Saturday 29 November 2014

(3.1.1) Prarthana (Prayer)

Prarthana Kya Hai (प्रार्थना क्या है ?)
प्रार्थना का लाभ क्या है ?

प्रार्थना  ईश्वर  के प्रति अंतर आत्मा   से निकली हुई पुकार है . इस पुकार में बनावटीपन  नहीं होता है . हृदय   की गहराई  से निकली  हुई पुकार कभी भी निष्फल नहीं होती क्योकि इसमें गहन आस्था और प्रबल विश्वास होता है . इसका परिणाम हमेशा सकारात्मक होता है . हमारे प्राचीन ग्रंथो में भक्तो के द्वारा  की गयीअंतर आत्मा  की पुकार और  ईश्वर द्वारा उस पुकार के प्रत्युतर के कई उदाहरण  है . जब ये पुकार द्रोपदी ,मीरा ,प्रहलाद , आदि के श्रद्धा ,आस्था व विश्वास  से भरे हृदय  से निकली तो भगवान ने उनकी सहायता की।
  जब व्यक्ति मन और वाणी को एक करके विश्वास के साथ किसी सकारात्मक  मनोकामना  के लिए प्रार्थना करता है तो ईश्वर  उस पवित्र ह्रदय से निकली हुई प्राथर्ना को स्वीकार करता है . प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति पर ईश्वरीय प्रेम और कृपा की  वृष्टि   होती है . यह कृपा वृष्टि  व्यक्ति को कष्टों से छुटकारा दिलाती है और सही मार्गदर्शन प्रदान करती है .
  यह सार्वभोमिक तथ्य है की जब व्यक्ति के लिए संपूर्ण मार्ग बंद हो जाते है तो केवल प्राथर्ना का मार्ग ही बचा रहता है .एशिया में ही नहीं बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी प्राथर्ना को लेकर शोध किये गए है . जिन बीमार व्यक्तियों के लिए प्रार्थना की गयी उनकी शारीरिक और मानसिक व्याधिया तुलनात्मक रूप से शीघ्र दूर हुई है .
 प्रार्थना व्यक्ति की समस्याओ का विधेयात्मक   समाधान है।  प्रार्थना व्यक्ति के मन को नियंत्रित करती है। उसके चित्त की शुद्धि करती है, चेतना परिष्कृत और विकसित होती है। प्रार्थना देवत्व की अनुभूति का श्रेष्ठ माध्यम है। सच्ची श्रद्धा तथा विश्वास से युक्त प्रार्थना करने से ह्रदय में शान्ति की  धारा  प्रवाहित होती है तथा आत्मा में आनंद की वृष्टि होती है। व्यक्ति की शुभ और कल्याणकारी कामना अवश्य पूर्ण होती है। अंतःकरण को मलीन बनाने वाली कुत्सित भावनाओ तथा स्वार्थ एवं संकीर्णताओं से छुटकारा मिलता है। शरीर स्वस्थ तथा परिपुष्ट, मन सूक्ष्म तथा उन्नत और आत्मा पवित्र तथा निर्मल हो जाती है। दुःख के स्थान पर सुख का आनंद प्राप्त होता है। प्रार्थना व्यक्ति में यह भाव उत्पन्न करती है कि वह समस्या का सामना करने के लिए अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ दिव्य शक्ति भी है।
भिन्न-भिन्न धर्म के अनुयायी भिन्न-भिन्न तरीकों से प्रार्थना करते हैं परन्तु सभी धर्मो में प्रार्थना का एक ही लक्ष्य है ईश्वर से निकटता, उसका सानिध्य, उसकी कृपा दृष्टि और उसका मार्गदर्शन प्राप्त करना। प्रार्थना करने के लिए किसी निश्चित औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है। प्रार्थना के लिए कुछ समय तक शांत होकर बैठे, अपने मन को ईश्वरीय सत्ता पर केन्द्रित कीजिये। सहज भाव से ईश्वर के अस्तित्व के बारे में सोचिये। ईश्वर से  सरल और स्वाभाविक तरीके से बात करिए क्योंकि उससे बात करने के लिए औपचारिक शब्दों की आवश्यकता नहीं है। प्रार्थना करते समय आश्वस्त होइए कि ईश्वर आपके साथ है और वह आपकी सहायता कर रहा है। वह आपकी ओर दिव्य शक्ति प्रवाहित कर रहा है, शुभाशीष दे रहा है तथा आपकी कल्याणकारी प्रार्थना को स्वीकार कर रहा है।
प्रार्थना का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल है। प्रार्थना से दिन की शुरुआत करने से व्यक्ति के मन में उत्साह, उल्लास व आत्मविश्वास भर जाता है। लेकिन ईश वंदना करने का सबसे अच्छा समय होता है जब व्यक्ति का मन प्रार्थना करने का होता है। इस स्थिति में व्यक्ति ईश्वर के निकट होता है। दिन रात में किसी भी समय चाहे आप यात्रा कर रहे हो, अपना कार्य प्रारंभ कर रहे हो, कुछ क्षणों के लिए आप अपनी आँखें बंद कर लो और ईश्वर से सहज शब्दों में प्रार्थना करो इससे आपको ईश्वर की समीपता का आभास होगा और दिव्य ज्योति आपको सही मार्ग दिखाती हुई प्रतीत होगी। विशेष रूप से जब आप विपदा में हो और कोई अन्य उपाय नहीं सूझ रहा हो तो ईश्वर से की गयी प्रार्थना के परिणामस्वरूप दिव्यज्योति से निकली हुई आशा की किरण दिखाई देगी। इस किरण में सन्देश होगा कि जो मनुष्य के लिए असंभव है वह ईश्वर के लिए संभव है।
प्रार्थना के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि आप किसी कार्य के लिए प्रार्थना कर रहे है और ईश्वर आपकी प्रार्थना को स्वीकार कर रहा है लेकिन साथ ही  यह  संदेह या भय आपके मन में उत्पन्न हो जाए कि आपकी प्रार्थना अनसुनी रह जायेगी या इस प्रार्थना के अनुरूप कार्य नहीं होगा या प्रार्थना से कुछ भी नहीं होने वाला है तो निश्चित मानिए कुछ नहीं होगा तथा आपकी प्रार्थना व्यर्थ जायेगी। प्रार्थना का फल इस बात पर निर्भर करता है कि आप प्रार्थना के अनुरूप कितने फल की आशा करते है। आपमें स्वयं पर, प्रार्थना पर और आराध्यदेव पर जितना ज्यादा विश्वास होगा प्रतिफल उतना ही ज्यादा  मिलेगा।