राप के डर से उन्होंने
सत्यवती का विवाह ऋचीक ऋषि के साथ कर दिया।
विवाह के बाद भृगु ऋषि ने ऋषि ऋचीक के आश्रम में आकर
अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद दिया और उसको वर मांगने के लिए कहा। इस पर सत्यवती ने
अपनी माता के एक पुत्र हो जाने का वर मांगा।
सत्यवती की प्रार्थना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र
(चरु का अर्थ होता है, हविष्यान्न अर्थात यज्ञ की आहुति में पकाया
हुआ अन्न और पात्र का अर्थ होता है, बर्तन) अर्थात
हविष्यान्न के दो पात्र दिए और कहा कि
तुम्हारी माता पुत्र होने की कामना को लेकर पीपल के वृक्ष का आलिंगन करें और तुम
पुत्र की कामना को लेकर गूलर के वृक्ष का आलिंगन करना और इसके बाद दोनों चरुपात्रों
में से इस पात्र के चरू का सेवन तुम कर
लेना और इस दूसरे पात्र के चरु का सेवन
तुम्हारी माता कर लेगी।
परन्तु संयोगवश जिस चरु का सेवन सत्यवती को करना था उसका
सेवन उसकी माता ने कर लिया और जिस चरु का सेवन उसकी माता को करना था उस चरु का
सेवन सत्यवती ने कर लिया।
योग शक्ति के प्रभाव से चरु के बदले जाने वाली बात का
ज्ञान भृगु ऋषि को हो गया, तो वे अपनी
पुत्रवधू सत्यवती के पास आए और बोले कि पुत्री जिस चरु का सेवन तुम्हें करना था उस
चरु का सेवन तुम्हारी माता ने कर लिया और जिस चरु का सेवन तुम्हारी माता को करना
था उस चरु का सेवन तुमने कर लिया इसलिए तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी
क्षत्रिय जैसा आचरण करेगा और तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होते हुए भी
ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा।
इस पर सत्यवती ने प्रार्थना की कि आप मुझे आशीर्वाद दें
कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे। भृगु ऋषि ने सत्यवती की विनती को स्वीकार
कर लिया और कहा कि तुम्हारा पुत्र तो ब्राह्मण जैसा ही आचरण करेगा, परंतु
तुम्हारा पौत्र तो निश्चित रूप से ही क्षत्रिय जैसा आचरण करने वाला होगा।
परिणाम स्वरुप समय आने पर सत्यवती की माता के गर्भ से
विश्वामित्र जी का जन्म हुआ जो बाद में महान ऋषि हुए। सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि
का जन्म हुआ जो महान तेजस्वी थे। समय आने पर जमदग्नि का विवाह रेणुका के साथ हुआ
और रेणुका के पाँच पुत्र हुए, जिनमें
परशुराम जी सबसे छोटे थे। भृगु ऋषि के कहे अनुसार परशुराम जी का स्वभाव, आचरण और
व्यवहार क्षत्रियों जैसा ही हुआ।
Monday, 7 April 2025
(6.4.20) रुद्रावतार हनुमान जी / हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार Hanuman Ji Shankar Ke Avataar The
रुद्रावतार हनुमान जी / हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार Hanuman Ji Shankar Ke Avataar The
क्या राम भक्त
हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार हैं? इस संदर्भ में गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “हनुमान अंक” के पृष्ठ संख्या 123 पर एक कथा इस प्रकार
वर्णित है -
एक बार भगवान शंकर
भगवती सती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। प्रसंगवश भगवान शंकर ने सती से कहा,” प्रिये, जिनके नामों को रट रट कर मैं गदगद होता
रहता हूँ, वे ही मेरे प्रभु अवतार धारण करके संसार
में आ रहे हैं। सभी देवता उनके साथ अवतार ग्रहण करके उनकी सेवा का सुयोग प्राप्त
करना चाहते हैं। तब मैं ही उससे क्यों वंचित रहूँ? मैं भी वही चलूँ और उनकी सेवा करके अपने
युग युग की लालसा पूर्ण करूँ।
भगवान शंकर की यह
बात सुनकर सती ने सोच कर कहा - “प्रभु भगवान का अवतार इस बार रावण को मारने के लिए हो रहा
है। रावण आपका अनन्य भक्त है। यहाँ तक कि उसने अपने सिरों को काटकर आपको समर्पित
किया है। ऐसी स्थिति में आप रावण को मारने के काम में कैसे सहयोग दे सकते हैं?”
यह सुनकर भगवान
शंकर हँसने लगे। उन्होंने कहा, देवी जैसे रावण ने मेरी भक्ति की है, वैसे ही उसने मेरे एक अंश की अवहेलना भी
तो की है। तुम जानती हो कि मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूँ। जब उसने अपने 10 सिर
अर्पित करके मेरी पूजा की थी, तब उसने मेरे एक अंश को पूजा किये बिना ही छोड़ दिया था। अब
मैं उसी ग्यारहवें अंश से उसके विरुद्ध युद्ध करके अपने प्रभु की सेवा कर सकता
हूँ। मैंने वायु देवता के द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है।
यह सुनकर भगवती सती प्रसन्न हो गयी।
इस प्रकार भगवान
शंकर ही हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए हैं।
इस तथ्य की पुष्टि
करने वाली बात गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी दोहावली में लिखा है
जेहि सरीर रति राम
सो,
सोइ आदरहिं सुजान।
रुद्रदेह तजि नेह
बस,
वानर भे हनुमान।
अर्थात् सज्जन उसी
शरीर का आदर करते हैं, जिसको श्री राम से
प्रेम हो। इसी मोह वश रुद्र देह त्याग कर शंकरजी ने हनुमान जी के रूप में वानर
शरीर धारण किया।
इस कथा तथा दोहे
के अनुसार यह स्पष्ट है कि हनुमान जी भगवान शंकर ही अंशावतार हैं।
Sunday, 6 April 2025
(9.4.11) विदुर के सुविचार /विदुर के अनमोल विचार Vidur Quotes / Vidur Ke Suvichar / Vidur Anmol Vichar
विदुर के सुविचार /विदुर के अनमोल विचार Vidur Quotes / Vidur Ke Suvichar / Vidur Anmol Vichar
महात्मा विदुर
धर्मात्मा तथा महान नीतिज्ञ थे। उनकी नीतिगत बातें मार्गदर्शन के रूप में काम करती
हैं। उनके प्रमुख अनमोल विचार इस प्रकार हैं -
(पहला) जलती हुई आग से सोने की पहचान होती
है, सदाचार से सत्पुरुष की, व्यवहार से साधु की, भय के उपस्थित होने से वीर या बहादुर
पुरुष की, आर्थिक कठिनाई में धनवान व्यक्ति की और
कठिन परिस्थिति में या विपत्ति आने पर मित्र की परीक्षा होती है।
(दूसरा) देवता जिस व्यक्ति का भला करना
चाहते हैं या जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, वे चरवाहे की तरह डंडा लेकर उस व्यक्ति
के पहरा नहीं देते हैं, बल्कि वे उस व्यक्ति को उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं
ताकि वह उचित अनुचित का निर्णय करके स्थिति का समुचित सामना कर सके।
(तीसरा) शुभ कर्म करने से लक्ष्मी अर्थात
धन की उत्पत्ति होती है,प्रगल्भाता अर्थात कुशलता व समझदारी से वह बढ़ती है, चतुराई से वह जड़ जमा लेती है और संयम से वह सुरक्षित रहती है।
(चौथा) बुद्धि, कुलीनता, दम, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, ज्यादा नहीं बोलना, यथाशक्ति दान देना और कृतज्ञ होना ये आठ गुण व्यक्ति की शोभा बढ़ाने वाले होते
हैं।
(पांचवाँ) बोलने से नहीं बोलना अच्छा
बताया गया है, किंतु सत्य बोलना वाणी की दूसरी विशेषता
है यानि मौन की अपेक्षा दुगनी लाभप्रद है, सत्य भी यदि प्रिय बोला जाए तो यह वाणी
की तीसरी विशेषता है और वह भी यदि धर्म सम्मत बोला जाए तो, यह वाणी की चौथी विशेषता है।
(छठा) दुष्ट पुरुषों का स्वभाव मेघ यानि
बादल के समान चंचल होता है। वे सहसा ही क्रोध कर बैठते हैं और अकारण ही प्रसन्न हो जाते हैं।
(सातवाँ) सुख - दुख, उत्पत्ति - विनाश, लाभ- हानि और जीवन - मरण ये बारी - बारी
से सबको प्राप्त होते रहते हैं। धैर्यवान पुरुष को इनके लिए न तो प्रसन्न होना
चाहिए और न ही दुखी होना चाहिए।
(आठवाँ) बुढ़ापा रूप का, आशा धैर्य का, मृत्यु प्राणों का, असूया अर्थात जलन या ईर्ष्या धर्माचरण का, काम लज्जा का, नीच पुरुषों की सेवा सदाचार का, क्रोध लक्ष्मी का और अभिमान सर्वस्व का
ही नाश कर देता है।
(नवाँ) जिसमें बढ़ने की शक्ति, प्रभाव, तेज, पराक्रम, उद्योग और निश्चय है, उसे अपनी जीविका के नाश का भय कैसे हो
सकता है ?
(दसवाँ) जो क्रोध और हर्ष के वेग को रोक
लेता है अर्थात न क्रोधित होता है न ही हर्षित होता है और आपत्ति में भी धैर्य नहीं खोता है, वही राजलक्ष्मी का अधिकारी है।
(ग्यारहवाँ) विनय भाव अपयश का नाश करता है, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदैव क्रोध का नाश करती है, सदाचार कुल को नष्ट होने से बचाता है।
Thursday, 3 April 2025
(9.4.10) महात्मा विदुर के उपदेश Vidur Ke Updesh (Vidur Quotes ) Vidur Niti
महात्मा विदुर के
उपदेश Vidur Ke Updesh (Vidur Quotes ) Vidur Niti
भागवत धर्म को
जानने वालों में महात्मा विदुर का स्थान सर्वोपरि है। वे परम बुद्धिमान, प्रज्ञा शक्ति से संपन्न तथा महान योग बल
से प्रतिष्ठित थे। वे धृतराष्ट्र और पांडु के लघु भ्राता थे। उनके द्वारा
धृतराष्ट्र को कही गई नीतिगत तथा
व्यवहारिक बातें ही विदुर नीति के नाम से जानी जाती है। जीवन संघर्ष में जीत
दिलाने वाले उनके उपदेश इस प्रकार है -
(पहला) - जो
निर्धन होकर भी बहुमूल्य वस्तु की इच्छा करता है और जो असमर्थ होकर भी क्रोध करता
है। ये दोनों ही प्रकार के व्यक्ति अपने लिए कष्ट के द्वार खोल देते हैं।
(दूसरा ) -
अकर्मण्य गृहस्थ और प्रपंच में लगा हुआ सन्यासी, अपने धर्म के विपरीत कर्म करने के कारण शोभा नहीं पाते हैं
और आलोचना के पात्र बनते हैं।
(तीसरा) - काम, क्रोध और लोभ ये आत्मा का नाश करने वाले
नरक के तीन दरवाजे हैं अतः इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।
(चौथा) - ऐश्वर्य
या उन्नति चाहने वाले पुरुष को नींद, तंद्रा, डर, क्रोध, आलस्य और दीर्घ सूत्रता अर्थात जल्दी हो
जाने वाले कार्य में भी अधिक देरी लगाने की आदत। इन 6 दुर्गुणों का त्याग कर देना
चाहिए।
(पाचवाँ) - मनुष्य
को कभी भी सत्य, दान, कर्मण्यता, अनसूया अर्थात गुणों में दोष दिखाने की
प्रवृत्ति का अभाव, क्षमा तथा धैर्य।
बुद्धिमान व्यक्ति को इन 6 सद्गुणों का त्याग
कभी नहीं करना चाहिए।
(छठा) - धन की आय, नित्य निरोग रहना, पत्नी का अनुकूल होना और प्रिय वादिनी
होना, आज्ञाकारी पुत्र का होना तथा धन पैदा
करने वाली विद्या का ज्ञान होना। ये छह बातें मनुष्य के लिए सुखदायिनी होती हैं अर्थात ये व्यक्ति को सुखी बनाने वाली होती हैं।
(सातवाँ) - निरोग रहना, ऋणी ना होना, परदेश में नहीं रहना, अच्छे लोगों के साथ मेल जोल होना, अपनी वृत्ति से आजीविका चलाना और निडर
होकर रहना। ये 6 इस लोक के सुख हैं।
(आठवाँ) - ईर्ष्या
करने वाला, घृणा करने वाला,असंतोषी, क्रोधी, सदा शंकित रहने वाला और दूसरों के भाग्य
पर जीवन निर्वाह करने वाला। ये 6 प्रकार के लोग सदा दुखी रहते हैं।
(नवाँ) - जो किसी
दुर्बल का अपमान नहीं करता, सदा सावधान रहकर शत्रु के साथ बुद्धिमता पूर्वक व्यवहार
करता है, बलवानों के साथ युद्ध पसंद नहीं करता
लेकिन समय आने पर पराक्रम दिखाता है, वही धीर है और वीर है।
(दसवाँ) - जो व्यक्ति आपत्ति आ जाने पर भी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग तथा उपाय का सहारा लेता है और दुख को भी सहज रूप से सहन कर लेता है, ऐसे व्यक्ति के शत्रु तो निश्चित रूप से ही पराजित होते हैं।