Saturday 29 November 2014

(3.1.3) Hanuman ji ka Janm ( Birth of Hanuman)


The Birth of Hanuman ji. / हनुमान जी का जन्म 

कपिराज केसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ सुमेरू पर्वत पर निवास करते थे।  अंजना ने पुत्र की प्राप्ति के लिए सात सहस्त्र वर्षों तक भगवान् शिव की उपासना की।  प्रसन्न होकर आशुतोष ने अंजना से वर मांगने  के लिए कहा।  अंजना ने भगवान् शिव के चरणों में प्रणाम कर अत्यंत विनयपूर्वक याचना की - "करूणामय शम्भो, मैं समस्त गुणों से संपन्न योग्यतम पुत्र चाहती  हूँ। "
भगवान् भोले नाथ ने कहा, " एकादश रूद्र के रूप में मेरा अंश ग्यारहवां रूद्र रूप ही तुम्हारे पुत्र के रूप में प्रकट होगा। तुम मंत्र ग्रहण करो।  पवन देवता तुम्हे प्रसाद देंगे।  पवन के उस प्रसाद से ही तुम्हे सर्वगुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति होगी।  भगवान् शिव अंतर्ध्यान हो गये और भगवती अंजना अंजली पसारे शिव प्रदत्त मंत्र का जप करने लगी।  उसी समय एक गृध्री कैकयी के भाग का पायस लिए आकाश में उड़ती जा रही थी।  सहसा झंझावात आया, गृध्री का अंग सिकुड़ने लगा और पायस उसकी चोंच से नीचे गिर गया। पवन देव ने उसे अंजना की अंजलि में डाल दिया।  भगवन शंकर पहले ही यह सब बता चुके थे। इसलिए अंजना ने तुरंत पवन प्रदत्त चरु अत्यंत आदरपूर्वक ग्रहण कर लिया और वे गर्भवती हो गयी।  
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को भगवान् शिव अपने  आराध्या देव श्री राम की मुनि-महमोहिनी अवतार लीला के दर्शन एवं उसमें सहायता प्रदान करने के  लिए अपने अंश ग्यारहवें रूद्र से इस शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त में माता अंजना के गर्भ से पवन पुत्र महावीर हनुमान के रूप में धरती पर अवतरित हुए।  
कल्प भेद से कुछ लोग इनका प्राकट्य काल चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में मानते है , कुछ कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को और कुछ कार्तिकी पूर्णिमा को पवन पुत्र का जन्म  मानते है। कोई मंगलवार तो कोई शनिवार उनका जन्म  दिन स्वीकार करतें है।  
भाग्यवती धरित्री पर हनुमान जी के चरण रखते ही माता अंजना और कपिराज केसरी के आनंद की तो सीमा नहीं रही।  देवगण ,ऋषिगण, कपिगण, पर्वत, प्रपात, सर, सरिता, समुद्र, पशु-पक्षी और जड़-चेतन ही नहीं, स्वयं माता वसुंधरा पुलकित हो उठी। सवत्र हर्ष एवं उल्लास फैला हुआ था।  चतुर्दिक  आनंद का साम्राज्य व्याप्त हो गया था।