Saturday 29 November 2014

(3.1.2) Aarti / Aarti Kya Hai

आरती / आरती क्या है ? (What is Aarti )


आरती शब्द का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है।  १. हिन्दू पूजा के भाग के रूप में, २. गायन के रूप में। 
हिन्दू पूजा विधि में सोलह उपचार होतें है।  आरती भी उनमे से एक है।  किसी देवता के प्रति सम्मान व श्रृद्धा प्रकट करने के लिए लय बद्ध  गायन  के लिए भी 'आरती ' शब्द का प्रयोग किया जाता है।  आरती को 'आरात्रिका' या 'आरार्तिका' या 'नीराजन ' भी कहा  जाता है । 
Why is Aarti Performed ? (आरती क्यों की जाती है?)
आरती षोड्शोपचार पूजा का एक भाग है।  ऐसा मना माना जाता है कि किसी देवता की पूजा विधि पूर्वक करने के उपरान्त भी कोई त्रुटि रह सकती है। आरती से उस रही हुई त्रुटि की पूर्ति हो जाती है।  
स्कन्द पुराण के अनुसार -
"मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजन हरे:।
सर्वे संपूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।
अर्थात मंत्र हींन  और क्रियाहीन  होने पर भी नीराजन  (आरती ) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती है। 
How is Aarti Performed ? (आरती कैसे की जाती है ?)
ढ़ोल, नगाड़े, शंख, घड़ियाल, आदि महावाद्यो तथा जय-जय कार शब्द के साथ घी से या कपूर से विषम संख्या में बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।  सामान्यतया पाँच बत्तियों से आरती की जाती है।  इसे "पंच प्रदीप "  कहते है। एक, सात या इससे अधिक बत्तियां जलाकर भी आरती की जा सकती है।  आरती के पांच अंग होते है।  प्रथम दीपमाला के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हुऐ वस्त्र से, चौथे आम या पीपल आदि के पत्ते से और पांचवे साष्टाँग दण्डवत से आरती की जाती है। आरती करते समय सर्व प्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमाएं, दो बार नाभि देश में, एक बार मुख मंडल पर और सात बार समस्त अंगो पर घुमाएं।यथार्थ में आरती पूजा के अंत में इष्ट देव की प्रसन्नता हेतु की जाती है। इसमें इष्ट देव को  दीपक दिखाने के साथ ही उनका  स्तवन और गुणगान भी किया जाता है।
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