श्रृंगी ऋषि जयंती / श्रृंगी ऋषि और देवी शान्ता Shringi Rishi Jayanti / Shringi Rishi Aur Devi Shaantaa
यह
तो सभी जानते हैं कि राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजा दशरथ के पुत्र
थे। परन्तु यह बहुत कम लोग जानते हैं कि
राजा दशरथ के एक पुत्री भी थी, जिसका
नाम था शांता,
जो राम की बड़ी बहन थी।
एक
मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक बार अंग देश के राजा रोमपाद अपनी पत्नी
वर्षिनी के साथ अयोध्या आए थे। वर्षिनी कौशल्या की बड़ी बहन थी। राजा रोमपाद और
वर्षिनी के कोई संतान नहीं थी। बातचीत के दौरान जब राजा दशरथ को इस बात का पता चला
तो उन्होंने कहा कि आप मेरी पुत्री शांता को संतान के रूप में गोद ले लीजिए। राजा
दशरथ की यह बात सुनकर रोमपाद और वर्षिनी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने शांता को गोद
ले लिया और बहुत ही स्नेह पूर्ण उसका पालन पोषण किया तथा माता-पिता की तरह सारे
कर्तव्य निभाएं।
एक
बार रोमपाद के राज्य अंग देश में लम्बे समय तक वर्षा नहीं हुई, जिससे वहाँ अकाल की स्थिति हो गयी और
सब तरफ घोर निराशा छा गई। इस संकट की घड़ी का सामना करने के लिए राजा रोमपाद ने
शास्त्रों की ज्ञाता ब्राह्मणों को बुलाया और उनसे इस अनावृष्टि के संकट से उबरने
का उपाय पूछा। इस पर ब्राह्मणों ने कहा कि यदि किसी तरह विभण्डक ऋषि के पुत्र
श्रृंगी ऋषि को यहाँ अर्थात अंग देश लाकर यथाविधि उनका आदर सत्कार किया जाए, तो यहाँ वर्षा हो सकती है और अकाल से
मुक्ति मिल सकती है।
राजा
रोमपाद ने अपने मंत्रियों से श्रृंगी ऋषि को अंगदेश लाने का उपाय पूछा तो
प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि वैसे तो उन्हें उनके आश्रम से यहाँ लाना बहुत
कठिन है, परंतु यदि रूपवती और अलंकार युक्त
गणिकाएं भेजी जाए तो वे श्रृंगी ऋषि को रिझा कर यहाँ ला सकती हैं। हुआ भी ऐसा ही
वे श्रृंगी ऋषि को मोहित करके उन्हें अपने
साथ अंग देश ले आयी।
श्रृंगी
ऋषि जी के नगर में पहुंचते ही रोमपाद के राज्य में वर्षा होने लगी, जिससे सभी प्राणी प्रसन्न हो गए। राजा
रोमपाद ने श्रृंगी ऋषि का विवाह अपनी दत्तक पुत्री शांता से कर दिया।
इसके
कुछ समय बाद राजा दशरथ ने श्रृंगीऋषि जी से पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया। परिणाम स्वरूप
राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
देश
के कई स्थानों पर श्रृंगी ऋषि के मन्दिर हैं। इन मन्दिरों में श्रृंगी ऋषि के साथ
देवी शांता की प्रतिमा भी विराजमान है। यहाँ दोनों की पूजा होती है और दूर-दूर से श्रद्धालु
उनके दर्शन करने के लिए आते हैं।