Monday 4 May 2020

(3.2.6) Bodhagaya Ke Bodhivriksh Ki Kahani

Bodhgaya ke Bodhivriksh ki Kahani / Bodhivriksh / बोधिवृक्ष की कहानी

बोधगया में स्थित बोधिवृक्ष बौद्ध मत मानने वाले  लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण और पवित्र वृक्ष। इसकी कहानी इस प्रकार है -
सेनानी नामक गाँव की सुजाता नामक महिला ने अपने पुत्र प्राप्ति के लिए एक पीपल के वृक्ष की मनौती कर रखी थी। जब उसके पुत्र हो गया तो उसने अपनी मनौती पूरी करने के लिए गाय के दूध की खीर बनाकर उस वृक्ष के पास पहुँची। सिद्धार्थ ध्यान लगाकर उस वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे। सुजाता को लगा कि मानो पूजा लेने के लिए वृक्ष देवता स्वयं शरीर धारण करके बैठे हुए हैं। सुजाता ने बड़े आदर के साथ सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा , " जैसे मेरी मनोकामना पूर्ण हुई है , उसी तरह आप की मनोकामना भी पूर्ण हो। " सिद्धार्थ ने उस खीर का सेवन करके अपने 49 दिन का उपवास तोड़ा। उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उन्हें सच्चा बोध हुआ , तभी से वे बुद्ध कहलाये। जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध प्राप्त हुआ था , उसका  नाम ही बोधिवृक्ष अर्थात " ज्ञान का वृक्ष " है।
बोधिवृक्ष बिहार राज्य के गया जिले के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर में स्थित है। इस बोधि वृक्ष को अबतक तीन बार नष्ट किये जाने का प्रयास किया जाता रहा है।लेकिन हर बार पीपल का यह वृक्ष नया अवतार लेता गया अर्थात जीवित रहा।
सबसे पहले सम्राट अशोक की रानी तिष्यरक्षिता ने बोधिवृक्ष को उस समय नष्ट करने की कोशिश की जब सम्राट दूर प्रदेशों की यात्रा पर गए हुए थे। लेकिन कुछ ही वर्षों बाद उस वृक्ष की जड़ों से नया वृक्ष उग आया, जो लगभग 800 वर्ष तक रहा।
ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बोधिवृक्ष की टहनियाँ देकर श्री लंका में प्रचार के लिए भेजा था। उन्हीं टहनियों से विकसित हुआ बोधिवृक्ष आज भी श्री लंका के अनुराधापुरम में स्थित है।
दूसरी बार बंगाल के नरेश शशांक जो बौद्ध धर्म का कट्टर शत्रु था , ने इस बोधिवृक्ष को उखड़वाने का प्रयास किया। इस कोशिश में वह असफल रहा तो उसने इस वृक्ष को कटवा कर इसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन कुछ वर्षों बाद इसकी जड़ से नया वृक्ष उग आया।
सन 1876 में यह वृक्ष प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर नष्ट हो गया।  तब लॉर्ड कनिंघम  ने सन 1880 में श्री लंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की टहनियाँ मँगवा  कर इस वृक्ष को यहाँ ( बोधगया ) में पुनः स्थापित करवाया।
7 जुलाई 2013 को आतंकियों ने 9 सीरियल बम धमाके करके इस बोधिवृक्ष  व पूरे महाबोधि मंदिर को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की परन्तु उनका प्रयास विफल रहा। इस आतंकी हमले के बाद से इस बोधिवृक्ष की दिन रात कड़ी सुरक्षा की जाती है।
इस बोधिवृक्ष की  देखरेख महाबोधि मंदिर प्रबंध कार्यकारिणी समिति के जिम्मे है। इसे हरा भरा रखने के लिए विशेषज्ञों द्वारा इसकी जाँच की जाती है। इस पवित्र वृक्ष से अलग हुई टहनियों को मंदिर प्रबंध समिति सुरक्षित रखती है। श्रृद्धालु वृक्ष से गिरने वाले पत्तों को जमा करते हैं और अपने घर ले जाकर उनकी पूजा करते हैं।