Thursday, 5 June 2025

(6.4.25) सूर्यदेव ने गुरु दक्षिणा में हनुमान जी से क्या मांगा? Suryadev Ne Guru Dakshina Me Hanuman Ji Se Kya Manga

सूर्यदेव ने गुरु दक्षिणा में हनुमान जी से  क्या मांगा? Suryadev  Ne  Guru Dakshina  Me Hanuman Ji Se Kya Manga

इस संदर्भ में हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 254 पर एक कथा इस प्रकार है -

हनुमान जी के शिक्षा प्राप्ति के लिये निश्चित उम्र प्राप्त करने पर माता अंजना और पिता केसरी ने उनको शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरु गृह भेजने का निश्चय किया। इसलिए उन्होंने अत्यंत उल्लास पूर्वक हनुमान जी का उपनयन संस्कार कराया और फिर उन्हें विद्या प्राप्ति के लिए गुरु के चरणों में जाने की आज्ञा दी। किंतु वे किस सर्वगुण संपन्न और आदर्श गुरु के समीप जाए? इस पर माता अंजना ने स्नेहपूर्वक कहा कि बेटा सर्वशास्त्र मर्मज्ञ, समस्त लोकों के साक्षी भगवान सूर्य देव हैं। इसलिए तुम उन्हीं के समीप जाकर श्रद्धापूर्वक शिक्षा ग्रहण करो।

फिर क्या था हनुमान जी ने माता-पिता के चरणों में प्रणाम किया, उनका आशीर्वाद प्राप्त किया और दूसरे ही क्षण वे आकाश में उछले और सूर्यदेव के पास पहुँच गए। उनके चरणों में सादर प्रणाम किया। तब सूर्य देव ने पूछा कि बेटा यहाँ कैसे आये हो?

हनुमान जी ने अत्यंत विनम्र वाणी में उत्तर दिया कि प्रभो, मेरा यज्ञोपवीत संस्कार हो जाने पर मेरी माता ने मुझे आपके चरणों में विद्याध्ययन करने के लिए भेजा है। आप कृपा पूर्वक मुझे ज्ञान प्रदान करें।

आदित्य बोले कि बेटा देख लो मेरी बड़ी विचित्र स्थिति है। मेरा रथ  निरंतर चलता रहता है। रथ से उतरना भी मेरे लिए संभव नहीं है। ऐसी दशा में मैं तुम्हें शास्त्र का अध्ययन कैसे करा पाऊँगा ? तुम ही सोच कर कहो कि क्या किया जाए?

भगवान दिवाकर ने ऐसा कहकर टालने का प्रयास किया। किंतु पवन पुत्र ने विनम्रता से कहा, प्रभो, रथ के वेगपूर्वक चलने से मेरे अध्ययन में क्या बाधा पड़ेगी? मैं आपके सम्मुख बैठ जाऊंगा और रथ के वेग के साथ ही आगे बढ़ता रहूंगा।

इस पर सूर्य देव ने हनुमान जी को शिक्षा प्रदान करने का निश्चय कर लिया। वे वेद आदि शास्त्रों एवं समस्त विधाओं के रहस्य को जितनी शीघ्रता से बोल सकते थे, बोलते जाते थे। हनुमान जी शांत भाव से उन्हें सुनते जाते थे। आदित्य नारायण ने हनुमान जी को  कुछ ही दिनों में समस्त वेद आदि शास्त्र, उपशास्त्र एवं विद्याएं सुना दी। सविधि  विद्या अध्ययन हो गया और वे पूर्ण रूप से पारंगत हो गए। 

शिक्षा की समाप्ति के पश्चात अत्यंत भक्ति पूर्वक अपने गुरु सूर्यदेव के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम कर अंजनानंदन ने हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना की कि प्रभो, गुरु दक्षिणा के रूप में आप अपना अभीष्ट व्यक्त करें।

सर्वथा निष्काम सूर्यदेव ने उत्तर दिया कि मुझे तो कुछ नहीं चाहिए, किन्तु यदि तुम मेरे अंश से उत्पन्न कपिराज बाली के छोटे भाई सुग्रीव की रक्षा का वचन दे सकोतो मुझे प्रसन्नता होगी। 

आपकी आज्ञा सिरोधार्य है, गुरुदेव। फिर हनुमान जी ने गुरु के सम्मुख प्रतिज्ञा की कि मेरे रहते सुग्रीव का बाल भी बांका नहीं हो सकेगा; मैं प्रतिज्ञा करता हूं। 

भगवान सूर्य देव ने कहा तुम्हारा सर्वविध मंगल हो और ऐसा कहकर उन्होंने आशीर्वाद दिया।  केसरी नंदन गुरुदेव के चरणों में पुनः साष्टांग लेट गए।

शिक्षा ग्रहण करके परम विद्वान पवन कुमार ने गंधमादन पर्वत पर लौटकर अपने माता-पिता के चरणों पर मस्तक रखा।  माता-पिता के हर्ष की सीमा नहीं थी।  उस दिन उनके यहां ऐसा अद्भुत उत्सव मनाया गया कि गंधमादन पर्वत पर हर्ष और उल्लास  के समारोह का इतना सुंदर और विशद  आयोजन इसके पूर्व कभी किसी ने नहीं देखा था। संपूर्ण कपि समुदाय आनंद विभोर हो गया।  सबने प्राण प्रिय अंजना नंदन को आशीर्वाद प्रदान किया। 

(6.4.24) हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा ? Hanuman Ji Ne Arjun Ka Ghamand Kaise Toda

हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा ? Hanuman Ji  Ne Arjun Ka  Ghamand  Kaise Toda

इस संदर्भ में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के पृष्ठ 363 पर एक कथा इस प्रकार मिलती है - 

यह बात है द्वापर के अंत की। एक दिन अर्जुन अकेले ही सारथी के स्थान पर बैठकर अपना रथ हांक कर अरण्य में घूमते हुए दक्षिण दिशा में चले गए। मध्याह्न काल हो जाने पर उन्होंने रामेश्वर के धनुष कोटि तीर्थ में स्नान किया और फिर गर्व पूर्वक इधर-उधर घूमने लगे। उसी समय उन्होंने एक पर्वत के ऊपर बैठे हुए सामान्य वानर के रूप में महावीर हनुमान जी को देखा। उनका शरीर सुंदर पीले रंग के रोएं से सुशोभित था और वे राम नाम का जप कर रहे थे।

उन्हें देखकर अर्जुन ने पूछा, “अरे वानर तुम कौन हो और तुम्हारा नाम क्या है?”

हँसते हुए हनुमान जी ने उत्तर दिया कि मैं समुद्र पर शिलाओं का सौ योजन विस्तृत सेतु निर्माण कराने वाले प्रभु श्री राम का सेवक हनुमान हूँ।

अर्जुन ने गर्व में भरकर कहा कि समुद्र पर सेतु तो कोई भी महा धनुर्धारी अपने वाणों से बना लेता। श्री राम ने शिलाओं का सेतु बनाकर व्यर्थ ही प्रयास किया। हनुमान जी ने तुरंत उत्तर दिया कि वाणों का सेतु हमारे जैसे वानरों का भार नहीं सह सकता था, इसी कारण प्रभु ने शरसेतु यानि वाणों के सेतु का निर्माण करने पर विचार ही नहीं किया।

इस पर अर्जुन बोले कि यदि वानर और भालुओं के आवागमन से ही सेतु टूट जाए, तो वह धनुर्विद्या ही कैसी?  तुम अभी मेरी धनुर्विद्या का चमत्कार देखो। मैं अपने वाणों से समुद्र पर सौ योजन लंबा सेतु निर्माण कर देता हूँ। तुम उस पर आनंदपूर्वक उछल - कूद करना।

हनुमान जी हँस पड़े और बोले, ठीक है, आप अपना पराक्रम दिखाओ।

अच्छी बात है, कहते हुए अर्जुन ने अपना विशाल गाण्डीव धनुष हाथ में लिया और कुछ ही क्षण में समुद्र पर अपने वाणों से सौ योजन लम्बा और मजबूत सेतु तैयार कर दिया। तब उन्होंने महावीर हनुमान जी से कहा कि वानरराज, अब तुम अपनी इच्छा अनुसार इस पर उछल कूद करके देख लो।

हनुमान जी ने हँसते हुए उस सेतु पर अपना अंगूठा रखा ही था कि वह शर सेतु सरसरा कर  टूट गया और समुद्र में डूब गया।

यह देखकर अर्जुन का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी होने का घमंड चूर चूर हो गया और उनके मुँह पर लज्जा का भाव स्पष्ट दिखने लगा। और उधर हनुमान जी पर गंधर्वों और देवताओं का समुदाय स्वर्गीय सुमनों की वृष्टि करने लगा।

Monday, 2 June 2025

(6.4.25) हनुमान जी को पवन तनय क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji Ko Pawan Tanay / Pawan Putra Kyon Kahate Hain

हनुमान जी को पवन तनय क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji Ko Pawan  Tanay / Pawan  Putra Kyon  Kahate Hain

इस संदर्भ में हनुमान अंक के पृष्ठ  संख्या 124 पर एक कथा इस प्रकार है

अप्सराओं में परम रूपवती पुंजिकस्थला नाम की एक लोक विख्यात अप्सरा थी। इसी ने ऋषि के श्राप से काम रुपिणी वानरी होकर पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। वही कपि श्रेष्ठ केसरी की भार्या होकर अंजना नाम से विख्यात हुई। पर्वत श्रेष्ठ सुमेरू पर केसरी राज्य करते थे। अंजना उनकी एक प्रियतमा पत्नी थी। वानरपति केसरी और अंजना दोनों एक दिन मनुष्य का वेष धारण करके पर्वत शिखर पर विहार कर रहे थे। अंजना का मनोहर रूप देखकर पवन देव मोहित हो गए और उन्होंने उसका आलिंगन किया। साधु चरित्रा अंजना ने आश्चर्यचकित होकर कहा कौन दुरात्मा मेरा पातिव्रत्य धर्म नष्ट करने को तैयार हुआ है? मैं अभी श्राप देकर उसे भस्म कर दूंगी।सती साध्वी अंजना की यह बात सुनकर पवन देव ने कहा सुश्रोणि मैंने तुम्हारा पातिव्रत्य नष्ट नहीं किया है। यदि तुम्हें कुछ भी संदेह हो तो इसे दूर कर दो। मैंने मानसिक संस्पर्श किया है। उससे तुम्हारे एक पुत्र होगा, जो शक्ति एवं पराक्रम में मेरे समान ही होगा, भगवान का सेवक होगा और बल बुद्धि में अनुपमेय होगा। मैं उसकी रक्षा करूंगा।

इस प्रकार भगवान शंकर ने अंश रूप में वायु का माध्यम लेकर अंजना के गर्भ से पुत्र उत्पन्न किया, जो भविष्य में शंकर सुवनपवन पुत्र, केसरी नंदन, आञ्जनेय आदि कहलाया। वे ही हनुमान जी अपनी अद्वितीय सेवाचर्या से भगवान श्री राम के अभिन्न अंग बन गए। 

(6.4.22) शंकर स्वयं या शंकर सुवन Shankar Suwan or Shankar Swyam इनमें से क्या सही है?

शंकर स्वयं या शंकर सुवन Shankar Suwan or Shankar Swyam इनमें से क्या सही है? शास्त्रीय  प्रमाण सहित जानिए

पुराणों में और इतिहास में श्री हनुमान चरित्र का अनेक रूपों में वर्णन मिलता है। श्री हनुमान जी कहीं पर शंकर सुवन है, कहीं पवन तनय हैं, कहीं केसरी नंदन है, कहीं आञ्जनेय हैं और कहीं साक्षात शंकर के रूप में वर्णित है।

हम विभिन्न प्रमाणों के आधार पर जानेंगे कि हनुमान जी स्वयं ही शंकर हैं या शंकर सुवन यानि शंकर के पुत्र हैं।

सबसे पहले हम जानेंगे कि भगवान शंकर स्वयं ही हनुमान जी हैं यानि हनुमान जी शंकर के ही अवतार हैं -

प्रसंगवश एक बार भगवान शंकर ने भगवती सती से कहा कि रावण ने मेरी भक्ति तो की है, परंतु उसने मेरे एक अंश की अवहेलना भी की है। तुम जानती ही हो कि मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूँ। जब उसने अपने 10 सिर अर्पित कर मेरी पूजा की थी, तब उसने मेरे एक अंश को बिना पूजा किए ही छोड़ दिया था। अब मैं उसी ग्यारहवें अंश से उसके विरुद्ध युद्ध करके अपने प्रभु श्री राम की सेवा कर सकता हूँ। मैंने वायु देवता के द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है। यह सुनकर भगवती सती प्रसन्न हो गई।

इस प्रकार भगवान शंकर ही हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए थे।

इस तथ्य की पुष्टि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित दोहावली के दोहा संख्या 142 से भी होती है। यह दोहा इस प्रकार है - 

जेहि सरीर रति राम सों, सोई आदरहिं सुजान।

रुद्रदेह तजि नेह बस वानर भे हनुमान।

अर्थात सज्जन उसी शरीर का आदर करते हैं जिसको श्री राम से प्रेम हो। इसी स्नेह वश रुद्र देह त्याग कर शंकर जी ने हनुमान जी के रूप में वानर शरीर धारण किया है अर्थात भगवान शंकर ही हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए हैं।

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित विनय पत्रिका के परिशिष्ट में एक कथा इस प्रकार मिलती है -

एक बार शिवजी ने श्री रामचंद्र जी की स्तुति की और यह वर मांगा कि हे प्रभु, मैं दास भाव से आपकी सेवा करना चाहता हूँ, इसलिए कृपा करके मेरा मनोरथ पूर्ण कीजिए। श्री रामचंद्र जी ने तथास्तुकहा। वही शिवजी हनुमान जी के रूप में अवतीर्ण होकर श्री राम के प्रमुख सेवक बने।

इससे भी यह सिद्ध होता है कि शंकर स्वयं ही हनुमान जी हैं।

अब हम जानेंगे कि हनुमान जी को शंकर सुवन यानि शंकर का पुत्र क्यों कहा जाता है?

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 123 के अनुसार हनुमान जी के जन्म  का संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है -

एक समय भगवान शम्भु को भगवान विष्णु के मोहिनी रूप का दर्शन प्राप्त हुआ। उस समय ईश्वर की इच्छा से राम कार्य की सिद्धि हेतु उनका वीर्य स्खलित हो गया। उसी  वीर्य को सप्तऋषियों ने पत्र - पुटक में सुरक्षित करके रख दिया। तत्पश्चात उन्होंने ही शम्भु की प्रेरणा से उस वीर्य को गौतम कन्या अंजना में कान के रास्ते से स्थापित कर दिया। समय आने पर उस गर्भ से वानर शरीरधारी महा पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ, जो शंकर सुवन श्री हनुमान के नाम से विश्व में विख्यात हुए।

आनन्द रामायण के अनुसार एक अन्य कथा, जो यह बताती है कि हनुमान जी शंकर के पुत्र हैं,  इस प्रकार है - 

सती साध्वी अंजना ने पुत्र प्राप्ति की कामना से भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिये कठिन तपस्या की। दीर्घकाल बीतने पर भगवान शंकर उसके तप से प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब अंजना ने शंकर के समान भोले भक्त, किंतु पवन के समान पराक्रमी पुत्र देने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने कहा कि रूद्रगणों में से ग्यारहवें महारूद्र तुम्हारे पुत्र होंगे। तुम हाथ फैला कर एवं आंखें बंद करके मेरे ध्यान में थोड़ी देर खड़ी रहो। थोड़ी देर में पवन देव तुम्हारे हाथों में प्रसाद रखेंगे। उस प्रसाद के खाने से निश्चय ही रुद्रावतार, परम तेजस्वी, वज्रांग शरीर, पुत्र रत्न तुम्हें प्राप्त होगा। ऐसा कहकर शिवजी अंतर्ध्यान हो गए।

इसी बीच राजा दशरथ  के पुत्रेष्टि यज्ञ में अग्नि द्वारा दी गई यज्ञ खीर के कुछ अंश को कैकयी के हाथ से एक चील लेकर आकाश में उड़ गई। उसी समय भगवान की कृपा से भयंकर आंधी उठी। वह खीर चील के मुख से छूटकर वायु द्वारा अंजना की अंजलि में गिर गई। उसी क्षण अंजना ने उसे खा लिया। उस खीर के खाने से वह गर्भवती हुई और नौ मास बीतने पर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंगलवार के दिन मंगल वेला में श्री हनुमान जी का जन्म हुआ।

इन सभी पौराणिक कथाओं से सिद्ध होता है कि भगवान शंकर स्वयं ही हनुमान जी भी हैं यानि हनुमान जी शंकर के ही अवतार भी हैं और शंकर सुवन यानि शंकर के पुत्र भी हैं।  

(4.6.21) हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji Ko Shankar Suwan Kyon Kaha Jata Hai

हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहा जाता है? Hanuman Ji  Ko Shankar Suwan  Kyon  Kaha Jata  Hai ?

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 123 के अनुसार हनुमान जी के जन्म का संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है -

एक समय भगवान शम्भु को भगवान विष्णु के मोहिनी रूप का दर्शन प्राप्त हुआ। उस समय ईश्वर की इच्छा से राम कार्य की सिद्धि हेतु उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को सप्तऋषियों ने पत्र - पुटक में सुरक्षित करके रख दिया। तत्पश्चात उन्होंने ही शम्भु की प्रेरणा से उस वीर्य को गौतम कन्या अंजना में कान  के रास्ते स्थापित कर दिया। समय आने पर उस गर्भ से वानर शरीरधारी महा पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ, जो शंकर सुवन श्री हनुमान के नाम से विश्व में विख्यात हुए।

कथा भेद से इसका वर्णन इस प्रकार भी है - मोहिनी रूप दर्शन से स्खलित हुए शम्भु वीर्य के विषय में भगवान विष्णु विचार करने लगे कि इस शम्भु सम्भूत शुक्र का क्या उपयोग किया जाए? कुछ सोच विचार कर उन दोनों यानि विष्णु और शम्भु ने मुनियों का रूप धारण किया और उस वीर्य को पत्र - द्रोण में लेकर वन ही वन आगे बढ़े। कुछ दूर जाने पर उन लोगों ने एक कन्या देखी, जो घोर तपस्या में निरत थी। वे उसके पास जाकर बोले तपस्विनी कन्या ! यह क्या कर रही हो? बिना दीक्षा लिए तुम्हारी तपस्या सफल नहीं हो सकती अतः शीघ्र किसी योग्य मुनि से दीक्षा ले लो।

तपोनिष्ठ कन्या अंजना ने उन दोनों मुनियों की बात सुनकर मन में विचार किया कि ये तो सर्व काल दृष्टा हैं। मेरे भूतकाल की बात को सत्य -  सत्य कह रहे हैं, अतः क्यों नहीं इन्हीं से मंत्र दीक्षा ले ली जाए। यह सोचकर अंजना बोली मुनिवर! आप योग्य एवं समर्थ हैं। मैं दीक्षित होने के लिए और कहां भटकूंगी; आप लोग ही मुझे मंत्र दीक्षा दे दें।

तब मुनि रूप धारी विष्णु ने अंजना को मंत्र दीक्षा दी। दीक्षा देते समय उन्होंने शम्भु वीर्य को मंत्र से अभिमंत्रित कर कान के द्वारा अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया। उस शम्भु शुक्र से उद्भूत श्री हनुमान जी अंजनी नंदन, शंकर सुवन कहलाए।  

(7.3.5)क्या सिजेरियन डिलीवरी मुहूर्त देख कर करवानी चाहिये या नहीं Muhurat For Cesarean Delivery/ C– Section Delivery

क्या सिजेरियन डिलीवरी मुहूर्त देख कर करवानी चाहिये या नहीं Muhurat For Cesarean Delivery/ C– Section Delivery

कुछ माता-पिता या घर के बड़े बुजुर्ग इस बात पर जोर डालते हैं कि बच्चे का जन्म किसी शुभ दिन, शुभ समय, शुभ लग्न और शुभ नक्षत्र में ही होना चाहिए। इसलिए वे सिजेरियन डिलीवरी के लिए किसी ज्योतिषी से मुहूर्त निकलवाते हैं और डॉक्टर से आग्रह करते हैं कि वह ज्योतिषी के बताए हुए समय के अनुसार ही ऑपरेशन करके बच्चे का जन्म करवाए।

ऐसा करके वे मानते हैं कि उनका बच्चा भाग्यशाली बन जाएगा और उसके जीवन में अब किसी भी तरह की अप्रिय घटना या परेशानी  नहीं आएगी क्योंकि शुभ घड़ी में उसने जन्म लिया है।

परंतु ऐसा कुछ नहीं है। यह केवल मन को समझने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। जन्म और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है। भाग्य लिखने वाला भी वही है। इसलिए सभी बातें ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। किसी बच्चे का भाग्य बनाने या बदलने का प्रयास करना एक बहुत बड़ी भूल के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

शुभ मुहूर्त देखकर समय से पहले या बाद में प्रसव करवाना सही नहीं है यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध है। जो प्राकृतिक व स्वाभाविक रूप से होता है उसी में ग्रहों का सही प्रभाव दिखता है।

जिस प्राणी का जन्म होना है, उसके जन्म का समय ईश्वर द्वारा निर्धारित है। मुहूर्त के अनुसार सिजेरियन डिलीवरी करवाना  विधि के विधान के विपरीत है। लोगों का यह भ्रम है कि हम हमारे बच्चे को मुहूर्त के अनुसार सही समय जन्म देकर उसकी जन्म पत्रिका में सभी ग्रहों को शुभ स्थिति में ला देंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है।

लंका पति रावण अपने पुत्र मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रहों को  अपने हिसाब से उसकी जन्म कुंडली में स्थापित करना चाहता था। अन्य ग्रहों ने तो उसकी बात मान ली लेकिन शनि ने उसकी बात नहीं मानी। रावण इतना विद्वान और समर्थ  होते हुए भी वह उसकी इच्छा के अनुसार उसके पुत्र मेघनाद की कुंडली में सभी ग्रहों को स्थापित नहीं कर पाया, तो कौन ऐसा है जो किसी जातक की ग्रह स्थिति को बदल दे।

मेरा मानना है कि न तो होने वाले बच्चे के माता पिता को मुहूर्त के अनुसार सिजेरियन डिलीवरी करवानी चाहिए और न ही ज्योतिषी को सिजेरियन डिलीवरी का मुहूर्त निकालना चाहिए।

होने वाले बच्चे के माता पिता को डॉक्टर से कहना चाहिए कि वह चिकित्सीय स्थिति के अनुसार जब भी और जो भी उचित समझे उसके अनुसार डिलीवरी करवा दे। ईश्वर इच्छा के अनुसार डॉक्टर को जो भी प्रेरणा मिलेगी उसके अनुसार ही जन्म हो जाएगा। आने वाला जातक अपने कर्मों के अनुसार अपना भाग्य लेकर आता है। क्या कोई भी ज्योतिषी, कोई  भी विद्वान अपनी गणना से, अपने हिसाब से समय निर्धारित करके उसके भाग्य को बदलने की क्षमता रखता है क्या? उत्तर होगा, नहीं।

इसके अतिरिक्त यदि डॉक्टर ने किसी मुहूर्त के अनुसार सिजेरियन डिलीवरी कर भी दी तो होने वाले बच्चे की जन्म पत्रिका वैसा फल नहीं देगी जैसा बिना मुहूर्त के डॉक्टर स्वविवेक व चिकत्सीय आवश्कताओं को ध्यान में रख कर सिजेरियन डिलीवरी करता। इसलिए मुहूर्त निकलवा कर डिलीवरी करवाना किसी भी तरह से उचित नहीं है।